Manipur burns then let it burn? मणिपुर जलता है तो जलने दे ?

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है। 

 




manipur burns


2002 में तीन दिनों तक गुजरात में चलने वाला साम्प्रदायिक दंगा देश के लिये कलंक था तो पिछले तीन महीनों से भी अधिक समय तक चल रहा मणिपुर का जातीय दंगा वैसा ही बड़ा कलंक है। पर मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री की बेरूखी और बीजेपी का संसद के अन्दर और बाहर का रवैया स्व० मुकेश के "दिल जलता है" गाने को याद दिलाता  कि

मणिपुर जलता है तो जलने दे 

आंसू ना बहा फरियाद ना कर, 

तू गोदी मीडिया का आशिक है ,

राजस्थान और बंगाल की बात तो कर 

मणिपुर जलता है तो जलने दे",   बेहद दुखद है। 


मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव 10 अगस्त 2022 को गिर गया। पर इस प्रकरण ने महिला पहलवानों पर दिल्ली पुलिस की बर्बरता के बैक ग्राउण्ड में, सेंगोल की झूठी परिकल्पना का आवरण ओढ़, नये संसद भवन में मंचित ताकतवर महाराजा के नाटक का पटाक्षेप कर दिया। दुनिया द्वारा यह महसूस किया गया कि प्रेस कांफ्रेंस से घबराते अनूठे शासक को अब संसद जाने से भी डर लगता है। विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव द्वारा इस डर को खत्म कर भारत के सम्मान की रक्षा की है। क्योंकि जिस मणिपुर हिंसा की चर्चा यूरोपीय संसद में हुई हो उस पर अपने देश की संसद में चर्चा ना हो तो यह अच्छा नहीं लगता।

Manipur Violence

3 मई से मणिपुर में अधिकतर पहाड़ी में रहने वाले कुकी और अधिकतर घाटी में रहने वाले मैतयी समुदाय के बीच दंगे हो रहे हैं। लगभग 190 लोगों की जान जा चुकी है  ये सरकारी आंकड़े हैं। हजारों घर जल चुके है। 60 हजार से अधिक लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हो गए हैं। पूरे देश में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी विशेष के लिये चुनावी आधार तैयार करने वाला टुकड़े टुकड़े गैंग की सक्रियता यहां भी रही। फलस्वरूप सैंकड़ों की संख्या में चर्च और मन्दिर भी इस दंगे की भेंट चढ़ गए। 


मुख्यमंत्री और देश के गृहमंत्री से स्थिति संभल नहीं रही जबकि प्रधानमंत्री से शांति की किसी अपील की बात तो रहने ही दे, 78 दिनों तक मणिपुर पर कुछ बोला नहीं । उसके बाद जो भी कुछ बोला है , ऐसा लगा कि जबरदस्ती की गई हो। मणिपुर का एक डेलीगेशन जिसमें बीजेपी के भी विधायक शामिल थे प्रधानमंत्री से दिल्ली मिलने आया था पर उसे मिलने तक का समय नहीं दिया। 

अरे भई! चुनाव में जीत ऐसे थोड़े ही मिलती है ,पूरा डेडिकेशन रखना पड़ता है। फुर्सत कहां हैं? 


भटकिये मत! हिंसा का तांडव जारी है। हजारों की संख्या में हथियार और लाखों की संख्या में गोलियां पुलिस थानों से आश्चर्यजनक ढ़ंग से बिना किसी प्रतिरोध के कथित रूप से लूट लिये गए। बंकरों का निर्माण इस दंगे को युध्द का शक्ल दे रहे हैं । लोग एक दूसरे के क्षेत्र में अपने की पड़ी लाशों तक नहीं उठा पा रहे हैं। एक्सचेंज की व्यवस्था की जा रही है। 

लाशों का एक्सचेंज! ये कहां आ गए हम! चन्द्रयान 3 तो लाया नहीं! 


इस दंगे की विभीषिका का सबसे अधिक दंश वहां कि महिलाओं ने झेला है। बलात्कार, हत्या तो आम बात हो गई। उन्हें नग्न कर दंगाई भीड़ द्वारा बन्दरों की तरह नोचते खसोटते जुलूस निकालने जैसे हृदयविदारक कुकृत्य भी किया गया। 

ऐसा लगता है कि डार्विन का विकासवाद का सिंध्दांत कुछ लोगों को कवर ही नहीं कर पाया ।  


इसी तरह का एक वीडियो जब वायरल हुआ तो देश तो शर्मशार हुआ ही पूरी मानवता भी मर्माहत हुई सिर्फ मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को छोड़ कर। क्योंकि उन्होंने फौरन बड़ी निर्लज्जता से बयान दिया कि ऐसी तो सैकड़ों घटनाएं घटी है। ऐसा लगा कि वे किसी ओलंपिक में स्वयं द्वारा जीते सैकड़ों स्वर्ण पदक की बात कर रहे हैं! 

