Corona- Fight is on!
भारत में कोरोना वायरस को लेकर 24 मार्च 2020 को घोषित 21 दिनों की तालाबंदी जिसे प्रधानमंत्री ने युद्ध की संज्ञा दी है उसके 14 दिन पूरे हो चुके हैं। तालाबंदी का पहला सप्ताह प्रवासी मजदूरों में फैली अफरातफरी से लाखों की संख्या में पैदल अपने गांव की ओर पलायन से जुड़ी दर्दनाक खबरों में बीता और भूख,थकान और दुर्घटना से  29 लोग इस यात्रा में मारे  गए।



Corona- Fight is on!


ऐसा लगा कि पहले ही देर हो जाने से उत्पन्न हड़बड़ाहट में तालाबंदी के निर्णय लेते वक्त केन्द्र को इन गरीबों का ध्यान ही न रहा! हड़बड़ाहट का  ही नतीजा था कि जहां  प्रधानमंत्री घर में रहने की लक्ष्मण रेखा खींच रहे थे तो वहीं यूपी के मुख्यमंत्री एक हजार बसों द्वारा  दिल्ली से प्रवासी मजदूरों को देश भर में भेजने की व्यवस्था का आदेश दे रहे थे।                                                                                                                                      

 फलतः प्रवासी मजदूरों के आगमन को लेकर राज्य सरकारें चिन्तित हो गई। बाद में सुप्रीम कोर्ट में केन्द्रसरकार   द्वारा इस अफरातफरी के लिए सोशल मीडिया में वायरल 3 महीनों की तालाबंदी वाले वीडियो को बतलाया गया और  यह भी कहा गया इन मजदूरों  में  से 10 में से 3 कोरोना संक्रमित हो सकते है। राज्य सरकारों से पहले रायशुमारी कर ली गई होती तो निश्चित रुप से इन गरीब मजदूरों को कम कष्ट झेलने पड़ते और तालाबंदीऔर सामाजिक दूरी सही तरह से लागू हो पाते!



Corona- Fight is on!


खैर, इन गलतियों के बावजूद  स्वास्थकर्मियों की सेवाभाव, सामान्य प्रशासन की सूझबूझ, पुलिस प्रशासन की सख्ती और जनता के सहयोग से तालाबंदी, कोरोना के संक्रमण की रफ़्तार को थामे हुई थी। पर जैसे ही मुस्लिम संगठन "तबलगी जमात" द्वारा दिल्ली में किए गये 13 से 15 मार्च के बीच मरकज़ (conference)  में  शामिल 6 लोगों की कोरोना से तेलांगना में मृत्यु की खबर प्रकाश में आई ऐसा लगा कि कोरोना से जंग के रंग में भंग पड़ गयी हो। 2500 से अधिक लोगों ने इस मरकज़ में भाग लिया था जो देश के विभिन्न राज्यों में जा चुके थे। इस मरकज़ में कोरोना संक्रमित देशों से बड़ी संख्याा में विदेशी भी आये जिनसे यह संक्रमण फैला था।


फलतः कोरोना संंक्रमित की संख्या में वृद्धि तेज हो गई कुछ ही दिनों में देश के कुल संक्रमित लोगों में लगभग 30% अकेले तबलगी जमात के मरकज़ से जुड़े लोग हो गए। गोदी मीडिया को अपना चहेता मुद्दा पुनः मिल गया जो कुछ दिनों से कोरांटीन हो गया था। शीघ्र ही तबलगी जमात के मरकज़ के बहाने  अधिकतर फर्जी वीडियो दिखा मुस्लिम समुदाय को ही टारगेट  किया जाने लगा और कोरोना वायरस के इस विचित्र संकट में भी हिन्दु-मुस्लिम मुद्दा बड़ी बेशर्मी से फिट कर दिया गया। कोरोना संकट को कोरोना जिहाद बताया जाने लगा। हद हो गई!

Corona- Fight is on!

तबलगी जमात एक मुस्लिम धार्मिक संगठन है जो 1926 में भारत में ही अस्तित्व में आया और वर्तमान में 150 से अधिक देशों में इसका विस्तार हो चुका है। बंगलादेश और इन्डोनेशिया में इसके सबसे ज्यादा अनुयायी हैं। दिल्ली का निजामुद्दीन मरकज़ इसका अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय है और भारत के मोलाना साद कंधलवी इसके नेता हैं । यह मूल रूप से एक तटस्थ अराजनीतिक संगठन रहा है और इस कारण भारत के अन्य मुस्लिम संगठनों की इससे नाराजगी भी रही है।  पैगम्बर मुहम्मद के जमाने का शुध्द इस्लाम का मुस्लिम समुदाय के बीच प्रसार करना इसका मुख्य उद्देश्य रहा और "मुसलमानों , सच्चा मुसलमान बनो"इनके प्रसिद्ध स्लोगन हैं।  अधिक से अधिक तबलगी जमात को पुरातनवादी और कतिपय मामलों में दकियानूसी संगठन कहा जा सकता है आतंकवादी तो कतई नहीं। 


