किसी भी लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र एवं निस्पक्ष चुनाव एक प्राथमिक शर्त होती है।  भारत, जनसंख्या के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहां स्वतंत्र और निस्पक्ष चुनाव की जिम्मेवारी केन्द्रीय चुनाव आयोग की है। अभी यहां पांच राज्यों की विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं और हालात ये हैं कि राजनीतिक पार्टियों  की हार-जीत का फैसला 10 मार्च 2022 की मतगणना के बाद होगा पर स्वतंत्र और निस्पक्ष चुनाव कराने में केन्द्रीय चुनाव आयोग की हार अभी हो गई लगती है। 



ये बड़े खेद की बात है कि जिस चुनाव आयोग को अपने कार्यकाल में मुख्य चुनाव आयुक्त स्व० टी एन शेषण ने सशक्त, स्वतंत्र एवं निस्पक्ष बनाया था वो न तो सशक्त, न स्वतंत्र और न ही निस्पक्ष रहा। 14 फरवरी 2022 तक के चुनाव में ईवीएम के कई जगह खराब होने की शिकायत तो आई ही हैं तो कई बूथों पर बड़े पैमाने पर खास समुदाय और जाति के मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट से आश्चर्य जनक ढ़ग से गायब हो गए। यह अधिक खतरनाक बात है। इसके अलावा एक ही परिवार के मतदाताओं को अलग-अलग बूथ आबंटित कर देने की भी शिकायत मिल रही हैं। 


इतना ही नहीं इस बार चुनाव आयोग ने पोस्टल बैलट का दायरा बढ़ा कर दिव्यांग एवं 70 वर्ष के ऊपर के बुजुर्ग मतदाताओं को भी शामिल कर दिया है। पिछले वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव में पोस्टल बैलट को लेकर बड़ा विवाद हुआ था और माना जाता है कि इसके बल (छल) से ही बीजेपी और एनडीए वहां सत्ता में आ पाई है।  यूपी में भी एक दिव्यांग महिला द्वारा उससे जबरदस्ती बीजेपी पर वोट गिरवा लेने का आरोप लगाने वाला वीडियो वायरल हुआ है।


किसान नेता महेश टिकैत की इस आशंका कि यूपी में बीजेपी के वोटों की गिनती 15 हजार से शुरू होगी और प्रधानमंत्री की इस अति आत्मविश्वास कि आयेगा तो योगी ही, इनके पीछे इसी पोस्टल बैलट का बैलेंस ही तो नहीं है? PMO  द्वारा चुनाव की घोषणा के पूर्व स्वायतशासी संस्था के मुख्य चुनाव अधिकारी को  परम्परा के विपरीत ऑफिस तलब करना ऐसी ही आशंका को जन्म देते हैं। ऐसा लगता है कि सारी गड़बड़ियां मानवीय भूल नहीं बल्कि किसी सोची समझी नीति के अनुसार हो रही है। 




ईवीएम के प्रश्न को रहने भी दे चुनावी आचार संहिता का पालन कराने में भी यह आयोग फेल हो रहा है। विपक्ष के प्रति सख्ती और सत्तारूढ़ बीजेपी के प्रति नरमी इसकी पहचान बनती जा रही है। ये सिलसिला 2014 के बाद होने वाले चुनावों से चल रहा है। 2019 के आम चुनाव में सेना के नाम का धड़ल्ले से इस्तेमाल और ऐन चुनाव के दिन केदारनाथ मंदिर में ध्यान लगाने और 2021 के बंगाल चुनाव के दिन बंगला देश पहुंच मन्दिर में पूजा की नौटंकी और उसका सभी मीडिया चैनलों पर दिनभर प्रसारण चुनाव आयोग की इसी असफलता की दास्तान हैं। 2022 के पांच राज्यों के इन चुनावों में इसकी हद ही हो गई है। 



 8 जनवरी 2022 को चुनाव की तिथि की घोषणा के बाद से आचार संहिता का पालन कराने में चुनाव आयोग का रवैया ऐसा रहा है कि मानो वो बीजेपी के साथ खड़ा हो। यदि ऐसा नहीं है तो जिस तरह के आचार संहिता उल्लंघन की घटना पर  कांग्रेस के भूपेश बघेल पर FIR हो गई वो अमित शाह पर क्यों नहीं हुई। 


इसी तरह कांग्रेस की प्रियंका गांधी पर  डोर टू डोर कैंपेन को रैली बता कर  FIR हो गया पर  बीजेपी के अमित शाह ऐसा कर के बचे रहे। ये तो कोरोना काल में थूक लगा कर पर्चा बांटते रहे फिर भी चुनाव आयोग ने  कोई नोटिस न थमाया। कल्पना कीजिये ये काम विपक्ष का कोई नेता करता तो चुनाव आयोग और मीडिया का रूख क्या होता? इसी तरह अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के कैंपेन पर चुनाव आयोग सख्ती दिखलाता रहा, FIR होते रहे जबकि बीजेपी के तमाम बड़े नेता इस सख्ती से बचे रहे। 



चुनावी आचार संहिता के अलावा  People Representative Act   सेक्शन 125 और सेक्शन 126 का बीजेपी के तमाम बड़े नेता धज्जियाँ उड़ाते रहे और चुनाव आयोग खामोशी से देखता रहा है। सेक्शन 125 कहता है-

Any person who in connection with an election under this Act promotes or attempts to promote on grounds of religion, race, caste, community or language, feelings of enmity or hatred, between different classes of the citizens of India shall be punishable, with imprisonment for a term which may extend to three years, or with fine, or with both.

