खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
देश भर की राजनीतिक दिलचस्पी चुनाव आयोग मतलब एनडीए बनाम विपक्ष के बीच बिहार चुनावी के दंगल को लेकर है लेकिन इसके लिये ईश्वर को बदनाम करने वाले कथित अवतारों और उनके भक्तों के कृत्यों की अनदेखी तो नहीं कर सकते? यदि ईश्वर को हम याद नहीं करेंगे तो भला ईश्वर भी हमारी फरियाद क्यों कर सुनेंगे?
श्री सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी, विपक्ष के नेता को जान से मारने की धमकी और एक दलित आईपीएस की आत्महत्या जैसी कई घटनायें ना केवल ईश्वर को बदनाम करती हैं बल्कि भारतीय लोकतंत्र और संविधान पर सवाल खड़ी करती है।
सोनम वांगचुक गिरफ्तारी और लद्दाख़ आंदोलन
लद्दाख़ को संविधान की 6ठी अनुसूची में शामिल करने सहित अन्य मांगों के लिये भारत के विश्व विख्यात वैज्ञानिक और अहिंसावादी नेता सोनम वांगचुक भूख हड़ताल कर रहे थे।उनके साथ बैठे दो सहयोगियों की तबीयत खराब होने के बाद आक्रोशित Gen-z के विरोध से 24 सितम्बर 2025 को हिंसा भड़क जाती है । बीजेपी के दफ्तर जलाया जाता है ंऔर पुलिस की गोली से 4 लोगों की मौत और कई घायल हो जाते हैं।
श्री सोनम वांगचुक इस हिंसा का विरोध करते हुए फौरन अपना आन्दोलन समाप्त कर देते हैं ं फिर भी 26 सितम्बर को हिंसा भड़काने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। भक्तों के अलावा अन्य को उनकी ये गिरफ्तारी लोकतंत्र में विरोध की जायज आवाज को दबाने की साजिश लगती है।
राजनीति के मैदान में अवतारवाद का उदय
दरअसल श्री सोनम वांगचुक से यह समझने में चूक हो गई कि आप कितने भी बड़े तुर्रम खाँ हों, नूतन भारत में ईश्वरीय प्रेरणा से Non-biological अवतार की ईच्छा के विरुद्ध जाने की इजाजत आपको नहीं दी जा सकती। श्री सोनम वांगचुक को यह भी समझना चाहिए कि 2019 के चुनाव में लद्दाख़ को 6 ठी अनुसूची में शामिल करने की बीजेपी की लिखित घोषणा चुनावी रण में जीत हासिल करने के लिये किया गया शंखनाद या जुमला था।
इस जुमले के लिये कोई अवतार अपने मित्रों को बड़ी इंडस्ट्री लगाने के वचन को नहीं तोड़ सकते। क्योंकि ईश्वरीय अवतारों की प्रतिबध्दता अपने दिये गए वचन और वरदानों के़ प्रति होती है जुमलों के लिये नहीं।
भले ही लद्दाख़ का भी मणिपुर होता है तो हो जाय!
महात्मा गाँधी जी की लड़ाई तो अंग्रेजों के खिलाफ थी तो वे कामयाब हो गए यहाँ तो गांधी के अनुयायी श्री सोनम वांगचुक का पाला सी़धे ईश्वरीय अवतार से पड़ा है।
ईश्वर तो तपस्या से प्रसन्न होते हैं इसलिये संघर्ष नहीं तपस्या की जरूरत है और तपस्या के लिये 2014 के बाद के भारत में, जेल से बेहतर कोई जगह हो नहीं सकती?
इसलिये उन्हें National Security Act के तहत जोधुपर जेल में डाल दिया गया है।
ईश्वर, श्री सोनम वांगचुक की तपस्या सफल करें!
