Election trends


भारत में पांच राज्यों की विधान सभा के चुनाव चल रहें हैं। पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में मतदान संपन्न हो चुके हैं जबकि यूपी में तीन चरणों और मणिपुर में दो चरणों के मतदान अभी होने हैं। इन सभी चुनावों की मतगणना 10 मार्च 2022 को होंगी और परिणाम भी तभी सामने आयेंगे।  इन सभी राज्यों के में चुनावों में एक बात की समानता रही है कि वो है सत्ता विरोधी लहर अर्थात Anti incubency । जहां केन्द्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार है वहां ये  Anti incubency  भी दोगुनी है। 


इन पांच राज्यों में चार में बीजेपी की जबकि एक राज्य पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। ये सभी सरकारें  संकट में हैं। रिकॉर्ड-तोड़ बेकारी,कमर-तोड़ मंहगाई, कोरोना त्रासदी का घनघोर कुप्रबंधन,आमदनी की आपदा, और किसानों की बदहाली जैसे राष्ट्रीय मुद्दे  इन राज्यों के चुनाव में भी प्रमुख मुद्दे हैं। इन्हें देखते हुए हर राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी घोषणापत्र में अपने-अपने तरीके से लोक लुभावने वादों के साथ जनता को प्रभावित करने की कोशिशें हुई हैं। 


 Trends Punjab Assembly election 2022


पंजाब में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और यहां मुकाबला बहुध्रवीय है जिसमें कांग्रेस के अलावा आप, अकाली दल-बीएसपी गठबंधन, बीजेपी व कांग्रेस के अपदस्थ और बागी हो चुके पू्र्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह की पार्टी  का गठबंधन के अलावा संयुक्त किसान मोर्चा शामिल हैं। 


कांग्रेस की सरकार ने अपनी Anti Incumbency को कम करने के लिये और बहुसंख्यक दलित वर्ग को ध्यान में रख राज्य का मुख्यमंत्री बदल कर चरणजीत सिंह चानी को मुख्यमंत्री बना दिया  है पर यह पार्टी आपसी गुटबाजी से त्रस्त है। जबकि अकाली दल बीएसपी गठबंधन ने तीन कृषि कानून बनते समय बीजेपी के साथ रहने के कारण अपनी स्थिति कमजोर कर ली है वहीं  परिवर्तन की लहर पर सवार आम आदमी पार्टी पंजाब की सत्ता पर जोरदार दावेदारी पेश कर रही है। 


बीजेपी की स्थिति यहां पहले भी विशेष नहीं थी है वहीं किसान आन्दोलन ने इसे और कमजोर कर दिया है। फिर भी उसकी कोशिश यहाँ अपनी राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को दुबारा सत्ता में आने से किसी तरह रोकना है। इसके लिए वो विधानसभा को त्रिशंकु (hung) रखना चाहती है।बीजेपी को उम्मीद है कि ऐसा होने पर पुन: पुराने साथी अकाली दल के  साथ ले और "साह तकनीक " से सत्ता में हिस्सेदारी का मौका भी आ सकता है अगर ऐसा नहीं हुआ तो राष्ट्रपति शासन लगाने का विकल्प तो रहेगा ही। 


यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच है। परिवर्तन की लहर पर सवार आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि वो सत्ता तक पहुंच सकती है। पर इसकी उम्मीद को पुनः झटका लग सकता है। क्योंकि मालवा रीजन में जहाँ आप सबसे मजबूत मानी जाती है वहां मतदान प्रतिशत का पिछले चुनाव से 5% कम होना और पूरे पंजाब में 6% कम होना आम आदमी पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। ऐसे हालात में  फायदा या तो कांग्रेस को हो सकता है उसकी सत्ता बच सकती है या  बीजेपी को जो त्रिशंकु विधानसभा चाहती है। 

Trends Uttrakhand Assembly Election 2022

उत्तराखंड में  कुल 70 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुके हैं। यहाँ हर बार सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है उस हिसाब से यहां बारी कांग्रेस पार्टी की है।  Anti incumbency को टालने के लिए बीजेपी ने दो-दो बार मुख्यमंत्री बदले हैं पर उसका कोई खास असर नहीं हुआ है। परिणाम आने से पूर्व कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए नेताओं के बीच बयानबाजी एक स्थिर सरकार के लिये शुभ संकेत नहीं है पर कांग्रेस जीत रही है इसके संकेत अवश्य हैं। 

