/* “संविधान बनाम ईश्वरीय प्रेरणा — सुप्रीम कोर्ट में भक्ति की एंट्री”(“Divine Inspiration vs Constitution — When Faith Enters the Supreme Court”)

“संविधान बनाम ईश्वरीय प्रेरणा — सुप्रीम कोर्ट में भक्ति की एंट्री”(“Divine Inspiration vs Constitution — When Faith Enters the Supreme Court”)

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।

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विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी भले ही कहते रहे हैं कि भारतीय संविधान और लोकतंत्र पर खतरा बीजेपी व आरएसएस की विचारधारा और वोट चोरी से है पर मुझे तो शक है यह खतरा कहीं डायरेक्ट ऊपर बहुत ही ऊपर, ईश्वर के स्वयंभू अवतारों और उनके भक्तों की कथित ईश्वरीय प्रेरणा से आ रहा है।

6 अक्टूबर 2025 एक वकील द्वारा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर जूते फेंकने की घटना ने मेरे शक को और मजबूत कर दिया है। 

अदालत में भक्ति और संविधान का टकराव

दरअसल सुप्रीम कोर्ट के वकील श्री राकेश किशोर (71 वर्ष) 16 सितम्बर के सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले से आहत थे। श्री राकेश किशोर नहीं बल्कि श्री राकेश दलाल नामक वकील ने खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की क्षतिग्रस्त मूर्ति के पुनर्स्थापन की मांग करते हुए एक  जनहित याचिका (PIL) दाखिल की थी।

परंतु मुख्य न्यायाधीश बी .आर गवई ने इसे “Publicity Interest Litigation” कहकर खारिज कर दिया और कहा यह ASI (Archaeological Survey of India) का क्षेत्राधिकार  मामला है इसलिये सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। 

साथ ही यह टिप्पणी भी कर दी “भगवान विष्णु से खुद ही पूछ लो, ध्यान करो।” जज की टिप्पणी गैर जरूरी थी पर देखा जाय तो यह भगवान् की शक्ति  की बजाय भक्त की भक्ति पर सवाल था। 

यह टिप्पणी वकील श्री राकेश किशोर को सनातन धर्म का अपमान लगी। उन्होंने मीडिया से कहा कि उन्हें “ईश्वरीय प्रेरणा” हुई कि चीफ जस्टिस पर जूते फेंकें, और इस कृत्य पर उन्हें कोई पछतावा नहीं है। हालांकि, सीजेआई गवई ने उदारता दिखाते हुए उन्हें क्षमा कर दिया। शायद उन्हें लगा हो एक तो बेचारा भक्त है वो भी अंन्ध! 

इस तरह देश में ईश्वरीय प्रेरणा सेअवतरित  प्रधानमंत्री और ईश्वरीय प्रेरणा से जजमेंट वाले जज तो पहले ही हो चुके हैं  कमी एक वकील की थी श्रीमान राकेश किशोर ने वो भी पूरी कर दी। लेकिन सब काम ईश्वरीय प्रेरणा से किये जाने लगे तो हम "India, that is Bharat", के लोगों के संविधान का क्या होगा? हे ईश्वर! यह तो सोचा ही नहीं।

यह घटना अकेली नहीं — पूर्व घटनाओं की पड़ताल 

वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर जूते फेंकने की घटना भी नई नहीं है। ऐसी घटनाएँ इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट में हो चुकी हैं। 

26 फरवरी 1999 को वकील नंदलाल बलवानी ने तत्कालीन चीफ जस्टिस ए.एस. आनंद की बेंच पर जूता फेंका था। उन्होंने यह कदम ईश्वरीय प्रेरणा से नहीं बल्कि पुलिस उत्पीड़न से तंग आकर उठाया था और माफी मांगने के बावजूद दंडित किए गए।