इस कानून के रहते जिन्ना, पाकिस्तान,हिजाब, कैराना, मुजफ्फरनगर के दंगे,दंगाइयों का शासन आ जायेगा, 80-20 का मामला है, नहीं तो केरल, बंगाल, कशमीर बन जायेगा, गजवा-ए हिन्द नहीं होने देंगे ,देश संविधान के अनुसार चलेगा शरीयत से नहीं आदि बातें कैसे हो सकती हैं? पर ऐसा हुआ है। बीजेपी के बड़े-बड़े नेता ऐसी बातें साम्प्रदायिक गोलबंदी के लिए लगातार कर रहें हैं पर इनके खिलाफ  कोई कारवाई नहीं हुई है। 

इसी प्रकार  People Representative Act  की सेक्शन 126 का भी उल्लंघन हो रहा है। सेक्शन 126 के अनुसार

[126. Prohibition of public meetings during period of forty-eight hours ending with hour fixed for conclusion

(b) display to the public any election matter by means of cinematograph, television or other similar apparatus; or 

 (c) or any theatrical performance or any other entertainment or amusement with a view to attracting the members of the 

public thereto, 

2) Any person who contravenes the provisions of sub-section (1) shall be punishable with imprisonment for a term 

which may extend to two years, or with fine, or with both.

इस कानून के रहते प्रथम और द्वितीय चरण के मतदान के 24 घंटे पहले  बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता का क्रमश: ANI  और  India TV  पर लम्बा इंटरव्यू कैसे प्रसारित हो जाता है? जो चुनाव के दिन भी तमाम चैनल पर बार-बार दुहराये भी जाते हैं। इतना ही नहीं चुनाव के दिन इन्हीं नेता की अन्य जगह की रैली व भाषण मतदान हो रहे क्षेत्र में क्यों प्रसारित की जाती हैं? ऐसा लगता है मतदान के दिन तमाम गोदी मीडिया चैनलों पर बीजेपी के ये महान   नेता स्वयं आसनस्थ हो चुनाव प्रचार कर रहे हों। 


यूपी राज्य के बीजेपी के एक बड़े नेता प्रथम चरण के मतदान दिन वीडियो संदेश देते हैं कि सावधानी से वोट दीजिये नहीं तो यूपी को केरल, कश्मीर और बंगाल बनते देर नही  लगेगी। फिर 14 फरवरी के द्वितीय चरण के दिन देश के महान नेता की तर्ज पर  ANI  को लम्बा चौड़ा इंटरव्यू दे मारते हैं और इसी दिन "गजवा -ए - हिन्द  नहीं होने देंगे और देश संविधान से चलेगा शरीयत से नहीं" का ट्वीट करते हैं।  इसे कहते हैं कि बड़े मियां तो बड़े मियां तो छोटे मियां सुभानअल्लाह! आश्चर्य है देश को मनुस्मृति के अनुसार चलाने की बात सुनी भी थी पर शरीयत के अनुसार! सच में! ऐसी बातें कोई बहुत बड़े योगी ही कह सकते हैं। 



केन्द्रीय चुनाव आयोग इतना अशक्त क्यों है जो इन उल्लंघनों को रोक नहीं रहा है। हार की आशंका से यदि नेता अपनी मर्यादा खो रहे हैं तो उन्हें मर्यादा में रखना ही तो चुनाव आयोग का कायम है। कम से कम मीडिया पर तो कारवाई करनी चाहिए। अभी भी कई चरणों के चुनाव बाकि हैं  जिस तरह के फार्म में ये डबल ईंजन है उनमें कई ऐसे गुल खिल सकते हैं जिससेे भारतीय प्रजातंत्र और निस्पक्ष चुनाव प्रणाली की और भी भद्द पिट सकती है।

 

प्रधानमंत्री चुनाव आयोग की निस्पक्षता को लेकर विपक्ष के आरोप पर हार का चाहे जो तंज करें  जो सच है वो सामने है। वास्तविकता ये है कि चुनाव आयोग ने अपने आचरण से अपनी विश्वसनीयता खो दी है। रही हार जीत की बात तो यह तो कहा ही जायेगा कि बीजेपी यदि चुनाव हारती है तो ऐसे चुनाव आयोग के बावजूद हारेगी और कहीं विपक्ष जीतता है तो ऐसे चुनाव आयोग के बावजूद जीतेगा। दु:खद है कि एक और स्वतंत्र व स्वायतशायी संस्था धाराशायी हो गया है। 

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