Discussion on election in crematorium.श्मसान में चुनाव पर चर्चा!

 


एक जमाना था कि देश में चाय पे चर्चा कर एक नेता देश का चौकीदार बन गया और आज उसी  चौकीदार की अप्रतिम लापरवाही से बने सिस्टम में  कोरोना महामारी  न केवल फैली बल्कि लड़ने की बदइंतजामी और ऑक्सीजन की कमी से मरने की खबरें  देश के कोने-कोने से आ रही है। अस्पताल हो या श्मशान या फिर कब्रिस्तान हर जगह लम्बी कतारें लगी हैं।


 न जाति या धर्म का बंधन, न उम्र की कोई सीमा न राजनैतिक विचारधारा से परहेज और न ही अमीरी-गरीबी से मतलब , समाज के हर क्षेत्र के अच्छे- भले लोग काल कवलित होते जा रहे हैं। ऐसे में हालात में नतमस्तक मीडिया जब घंटों एक्जिट पोल पर या चुनावी नतीजों पर बहस कराती है तो ऐसा लगता है चौकीदार को कवर देने मरघट में चुनावी चर्चा कर रही है।


अब्राहम लिंकन ने कहा था कि प्रजातंत्र जनता, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है। जनता मालिक होती है सरकार नौकर। चुनाव, नौकर चुनने की एक प्रक्रिया मात्र होती है। नौकर का सिर्फ सेलेक्शन करने लाखों मालिकों की जान ले लें दुनिया के किसी मैनेजमैंट इंस्टीट्यूट में नहीं पढ़ाया जाता। शायद एमए In  "Entire Political Science "के पाठ्यक्रम में हो तो , नहीं पता। 


दुनिया की मीडिया भारत के इस हालात को लेकर चिंतित हैं वहीं खुलेजबान से इसका जिम्मेदार श्री नरेन्द्र मोदी की अहंकारी कार्यशैली को बतला रही है। कुंभ स्नान और चुनावी रैलियां सुपरस्पेडर बने हैं। चेन्नई , दिल्ली, कलकत्ता, इलाहाबाद सहित देश के कई हाईकोर्ट ने देश की इस मरघटीय हालत से केन्द्र और राज्य सरकारों को फटकार लगानी शुरु कर दी। चेन्नई हाई कोर्ट ने कोरोना के दूसरी लहर के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेवार ठहराया और उनके अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा  चलाने की बात कही।पर सत्ता की चमड़ी इतनी मोटी हो चुकी है उन पर इन फटकारों का कोई असर ही नहीं दिखता। 


चुनाव आयोग कितना स्वायत्त  है यह बात पूरी दुनिया को पता है। ऐसा नहीं होता तो पांच राज्यों में अव्वल तो चुनाव ही नहीं होते अगर होते भी तो बंगाल के  चुनाव न तो आठ चरण में होता और न ही इतिहास में एक ही जिले के संसदीय क्षेत्रों पर मतदान अलग-अलग चरणों में होते। 


अजीब तमाशा था देश में कोरोना से बेबश लोगों की लाशें गिर रही थी जिन्हें इस हालात को संभालने थे वे वहां बंगाल में भाषण का पराक्रम दिखा रहे थे।इन नेताओं में भगवान देखने वालों को  शायद  इस पराक्रम में शिव का तांडव दिख रहा हो। ये देवता फिलहाल मीडिया परिदृश्य से कुछ समय के लिए अन्तर्ध्यान हो जायेंगे। जब हालात सुधरेंगे तो बैंड-बाजे के साथ पुनः प्रकट हो जायेंगे। फिर मीडिया घोषणा करेंगी कि इन्होंने देश बचा लिया। हम एक साथ भुलक्कड़, मूर्ख, अमानवीय, निर्लज्ज और संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं!



इन हालात में क्या फर्क पड़ता है कि पुडुचेरी में  यदि कांग्रेस सरकार की वापसी कठिन है तो वहीं क्या फर्क पड़ता है कि असम में बीजेपी सरकार जाती हुई दिख रही है। तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन  एआईडीएमके और बीजेपी से आगे  है तो केरल में एलडीएफ का पलड़ा यूडीएफ से भारी है । इसी प्रकार क्या फर्क पड़ता है बंगाल में बीजेपी नेताओं और गोदी मीडिया की हवाबाजी ,चुनाव आयोग  और सीआरपीएफ की कार्रवाईयों के बावजूद वहां टीएमसी और सुश्री ममता बनर्जी सरकार सुरक्षित लग रही हैं । क्या फर्क पड़ता है ऐसा हो चाहे ना हो?  


क्या इससे कोरोना संकट थम जायेगा ? किसी की जीत -हार  से बदइंतजामी और  लापरवाही के पाप धुल जायेंगे! मरे हुए लोग जिंदा हो जायेंगे? लाशों की ढ़ेर पर चुनाव करा कर , उसपर बहस चला कर और जीत-हार की घोषणा कर दुनिया में भारतीय प्रजातंत्र का डंका बजने वाला है। यदि ऐसा समझते हैं तो हमने मतदान के साथ-साथ अपना मति भी दान कर दिया है।


Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

2 टिप्पणियाँ

  1. Najar k samne hanste, baat karte log mare jaa rahe hain aur ye Maharaj chuppi lagaye baithe hain...ab to thali ya taali ki baat bhi nhi karte ....bhul gye shaayad inhi logon ne vote de ke Do do baar satta dilaayi hai , in par vishwas kiya thA...Modi hai to mumkin hai kaha tha...aaj vahi log trahimam kar rahe hain, ek ek kar marte ja rate hain...hahakaar Macha hai desh me par koi far nhi parta inko...jaane kya kar rahe hain...

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  2. देश की वर्तमान परिस्थिति का सटीक चित्रण। भयावह स्थिति है लेकिन तब तक नहीं सुधरेगी जब तक लोग जाति धर्म से और छद्म राष्ट्रवाद से ऊपर उठकर बेहतर शिक्षा स्वास्थ्य और रोजी रोटी के मुद्दे पर सरकार नहीं चुनेंगे।

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