चुल्लू भर पानी तुम कहां हो ? किधर गई नल जल योजना! 

Supreme Court Intervention

सरकारी भैंसों के आगे बीन बजाने के बाद मर्माहत सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के लिए रिटायर्ड महिला जजों की तीन सदस्यीय एक कमिटी बना दी जो महिलाओं से जुड़े अपराधों और अन्य मानवीय मामलों व सुविधा की निगरानी करेंगी और सीधे सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट करेगी।महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी और मुंबई पुलिस आयुक्त श्री दत्तात्रेय पडसलगीकर  को राज्य में हुई हिंसा के सभी मामलों और पुलिस की भूमिका पर हो रही जांच के लिये पर्यवेक्षण अधिकारी के रूप में नियुक्त  कर दिया है । सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप ऐतिहासिक है पर सरकार के लिये शर्मनाक।

अरे शर्म बची है क्या? 

नहीं सर! टमाटर है।

 रहने दे, मंहगी है। 

Background

मैतेयी जो कि कुल आबादी के 53% हैं वो मुख्य रूप से इम्फाल घाटी में रहते हैं जो कुल क्षेत्र का 10% है। बाकि 90% में 23 % रक्षित और संरक्षित वन  हैं शेष 67% में ST आदिवासी जन जातियों को ही बसने का आधिकार है जिनकी आबादी 47% है। ST का दर्जा मिलने से मैतयी को भी इस इलाके रहने का अधिकार मिल सकता है। आदिवासी समूह जिनमें कुकी और नागा प्रमुख हैं इसका विरोध करते हैं। इनका तर्क है कि मैतेयी साधन सम्पन्न लोग हैं और इनको अलग से संरक्षण की जरूरत ही नहीं है क्योंकि इनका संरक्षण स्वयं सरकार करती है । उल्लेखनीय है कि मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 मैतेयी क्षेत्र से ही होते हैं। 

Immediate reasons for Violence

20 अप्रैल  2023 मणिपुर उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर मैतेयी समुदाय को ST दर्जे में  शामिल करने  केंद्र सरकार को  एक सिफारिश भेजने का निर्देश दिया। इसके विरोध में  कुकी ने 3 मई 2023 को आदिवासी एकता मार्च निकाला था और उसी समय एक झूठी खबर वायरल वीडियो द्वारा चलाई गई कि चूराचांदपुर में कुकीयों ने मैतेयी समुदाय की मेडिकल स्टूडेंट का रेप कर मार दिया है। इससे मैतेयी समुदाय भड़क गया और दंगा शुरू हो गया। वस्तुतः मणिपुर में जली आग का सिर्फ यही कारण नहीं है। आज के "गांधी" की भाषा में कहें तो ये तो माचिस की तीली लगाना भर था केरोसीन तो पहले छिड़का गया था। 


Reasons behind Manipur Violence

यह काम मणिपुर की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के वक्तव्यों और नीतियों ने किया। इन्होने कुकीयों को अफीम की खेती करने वाला, ड्रग पेडलर, अतिक्रमणकारी और अवैध आप्रवासी कहा। War on drug  घोषणा की और खजूर की खेती ( Palm oil cultivation) को अफीम की खेती के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने लगे।


अफीम की खेती मणिपुर की एक समस्या है पर इसमें सिर्फ कुकी ही शामिल हैं ये कहना बिल्कुल गलत है। 2017 से अब तक ड्रग कारोबार के आरोप में  पकड़े गए 2518 में पोंगल मैतेयी और मैतेयी की कुल संख्या कुकियों से अधिक है। इसी तरह कुकियों को अवैध आप्रवासी कहना  इतिहास के साथ मजाक है। 1917 में कुकियों ने अंग्रजों के साथ युध्द लड़ा था और आजादी के बाद भारतीय सेना में भी इन्होंने बढ़चढ़ कर भाग लिया है।आज भी मणिपुर के  पेंशनधारी सैनिकों की कुल संख्या 112 में, 80 कुकी समुदाय के हैं। 

झूठ बोलो, बार बार बोलो! 

आखिर कहां से मिलती है ये प्रेरणा?


