Raid, Raid, छापा, छापा ऐसा कोई दिन नहीं गुजर रहा है जिस दिन देश में जांच ऐजेन्सियों ईडी, सीबीआई, इनकमटैक्स आदि द्वारा मारे गए छापे का समाचार ना आ रहे हों। ऐसा लगता है जैसे "लोकतांत्रिक सरकार", "लोक कल्याणकारी सरकार" की तर्ज पर "छापामार सरकार" नाम का नया संस्करण बाजार में आ गया हो। ऐसे में पथभ्रष्ट मीडिया से मतिभ्रष्ट हुए लोगों को लगने लगा कि देश, अब भ्रष्टाचार से मुक्त होकर ही मानेगा। लेकिन जब इन छापों की हकीकत सामने आने लगी तो देश को पता चल गया है कि भ्रष्टाचार के मुक्ति के नाम पर किया जाने वाला छापा, एक झांसा है।



क्योंकि एजेन्सियों की कारवाई निस्पक्ष नहीं है और 2014 के बाद के इन छापों का इतिहास बतला रहा है कि ये छापे प्राय: एकपक्षीय और टारगेटेड हो रहे हैं इनका इस्तेमाल केन्द्र की सरकार द्वारा विपक्ष और विरोध की आवाज दबाने के लिये किये जा रहा है।अधिकांश मामले मनगढ़ंत और निराधार होते हैं यही कारण है कि इन एजेन्सियां के केस का कोर्ट में दोषसिद्धि दर ( conviction rate) अत्यंत कम  होता है ।


15 अगस्त 2022 को लाल किले से भ्रष्टाचार पर लिये गए सुपर नेता के सुपर आलाप के बाद इन छापों की संख्या में और तेजी आ गई है जिनका उद्देश्य यही है कि देश में यह धारणा (perception)  बने कि सारा विपक्ष भ्रष्ट है सारे विपक्षी नेता भ्रष्टाचारी हैं। ऐसा तो हुआ नहीं पर ये धारणा(perception) जरूर बन गई है छापा उन पर ही पड़ेगा जो सरकार के विरोध में हैं भले वे भ्रष्टाचारी हो या ना हो। 



निशाने पर विपक्ष की पार्टियों के नेता, उनकी राज्य सरकारें और समर्थक, व्यापारी,  बीजेपी सरकार से सवाल करने वाले पत्रकार, सब हैं । जबकि सत्तापक्ष के भ्रष्टाचारियों को इन ऐजेन्सियों का कोई खौफ नहीं है वो इन छापों से मुक्त हैं। ऐसा ना होता हाल के ही उदाहरण लें तो मध्यप्रदेश में पोषाहार घोटाले और उत्तराखंड के नियुक्ति घोटाले जहां बीजेपी की सरकार है वहां भी इन एजेन्सियों के छापे पड़े होते। अलबत्ता जिन विरोधियों पर ये कारवाई कर रहे होते हैं वो यदि पाला बदल बीजेपी में आ जाते हैं तो इन एजेन्सियां की कारवाई रूक जाती है मानो उन्होंने गंगा स्नान कर लिया हो।



महाराष्ट्र के ऐसे ही पाला बदल नेता ने खुलेआम कहा भी मैं बीजेपी में आ गया अब चैन से सो सकता हूं। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अगर ED की गिरफ्त में फंसे  टीएमसी के पूर्व नेता पार्थो मुखर्जी कल को बीजेपी ज्वाइन कर अपने सारे दुखदर्द दूर कर लें। कांग्रेस छोड़ बीजेपी में गए असम के  शारदा घोटाले में फंसे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा इसके सबसे शानदार उदाहरण हैं।



जांच ऐजेन्सियों का खौफ भले बढ़ गया हो पर सरकार द्वारा इसके व्यापक दुरूपयोग ने इनकी विश्वसनीयता और सम्मान खत्म कर दिया है। सबसे दु:खद पहलू ये है कि इनका  इस्तेमाल विपक्ष की राज्य सरकारों को अस्थिर करने, गिराने, और अपनी सरकार बनाने में भी किया जा रहा है। यह भारत की बहुदलीय लोकतंत्र प्रणाली और संघीय ढांचे के लिये बड़ा खतरा है।



