यदि आप सोच रहे हैं कि अयोध्या विवाद का सुप्रीमकोर्टिय समाधान और धारा 370 के साथ तियापांचा के बाद देश की राजनीति से साम्प्रादायिक ध्रुवीकरण के खेल का चाहे जैसे भी हो अंत हो गया और अब देश की राजनीति सही दिशा में जनता के वास्तविक मुद्दे पर चलेगी तो आप मुगालते में है।
ऐसा सोच कर आप हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार और हाल में ही "अभिन्न से भिन्न और भिन्न से अभिन्न" राज्य बनाने वाले गृहमंत्री श्री अमित साह की क्षमता को कम आंक रहे हैं। इनकी तीक्ष्ण बुध्दि ने इस कार्य के लिए "नागरिकता संशोधन विधेयक" (सीएबी )और "नेशनल सिटीजनसीप रजिस्टर " (एनआरसी) के रूप में नए मुद्दे पहले ही ढूँढ रखे हैं और इसे पूरे देश में वांचना शुरू भी कर दिया है।
गोदी मीडिया सक्रिय कर दी गयी हैं कि वो जनता को समझाये अभी यही देश के सबसे अहम् मुद्दे हैं , सुरक्षा इनके बिना अधूरी है और भारतीय राष्ट्रवाद को इनकी जबरदस्त जरुरत है। इन दो कार्यो से ढुलकती अर्थव्यवस्था ऐसे तन कर खड़ी हो जायेगी कि चीन और जापान भारत से अपने व्यापारिक घाटे कम करने के लिए गिड़गड़ाने लगेगें और अमरीकी राष्ट्रपति भारत के प्रधानमंत्री का चुनाव प्रचार का कमान संभाल लेंगे।
भारत के सारे बेरोजगार न्यू मिलेनियल्स बन जायेंगे और आटो सेक्टर की मंदी दूर कर देंगे। फुस्स होती जीडीपी फूल कर गुब्बारा हो जायेगी और परम असंतोष से गुजर रहे भारतीय किसान फिर से " मेरे देश की धरती, सोना उगले-उगले हीरे मोती " गाने लगेगें। और तो और सुरक्षा व्यवस्था इतनी तगड़ी हो जायेगी कि निराशा में पाकिस्तान भारत को 'पीओके' सौंप खुद पर ही एटम बम पटक लेगा आदि-आदि। सावधान! सुनिए.... ठहरिये.... जरा रूकिए ना। ऐसा कुछ नहीं होने वाला है पर गोदी मीडिया ऐसा ही कुछ बतलाने वाली है।
दरअसल नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी की जरूरत देश को नहीं बीजेपी को है। इनसे इनकी चुनावी हित सधते हैं। इनके द्वारा ये देश की सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय मुसलमानों को उद्वेलित और डराना चाहते हैं जिससे हिन्दु-मुस्लिम ध्रुवीकरण वाला चुनावी सफलता का फार्मूला चलता रहे। जो काम अभी तक अयोध्या विवाद और धारा 370 कर रहे थे वो अब एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक या फिर कानून करेंगे। गृहमंत्री कहते हैं कि एनआरसी को नागरिकता संशोधन विधेयक के साथ न देखें पर वास्तविकता यह है इस संशोधन को लाया ही जा रहा है एनआरसी के चलते।
असम में एनआरसी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सोनेवाल जो अभी बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं के आवेदन पर की गई। इसमें 19 लाख लोग नागरिकता सूची से बाहर हो गए हैं। इनमें 14 लाख लगभग बंगला बोलने वाले हिन्दु ही है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं जिसमें बीजेपी को लेने के देने भी पड़ सकते हैं। ऐसे में पार्टी को इस संकट से बचाने के लिए बीजेपी नागरिकता संशोधन विधेयक जल्द से जल्द लाना चाहती है पर असम में फ्लाप एनआरसी को पूरे देश में लाने की बात कर ध्रुवीकरण का अलख जलाये रखना चाहती है।
भारत में नागरिकता संबंधित विषय '1955 के भारतीय नागरिकता कानून' के द्वारा संचालित होते हैं। इस कानून में पहले भी कई संशोधन हो चुके पर श्री अमित साह जिस संशोधन विधेयक की बात कर रहे है वो 2016 में लोकसभा में लाया और पास भी करा लिया गया था पर नार्थ ईस्ट राज्यों में और राज्य सभा में कांग्रेस पार्टी के विरोध के कारण राज्य सभा में इसे लाया ही नहीं गया। यह विधेयक पहले ही कालबाधित हो चुका है पर इसे ही दुबारा लाने की बात हो रही है।इस संशोधन विधेयक में कहा गया है कि भारत में पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और इसाई जितने भी अवैध आप्रवासी हैं अगर आवेदन करते समय से 1 साल से भारत में लगातर रह रहे हैं और कुल 6 साल तक भारत में रहें हैं उन्हें भारत की नागरिकता दे दी जायेगी।
स्पष्ट है कि इसमें बड़ी बेहियाई से मुसलमानों को बाहर कर दिया गया है। एनआरसी के द्वारा इनकी पहचान की जायेगी और नए कानून द्वारा उन्हें अवैध आप्रवासी घोषित किया जायेगा जो अब सिर्फ मुसलमान होंगे।इस विधेयक के कानून बनने से असम की एनआरसी से बाहर हिन्दुओं और बीजेपी दोनों की परेशानी दूर हो जायेगी। अब एनआरसी और नए नागरिकता संशोधन विधेयक से परेशानी होगी तो मुसलमानों को , उद्वेलित होंगे तो मुसलमान होंगे और उथल- पुथल मचेगी तो मुस्लिम समुदाय में।
