"ऑपरेशन सिंदूर: भारतीय सेना का पराक्रम और कूटनीति की परछाइयां" ("Operation Sindoor: Valor of the Indian Army Amidst Diplomatic Shadows")

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।


देश आज भारतीय सेना के पराक्रम ऑपरेशन सिन्दूर से अभिभूत है वहीं भारतीय राजनैतिक नेतृत्व की कमजोरी और कूटनीति विफलता से हतप्रभ और दुखी है। समयपूर्व  सीजफायर की घोषणा वो भी अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा करने से ऐसा लगा सेना द्वारा पाकिस्तान पर हासिल बढ़त को यूं ही गवां दिया गया। ये सब कैसे हुआ इसके लिये पूरी कहानी जाननी पड़ेगी। 

पहलगाम हमला: आतंकवाद की बर्बरता और राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

वक्फ कानून से सुप्रीम कोर्ट के ब्रेक और इससे उत्पन्न बीजेपी नेताओं की बौखलाहट के बावजूद देश में शान्ति कायम थी। 

परन्तु 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की वैसरन घाटी में पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की धर्म पूछ कर बर्बर हत्या ने ना केवल शांति भंग की अपितु पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। जनता में  शोक और आक्रोश की लहर दौड़ गई।

इस बर्बरता की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन The Ressistance Front(TRF) ने ली जो लश्करे तोयबा का ही सहयोगी संगठन है। 

सरकार की प्रतिक्रिया: सुरक्षा चूक, राजनीतिक नेतृत्व और विपक्ष का साथ

उल्लेखनीय है कश्मीर की कानून व्यवस्था की जिम्मेवारी देश के गृहमंत्री के हाथ में होती है, मुख्यमंत्री की नहीं। आश्चर्य की बात ये रही  कि कश्मीर जैसे संवेदनशील स्थान में स्थित इस वैसरन घाटी में हजारों पर्यटकों की सुरक्षा के लिये एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं था।

इसलिये इस क्रूर हत्याकांड के बाद गृहमंत्री श्री अमित शाह  रेड कॉरपेट पर चलते हुए सबसे पहले कश्मीर पहुँचे। मृतकों को श्रद्धांजलि दी, घायलों से मिले और अपने महकमे द्वारा की गई सुरक्षा की चाकचौबंद बदइंतजामी का जायजा लिया।

विपक्ष के नेता श्री राहुल गाँधी भी अमेरिका दौरा बीच में छोड़ देश लौट आये कांग्रेस कार्यकारिणी समिति में भाग लिया और आतंक के खिलाफ सरकार के किसी एक्शन के पूर्ण समर्थन की घोषणा की। अगले ही दिन कश्मीर जा घायलों से मिले और उन्हें सांत्वना दी। 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी सऊदी अरब की अपनी वसुधैव कुटुम्बकिय यात्रा को बीच में ही छोड़ भागे-भागे से देश लौटे।

एयरपोर्ट पर ही अधिकारियों के साथ बैठक की और उसके फोटोग्राफ जारी करवाई पर दुख इतना ज्यादा था कि घटना स्थल की बजाय 24 अप्रैल को चुनावी स्थल बिहार पहुँच गए! इस तरह "The show must go on" चरितार्थ किया गया। 

मधुबनी की चुनावी सभा में लोगों से पहलगाम में मारे गए लोगों को बैठे-बैठे श्रंद्धाजलि देने की नवीन परंपरा की नींव प्रधानमंत्री द्वारा रखी गई। 

देश उनसे राष्ट्र के नाम संबोधन की उम्मीद कर रहा था पर उन्होंने इसी चुनावी सभा में  हिन्दी के भाषण में अंग्रेजी की चंद लाईनों द्वारा राष्ट्र ही क्या पूरे विश्व को ही संबोधित कर डाला। देख लिया पराक्रम! आपदा को अवसर में बदलने का। 

इस संबोधन में पाकिस्तान का नाम लिये बिना कहा कि हमले के दोषियों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सजा मिलेगी और अब आतंकियों की बची-खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है।

प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से यह तय हो गया भारत आतंक के खिलाफ कोई ना कोई दंडात्मक कार्रवाई करेगा।

प्रधानमंत्री ने नाम नहीं लिया पर भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया लेकिन पाकिस्तान ने इसे भारत का False Flag  कहते हुए एक न्यूट्रल जांच की बात की। फलतः दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया।

भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित किया, पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित किया , पाकिस्तानी नागरिकों को भारत से निकल जाने का आदेश दिया और सीमाएं और व्यापार बंद कर दीं। 

पाकिस्तान ने समान जवाबी कार्रवाई की। इसके अलावा शिमला समझौते को निलंबित कर दिया । 