2014 से देखे तो अभी तक बिन चुनाव जीते पार्टी तोड़ सरकार बनाने का बीजेपी का आंकड़ा 12 हो गया है। तोड़ू सरकार के निर्माण सामग्री के लिए आवश्यक धन की आपूर्ति की सतत व्यवस्था गोपनीय  Election Bond द्बारा पहले ही कर लिये गए हैं। इसके जरिये  तकरीबन 90%राशि चन्दे के रूप में बीजेपी को मिलती है बाकि सभी पार्टियों को शेष 10% से काम चलाना पड़ता है। हाल के महीनों की ही छानबीन करें तो एजेन्सी के दुरूपयोग स्पष्ट रूप से दिखेंगे।


 
Maharashtra Political Crisis


महाराष्ट्र में महाअघाड़ी की सरकार चला रही उध्दव ठाकरे की शिवसेना पार्टी को तोड़ा गया।माना जा रहा है कि शिन्दे  के नेतृत्व में 55 में से 40 विधायकों के इस टूट के पीछे ED का आतंक का हाथ था  साथ ही यह भी कहा जाता है  अपनी पार्टी से इस धोखेबाजी की क्षतिपूर्ति के रूप में हर विधायक को 50 करोड़ रूपये भी दिये गये। 



महाअघाड़ी की सरकार चली गई और  टूटे गुट के साथ बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज हो गई।  विपक्षी को छोड़ भी दें खुद बीजेपी के वरिष्ठ नेता श्री सुशील मोदी ने उदघाटित किया कि इस समस्त घटनाक्रम पीछे बीजेपी थी क्योंकि शिव सेना ने बीजेपी के साथ गद्दारी की थी और उसे सबक सिखाना था।  


 
Bihar Political Crisis


ऐसी ही कोशिश बिहार में की जा रही थी । जदयू को तोड़ने के बिसात महाराष्ट्र के शिन्दे की तरह आर सी पी सिंह के माध्यम से बिछाये जा रहे थे पर श्री नीतीश कुमार की सतर्कता की वजह से कामयाब नहीं हो पाई। बीजेपी को लेने को देने पड़ गए। सरकार और नीतीश कुमार का जदयू दोनों उनके खेमे से निकल कर महागठबंधन में चले गए।



विश्वास मत के ही दिन आरजेडी के नेताओं पर निर्लज्जता पूर्वक सीबीआई द्वारा छापा मारा जाना  फिर कुछ दिनों बाद  मणिपुर में जेडीयू के पांच विधायकों का बीजेपी में शामिल करना बीजेपी का बदला माना जाता है। पर इसे बदला नहीं खीज उतारना कहते हैं।गलवान घाटी में भारतीय शहीदों का ऐसा ही  बदला , TikTok  जैसे कई चीनी एप्प को बैन करके लिया गया था।



जदयू के साथ गठबंधन और सरकार में होने के बावजूद बिहार में बीजेपी की यह प्रयास आश्चर्यजनक है। यह दरअसल पूरे देश में एकक्षत्र राज्य करने और बीजेपी अध्यक्ष श्री जे पी नड्डा द्वारा  खुलेआम घोषित क्षेत्रीय पार्टियों को समाप्त करने के खतरनाक तानाशाही मंसूबे का द्योतक है।



बिहार में मिली असफलता के बावजूद बीजेपी "पार्टी तोड़ सरकार बना" अभियान में कोई कमी नहीं आई है। अभी उनके टारगेट में झारखंड की महागठबंधन की हेमंत सोरेन की सरकार और दिल्ली में आप की केजरीवाल सरकार हैं। ईडी और सीबीआई दोनों ही जगह हरकत में आ गई हैं।


 
Jharkhand Political Crisis


झारखंड में खनन घोटाले और मनरेगा घोटाले मामले में ईडी निरंतर छापेमारी ,IAS पूजा सिंघल की गिरफ्तारी और कैश बरामदगी के बावजूद भ्रष्टाचार का तार मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन से  जोड़ नहीं पाई । पर एक कोयले खदान की लायसेंस हेमंत सोरेन के नाम पर होने की सूचना उजागर हुई । इसी को सोरेन की सदस्यता से अयोग्यता मामला बनाया गया । सोरेन की दलील है कि इस खदान का लायसेंस 2008 में ही मिला है 2021में उसका सिर्फ रिन्यूअल हुआ है इसलिए अयोग्यता का मामला नहीं बनता है।