यही सबका साथ और सबका विकास का नारा देने वाली बीजेपी पार्टी चाहती है और देश में शान्ति और सौहार्द भार उठाने वाले सरदार पटेल से भी बड़े परम आदरणीय गृहमंत्री श्री अमित साह भी। यदि ऐसा है तो एनआरसी में सिर्फ मुसलमानों की ही छानबीन कर ले, समय और पैसे भी बचेंगे और हिन्दुओं की परेशानी और कम हो जायेगी।वास्तव में यह संकीर्ण हिन्दुवादी पार्टी का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का नया मंत्र है और हमेशा चुनावी मोड में रहने का प्रमाण।
ऐसा नहीं है कि नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर सिर्फ भारत के मुसलमानों और भारत की सेकुलर सोच में आस्था रखने वालों में रोष है बल्कि इसे लेकर अवैध आप्रवासी की समस्या से वास्तविक रुप से त्रस्त नार्थ ईस्ट के राज्यों में भी भयंकर असंतोष है। यहां के लोग बिना किसी भेदभाव के सभी अवैध आप्रवासी से मुक्ति चाहते हैं अत: वे एनआरसी का समर्थन करते हैं पर सीएबी का विरोध करते हैं। जब 2016 में इस विधेयक को लोकसभा में लाया गया तो असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय आदि राज्यों में इसके खिलाफ आन्दोलन शुरू हो गए।
इनका मानना है इस विधेयक से अवैध आप्रवासियों की बाढ़ आ जायेगी जो उनकी संस्कृति के लिए खतरनाक होगा। इन विरोधों के बावजूद सत्ता के दंभ में गृहमंत्री कहते हैं कि सीएबी तो लायेंगे ही और एनआरसी भी पूरे देश के संग असम में भी फिर से की जायेगी मतलब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम करायी गयी एनआरसी और उसमें खर्च हुए 1600 करोड़ , और 6 साल की कवायद बेकार हुई। इस कृत्य से देश का अरबों धन तो खर्च तो होगा ही साथ लोगों की परेशानी भी बढेगी। यह सब होगा केवल
हिंदू- मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए?
असम की एनआरसी से दो बातें तो साफ हो गई। पहला यह कि एक बेकार प्रयास है, वक्त और पैसे की बर्बादी है दुसरा अवैध आप्रवासी समस्या है तो हिन्दु आप्रवासी के रूप में अधिक है बजाय मुस्लिम के। ऐसे में सीएबी और एनआरसी दोनों का उद्देश्य हिन्दु वादी सोच को बढ़ाना और देश की मुस्लिम आबादी को हड़काना ही है।
क्या यह चाणक्य नीति है? बिल्कुल नहीं! चाणक्य भारत के बहुत बड़े दार्शनिक थे और उन्होंने ने अपने शिष्य सम्राट चन्द्र गुप्त को जनता के साथ भेदभाव करने की सलाह कभी न दी थी। यह तो मेकियावली के भी उस सलाह के विपरीत है जब उसने कहा था मनुष्य अपने पिता के हत्यारे को भूल सकता है, सम्पत्ति के नहीं। नागरिकता तो सभी अधिकारों की जननी है। यह भारत के संविधान की धारा 14 के भी खिलाफ है जिसमें धर्म के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है।
ऐसे में इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका क्या होगी जिसके बारे में भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगई ने कहा था कि जनता का भरोसा जरूरी होता है और भरोसा उसके निर्णय से उत्पन्न होते हैं। संयोगवश हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णय सरकार की इच्छा के अनुकूल आए हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट पर जनता का भरोसा चाहे बढ़ा हो या न बढ़ा हो पर बीजेपी सरकार और गृहमंत्री अमित साह का भरोसा जरूर बढ़ गया। गृहमंत्री का जो भी भरोसा हो संविधान विशेषज्ञों की यही राय है 'सीएबी' सुप्रीम कोर्ट में रद्द हो जायेगी। पर इसमें समय लगेगा तब तक इस पर राजनीति तो की ही जा सकती ध्रुवीकरण तो हो ही सकता है!
पर यह राजनीति देश के लिए खतरनाक है। यह भारत के धर्म निरपेक्ष छवि बदलने का प्रयास है। भारत से अवैध आप्रवासी को लेकर मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने की उम्मीद विश्व समुदाय और मानवतावादी कर रहे हैं। ऐसे में 'सीएबी' स्थिति और बिगाड़ेगी। गृहमंत्री को यह समझना चाहिए समुदाय या क्षेत्र विशेष के प्रति भेदभाव नीति से देश मजबूत नहीं बनता बल्कि टूटता है। बंगलादेश को भारत ने नहीं बनाया बल्कि पाकिस्तान सरकार द्वारा उनके प्रति बरती गई भेदभाव की नीतियों ने बनाया। सोवियत यूनियन का विखण्डन और यूगोस्लाविया का बंटवारा इसके अन्य उदाहरण हैं।
2 टिप्पणियाँ
Zabardust
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