Assembly Elections 2022 – records were made but norms were broken? असेंबली चुनाव- रिकॉर्ड बने पर मर्यादायें टूटी?

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है। 

 



assembly elections 2022

2022 साल के आखिरी दो महीनों में जहां खेल जगत में विश्वकप फुटबॉल की धूम रही वहीं भारतीय राजनीति में भारत जोड़ो यात्रा के अलावा गुजरात, हिमाचल प्रदेश की विधान सभा और दिल्ली कॉरपोरेशन के चुनावों की गहमागहमी रही। जहां कांग्रेस  "भारत जोड़ो यात्रा" द्वारा लोगों का दिल जीतने में लगी रही वहीं फुटबॉल जगत के सितारे मेसी ने अर्जेन्टीना के लिये विश्व कप जीत लिया जबकि गुजरात से निकले बीजेपी के चमकते सितारे(star) और पुच्छल( comet) तारे के हाथ से हिमाचल और दिल्ली तो निकल गई पर गुजरात में उन्होंने जीत का नया रिकॉर्ड  ही बना दिया।  



यद्यपि महंगाई और बेरोजगारी को लेकर गुजरात में भी सत्ता विरोधी लहर थी तथापि  सितारे और पुच्छल तारे ने जिस तरह "कुछ दिन जो गुजारे गुजरात में" उसे लेकर यह आशंका  तो थी कि कम से कम गुजरात को किसी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देंगे। फलस्वरूप यहां रिकॉर्ड ही नहीं टूटे संवैधानिक और लोकतांत्रिक मर्यादायें भी टूटी। 

 Assemblies Result 2022

गुजरात चुनाव अधिक महत्वपूर्ण था क्योंकि यह तथाकथित गुजरात का मॉडल ही था जिसने इन्हें देश पर राज करने का मौका दिया। यहां की हार देश की राजनीति में इनकी पकड़ कमजोर कर सकती थी। ऐसे में जब परिणाम आए तो हुआ कुछ ऐसा चाहे वो बीजेपी के समर्थक हों या विरोधी सब दंग रह गए। 


हिमाचल में तो 68 में से 40 सीटों पर कांग्रेस जीत गई जबकि  पिछले चुनाव की तुलना में लगभग 6% मतों के नुक्सान के साथ 25 सीटों पर सिमटी  बीजेपी की हार हो गई पर अलबत्ता गुजरात में  2.5% मतों की वृद्धि के साथ 182 में से, 57 सीटों की बढ़ोतरी के साथ  बीजेपी ने 156 सीटों पर अभूतपूर्व जीत हासिल कर लिया। पिछले चुनाव में 77 सीट हासिल करने वाली कांग्रेस महज 17 सीटों पर सिमट गई। 


Reasons for win in Gujrat and defeat in Himachal

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार बीजेपी की गुजरात में जीत का मुख्य कारण करोड़ों के प्रोजेक्टों की घोषणा के बावजूद, विरोधी मतों का कांग्रेस और आप में बंटवारा होना रहा। आप ने लगभग 12% मत हासिल किये जबकि कांग्रेस का वोट 41% से घटकर 27% हो गया। जबकि हिमाचल में अपेक्षाकृत शिक्षित और भयमुक्त जनता वास्तविक मुद्दे महंगाई, बेकारी, भ्रष्टाचार पर टिकी रही। यहां वोटों का बंटवारा नहीं हो सका। आप की यहां दाल नहीं गल पा रही थी तो वो चुनाव पूर्व ही पतली गली से निकल गई। 

दूसरे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के गृहराज्य होने के कारण गुजरात में अस्मिता का प्रश्न भी जुड़ा रहा  जिसका लाभ उसे मिला। जाहिर है कि यह लाभ हिमाचल में नहीं मिलने वाला था। 


