कोरोना वायरस की विनाशलीला भारत में जारी है।  सरकारी तौर पर साढ़े तीन से  चार लाख लोग इस वायरस से रोजाना संक्रमित हो रहे हैं और 3 से 4 हजार की संख्या में मौतें प्रतिदिन हो रही हैं। वास्तविक संख्या की तो बात ही नहीं कीजिए और भयभीत हो जायेंगे। देश अभी भी ऑक्सीजन की बद-इतंजामी, दवा और वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है। 


हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से सरकार को निरंतर फटकार पड़ रही है। प्रधानमंत्री को जिस गंगा माई ने बुलाया था उस गंगा माई में बिन बुलाये लोगों की लाशें बहायी जा रही हैं। जिस यूपी में कब्रिस्तान और श्मशान का फर्क बताया गया था और एक हिन्दु महंथ को सत्ता सौंपी थी वहां जिन्हें जलना चाहिए वे भी दफन हो रहे हैं। 


कहां है हिन्दु धर्म के कथित रक्षक?  कहां गई गो रक्षक की सेना? धर्म खतरे में है और "तू छुपा है कहां, हिन्दुओं को भी दफनाता यहां"? क्या ऑक्सीजन सिलेंडर के चक्कर में हैं। अच्छा कोई बात नहीं बच गए तो फिर वापस काम पे लग जाना है । यूपी और उत्तराखंड में आग भी तो लगाने हैं- अरे धत् चुनाव कराने हैं। लगता है post covid का असर पूरा गया नहीं -गलती हो जाती है।


 


ऐसे में बीजेपी सरकार ,पार्टी और मूल विचारधारा आरएसएस में, लोगों की जान से अधिक अपने नेता के इमेज बचाने की  चिंता हो गई है। इस स्थिति ने उनमें छटपटाहट की हद तक बेचैन सकारात्मकता पैदा कर दी है। क्योंकि उनके पास ले-देकर नेता का ईमेज ही है और दूसरे नेता को बेस पसं....अरे नहीं! फिर गलती! ईमेज पसंद है! याद करें वीडियो कांफ्रेंसिंग को लाईव करने पर केजरीवाल को डांट पड़ी थी।



सकारात्मकता की ये बेचैनी इतनी है कि हैं बंगाल रिजल्ट के बाद अन्तर्ध्यान हुए नेता ने आगामी 30 मई के मन की बात में लोगों में सकारात्मकता का जश्न मनाने की ही घोषणा कर दी है। मरघट में जश्न! बर्बादियों का जश्न मतलब -देवानंद! एक बार फिर दिया जलाओ,थाली बजाओ, फूल बरसाओ जैसे कार्यक्रम। क्यों? ऑक्सीजन की भीख मांगते  लोगों में सकारात्मकता का लेमनचूस बांटना है! हम 21 सदी में हैं  या कि मुहम्मद बिन तुगलक के समय में। हर समस्या का ऐसा ही डपोरशंखी समाधान! क्या इस सरकार की यही है काबिलियत?



विदेशी मीडिया में  प्रधानमंत्री श्री मोदी और उनकी सरकार की लापरवाही और अक्षमता को लेकर भद पिट रही है।फ्रांसीसी अखबार Le Monde ने छापा की श्री नरेन्द्र मोदी की अदूरदर्शिता , अहंकार और मिथ्याभिमान स्पष्ट रूप ऐसे कारण हैं जिसके चलते भारत में स्थिति अब नियंत्रण से बाहर हो गए हैं। ब्रिटेन के Financial Times ने लिखा "जब तक मोदी जवाबदेही नहीं लेंगे तब तक और चिताएं जलेंगी"। 


प्रसिद्ध Time magazineका कहना है कि सिर्फ मोदी ही नहीं, भारत के मीडिया को भी कोविड-19 संकट की जिम्मेदारी लेनी चाहिए' क्यों कि उन्होंने नियमित रूप से  सरकार की सफलताओं को झूठ-मूठ से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।The guardian  ने  6 मई 2021के अंक लिखा है कि भारत अपने कोविड संकट को छुपा रहा है - और पूरी दुनिया को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इसी लेख में यह भी है कि "मोदी की सरकार के पास जान बचाने और चेहरा बचाने के बीच एक विकल्प था। इसने बाद वाले को चुना है"।

 

विदेशों में मोदी सरकार की थू-थू होते देख मोदी भक्तों की टोली सक्रिय हुई। Daily Guardian  नामक एक निम्नस्तरीय मामूली इपेपर में भक्त का एक लेख छाप कर श्री नरेन्द्र मोदी की जमकर तारीफ की है और साथ ही अमेरिका और भारत के कोरोना विनाश के पीछे चीन की साजिश बतलाया है।


