भारत कभी भी अफगानिस्तान नहीं हो सकता और न ही यहां की सरकार तालीबानी। लेकिन भारत  रुवांडा , बहरीन, अज़रबैजान और कजाकिस्तान,  भी तो नहीं है जो इन प्रजातंत्रिक रूप से खटारा देशों की श्रेणी में खड़ा पाया जाय । एमनेस्टी इंटरनेशनल के "पेगासस प्रोजेक्ट"जिसमें 10 देशों के 17 मीडिया आउटलेट के 80 पत्रकार शामिल हैं  की जांच रिपोर्ट के Forbidden Stories में खुलासे ने ऐसा ही किया है। यह देश पर बदनुमा दाग है जिसे सरकार और गोदी मीडिया  हल्के में उड़ानें की कोशिश कर रही है।


"पेगासस"  इजरायल के एक निजी कंपनी NSO
द्वारा विकसित अत्याधुनिक जासूसी साॅफ्टवेयर है जिसका उपयोग आतंकवादी और गंभीर अपराधियों के खिलाफ किया जाना था। इस पेगासस से फोन या कम्प्यूटर से डाटा की चोरी की जा सकती है, मनगढ़ंत डाटा डाला जा सकता है( अमेरिकी फारेन्सिक जांच के अनुसार भीमा कोरेगांव के  8 आरोपीयों के कम्प्यूटर में डाला गया था)टेप व ट्रैक किया जा सकता है और चुपचाप फोटो और वीडियो ग्राफी भी की जा सकती है। इसकी एक खूबी ये भी है कि फोन से खुद को इस तरह गायब कर लेती है जिसे फारेन्सिक जांच में ये पता करना मुश्किल हो जाता है कि ये कभी उस फोन में थी भी या नहीं। इसकी निर्माता निजी कंपनी NSO का यह दावा है कि वो ये साॅफ्टवेयर केवल संप्रभु सरकार और उनकी जांच एजेंसी को ही बेचती है किसी प्राइवेट पार्टी को नहीं। 


ऐसे में एमनेस्टी इंटरनेशनल की जांच रिपोर्ट ये कहती है भारत सहित दुनिया के 10 देशों ने इस पेगासस साॅफ्टवेयर का गलत इस्तेमाल अपने राजनैतिक विरोधियों , पत्रकारों , मानवाधिकार कार्यकर्ता और स्वायत्त संस्थाओं के खिलाफ उन्हें नियंत्रित और ठिकाने लगाने के लिए किया है। इसका कहना है दुनिया के लगभग 50 देशों के 50000 ऐसे ही लोगों को जिनमें फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति सहित 10 भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष शामिल हैं उनके खिलाफ पेगासस का इस्तेमाल हुआ है या संभावित सूची में हैं। इस खुलासे से पूरी
दुनिया के स्वतंत्र पत्रकारिता जगत और राजनीतिक परिदृश्य में हल चल सी मच गई है।


भारत के बारे में इस रिपोर्ट कहा गया है यहां भी लगभग 300 लोगों का जिसमें 40 पत्रकार,श्री राहुल गांधी सहित विपक्ष के कई नेता,राजनैतिक  रणनीतिकार श्री प्रशांत किशोर भारत सरकार के भी दो मंत्री , चुनाव आयोग के कमिश्नर लावोस, सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर श्री आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट के जज अरूण मिश्रा , रजिस्ट्रार के दो स्टाफ,जस्टिस गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला ,भीमा कोरेगांव के आरोपी बनाये गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के फोन की पेगासस द्वारा जासूसी की संभावित सूची में हैं।