तीसरा मुख्य कारण हिन्दू -मुस्लिम  ध्रुवीकरण की राजनीति गुजरात में चली पर हिमाचल में नहीं। आतंकवाद का सवाल उठा कर उसे विपक्ष से जोड़ा गया, 2002 के दंगो की याद दिला जनता को भयभीत किया गया , और सबक सिखाने जैसे उत्तेजक भाषण दिये गए और "यूनीफॉर्म सिविल कोड" का दांव चला गया। गुजरात में  ध्रुवीकरण की यह नीति काम कर गई  क्योंकि मुसलमानों की संख्या  गुजरात में लगभग 10% है पर हिमाचल में यह संख्या महज 2.18% होने के कारण फेल हो गई। अर्थात जिस राज्य में मुसलमानों की संतोषजनक (हिन्दु-मुस्लिम करने लायक) संख्या नहीं होगी वहां तो बीजेपी हार जायेगी? आश्चर्य है ! जिस पार्टी की जीत के लिये मुसलमानों का होना इतना महत्वपूर्ण हो वो फिर भी इनके पीछे हाथ धो क्यों पड़ी रहती है ? उफ्फ! हिप्पोक्रेसी की भी कोई सीमा होती है! 


गुजरात में बीजेपी की जीत का एक कारण मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं का यहां के चुनाव के प्रति उदासीन रवैया भी रहा। कदाचित इस उदासीनता के पिछले चुनाव में एक समय जीतती कांग्रेस को सूरत के 17 सीटों की मतगणना में की गई आखिरी समय की गडबड़झाले से हताश हो ऐसा लगा कि किसी सूरत में गुजरात को नहीं जीता जा सकता। इसलिए कांग्रेस ने जिस ताकत से हिमाचल लड़ा  उतनी ताकत गुजरात में नहीं लगाई। 

Breaking the norms

ये सारे कारण सही हो सकते हैं पर इतने से ये रिकॉर्ड नहीं बनते। इनमें से अधिकांश कारण  पहले भी रहे थे फिर भी बीजेपी की सीटें चुनाव दर चुनाव कम होती जा रही थी। असल में बीजेपी की स्थिति गुजरात में हिमाचल से बेहतर तो थी पर बहुमत को लेकर वो आश्वस्त नहीं थी। इसलिए साम, दाम, दंड और भेद  सभी नीतियों को इस तरह उपयोग में लाया गया कि हार की रत्ती भर गुंजाइश ना रहे और इसी चक्कर में जीत का नया रिकॉर्ड ही बन गया। 


ऐसा पहली बार हुआ कि विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री स्थानीय उम्मीदवार को छोड़ खुद के चेहरे पर जनता से वोट मांगते दिखे। यह देश की संघीय व्यवस्था और प्रांतीय सरकार के मर्यादा के विरूद्ध आचरण था। इसके अलावा बीजेपी के खुद के गढ़े हुए "डबल ईंजन की सरकार" की अवधारणा के भी प्रतिकूल था। क्योंकिुं ऐसे में ईंजन तो एक ही था दूसरे को महज डब्बा(बॉगी) बना दिया गया। प्रधानमंत्री की कार के पीछे भागते मुख्यमंत्रियों की तसवीरें इसी डब्बेपन का अहसास कराती रही। 


केन्द्र में बीजेपी की सत्ता के आने के बाद यह आम परिपाटी सी बन गई है कि विपक्षी पार्टियां विधान सभा में जीत के बाद और सरकार बनने तक कभी-कभी सरकार बनाने के बाद भी( यथा- झारखण्ड और राजस्थान) अपने विधायकों क खरीद फरोख्त की शाही तकनीक  से बचाने के लिये उन्हें सुरक्षित करती रहती है।


मजाक चलता है कि बीजेपी जब चुनाव जीतती है तो सरकार बनाती है और जब चुनाव हारती है तब तो यकीनन सरकार बनाती है। गोदी मीडिया इस राजनैतिक कुकर्म को चाणक्य नीति बतला कर महिमा मंडित करती रही है। पर यह महापंडित चाणक्य की नीति नहीं है बल्कि  भस्मासुरी राक्षसी नीति है। "चित्त मैं जीता पट तुम हारे" कि यह नीति देश के लोकतंत्र को भस्म कर देने वाली है। ऐसे में चुनाव का कोई मतलब ही नहीं रह जायेगा। ये लोकतंत्र का मजाक नहीं, बल्कि उस पर मंडराता गंभीर खतरा है। 