दूसरी घटना 3 फरवरी 2009 की है जब पत्रकार और रियल एस्टेट डीलर जर्नैल सिंह ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के.जी बालाकृष्णन पर जूता फेंका। उन्होंने भी ईश्वरीय प्रेरणा से ये कार्य नहीं किया था बल्कि वे सिख दंगों से संबंधित मामलों की सुनवाई से नाराज थे। उन्होंने माफी नहीं मांगी और उन्हें भी सजा दी गई।

न्यायपालिका के दृष्टिकोण से मामला

यह मान लेना सही नहीं होगा कि बी. आर. गवई द्वारा माफी दिए जाने के बाद श्री राकेश किशोर को सजा से बचने की गारंटी मिल गई है। कोर्ट में जूता फेंकने की घटना को देखते हुए, कर्नाटक पुलिस ने उनके खिलाफ एक “ज़ीरो FIR” दर्ज की है। 

वहीं बार कांउसिल ऑफ इंडिया ने पूरे देश में उनकी प्रैक्टिस करने को निलंबित कर दिया जबकि सुप्रीम कोर्ट बार एसेसियेशन ने उनकी सदस्यता स्थायी रूप से समाप्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट परिसर में प्रवेश कार्ड को भी रद्द कर दिया है। 

वहीं, पंजाब में सोशल मीडिया पर उनकी कार्रवाई का समर्थन करने वालों के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत भी एफआईआर हो गई हैं। 100 से अधिक सोशल मीडिया हैंडलर्स के रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। 

 सार्वजनिक और सामाजिक प्रतिबिंब

यह कृत्य केवल एक वकील और चीफ जस्टिस विवाद नहीं रहा बल्कि यह जाति के आधार पर ध्रुवीकृत हो गया है, क्योंकि न्यायपालिका में नामित जस्टिस गवई दलित समुदाय से आते हैं जबकि जूते फेंकने वाले संभवतः ऊंची जाति के हैं।अत: मामला राजनीतिक और सामाजिक रूप से और तूल पकड़ता जा रहा है। 

अधिवक्ता के पक्ष से यह दावा किया गया है कि उन्होंने “ईश्वरीय प्रेरणा” से यह कदम उठाया था, लेकिन न्यायशास्त्रीय दृष्टि से यह कार्य केवल व्यक्तिगत क्रोध नहीं, बल्कि Contempt of Courts Act, 1971 एवं Indian Constitution-के अनुच्छेद 129 के अंतर्गत  आती है।

भारत में संविधान, न्याय व आस्था का भविष्य

यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संविधान द्वारा स्थापित संस्था के सम्मान और प्रक्रिया-विरोधी आचरण से जुड़ी है और धार्मिक उन्माद या ईश्वरीय प्रेरणा के नाम पर इस तरह की कार्रवाई सिर्फ व्यक्तिगत माफी से समाप्त भी नहीं होती।ईश्वरीय प्रेरणा संविधान पर नये खतरे की प्रतिनिधि बनती जा रही है। 

यही कारण है कि Bar Council of India(BAI) और Supreme Court Bar Association(SCBA) की सक्रियता से अटार्नी जनरल की अनुमति से वकील राकेश किशोर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में  Contempt केस रजिस्टर हो गया है। आज ऐसे ही जरूरत संविधान-ग्रही न्यायपालिका और नागरिक जागरूकता की है। 

यह अलग बात है कि यह मामला ईश्वरीय प्रेरणा से रचित ऋग्वेद से प्रभावित और इसमें समानता का आदर्श ढूंढ लेने वाले आदरणीय जस्टिस सूर्यकांत, वाले डबल बेंच में गई है। जिसने 17 अक्टूबर की सुनवाई के पश्चात अगली तारीख, 6 नवंबर की दी है। अब क्या होगा इसके बाद? 

एक तारा बोले तुन तुन! क्या कहे तुमसे सुन सुन। 

बात है लम्बी मतलब गोल, खोल ना दे ये सबकी पोल! 

फिर उसके बाद? 

क्रमशः

 























Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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