फ्रांस, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों ने वहां हुई आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए लोगों के संबंध तबलगी जमात से होने के बावजूद तबलगी जमात को प्रतिबंधित नहीं किया। ऐसा अवश्य माना गया कि तबलगी जैसे तटस्थ, अराजनैतिक और अहिंसक पर ढ़ीलेढ़ाले संगठन का फायदा आतंकवादी उठा लेते हैं। यही कारण है कि भारत में भी स्व० नेहरू से लेकर श्री नरेन्द्र मोदी तक किसी भी शासनकाल में तबलगी जमात पर प्रतिबंध नहीं लगे है। जिन तीन देशों यथा- कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, और उज्बेकिस्तान ने तबलगी को प्रतिबंधित किया भी है तो इसलिए क्यों कि इनकी इस्लाम के प्रति सख्त विशुद्धतावादी दृष्टिकोण में उन्हें अतिवाद नजर आया है।

Corona- Fight is on!
पर इन सबका यह मतलब कदापि नहीं है तबलगी जमात ने भारत में कोरोना संकट के समय दिल्ली में मरकज़ का आयोजन कर कोई गलती नहीं की है। यह बेपनाह बेवकूफी और खतरनाक लापरवाही से भरा फैसला था। क्योंकि  मलेशिया में कोरोना संक्रमण की संख्या वहां किए गये तबलगी मरकज़ से बढ़ गये थे। इन्डोनेशिया और पाकिस्तान जैसे देशों ने मरकज़ के लोगों के आ जाने के बावजूद मरकज़ नहीं होने दिया था। पर इतने मात्र से भी वहां संक्रमण बढ गये थे। ऐसे में भारत में इसका आयोजन का विचार करना ही नहीं चाहिए था पर ये लापरवाही हुई।


 खेद की बात है भारत का खुफिया तंत्र भी इस अन्तर्राष्ट्रीय वास्तविकता से अनजान रहा?  ये लापरवाही उनसे भी हुई जो एयरपोर्ट पर कोरोना पेशेन्ट की जांच कर रहे थे और संक्रमित लोगों की सही पहचान नहीं कर सके। तबलगी ने ऐसा मरकज़ महाराष्ट्र में भी करना चाहा था पर वहां की सरकार और पुलिस प्रशासन ने साफ मना कर दिया था। यद्यपि दिल्ली सरकार ने 200 से अधिक संख्या में किसी भी आयोजन को मना करने का आदेश 13 मार्च 2020 को दे दिया था पर उसी दिन तबलगी जमात का मरकज़ शुरू हो चुका था फिर भी दिल्ली पुलिस को रोकना चाहिये था पर नहीं रोका गया।


 सारा कुछ उनके आंखो के सामने होता रहा और वो चुपचाप देखती रही। ऐसा लगता है दिल्ली पुलिस जो केन्द्र के गृहमंत्रालय के अधीन है  स्वविवेक से काम करने की क्षमता खो चुकी है । पुलिस प्रशासन की लापरवाही का ही नतीजा था कि दिल्ली सरकार के 13 और फिर 16 मार्च के 50 लोगों वाले फरमान का गुरुद्वारे, मन्दिर, मस्जिद, माल ,बाजार और सड़क पर खुलेआम उल्लंघन होते रहे और किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। गंभीरता आती भी कैसे 13 मार्च को केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से बयान आता है  कि कोरोना वायरस "एक स्वास्थ्य आपातकाल नहीं है और घबराने की कोई जरूरत नहीं है।" स्पष्ट है लापरवाही चारो तरफ से हुई और ऐसे में एक संगठन और समुदाय पर सारा ठीकरा फोड़ना गलत है।
Corona- Fight is on!
कोरोना वायरस की भयावहता बढ़ती जा रही है यह अभी तक 5542 को संक्रमित कर चुका जिनमें से 170 की जान जा चुकी हैं यह समय न तो लापरवाही गिनाने का है और  न ही दोषारोपण का। सौभाग्य से सरकार को इसका अहसास हो गया है तभी तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय का भी बयान आ गया है किसी समुदाय या क्षेत्र को निशाना न बनाया जाय। वास्तव में यह 21 दिनों की लड़ाई नहीं काफी लम्बा चलने वाला महायुद्ध है।


यह युद्ध किसी मदारी के डुगडुगी बजाने से नहीं जीता जा सकता बल्कि मिलजुलकर स्वास्थ्यकर्मियों और स्वास्थ्य संबंधी जरुरत और भूखों को भूख मिटाने को प्राथमिकता देकर जीता जा सकता है। आपसी भाईचारा, सदभाव और इंसानियत बचे रहेंगे तो नि:स्सन्देह इंसान भी जिन्दा रहेगा। अतएव सटिये मत, छूइये मत और डरिये मत-  सिर्फ धोते रहिये!