Trends Goa and Manipur election 2022

गोवा और मणिपुर  में भी डबल Anti incumbency कार्य कर रहा है और बीजेपी की सरकार इससे जूझ रही है। गोवा में  कुल 40 सीटों के मतदान हो चुके हैं कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आती दिख रही है। यहां टीएमसी और आम आदमी पार्टी भी चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही है। इन दो पार्टियों का मुख्य उद्देश्य  चुनाव जीतने की बजाय राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए आवश्यक 4 राज्यों में कम से कम 6% वोट प्राप्त करना है। इस चक्कर में  hung assembly  की स्थिति भी पैदा होती है। 


मणिपुर में भी यही स्थिति है यहां भी सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने हैं।60 सीटों के लिए मतदान 28 फरवरी और 5 मार्च 2022 को होने हैं। कांग्रेस ने कम्युनिस्ट पार्टी, जदयू(सेकुलर) एनसीपी आदि से गठबंधन कर तथा Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) को हटाने की बात कर बढ़त बना ली है पर बढ़त से काम नहीं चलने वाला है बहुमत की जरूरत है कांग्रेस को चिंता इसी को लेकर है। क्योंकि बढ़त तो पिछले चुनाव में भी थी वो 28 सीटें जीती थी जबकि बीजेपी ने सिर्फ 21,सरकार बीजेपी ने बनाई। 


कांग्रेस को भले ही चिंता हो बीजेपी को इन छोटे राज्यों में कोई चिंता नहीं है। जीत हो या हार देर-सवेर सरकार तो उनकी ही बननी है। Hung assembly  में तो बिल्कुल समय नहीं लगता और विपक्ष की मामूली बहुमत हो तो थोड़ा समय लग जाता है। ईडी,सीबीआई जिन्दाबाद , खरीद-बिक्री जिन्दाबाद " साह तकनीक" जिन्दाबाद!गोवा और मणिपुर जहां अभी चुनाव हो रहे हैं वो भी ऐसी ही सरकार के उदाहरण हैं। बीजेपी सीधे शासन वाले में कुल 12 राज्यों से 6 सरकार चुनाव से नहीं बल्कि चुनाव के बाद ऐसे-वैसे ही बनी है।ऐसे-वैसे में अपनी 6 सरकार गंवा चुकी कांग्रेस ने ऐसे-वैसे के बावजूद 3 सरकार बचा रखा है।  



Trends UP Assembly election 2022

बीजेपी को चिंता है तो 403 सीटों वाली यूपी जैसे बड़े राज्य की जहां 2017 में उसे प्रचंड बहुमत मिला था।यूपी का यह चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है और कहा जाता है केन्द्र की सत्ता की कुंजी इसी राज्य से मिलती है।  यह चुनाव पूरे देश की दशा और दिशा को तय करने वाला है। इसके परिणाम तय करेंगे की देश एक कट्टर फासीवाद के रास्ते चलेगा या सेकुलर लोकतांत्रिक रास्ते पर। 



यहाँ केन्द्र और राज्य सरकार के खिलाफ जबरदस्त Anti Incubency है। बीजेपी नेता की सभाओं  में भीड़ नहीं आ रही है यहां तक की प्रधानमंत्री की कई सभाओं को रद्द करना पड़ा है। आवारा पशु की समस्या से ग्रस्त जनता द्वारा मुख्यमंत्री की सभा में छुट्टा साढ़ों को दौड़ाया जा रहा है।बीजेपी का कोई नेता मंच पर कान पकड़ उठक-बैठक कर माफी मांगने का हास्यास्पद प्रयास कर रहा है। जनता का आक्रोश इस सीमा तक पहुंच गया है के देश के चुनावी इतिहास में पहली बार दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के कई नेताओं को अपने इलाके में प्रचार तक नहीं करने दिया जा रहा है बल्कि उन्हें खदेड़ा जा रहा है। 