गुजरात चुनाव में  इस भस्मासुरी नीति का और भी विस्तार किया गया। विपक्षी पार्टी को विधायकों की छोड़िये अपने चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को भी सुरक्षित करने की जरूरत आ पड़ी। आप पार्टी को अपने 93 उम्मीदवारों को सोमनाथ में सुरक्षित करना पड़ा। इसके अलावा जबरन नामांकन वापिसी का भी खेल खेला गया। आप पार्टी ने यह आरोप  सूरत(पूर्व)  के  प्रत्याशी के कंचन जरीवाला के अपहरण फिर नामांकन वापसी को ले कर लगाया। दूसरी ओर  असेम्बली सीट "सनद " के रिटर्निग आॉफिसर 47 वर्षीय आर के पटेल ने सुसाइड कर लिया परिवार वाले इसे हत्या मानते हैं।। कहा जाता है कि उन पर किसी विशेष काम का दवाब था। 


उल्लेखनीय है कि एक हफ्ते पहले यहां के बीजेपी उम्मीदवार कनु पटेल के नामांकन में देश के गृहमंत्री भी साथ गए थे। मामला जो भी हो इस घटना से राज्य के बाकि रिटर्निंग आॉफिसर के काम करने की मन:स्थिति पर क्या असर पडा होगा, समझा जा सकता है। मतदान के आखिरी घंटे में वोटिंग प्रतिशत के अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाने का कारण कहीं यही मन:स्थिति तो ना थी?

 Attitude of Election Commission

2014 के बाद देश की संवैधानिक और स्वायत संस्थाओं के पतनोन्मुख होने में होड़ सी लगी हुई है। इस होड़ में केन्द्रीय चुनाव आयोग किसी से कम नहीं रहा है और यह बात चुनाव दर चुनाव साबित होती जा रही है। इस बार के चुनाव भी  इसके अपवाद नहीं थे। सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा चुनावी आचार संहिता की धज्जियां उड़ती रही चुनाव आयोग खामोश रहा। प्रचार में बच्चे का इस्तेमाल का सवाल हो या सांप्रदायिक भाषणों के प्रयोग का मामला, शिकायत करने पर भी कोई कारवाई नहीं की गई। 


कांग्रेस के विधायक अपनी सुरक्षा मांगते रहे वो भी अनसुना कर दिया गया। जिस इलाके में मतदान चल रहा था वहां भी मीडिया द्वारा दूसरे स्थान से चुनावी भाषण का अनवरत प्रसारण होते रहा आयोग ने इसे रुकवाया नहीं। हद तो तब हो गई की जब प्रधानमंत्री घंटो का रोड शो करते हुए मतदान करने पहुंचे ,चुनाव आयोग मूकदर्शक बन देखता रहा। यहां तक कि मतदान के आखिरी घंटे में अनेक सीटों पर अप्रत्याशित मत प्रतिशत वृद्धि  (राज्य कुल के मतदान में 6.5% जबकि कुछ सीटों पर 11% की वृद्धि) पर भी इसके पास माकूल जवाब नहीं था। विद्दतीय वोटिंग मशीन(EVM) का विद्दतीय गति से इस्तेमाल, कमाल है! 


दरअसल केन्द्रीय चुनाव आयोग ने इन सभी सवालों का जवाब चुनाव की घोषणा करते ही समय अपनी तुलना क्रिकेट के अम्पायर से कर के भरसक दे दिया था जिस पर पक्षपात के आरोप यूं ही लगा करते थे। शायद आयोग को यह पता नहीं कि जब से क्रिकेट में न्यूट्रल अम्पायर आए हैं तब से पक्षपात के आरोप बंद हो गए हैं। 


वो जमाना गया जब कहा जाता था जब तक पाकिस्तानी अम्पायर रहेंगे पाकिस्तान अपने देश में मैच हार नहीं सकता। आज का चुनाव आयोग संभवतः उसी जमाने में जी रहा है जब तक वो निस्पक्ष नहीं होगा सत्तारूढ़ दल की सेलेक्टिव जीत- हार यों ही होती रहेगी। चुनाव आयोग के ऐसे प्रभावहीन, पक्षपाती क्रियाकलाप को देख उसकी नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमा चल रहा है। निर्णय सुरक्षित है। सुधार की आशा रख सकते हैं तो रखिए बाकि जनता मालिक। 

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Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

2 टिप्पणियाँ

  1. बहुत गंभीर प्रश्न भारतीय राजनीति पर ऐछ💐

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  2. Jab se modi sarkar ayi hai samvidhan majak ban ke rah gaya hai isbar 2024 me Inka bhi bhayankar majak banane wala hai sirf Gujarat lekar adani Ambani ke sir per tandav karenge desh dekheg a

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