मुख्यमंत्री बीरेन सिंह जिलों की भूमि का एकतरफा सीमांकन करवाने लगे फिर कुकीयों के कथित अतिक्रमण के विरूद्ध  जबरदस्ती बेदखल अभियान  (eviction drive) भी शुरू कर दिया। 38 गांवों को अवैध होने की नोटिस भेज दी। ये सभी आदिवासी इलाके में थे। विरोध को दबाने की तैयारी के क्रम में मणिपुर सरकार ने दो उग्रवादी समूहों, कुकी नेशनल आर्मी (KNA) और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (ZRA) के साथ 2008 में की गई "सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस" (SOO) समझौते को समाप्त कर दिया। 


बीरेन सिंह सरकार की इन कार्रवाईयों से आदिवासी समुदायों में भयंकर आक्रोश व्याप्त हो गया। वे इन्हें  पैतृक जमीन को हड़पने की साजिश मान रहे हैं। विरोध प्रदर्शन, बंद का आह्वान, पुलिसियाई कारवाई और हिंसक घटनाओं की श्रृंखला आरंभ हो गई जिसने 3 मई से दंगे का रूप ले लिया है। 


आज मणिपुर इस हालात के लिये कोई दोषी है तो बीरेन सिंह की सरकार है। जब तक यह सरकार रहेगी मणिपुर की समस्या का समाधान संभव नहीं है। क्योंकि कुकी समुदाय का भरोसा इन पर से पूरी तरह उठ गया है। गवर्नर कई शिकायतें  इस सरकार के खिलाफ केन्द्र को भेज चुकी हैं। विपक्ष की सरकार होती तो धारा 356 का अब तक 56 बार( अतिश्योक्ति है पर चलेगा ) हो गया होता पर संसद में गृहमंत्री ने साफ कह दिया कि बीरेन सिंह cooperate कर रहे हैं तो उन्हें क्यों हटाये? Cooperate! किसके लिये? कहीं ये  cooperate किसी Corporate  को मणिपुर में Operate  कराने के लिये तो नहीं हो रहा है?

Corporate Angle

वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर का कहना है मणिपुर का सारा बखेड़ा अडानी को पूर्वोत्तर राज्य में प्लैटिनम खनन का ठेका देने के लिए हो रहा है। उल्लेखनीय है कि अगस्त 2023 में निजी क्षेत्र को भी, 12 में से 6 परमाणु खनिजों को उत्खनन का अधिकार एक नये कानून बना कर दे दिया गया है। यही कारण है कि इसी तरह के आरोप  CPI  के राष्ट्रीय सचिव और राज्य सभा के सदस्य विनय विश्वम ने भी लगाया है।  इन आरोपों में कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता पर अडानी का नाम आने पर सांप सूंघ जाने का इतिहास तो रहा है। 


चलिये अडानी का नाम लेने पर संशय है और खतरें भी। पर Godrej Agrovet के साथ बीरेन सिंह की मणिपुर सरकार ने खजूर की खेती के लिये अगस्त 2022 में किये गए समझौते पर कोई शंका नहीं है।


अब पता चला कि "हुजूरे मुख्यमंत्री" का खजूर प्रति ये प्रेम ऐसे ही नहीं जगा था। इस समझौते के लिये जमीन तो चाहिए थी। सारा बखेड़ा इसी जमीन के इंतजाम में खड़ा किया गया है। लेकिन जैसे तीन कृषि कानूनों के पीछे छिपे मंशा को किसानों ने पहचान लिया था वैसे बीरेन सिंह सरकार की तमाम कार्रवाईयों का मतलब  कुकी आदिवासियों ने समझ लिया और विरोध पर उतर आये हैं। 


मणिपुर दंगे की तुलना राज्य सरकार के पक्षपाती आचरण के कारण 2002 के गुजरात दंगे से की जाती है। गुजरात का दंगा तो तीन दिनों में शांत हो गया था पर मणिपुर तीन महीनों से भी अधिक समय से जल रहा है। अन्तर यही है कि गुजरात के दंगे के समय के देश के प्रधानमंत्री स्व वाजपेयी थे जो 24*7 चुनावी मोड में नहीं रहते थे। इसलिए वे स्वयं गुजरात पहुँच गए वहां के मुख्यमंत्री को राजधर्म का पालन करने के लिये फटकार लगाई थी। परन्तु मणिपुर का दुर्भाग्य ये है कि गुजरात का वही मुख्यमंत्री आज देश का प्रधानमंत्री है। 







  

 




 









 




























 






 











 



Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया। सटीक और विस्तृत जानकारी के लिए आभार। जल्द इस समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो यही प्रार्थना ऊपरवाले से है।

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  2. Bahut sundar... tathya aur parivesh per adharit varnan !!

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  3. सही कहा आपने ये देश का दुर्भाग्य ही है की पिछले सत्तर सालों मे ऐसा कमिना सरकार देश चला रहा है लोगों का खून चूस रहा है

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