इस बात की पूरी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट उनकी तपस्या में शीघ्र बाधा उत्पन्न नहीं करेगा।
आखिर हर कोई अर्णव गोस्वामी तो नहीं हो सकता कुछ उमर खालिद भी तो होते हैं।
श्री राहुल गाँधी को जान की धमकी भक्ति की राजनीति
लद्दाख़ हिंसा पर ही 26 सितंबर 2025 को एक मलयालम टीवी डिबेट में बीजेपी प्रवक्ता पिंटु महादेवन (पूर्व एबीवीपी नेता) ने कहा, "राहुल गांधी के सीने पर गोली मार दी जाएगी।"विपक्ष के नेता को ऐसी धमकी भारतीय राजनीति में घटते लोकतंत्र, बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा के बढ़ते चलन को दिखाती है।
पुनश्च: बीजेपी द्वारा इस प्रवक्ता पर कोई कारवाई नहीं करना साबित करता है कि यह कार्य भी एक भक्त की भक्तिस्वरूप की गई वंदना की ही अभिव्यक्ति है।
जब विपक्ष का नेता आपके नेता से अधिक लोकप्रियता हासिल कर ले,उसके सदगुण और सच्चाई आपको परेशान करते हों, उसके तर्कों का आपके पास जवाब ना हो और वो अकाट्य सबूतों के साथ वोट चोरी के आरोप लगाता हो तो खिसियाहट में आपकी कथित अवतार के प्रति भक्ति ऐसे ही प्रकट होती है।
दलित उत्पीड़न और सामाजिक असमानता के नये आयाम
इस बीच देश भर से दलित उत्पीड़न की कई घटनायें सामने आई है ं। 2 अक्टूबर 2025 को रायबरेली में श्री राहुल गांधी के नाम से आर्तनाद करते हुए दलित युवक हरिओम बाल्मीकि की, सन्यास छोड़ सत्ता संभालने एकमात्र बाबा के कथित लोगों द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी गई।
हरियाणा में दलित आईपीएस अधिकारी श्री पूरण कुमार ने 7 अक्टूबर 2025 को अपने उच्च जाति वाले अधिकारियों के उत्पीड़न से तंग आकर आत्म हत्या कर ली।
मध्य प्रदेश के भिंड ज़िले में 20 अक्तूबर 2025 को एक दलित ज्ञानसिंह जाटव के साथ मारपीट की गई और ज़बरदस्ती पेशाब पिलाई गई।
संविधान की धारायें और मनुस्मृति प्रभाव
ये तमाम घटनायें भारतीय संविधान में प्रदत्त समानता और स्वतंत्रता की धारणा पर सीधा आघात है।
समाज का बड़ा वर्ग इन तमाम घटनाओं को मनुस्मृति से उत्पन्न मनुवादी सोच का नतीजा मानता है जिसमें शूद्रों को नीच मानते हुए उसका एकमात्र कार्य उच्च वर्णों की सेवा करना माना जाता है। कहा जाता है कि मनुस्मृति वो ग्रंथ है जिसे ईश्वरीय प्रेरणा से ईश्वरीय अवतार मनु ने लिखा था। यहां भी ईश्वर आ ही गए! क्या ये ईश्वर को बदनाम करना नहीं है?
भारत का संविधान बिना किसी जाति, धर्म और लिंग भेद के सभी को समानता का मूलभूत अधिकार देता है। पर मनुवादी सोच रखने वाले लोगों को लगता है कि दलित को राष्ट्रपति या चीफ जस्टिस बना देने मात्र से दलित उत्पीड़न के उनके मनुभूत अधिकार समाप्त नहीं होते।
विपक्ष के आरोप
विपक्ष द्वारा दलित उत्पीड़न की घटनाओं के पीछे बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा दोषी ठहराने का प्रमुख कारण आरएसएस के दूसरे संघसंचालक श्री गोलवलकर(गुरूजी) द्वारा मनुस्मृति और उसके रचियता मनु की तारीफ किया जाना है।
उन्होंने अपनी पुस्तक "Bunch of Thoughts"में मनु को "मानवजाति का प्रथम, महानतम और सबसे बुद्धिमान विधाता" बताया है। लेकिन उल्लेखनीय है कि आरएसएस की स्थापना की मूल प्रेरणा "मनुस्मृति"नहीं थी बल्कि विनायक दामोदर सावरकर की 1923 में प्रकाशित पुस्तक"Hindutva: Who is a Hindu?" थी।
इस पुस्तक में हिंदू पहचान को सांस्कृतिक और जातीय आधार पर परिभाषित करते हुए हिंदू को वह व्यक्ति बताया गया जो भारत को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है। यह विचार उस हिंदू राष्ट्रवाद का आधार बना, जो मुस्लिमों और ईसाइयों को "विदेशी" मानता है।
ऐसे में आरएसएस की स्थापना का उद्देश्य जैसा कि बतलाया जाता है हिंदू समाज को संगठित, अनुशासित और आत्मरक्षा में सक्षम बनाकर हिंदू राष्ट्र की रक्षा करना था।
आरएसएस के शताब्दी वर्ष और भूमिका
15 अगस्त, 2025 के लालकिले से अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने शताब्दी वर्ष मनाने वाली अनरजिस्टर्ड NGO आरएसएस की राष्ट्र में योगदान को लेकर भूरि-भूरि प्रशंसा की। उल्लेखनीय है प्रधानमंत्री स्वयं भी आरएसएस के स्वंयसेवक रहे हैं इसलिये उनका यह करना जायज भी है।
यह सच्चाई भी है कि देश में आई प्राकृतिक विपदा और इस तरह के अन्य अवसरों पर आरएसएस ने सकारात्मक भूमिका निभाई है।
पर इसमें भी कोई शक नहीं है राष्ट्रीय आन्दोलन में आरएसएस ने भाग नहीं लिया था। यहाँ तक कि 1942 के भारत छोड़ों आन्दोलन में भी भागीदारी नहीं की।
इनके स्वयंभू वीर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश आर्मी में हिन्दुओं को प्रवेश कराने के प्रयास करते दिखे जिसके खिलाफ स्व० सुभाष चन्द्र बोस की सेना युध्दरत थी।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने श्री गोलवलकर की गिरफ्तारी की बात तो करते हैं पर उनको गिरफ्तार करने वाले तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल का नाम लेना भूल जाते हैं, जिनकी सबसे ऊंची प्रतिमा उन्होंने खुद स्थापित की है।
प्रधानमंत्री इस पर भी रोशनी डाल देते अच्छा रहता है कि क्या आरएसएस के एक स्वयंभू वीर ने अंग्रेजों से कई बार आग्रह किया था यदि आप भारत छोड़ रहे हैं तो सत्ता नेपाल के राजा के हाथ में दे दें?