बिहार की चुनावी सभा, मुंबई के फिल्मी कार्यक्रम, केरल में अडानी के पोर्ट की तारीफ जैसे जरूरी कार्यक्रम में व्यस्तता के बीच प्रधानमंत्री की आश्चर्यजनक अनुपस्थिति में रक्षा मंत्री ने सर्वदलीय बैठकों की अध्यक्षता की। 

सरकार ने सुरक्षा में चूक की बात मानी । यह कहा कि स्थानीय प्रशासन ने बंद पड़े वैसरन घाटी को खोलने की  गलती कर दी । 

पर यह  दलील भी एक चूक साबित हुई क्योंकि ये खुलासा हुआ कि  वैसरन घाटी सालों भर खुली रहती थी और यहां जाने के लिये किसी परमिशन की जरूरत भी नहीं पड़ती। 

पर जिस किसी ने सरकार से ये पूछने की चूक की उस पर फौरन FIR  हो गया चाहे वो डा० मेडूसा हों या लोक गायिका नेहा सिंह राठौड़। ये चूक जिन यूट्यूब चैनलों ने की उन्हें भी बंद कर दिया गया। 

ऐसे मामलों में मोदीशाह सरकार चूक की कोई गुंजायश नहीं छोड़ती।

दरअसल सुरक्षा व्यवस्था में चूक की बात ही गलत है जो चीज थी ही नहीं भला उसमें चूक कैसे हो सकती? 

इस बैठक में विपक्ष ने एकमत से सरकार को आतंक के खिलाफ किसी भी कारवाई करने का समर्थन किया। पुलवामा हमले के समय मिले सबक से विपक्ष इस बार सावधान था।  इस बार वो भी कोई चूक नहीं करना चाहता। 

परिणाम स्वरूप देश के सैन्य और असैन्य उच्च अधिकारियों की कई बैठकें हुई। 

उल्लेखनीय है इन गोपनीय बैठकों की सार्वजनिक( है ना कमाल) की गई तसवीरों और वीडियो में प्रधानमंत्री प्रमुखता से उपलब्ध दिखाई दिये।

सेना को कार्रवाई करने की पूरी छूट दी गई। 

सेना कोई कारवाई करती उससे पहले गोदी मीडिया अपने काम पर लग गई। देश में युध्दोन्माद फैलाया गया पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने की बात की गई।  ब्लैकआउट का मॉक ड्रिल करवाने की सरकारी घोषणा ने इस उन्माद को परवान चढ़ने में मदद की। 

सामाजिक एकता: सांप्रदायिक सौहार्द और मुस्लिम संगठनों की भूमिका

आतंकवादियों की इच्छा पूरी करने के लिये देश में मौजूद हिन्दु और मुस्लिम के बीच तनातनी फैलाने वाला समूह सक्रिय हो गया। इस पवित्र काम(?) में गोदी मीडिया कुछ चैनलों ने  कलमा कलमा की रट लगा  उनका साथ दिया। 

कशमीरी छात्रों और दुकानदारों के साथ देश के कई स्थानों से मार पीट की खबर आने लगी। मस्जिदों के सामने नारेबाजी किये जाने लगे। 

पर सांप्रदायिकता फैलाने का तनातनियों का ये प्रयास  कशमरियों सहित देश के मुसलमानों और बहुसंख्यक सनातनियों ने बेकार कर दिया। 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन जैसे प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने इस हमले की कड़ी निंदा की। 

उन्होंने इसे इस्लाम के शांति के सिद्धांतों के खिलाफ बताया और आतंकवाद को "कैंसर" करार दिया।

पहलगाम हमले के विरोध में जम्मू कश्मीर में लोगों ने एक दिन का स्वयं स्फूर्त बन्द रखा और देश भर की मस्जिदों में काली पट्टी लगा कर नमाज पढ़ी गई। 

कश्मीर की विधान सभा में आतंकवादी घटना की निन्दा की गई। मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला ने भावुकता के साथ बिना किसी कसूर के पूरे देश से माफी मांगी। 

पहलगाम हमले में शहीद हुए लोगों के परिवारों ने घटना के समय कशमरियों द्बारा की गई मदद की बात कर तनातनियों के सालों से चल रहे प्रोजेक्ट को ही फेल कर दिया। 

इस तरह 99.9% मुसलमानों को देशद्रोही समझने वाले 100 प्रतिशत मूर्ख साबित हुए। 

पूरा देश आतंक के खिलाफ सरकार की किसी भी कारवाई के समर्थन में एकजुट हो गया। 

ऑपरेशन सिंदूर: भारतीय सेना की निर्णायक कार्रवाई

देश में कायम अभूतपूर्व एकता के बीच 7 मई 2025 की अहले सुबह भारतीय सेना ने अपनी कार्रवाई की। पाक अधिकृत कश्मीर सहित पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के 9 ठिकाने (ट्रेनिंग कैम्प) को पाकिस्तान की सीमा में बिना घुसे हवा से जमीन पर छोड़े जाने वाली मिसाइलों और द्रोन से ध्वस्त कर दिया गया। 