जाहिर है इस खुलासे के बाद भारत में भी सरकार का विरोध शुरू हो गया। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी पार्टियों ने सरकार से पूछना शुरू किया कि वो पहले ये तो बतलाये उसने पेगासस लिया है या नहीं। सरकार  हां या ना कोई  जवाब नहीं दे रही है। विपक्ष द्वारा संसद में बहस और जेपीसी जांच की मांग होने लगी पर सरकार चर्चा से भागती रही।  गृहमंत्री श्री अमित शाह ने इसका उद्देश्य सिर्फ भारतीय संसद को बाधित करने की अन्तर्राष्ट्रीय साज़िश बतलाकर एक बचकाना तर्क दिया। क्योंकि यह केवल भारत से नहीं बल्कि 50 देशों से संबंधित है हर जगह संसद नहीं चल रही थी।


विपक्ष के काफी मशक्कत और संसदीय सेशन का वक्त बरबाद करने के बाद रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने राज्य सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा रक्षा मंत्रालय ने पेगासस के साथ कोई लेन-देन नहीं किया है। विपक्ष इससे संतुष्ट नहीं हुआ क्योंकि रक्षा मंत्रालय के अलावा अन्य मंत्रालयों के करीब 9 एजेंसी ऐसी और हैं जो पेगासस से डील कर सकती हैं  इनमें से NIA और IB गृह मंत्रालय के अधीन है तो RAW सीधे प्रधानमंत्री के।उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है।


ऐसा नहीं की विरोध का सुर और  जांच की मांग सिर्फ विपक्ष की ओर से आ रहे हैं।  सत्तारूढ़ एनडीए की  घटक दल जेडीयू ने भी जांच की मांग की है। जबकि Press Club of India का कहना है कि  इस देश के इतिहास में यह पहली बार है कि हमारे लोकतंत्र के सभी स्तंभों - न्यायपालिका, सांसदों, मीडिया, कार्यपालकों और मंत्रियों की जासूसी की गई है वो भी विदेशी एजेन्सी द्वारा। यह अविश्वास और अराजकता को जन्म देने वाला है सरकार को इस मोर्चे पर सफाई देना और स्पष्ट करना चाहिए।


यह एक गंभीर  मामला है इसकी एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच जरुरी है। दरअसल  प्रत्येक व्यक्ति का निजी जीवन ,उस व्यक्ति के लिए गहरे मूल्य और मायने रखते हैं।उसकी जासूसी कर न केवल right to privacy का उल्लंघन होता है बल्कि उसे हथियार बना व्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रजातंत्र की रक्षक संस्थाओं की स्वायत्तता  को तहस -नहस किया जा सकता है।


NSO का कहना है कि पेगासस जांच रिपोर्ट उसके खिलाफ प्रतिद्वंद्वी की साजिश है।तथ्य यह है कि फ्रांस के साइबर सुरक्षा अधिकारियों ने डेटाबेस में मौजूद दो फ्रांसीसी पत्रकारों के फोन में पेगासस की उपस्थिति को स्वतंत्र रूप से प्रमाणित किया है। फ्रांस सरकार ने जांच का आदेश दिया।अब जर्मनी ने भी मान लिया है कि पेगासस का उपयोग उन्होंने किया है पर आतंकवादियों के खिलाफ।बदनामी के डर से इजरायल सरकार ने  NSO  पर छापेमारी कर जांच शुरू कर दी है। मोरोक्को सरकार ने इस रिपोर्ट को अपमानजनक मान  मानहानि का दावा ठोक ही दिया है। पर पता नहीं( तूमको सब पता है न मेरी मां)भारत सरकार को ये न तो अपमानजनक लग रहा है और न ही खतरा।


उल्लेखनीय है कि इतिहास में पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी  के रुप में और उसके कुछ पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजित डोभाल 2017 में  इजरायल की यात्रा करतेहैं "TheGuardian" अखबार के अनुसार "भारतीय नंबरों का चयन मोटे तौर पर इसी समय से  शुरू हुआ।" भारत सरकार की ओर से कोई पहल न होते देख बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने पेगासस जासूसी पर 26 जुलाई को दो सदस्यीय Enquiry commission बैठा दी।इसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस लोकुर हैं तो दूसरे सदस्य बंगाल हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ज्योतिर्मय भट्टाचार्य हैं।