लेकिन क्या चीन ने भारत को कहा था कि कोरोना के खिलाफ ढ़िलाई बरते , चुनाव करवाये और तो और लाखों लोगों को कुंभ नहवाये। क्या चीन के कहने पर ऑक्सीजन , दवाईयां और इंजेक्शन विदेशों को बेचे गए। चीन ने कहा था कि ऑक्सीजन प्लांट का सिर्फ टेंडर निकाल कर छोड़ दो। वस्तुत : अमेरिका और भारत दोनों की सरकार सबसे  नाकाबिल और लापरवाह थी इसलिए विनाश भी यहां अधिक हो रहे हैं। 


6.5 करोड़ इंजेक्शन बेचे जाने पर सफाई दी जा रही है इसमें 16% ही भारत सरकार ने दिए हैं बाकि 84% कमर्शियल जिम्मेदारी के तहत दी गई है। ऐसा था जनवरी 2021 में यूएनओ में भारत के प्रतिनिधि  कैसे मूर्खतापूर्ण गर्व के साथ घोषणा कर रहे थे भारत ऐसा महान देश है जो अपने नागरिकों से अधिक विदेशों  को कोरोना इंजेक्शन बांट रहा है। यह  गर्वोक्ति 16% से संभव था कि 100% से।  तारीख पर तारीख झूठ पर झूठ। "संबित रे "- ओ हो फिर गलती (ये पोस्ट कोविड मरवायेगा) "सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है।"


देश की मीडिया में भी प्रधानमंत्री के खिलाफ आक्रोश की सुगबुगाहट होने लगी है।सोशल मीडिया में मुसीबत के समय प्रधानमंत्री और गृहमंत्री गायब होने की खबर चलने लगी है। the telegraph ने तो सीधे प्रधानमंत्री से इस्तीफा ही मांग लिया वहीं Oulook और India Today जैसी प्रतिष्ठित प्रिंट मीडिया ने Missing govt और Failed State नाम से कवर स्टोरी निकालने की हिम्मत दिखलाई है।  इतना ही नहीं "छुपने वाले सामने आ, छुप-छुप के यों जी ना जला " का समां भी बंधने लगा ।



 ऐसे में 14 मई 2021 को प्रधानमंत्री ने अचानक  कुछ मिनटों के लिए प्रकट हो देश को आश्चर्यचकित कर दिया। किसानों को प्रधानमंत्री सम्मान योजना की आठवीं किश्त जारी करने की घोषणा की साथ ही कहा वे देश की तकलीफ महसूस कर रहे हैं। जनता खुश हुई कि हमारे पास प्रधानमंत्री भी हैं  सिर्फ चुनाव लड़ने वाला रोबोट नहीं और वो महसूस भी करता है।


परन्तु  जनता को दुःख है कि प्रधानमंत्री ने यह क्यों नहीं महसूस किया इस तकलीफ की वजह वे स्वयं और उनकी सरकार की लापरवाही, अदूरदर्शिता और बदइंतजामी है। अपनी नहीं तो किसी मंत्री का इस्तीफा ही दिलाते? कुछ तो प्रायश्चित होता! उम्मीद की कोई सीमा नहीं होती है तभी तो आन्दोलरत किसानों को एकबारगी  ये लगा प्रधानमंत्री तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करने वाले हैं पर उन्हें भी निराशा हाथ लगी। 



नोटबंदी में 125 लोगों ने जान गंवाई और देश की अर्थव्यवस्था मिमियाने लगी,आतंकवाद और धारा 370 के नाम पर कश्मीरियों का सालों से जीना हराम कर दिया ,एनआरसी और एनपीआर विरोधी आं दोलन में सैकड़ों जाने चली गई ,पहली तालाबंदी में कितने मजदूरों ने बीच रास्ते जान दिये उसका तो हिसाब तक ना रखा, तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलन में सैकड़ों किसानों ने प्राण गंवा दिए हैं और अब कोरोना की दूसरी लहर में मरने वाले की संख्या कई लाखों में पहुंच गई है।

 


फिर भी कोई फर्क नहीं अलबत्ता! मरे सैकड़ों या लख्खा, कोई फर्क नहीं अलबत्ता! गलतियों का कोई पश्चाताप भी नहीं ,माफी मांगना और इस्तीफा देने की बात तो दूर है। सचमुच  56 ईंच का कलेजा देखिए और उसकी मजबूती देखिए , और देखिए मजबूती का विस्तार  सैकड़ों से हज़ारों और  हज़ारों से लाखों तक - फिर भी टनाटन - एकदम पत्थर!