इस कार्रवाई को सेना ने Operation Sindoor का नाम दिया। सेना की इस  सटीक और सफल कार्रवाई से पूरा देश गर्व से रोमांचित हो गया। 

पर भारतीय सेना ने स्पष्ट कर दिया उनके टॉरगेट पाकिस्तान के केवल आतंकवादी और उनके ठिकाने थे ,पाकिस्तान के नागरिक और सैनिक नहीं। 

सेना ने अपनी ब्रीफिंग में यह भी साफ कर दिया कि उसने अपना टॉरगेट पूरा कर लिया है और वो अब पाकिस्तान के किसी प्रतिकार की कार्रवाई करने पर ही कोई कार्रवाई करेगी अन्यथा नहीं। 

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और भारत का जवाब

पाकिस्तान खामोश नहीं बैठा। उसने बोर्डर से जबरदस्त  गोलीबारी शुरू कर दी भारत के नागरिक ठिकानों पर भी हमले शुरू कर दिये। 

पुंछ में कई निर्दोष भारतीय मारे गये और कई घायल हो गये। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की जिसमें पाकिस्तान के कई सैनिक हताहत हुए। 

संघर्ष और तीव्र हुआ जब पाकिस्तान ने एक साथ कश्मीर से लेकर गुजरात तक द्रोन और मिसाइल से हमले शुरू किये। उसने अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर सहित कई धार्मिक स्थलों को टॉरगेट करने की गुस्ताखी की। 

भारत की सेना ने पाकिस्तान के इन सभी हमलों को नाकाम कर दिये और जवाबी करते हुए उसके राडार प्रणाली सहित ग्यारह हवाई अड्डे को ध्वस्त कर दिया। इस कार्रवाई के बाद  पाकिस्तान दवाब में आ चुका था। 

यहां उल्लेखनीय है कि दोनों सेनाओं ने सीमा का अतिक्रमण नहीं किया और ना ही थल सेनायें आगे बढ़ी। वो तो गोदी मीडिया की वीडियो गेम वाली सेना थी जिसने इस्लामाबाद पर कब्जा कर लिया था। 

जब ऐसा लगने लगा कि ये संघर्ष दो -तीन दिन और चला तो भारत बहुत कुछ हासिल कर सकता है। POK  नहीं तो कम से कम लश्करे तोयबा के चीफ हाफिज सईद और जैशे-ए- मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर को handover  करवा ही लेगा। पर ऐसा हो ना सका। 

अमेरिकी मध्यस्थता: संघर्षविराम और कूटनीतिक विवाद

क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने 10 मई 2025 को भारतीय समयानुसार शाम 5:25 बजे  अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म "ट्रुथ सोशल" पर अपने पोस्ट में लिखा " संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में एक लंबी रात की बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं।" 

सीजफायर की खबर उतनी आश्चर्यजनक नहीं थी जितनी  इसकी घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा किया जाना था।  क्योंकि यह शिमला समझौते के प्रमुख प्रावधान " भारत और पाकिस्तान अपने विवादों का समाधान शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से करेंगे" का खुला उल्लंघन था।

उल्लेखनीय है शिमला समझौते को पाकिस्तान ने निलंबित करने की घोषणा की थी भारत ने नहीं। 

इसलिये जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने फौरन ट्रंप की "नेतृत्व और सक्रिय भूमिका" की सराहना की और अमेरिका को इस परिणाम के लिए धन्यवाद दिया।

वहीं शाम 6 बज कर एक मिनट पर भारत के विदेश सचिव श्री विक्रम मिस्री ने सीजफायर खबर की पुष्टि  की पर ये भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय दोनों देशों के DGMO के  बीच सीधे संवाद से हुआ, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से। 

इस खंडन के बावजूद राष्ट्रपति ट्रंप दुनिया में भर में ढ़िढोरा पीटते जा रहे हैं कि दोनों देशों के बीच मध्यस्थता उन्होंने करवाई। हद तो तब हो गई जब भारतीय प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन के कुछ मिनटों पहले ट्रंप ने घोषणा की जब मैंने अमेरिकी व्यापार बंद कर देने की बात कही तो दोनों देश फौरन सीजफायर के लिये मान गये।

भारत के एमइए( Ministry of External Affairs)  ने इसका खंडन किया है। पर राष्ट्रपति ट्रंप की बातों का जवाब एमइए के में-में से नहीं हो सकता जवाब प्रधानमंत्री देते तो कुछ बात बनती। 