27 जुलाई 2021 को वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार पेगासस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए । सुप्रीम कोर्ट ने  मामले को गंभीर माना। सरकार ने कोर्ट में भी पेगासस के उपयोग पर हां या ना अभी तक नहीं कहा है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग होने लगी पर सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि वो स्वयं निस्पक्ष जांच कमिटी बना कर उसे ही रिपोर्ट करना चाहती है क्योंकि यह राष्ट्र की सुरक्षा का मामला भी है खुलासे से आतंकवादी सतर्क हो जायेंगे।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा राष्ट्र की सुरक्षा से समझौता और रक्षा मंत्रालय के प्रोटोकॉल में हस्तक्षेप हम भी नहीं करना चाहते पर राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा मुद्दों से समझौता किए बिना सक्षम प्राधिकारी को हमारे सामने एक हलफनामा दाखिल करने में क्या समस्या है?”सरकार हलफनामा देने को तैयार भी हो गई सिर्फ समय मांगा।13 सितंबर 2021 की अगली तारीख है।


श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार राष्ट्र की सुरक्षा को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील है। यह संवेदनशीलता शायद इसलिए भी है कि इसने राष्ट्र की सुरक्षा की व्यापकता को "सरकार की सुरक्षा" में संकुचित कर दिया है। इसलिए सरकार के विरोध में उठने वाले स्वर चाहे वो पत्रकार हों,कवि हों, बुद्धिजीवी हों, छात्र हो या आम आन्दोलकारी फौरन उन पर 2019 संशोधित UAPA लगा ( जिसमें बिना कोर्ट ट्रायल और जांच के सिर्फ शक पर) कम से कम 6 महीने तक आतंकवादी और देशद्रोही बता जेल में डाल दिया जाता है।


2019 में सरकार ने संसद में खुद जानकारी दी 2015 की तुलना में UAPA के तहत गिरफ्तारी में 2019 में 72% की बढ़ोत्तरी हुई है। 2021 तक का आंकड़ा अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है। घटने की उम्मीद लगती है क्या? दिल्ली दंगे में UAPA के आरोपी एक-एक कर छूटते जा रहे  हैं और गृहमंत्री की दिल्ली पुलिस की खिंचाई कोर्ट में नित हो रही है।


13 सितंबर 2021  सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में सरकार अलग से हलफनामा देने से साफ मुकर गई है। उसका कहना है कि इससे राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जायेगा। राष्ट्रीय हित को सुरक्षित रखने के सुप्रीम कोर्ट के बार-बार आश्वासन देने के बाद भी केन्द्र सरकार का यह रुख  पेटिशनरों की आशंका की तकरीबन पुष्टि करता है कि पेगासस का न केवल इस्तेमाल हुआ है बल्कि बेजा इस्तेमाल हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करने के बाद भी केन्द्र सरकार को दो दिन तक अपनी सफ़ाई देने का एक अवसर और दिया है फिर अपना फैसला सुनायेगी।



संविधान और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा और राष्ट्र की सुरक्षा परस्पर विरोधी कैसे हो सकते हैं? यदि ऐसा कुछ है भी सुप्रीम कोर्ट में सरकार को भरोसा दिखाना चाहिए।  ऐसी अवहेलना !आखिर भारत में आधुनिक प्रजातंत्र है या किसी मध्यकालीन खलीफा का शासन तो है नहीं।



ऐसे में उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से ही है। सुप्रीम कोर्ट, ऐसे खतरनाक रुप से संवेदनशील(?) सरकार से जनता के निजता के अधिकार और प्रजातांत्रिक मूल्यों और उन्हें चलायमान रखने वाली स्वायत्त संस्थाओं की रक्षा करे। आख़िरकार देश के संविधान की सुरक्षा और व्यक्ति के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की रक्षा अंतिम रुप से भार सुप्रीम कोर्ट पर है इसके लिए संविधान ने उसे बाहुबली बनाया है।

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