यदि अंग्रेजों ने ऐसा कोई आग्रह मान लिया होता तो आज नेपाल को लिपुलेख और कालापानी के लिये उछलकूद मनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती ना ही भारत में "ओ ये साहबजी" जैसे मजाक बन पाते।
छोडो़ कल की बातें,कल की बात पुरानी,
नये दौर में लिखेंगे हम मिलकर नई कहानी
हम हिन्दुस्तानी, ना कि नेपाली।
नेपाल की नई कहानी तो नेपाली ही लिखेंगे और वहां के Gen-Z लिख भी रहे हैं।
विपक्ष कुछ भी कहे हमें मान लेना चाहिये कि 1925 में आरएसएस की स्थापना हिंदू समाज की एकता, चरित्र निर्माण और हिन्दु संस्कृति की रक्षा करने के उद्देश्य से ही की गई थी। इनके अनुसार वर्ण व्यवस्था हिन्दु समाज की एकता में बाधा उत्पन्न नहीं करती है बल्कि मजबूत करती है।
रह गई आरएसएस से उत्पन्न राजनीतिक पार्टी द्वारा एक खास समुदाय को कपड़े से पहचान कर उनके लिये घुसपैठिये, दीमक जैसे विशेषण का उपयोग करना ,मंगलसूत्र चोरी की आशंका या फिर हिन्दु खतरे में है का डर दिखाना तो ये सब हिन्दु संस्कृति की रक्षा हेतु सावधान करने वाले एक चौकीदार की "जागते रहों" वाली आवाजें है ं, इसे अन्यथा लेने की जरूरत नहीं है। क्योंकि इन्हें लगता है कि सत्ता की प्राप्ति और हिन्दु संस्कृति की रक्षा ऐसे ही की जा सकती हैं?
चरित्र निर्माण के लिये आरएसएस की देश भर में प्रत्येक दिन शाखायें लगती हैं। शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रमों द्वारा स्वयंसेवकों का चरित्र निर्माण करने वाली इन शाखाओं में स्त्रियों की सहभागिता नहीं होती है।
संभवत भारत में बौघ्द धर्म के पतन के एक कारण (बौद्ध संघ में नारियों को शामिल करना) से सबक लेकर यह सावधानी रखी गई।
यहां तक कि आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक ब्रह्मचर्य की शपथ लिये होते हैं ।
एक स्वयंसेवक की आत्महत्या
परन्तु आरएसएस की स्थापना के शताब्दी वर्ष में 13 अक्टूबर 2025 ,केरल कोट्टयम जिले से एक अजीब सी विचलित करने वाली खबर आती है।
एक 26 वर्षीय आनंद अजी नामक आई टी प्रोफेशनल और आरएसएस का स्वयंसेवक, आरएसएस की शाखा में बचपन से ही बार-बार यौन, शारीरिक शोषण और इससे उत्पन्न बीमारी से तंग आकर आत्म हत्या कर लेता है।
अपने इंस्टाग्राम के आखिरी पोस्ट में यह भी लिख जाता है कि मैं अकेला नहीं हूं कई बच्चे इन शाखाओं में यौन शोषण का शिकार होते हैं।
बौद्ध धर्म से लिये गये सबक का ऐसा परिणाम?
ऐसे होगा चरित्र निर्माण?
हे ईश्वर ये सब क्या देखना पड़ रहा है, अच्छा है कि मैं अंधभक्त हूं!