लेकिन पता नहीं प्रधानमंत्री ट्रंप पर चुप्पी क्यों लगा जाते हैं?ट्रंप भी अडानी की तरह कोई व्यक्तिगत मामला तो है नहीं कि जवाब न दिया जाय। वास्तविकता ये है जो भी देश ट्रंप के सामने छाती तानकर खड़ा हुआ है ट्रंप वहां झुकते नजर आये हैं। यहां छाती तो 56 इंच की है पर वो तनती ही नहीं। 

ऐसे में तो लहू में बहने वाला गरम सिन्दूर भी ठंडा पड़ जायेगा। 

पहलगाम, आपरेशन सिंदूर और सीजफायर की तमाम घटनाक्रम से जहां भारत की सेना का पराक्रम स्थापित हुआ  वही ंभारत के गृहमंत्रालय की अक्षमता, खुफिया तंत्र की नाकामी,अमेरिका के सामने भारतीय नेतृत्व की आश्चर्यजनक लाचारी और कूटनीति की विफलता भी उजागर हुई। 

गोदी मीडिया द्वारा विश्व में बजने वाले डंके की सच्चाई सामने आ गई। एक भी ढ़ंग का देश आतंक के खिलाफ भारत की कार्रवाई "ऑपरेशन सिन्दूर " पर साथ नहीं दिखा।

अमेरिका ने तो भारत को पाकिस्तान के बराबर लाकर खड़ा कर दिया और आतंक के मुद्दे को गौण कर कशमीर को ही मुद्दा बनाकर उसका अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया। 

विडम्बना देखिये भारत का साथ दिया तो उस अफगानिस्तान ने जहां की तालीबानी सरकार को भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों ने औपचारिक मान्यता तक नहीं दी है। 

संघर्ष के दौरान ही पाकिस्तान को विश्व बैंक से अरबों रूपये मिलने वाले कर्ज को भारत की कूटनीति नहीं रूकवा सकी। वहां भी 24 देश सबके सब पाकिस्तान के साथ हो लिये। भारत का साथ किसी ने नहीं दिया। 

भारत के विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर ने यह बयान देकर कि आपरेशन सिन्दूर के शुरूआत में ही पाकिस्तान को इसकी खबर कर दी थी कमाल ही कर दिया। पाकिस्तान सहित दुनिया भर में इसका मजाक बन रहा है। 

इसने अभी तक सरकार को पूरा समर्थन कर रहे विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी को भी चंद सवाल पूछने पर मजबूर कर दिया।

1पाकिस्तान को पहले बतलाने का अपराध या पाप किसके कहने पर किया। 

2 इससे भारत का कितना नुकसान हुआ भारत के कितने विमान गिरे? 

ऐसे सवाल 'डरो मत' वाले ही कर सकते हैं। मैं तो उनमें से नहीं। 

मैं तो बिल्कुल ही नहीं पूछूंगा पहलगाम में निर्दोषों की हत्या करने आतंकवादी  कैसे आये और कहां गए? 

मैं तो सरकार के साथ हूं। क्या हुआ कि उन्होंने उस मंत्री विजय साह को पद से नहीं हटाया जिसने देश की बहादुर बेटी कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बताया?

क्या हुआ जो उस उप मुख्यमंत्री को नहीं हटाया जिसने देश का मस्तक ऊंचा करने वाली भारत की बहादुर सेना को प्रधानमंत्री के चरणों में नतमस्तक बतला दिया? 

ये भी तो देखिये विद्वता झाड़ने पर कैसे एक मुस्लिम प्रोफेसर साहब को जेल की हवा खिला दी? बात करते हैं। 

मुझे तो सरकार पर पूरा विश्वास है । सीजफायर के बाद  सर्वदलीय बैठक या संसद का विशेष सत्र बुलाये बिना स्वचयनित फेवरिट सांसदो की सर्वदलीय टीम  बनाने के मास्टर स्ट्रोक ने तो हमें कायल कर दिया है। 

पड़ोसियों को छोड़ दुनिया के तमाम देशों में जाने वाली ये टीम पाकिस्तान के आतंकवाद को बेनकाब कर रख देगी। 

अब देखियेगा जो काम महापराक्रमी प्रधानमंत्री की 72 देशों की 88 बार की विदेश यात्रायें और हास्यास्पद रूप से काबिल विदेश मंत्री जयशंकर की कूटनीति ना कर सकी वो श्री निशिकांत दुबे जैसे महारथी से लैस ये टीम  जरूर कर लेगी।

देखना, तालीबान ही क्या टिम्बकटू वाला माली भी भारत के साथ खड़े हो जायेंगे? 

अरे वाह! देश में बांटियेगा दुनिया को जोड़ियेगा? 

खामोश! मेहमूदाबाद। 

 

 






















 


 





Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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