पर ऐसा कहा जा रहा है चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने की गोपनीय सिफारिश राज्यपाल को दे दी है। राज्यपाल इसपर निर्णय नहीं ले रहे हैं वो इसके लिये दिल्ली पर निर्भर हैं। असमंजस की स्थिति बरकरार है। विधायक तोड़ने की डील चल ही रही थी कि झारखंड के तीन कांग्रेसी विधायकों को बंगाल पुलिस द्वारा 48 लाख रूपये के साथ कलकत्ता में पकड़े जाने की खबर के साथ खुलासा हो गया। कांग्रेस इसे झारखंड में "आपरेशन कमल"का सबूत मानती है।



ऐसा लगता है डील पूरी हो जाने तक गवर्नर का निर्णय आना मुश्किल है। दूसरी तरफ अपने विधायकों को आपरेशन कमल से बचाने के चक्कर में रांची और रायपुर के बीच डोलते रहे मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन ने अपने आप सदन बुला विश्वास मत 48-0 से जीत कर खुद को आश्वस्त कर लिया है।


 
New Delhi Political Crisis


ऐसी आश्वस्त दिल्ली की केजरीवाल की आप सरकार विश्वास मत हासिल करने के बाद भी नहीं हो सकती।क्योंकि 70 में 62 विधायक वाली आप, सरकार के रूप में भले ही मजबूत हो पर दिल्ली राज्य के रूप में अन्य राज्यों की तुलना में कमजोर है , यह पूर्ण राज्य नहीं है। यहां के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन को मनिलान्ड्रिंग के केस में ED जेल में डाल चुकी है जबकि उप मंत्री मनीष सिसोदिया पर शराब घोटाले के नाम पर सीबीआई और ईडी के छापे पड़ चुके हैं और गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है।



अब इस सरकार पर 1000 डीटीसी बस खरीद और रखरखाव में घोटाले का आरोप लगाया जा रहा है और लेफ्टिनेंट गवर्नर ने सीबीआई को जांच करने का आदेश भी दे दिया है। केजरीवाल की आप सरकार केन्द्र एजेन्सियां के प्रयासों का सामना बीजेपी पर "आपरेशन कमल" और लेफ्टिनेंट गवर्नर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर बहादुरी के साथ कर रही है। पर दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में ये चर्चा आम है कि  "आप" गुजरात चुनाव में बीजेपी को चाहे जीता पाये या ना पाये  दिल्ली की सरकार जानी तय है इसके लिये भले ही दिल्ली को यूनियन टेरिटरी घोषित करना पड़े तो पड़े। बस गुजरात विधानसभा चुनाव हो जाने का इंतजार है।



बीजेपी द्वारा जांच एजेन्सियों के इस अन्धाधुन दुरूपयोग की मुख्य वजह इसका हमेशा चुनावी मोड में रहना है। इस मोड में रहने के कारण यह अपनी प्रशासनिक, आर्थिक सारी कार्य कुशलता को चुनावी सफलता में ही आंकती है। भले देश महंगाई, बेकारी और आर्थिक संकट में फंसा हो इसका एक ही फलसफा है कि चुनाव अगर जीत रहे हैं तो सब ठीक है।


बीजेपी मान चुकी है कि अगर विपक्ष को छापों से आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया जाये, ध्रुवीकरण की राजनीति हो, मीडिया और चुनाव आयोग नियंत्रण में हो साथ ही डबल ईंजन की सरकार  हो तो कैसी भी सत्ता विरोधी लहर( Anti-incumbency) हो फिर भी चुनाव जीते जा सकते हैं। हाल के 5 राज्यों के चुनाव परिणामों ने इस विश्वास को और पुख्ता कर दिया है।


देश के ऐसे हालात में कोई शख्स जांच एजेन्सियों से बिना डरे ध्रुवीकरण की राजनीति से विभक्त समाज को जोड़ने हेतु प्रेमपूर्वक आग्रह करने ,देश की वास्तविक समस्याओं को बतलाने और बीच-बीच में पथभ्रष्ट मीडिया को आईना दिखा जमीर जगाने का प्रयास कर ने की कोशिश 3570 किलोमीटर  पदयात्रा द्वारा कर रहा है तो उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए ना कि वो क्या पहनता है, किससे बात करता है और कैसे सोता है जैसी फालतू बातों पर मजाक उड़ाना। 

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