व्यंग
हार में ही जीत है!
हार-जीत को लेकर भारतीय जनमानस में कई कथानक और कथन लोकप्रिय रहे हैं। सुदर्शन रचित कहानी में एक बाबा भारती थे जिन्हें डाकू खड़ग सिंह के खिलाफ हार के बाद जीत मिली थी। उसके बाद आमिर खान ने एक फिल्म में दावा किया कि हारी बाज़ी जीतना उन्हें आता है फिर आए शाहरुख़ खान उन्होंने अपनी फिल्म में एलान किया कि हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं।
अब सबसे नूतन "हार में ही जीत है" का अद्भुत विचार दोनों जंग जीतने का दावा करने वालों द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है। जो हारा वही सिकन्दर के मूलमंत्र को अपनाता यह एक ऐसा क्रान्तिकारी दर्शन है जिसे जिसने भी आत्मसात कर लिया वो अपनी हार के गम को न केवल भूल जायेगा बल्कि उसे इस तरह सेलेब्रेट करेगा कि जीतने वाले को भी अपनी जीत पर पछतावा होने लगे और सोचने को विवश हो जाय काश हम भी हारते! एकबारगी कोरोना वायरस भी इसी तरह के एक जश्न में थाली-लोटा, ढ़ोल, नगाड़े और पटाखों की आवाज सुन घबरा गया था।
कुछ ही दिनों पहले एक केन्द्रीय मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बतलाया कि यदि मार्च में भारत में तालाबंदी न की होती तो कोरोना संक्रमण की संख्या 7 लाख नहीं सवा करोड़ हो जाता। गोया मंत्रीजी को 7 लाख में जीत नजर आ रही थी। मंत्रीजी ने यह नहीं बतलाया कि तालाबंदी फरवरी में ही की होती या एयरपोर्ट पर ठीक से निगरानी रखा होता तो यह संख्या क्या होती और ये भी नहीं बतलाया कि हम सवा करोड़ पर कब तक पहुंचेगे?
संक्रमण के प्रश्न पर कभी इटली को लेकर ताने दिए जा रहे थे वो तो कब का कहीं पीछे छूट गया अब तो अमेरिकी फतह की ओर बढ़ रहे हैं। भारत में संक्रमण ने जो रफ्तार पकड़ ली है यह अब असंभव भी नहीं लगता।
अभी हम 9 लाख 6 हजार कोरोना संक्रमण के आंकड़े के साथ विश्व में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे नम्बर पर हैं और "मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेकनोलोजी" के एक रिसर्च के अनुसार यदि कोई दवा का आविष्कार नहीं होता तो फरवरी 2021तक भारत में कोरोना संक्रमण की दर प्रति दिन 2 लाख 87 हज़ार हो सकती है। स्पष्ट है कोरोना संक्रमण रोकने में भारत सरकार बुरी तरह असफल हो गई है। अब इस हार में भी जीत ढ़ूढ़ने की कोशिश की जा रही है।
अच्छी रिकवरी रेट का हवाला दिया जा रहा है साथ ही जनता की लापरवाही ,बड़ी जनसंख्या और वायरस की विनाशकारी प्रकृति को दोष दिया जा रहा है! यह दलील भी दी जा रही है कोरोना ने अमेरिका जैसे सुपर पावर को न बख्शा तो ऐसे में भला भारत क्या कर सकता? परन्तु कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये सुपर पाॅवर होना जरूरी नहीं है।
वियतनाम, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी, ताईवान ,चीन आदि जैसे देशों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिन्होंने बिना किसी लापरवाही दिखाये सजग और त्वरित कार्यवाही और बेहतर तालमेल वाले प्रशानिक कौशल के बल पर कोरोना संकट का सामना बेहतर ढंग से किया है और इसे नियंत्रित रखने में सफल हुए हैं। इस मामले में अमेरिका की ट्रम्प और भारत की मोदी सरकार दुनिया में सबसे फिसड्डी साबित हुई है और यही भयानक सच्चाई है।
अमेरिका में लोग इस सच्चाई को मानने भी लगे हैं क्योंकि वहां भारत की तरह गोदी मीडिया नहीं है और न ही "हार में ही जीत है" वाला दर्शन। यहां तो चीन लद्दाख में घुसा है यह मानने को तैयार नहीं है पर पीछे हट रहा है इस पर खुशी मना रहे हैं। भारत के सर्वोच्च नेता द्वारा अपने ही देश में घायल सैनिकों का हाल-चाल लेने को महापराक्रम बतलाया जा रहा है और चीन के पीछे हटने को इस महापराक्रम का परिणाम!
वास्तविकता यह है कि चीनी सेना अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री के बीच 6 जुलाई की सहमति के आधार पर बफरजोन बनाने पीछे तो हटी है पर अभी भी भारत के क्षेत्र में ही है! सारे बफर जोन भारतीय क्षेत्र में ही बन रहे हैं चीन को कहीं से नुक्सान नहीं हुआ है फायदे ही फायदे हैं! नुक्सान हुआ है तो भारत का! लेकिन गोदी मीडिया में "हार में ही जीत है" दर्शन के तहत मनाये जा रहे धुआंदार जश्न इतने जबरदस्त हैं कि भारत में घुसे चीनी सैनिक भी घबरा कर बार-बार इंच-टेप से नाप कर आश्वस्त हो रहे होंगे कि भारत में ही हैं न ?कहीं चीन तो नहीं पहुंच गए! ऐसी है इस दर्शन की महिमा!
मोटाभाई प्रतिपादित, गोदी मीडिया द्वारा प्रचारित और असत्य पर आधारित इस दर्शन का ज्ञान हर किसी को नहीं मिल सकता है! यह भक्ति मार्ग से ही संभव हो सकता है! सर्व प्रथम मन में बसे सदविवेक, तर्क बुध्दि एवं जिज्ञासु प्रश्नों के रूप में मौजूद जन्मजात वायरसों को ताक पर रखना होता है! तत्पश्चात् नेता में देवतुल्य आस्था रख संभव हो तो नहा धो अगरबत्ती जला कर उनके मन की बात सुननी होती है!
फिर गोदी मीडिया के चैनलों जिसमें जी न्यूज और रिपब्लिक टीवी अनिवार्य हैं के प्रोग्राम कम से कम प्रतिदिन 4 घंटे देखने पड़ते हैं वैसे जितना देखेंगे लाभ उतना जल्दी होगा! इसमें भी पंडित चौधरी और स्वामी गोस्वामी के प्रोग्राम निरंतर देखने से लाभ अवश्य होता है!
ऐसा कर कुछ दिनों में आप में नेता के झूठ और गलतियों को लेकर इम्यूनिटी उत्पन्न हो जायेगी और एकबार ये इम्यूनिटी पैदा हो गई तो फिर ताक पर रखे वायरस आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे! इसके साथ ही "हार में ही जीत है" दर्शन का ज्ञान प्राप्त हो जायेगा, गम और खुशी का फर्क भूल जायेंगे ।अब बस आप जैसे भक्त होंगे आपके देवतुल्य नेता। पर ये तो देवभक्ति हो गई देशभक्ति तो नहीं? देवता से बढ़कर कुछ नहीं है फिर देश की चिंता तो वे करें जिसने इसे आजादी दिलाई थी!
अंत में -
बर्बादियों का शोक मनाना फिजूल था,
मनाना फिजूल था, मनाना फिजूल था।
बर्बादियों का शोक मनाना फिजूल था,
मनाना फिजूल था, मनाना फिजूल था।
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया!
सत्य वचन ..
जवाब देंहटाएंRegards
Bunty