2021 में संपन्न हुए विधान सभा में सुश्री ममता बनर्जी की टीएमसी पार्टी ने  जबरदस्त जीत हासिल की है वही ं अपने तमाम पराक्रमी प्रयासों के बावजूद श्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस चुनावी घटना क्रम को नाट्यप्रदृश्य की कल्पना कर समझा जा सकता है। 


दृश्यावलोकन-


मायावी की सेना ने एक  मिष्टी दही व रसगुल्ले के लिए प्रसिद्ध राज्य पर चुनावी आक्रमण कर दिया है । पूरे देश के मिष्टी दही और रसगुल्ले प्रेमियों में चिंता का लहर दौड़ गई है। अधिकांश जनमानस की सहानुभूति उस राज्य के साथ है। पर मायावी का आतंक बड़ा है। चुनाव आयोग को जेब में रख इडी , सीबीआई, एनआईए और इन्कमटैक्स  जैसे शस्त्रों से लैस तड़ीपार बैकग्राउंड वाला भारी भरकम मायावी का  सेनापति बारम्बार छापामारी कर देवी के सहपाठियों तोड़ते हुए अट्टाहास करता है और देवी को उखाड़ फेंकने घोषणा करता है।


हैलीकॉप्टर और हवाई जहाजों से मायावी सेना के सैनिक टिड्डियों की भांति उस राज्य पर  टूट पड़ते हैं। गोदी मीडिया के आसमान में हिन्दु-मुसलमान का खेल काले बादल के रुप में छाने लगते हैं, देवी तो गई , अबकी बार 200 पार की आ्वाज आने लगती हैं, ओपिनियन पोल की बिजलियां कड़कने लगती हैं सांय-सांय की आवाज के साथ के साथ  एक्जिट पोल की बयार भी  चलनी लगती है और उसमें बुलन्द अट्टहास लगाता मायावी का भयानक चेहरा प्रकट होता है।


गुरु देव सरीखा दाढ़ी लगा सी-ग्रेड फिल्म के हीरो दादा कोंडके के लहजे में "दीदी ओऽ दीदी" का एय्यासी भरा आलाप लगा कर अपने पद और भारतीय नारी की गरिमा को तार-तार करता नजर आता है।वातावरण में अजीब-सा कोलाहल मच जाता है , बचना मुश्किल प्रतीत होता है भयभीत जनता इधर से उधर भाग रही होती है।


तभी रथ नहीं तो व्हील चेयर पर ही सही सवार देवी पहुंचती है और अपने "खेला होबे' नामक अमोघ अस्त्र के प्रहारों से मायावी की माया का अंत कर जनता की रक्षा करती हैं। यह किसी पौराणिक कथा पर आधारित चलचित्र का दृश्य नहीं है  न हीं यहां कोई देवी है और न दानव फिर भी यह 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव की एक झांकी अवश्य है।


सुश्री ममता बनर्जी ने बंगाल की असेम्बली का चुनाव ही नहीं बल्कि एक युद्ध जीता है वो भी  दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के खिलाफ। इसे युद्ध बनाया बीजेपी और उनकी मीडिया ने। इस चुनाव के चक्कर में  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री श्री अमित साह ने पूरे देश को कोरोना के हवाले मरने छोड़ पूरी ताकत बंगाल चुनाव में झोंक डाला।


पर उनकी सरकारी मशीनरी और धन बल की ताकत मीडिया द्वारा तैयार बवंडर  भी ममता बनर्जी का पांव नहीं डिगा सकी बल्कि वो पहले से भी अधिक मजबूती के साथ 213 सीटों पर विजयी हो सत्ता पर काबिज हुई हैं। बीजेपी कह सकती है वो 3 से 77 पर पहुंच गई पर यह लड़ाई 77 के लिए थी ही नहीं, 200 पार के लिए थी। अतः यह बीजेपी की कालजयी पराजय है और ब्रांड मोदी के पराभव की शुरुआत भी।


टीएमसी की जीत के साथ ही भारत के बहुलवादी प्रजातंत्रिक व्यवस्था पर आसन्न खतरा टल गया है साथ ही भारतीय संविधान का सेकुलर स्वरुप सुरक्षित रह गया है। बीजेपी की ये हार देश को न केवल एक दलीय व्यवस्था की ओर जाने से रोकने में कामयाब हुई है बल्कि टीएमसी की जीत ने केन्द्रीय शासन के निरंकुश होने पर भी ब्रेक लगाया है। एक ऐसी पार्टी जो सिर्फ आपका मत नहीं चाहती है बल्कि आपकी मति पर भी कब्जा करना चाहती है। आपका खान-पान, रहन-सहन, मैत्री-दुश्मनी सब उसके हिसाब से होना चाहिए। ये प्रजातंत्र के खिलाफ है, फासीवाद है। ममता ने अपनी बम्पर जीत के साथ इस वाद का भी प्रतिवाद किया है।


बंगाल चुनाव ने श्री नरेन्द्र मोदी के प्रशासनिक गंभीरता और उनके सरकार की सदैव चुनावी मोड में रहने की मानसिकता को भी एक्सपोज कर दिया है ।पूरी दुनिया जहां भारत में कोरोना तांडव से चिंतित हैं और मोदी सरकार की लापरवाही को इसका कारण मानती है। ऐसे समय में चुनाव और कुंभ का आयोजन करना दुनिया को हतप्रभ किये हुए है।  कितनी अजीब बात है जिस National Disaster Management Authority  को अपने देश के कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन का इंतजाम रखना चाहिए था उसका मुखिया बंगाल में वोट मांग रहा था और वस्तुतः भीड़ जुटा कोरोना परोस रहा था।

लापरवाही!  लापरवाही ओऽ लापरवाही।
तू ,हद भी कर!