जनता परिवर्तन चाहती है। कांग्रेस की श्रीमती प्रियंका गांधी ने अपनी समीचीन क्रियाकलापों एवं बयानों से बीजेपी सरकार के कमजोरियों को उजागर कर परिवर्तन का यह पिच तैयार किया है जिसका फायदा संगठनात्मक मजबूती के कारण समाजवादी पार्टी को मिल रहा है। समाजवादी पार्टी ने आरएलडी सहित कई छोटी-छोटी पार्टियों से गठबंधन कर अपने सामाजिक आधार का विस्तार किया है। 


वहीं बीजेपी के मुख्यमंत्री  के" एको अहं, द्वितीय नास्ति,न भूतों न भविष्यति "शासन के मठाधीशी अंदाज ने बीजेपी के हिन्दुत्व को कमजोर कर सामाजिक आधार को भी संकुचित कर दिया है। एनकाउंटर और ठोको की नीति से बीजेपी के जनाधार की मुख्य धुरी रहे ब्राह्मण समाज भी ठाकुरवाद से उपेक्षित और पीड़ित महसूस कर रहा है।Akhil Bhartiya Brahmin Ekta Parishad के प्रवक्ता भास्कर दुबे का कहना है कि विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद ब्राह्मण समुदाय के 84 युवक-युवती, जिनके खिलाफ एक भी प्राथमिकी दर्ज नहीं थी उन्हें भी पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मार गिराया गया। बीएसपी के सतीश मिश्रा की माने तो यह संख्या 400 तक पहुंच चुकी है। ब्राह्मणों की इसी नाराजगी की वजह से गृह राज्यमंत्री पद से अजय कुमार मिश्रा उर्फ टेनी को नहीं हटाया जा सका।



दूसरी तरफ परिवर्तन को लालायित जनता समाजवादी पार्टी के पीछे तेजी से गोलबंद हो रही है। इसकी घोषणा समाजवादी पार्टी के नेता श्री अखिलेश यादव की हर रैली में जनता की उमड़ती भीड़ कर रही है। परेशानी में पड़ी बीजेपी विकास की बातों को तज हिन्दु-मुस्लिम पर उतर आई है।



इसके लिये बीजेपी के शीर्ष स्तर के नेता निम्न स्तर के बयानबाजी पर उतर आये हैं।  दंगों के पुराने घाव को कुरेदा जा रहा है, समाजवादी पार्टी को दंगाई और आतंकवादी कहा जा रहा है।उसके चुनाव चिह्न साइकिल को बमवाहक का प्रतीक बतलाने का प्रयास और पांच किलो अनाज व नमक के बदले नमक हलाली और नमकहरामी का भाष्य, आवारा पशुओं के गोबर से किसानों की क्षति की भरपाई जैसी बात, संभावित हार से उत्पन्न निराशा और कुण्ठा ही दर्शाता है। 


इन सबके बीच केन्द्रीय चुनाव आयोग की नाकामी काबिलेतारीफ रही है। योगी मंत्रिमंडल द्वारा नियुक्त एक भी अफसर को हटाने की  जरूरत नहीं समझी गई।ऐसा टी एन शेषण के जमाने के बाद यूपी जैसे बड़े राज्य में पहली बार हुआ है। सत्तारूढ़ पार्टी के नेता अपने साम्प्रदायिक और ऊलजलूल वक्तव्यों से चुनाव आचार संहिता की खुलकर धज्जियाँ उड़ाते रहे पर आयोग की खामोशी बरकरार रही। 


कोई भी बटन दबाओ वोट बीजेपी को चली जाने की शिकायत इस बार भी कई जगहों से आई हैं। कभी इसकी उलट शिकायत अर्थात बीजेपी का बटन दबाने से विपक्ष को वोट गया हो, का नहीं आना यह अब तक ब्रह्म रहस्य बना हुआ है। बड़ी संख्या में खास समुदाय और लोगों का नाम वोटर लिस्ट से गायब हो जाना और पोस्टल बैलट की संख्या में बेशुमार वृद्धि और उसमें भी धांधली की शिकायत चुनाव आयोग की नाकामियों में शुमार करते हैं।  पिछले चार चरणों के मतदान ने समाजवादी पार्टी की बढ़त तय कर दिया है जबकि बीजेपी की उम्मीद चुनाव आयोग की इन्ही नाकामियों पर टिकी हुई है। 


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