एक साला मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है हिन्दी फिल्म का यह  प्रसिद्ध डायलॉग एक दिन हकीकत का रुप ले लेगा किसी ने सोचा न था। अन्तर सिर्फ यह है कि आदमी की जगह पूरी दुनिया है और मच्छर का काम एक वायरस ने किया है जिसका नाम "कोरोना" है।


fear is banned
चीन के वुहान शहर से और संभवतः चमगादड़ के मांस भक्षण से मनुष्यों में फैले इस वायरस ने ऐसी तबाही फैलायी है कि आज पूरी दुनिया इसी "कोरोना" का रोना रो रही है।डाक्टर सर खपा रहे हैं,राजनेता सर पकड़े हुए हैं तो अर्थशास्त्री  सर धुन रहे हैं।अब तक 6 लाख 78000 से भी अधिक लोग इसके गिरफ्त में आ चुके हैं और 31 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और यह सिलसिला अभी रुका नहीं हैै। बिना किसी भेदभाव के यह वायरस हर किसी को अपने गिरफ्त में ले रहा है। चाहे जर्मनी के चांसलर हों या ब्रिटेन के प्रधानमंत्री या फिर मुंगेर का सेफ अली, कोरोना से कोई सेफ नहीं है!
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जिन देशों ने इस खतरे को हल्के में लिया वहां यह भारी पड़ रहा है और जिन देश के नेताओं ने राजनीति के चक्कर में आंख मूंद रखी उनकी रातों की नींद हराम हो गई हैं। बदहवासी में कहीं चीन को गाली दिया गया तो कहीं थाली पीटा गया। पर यह वायरस न गाली से रुका न थाली से।  यह एक आदमी से दूसरे आदमी में फैलता है और इसका कोई इलाज फिलहाल नहीं है। सिर्फ बचाव इस वायरस का एकमात्र इलाज है यह बात लोगों को समझ में आ गई है। परिणाम यह हुआ कि सामाजिक एकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे आधुनिक प्रजातांत्रिक मूल्य परदे में चले गये हैं "जान है तो जहान है" पुरानी मान्यता हावी हो गई हैं। "सामाजिक दूरी"( social distancing), "संगरोध" या "अलग-थलग रहना"(Quarantine) तथा "तालाबंदी" (lock down)  जैसी मानवतावादी विरोधी अवधारणायें अनिवार्य और हकीकत बन चुकी हैं। एक कोरोना वायरस ने भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों को इस रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया है। 
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तालाबंदी में फंसे लोग कोरोना वायरस से न केवल परेशान हैं बल्कि इसकी विनाशलीला से अत्यंत भयभीत हैं। कुछ लोग सम्पूर्ण मानवजाति के विलुप्त हो जाने की आशंका से त्रस्त हैं। पर वस्तुतः ऐसा कुछ नहीं होने वाला है क्षति भयंकर होगी पर सम्पूर्ण नाश का कोई कारण नहीं  हैं । क्योंकि मनुष्य खुद किसी भी वायरस से अधिक खतरनाक और ताकतवर प्राणी है। इसने इतनी ताकत हासिल कर ली है जो पल भर में सारी दुनिया को खत्म कर सकता है पर ऐसा करेगा नहीं क्योंकि वह समझदार भी है। यही समझदारी पहले भी वायरसों और बैक्टीरिया के हमलों से बचाती आ रही और इस बार भी बचायेगी।



  1918 -1920 स्पेनिश फ्लू से 10 करोड़ जानें गई थी तो 1957-1958 के एशियन फ्लू ने 20 लाख हताहत किया था वहीं 2005-2012 में एड्स से 3 करोड़ 60 लाख मरे थे। दुनिया तब भी खत्म नहीं हुई थी और अब भी  खत्म नहीं होगी। इनमें से कोई भी आंकड़े ये छूने वाली नहीं है। कोरोना से मृत्यु दर भी 3.4 ही है ऐसे में सिर्फ सावधान रहना ही पर्याप्त है। समय संकट और परेशानी का अवश्य है फिर भी सटिए मत, छूयें मत और डरिए मत! कुछ नहीं केवल साबुन पानी से हाथ धोना है। दुनिया को यह समझ तो आ ही गई है हाथ मिलाने या हगिंग -किसिंग से सुरक्षित नमस्ते और आदाब अर्ज है और टिश्यू पेपर से अधिक कारगर धोना है। अतएव धोते रहें! फिर भी डर लग रहा है तो श्री जावेद अख्तर का ध्यान कर कहिए डर के आगे जीत है! 
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अंत में, यह यादभी रखें-

धोते-धोते कट जायेंगे रास्ते
जिन्दगी यू हीं चलती रहे
खुशी हो या गम धोना न छोड़ेंगे हम
दुनिया चाहे बदलती रहे!