Ayodhya Ram temple construction started!
अयोध्या राम मंदिर निर्माण प्रारंभ्भ!
सुप्रीम कोर्ट  के आदेश के पालन के क्रम में 5 अगस्त 2020 को भूमि पूजन कर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में बहुप्रतिक्षित  राम जन्मभूमि मंदिर बनाने के काम को विधिविधान से शुरू कर दिया है । प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अपने संबोधन में सही कहा कि लोगों की पांच शताब्दियों की आकांक्षा रही है जो अब पूरी होने जा रही है इस लिहाज से यह नि:स्सन्देह एक ऐतिहासिक अवसर है। परन्तु  इसकी तुलना 15 अगस्त 1947 के स्वतंत्रता दिवस से  करना न केवल अतिश्योक्तिपूर्ण है बल्कि  ऐतिहासिक अज्ञानता की फूहड़ता है! किसी भी देश के लिये स्वतंत्रता के समकक्ष अन्य कोई बात नहीं हो सकती।


भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन तो और भी विशिष्ट था। क्योंकि  महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़ा गया यह अहिंसक आन्दोलन राष्ट्रीय एकता के तानेबाने में समाज के सभी वर्गों एवं सम्प्रदाय के सहयोग से राजनैतिक शुचिता के उच्च आदर्श पर लड़ा गया था और यह पूरे विश्व इतिहास के लिए धरोहर है और अनुकरणीय भी । परन्तु मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के इस मंदिर निर्माण आन्दोलन के दौरान राजनैतिक शुचिता, सामाजिक सद्भाव और कानून और न्याय की जो मर्यादायें टूटी और साप्रदायिक दंगे में जो खून बहे उस इतिहास को भूल जाना ही बेहतर है।


भारत की आम जनता सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को शान्ति पूर्वक स्वीकार कर इसे भूलना भी चाहती है पर लगता है देश की राजनीति अभी इसे भुलाना नहीं चाहती वो राममंदिर निर्माण के विभिन्न चरण पर भगवान राम का नाम  लेकर अभी कुछ और छोटी-बड़ी चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है। आज हर कोई रामभक्त दिखना चाहता है और मंदिर निर्माण का श्रेय लेना चाहता है। प्रधानमंत्री द्वारा खुद भूमि पूजन करना और मीडिया द्वारा जय-पराजय की बात करना श्रीराम की तुलना में श्री मोदी के स्तुतिगान में अधिक समय देना यही दर्शाता है वो इसका श्रेय श्री नरेंद्र मोदी को देती है।


इसके पीछे साधारण तर्क तो यही लगता है अपने समय काल में महत्वपूर्ण घटनाक्रम  का भागी प्रधानमंत्री  होता है । यही कारण है 1992 में बाबरी मस्जिद के  विध्वंस का जिम्मेवार  तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व नरसिंह राव को माना गया न कि मस्जिद की रक्षा का झूठा शपथ पत्र देने वाले यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह को। यदि ये ही तर्क है तो मीडिया ये भी बतलाये कि कोरोना महामारी के सर्वाधिक त्रस्त देशों में भारत को अव्वल की ओर पहुंचाने का श्रेय वो किसे देती है?


कुछ लोगों की समझदारी ये भी है कि श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री थे इसलिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंदिर के पक्ष में आया परन्तु ऐसी  निराधार समझ न केवल सरासर सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा की अवमानना है बल्कि राज्य सभा के एक प्रबुद्ध सदस्य की विश्वसनीयता पर भी अकारण सवाल खड़ा करता है।जबकि बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता श्री सुब्रमण्यम स्वामी का तो स्पष्ट कहना है राममंदिर निर्माण में श्री मोदी का कोई योगदान नहीं है।

 

उनके अनुसार राममंदिर निर्माण का श्रेय मुख्य रूप से सिर्फ तीन लोगों को जाता है! एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व० राजीव गाँधी को जिन्होनें सालों से बन्द बाबरी मस्जिद के दरवाजे 1986 में खुलवाये, दूसरे भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व नरसिंह राव को जिन्होनें  1992 में मस्जिद टूटने दी और तीसरे  विश्व हिन्दु परिषद् के स्व०अशोक सिंहल को जिन्होनें मंदिर आन्दोलन की निरन्तरता बनायी रखी और प्रयास जारी रखे।


किन्तु अधिकतर लोग मंदिर निर्माण का श्रेय बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा  1990  में की गई सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा को देते हैं, जिसका असली उद्देश्य  वैसे तो स्व० वी०पी०सिंह के 'मंडल कमीशन' तोड़ ढूंढ़ते हुए हिन्दु-मुस्लिम ध्रुवीकरण कर चुनावी लाभ लेना था फिर भी इससे पूरे देश में राममंदिर के पक्ष में हवा तो बन ही गई।


कानून को समझने वाले लोगों का एक ऐसा वर्ग भी है जो यह मानता है कि राममंदिर की स्थापना का असली श्रेय उन लोगों को है जिसने बाबरी मस्जिद को तोड़ा था और अगर यह अस्तित्व में होता तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंदिर के पक्ष में होना मुश्किल था। ऐसे श्रेयश लोगों पर सीबीआई अदालत में अभियुक्त बना कर मुकदमें चल रहे हैं परन्तु  वहां श्री आडवाणी और श्री जोशी सहित तमाम लोग ये श्रेय लेने से इंकार कर रहे हैं।

 

श्रेय की सूई फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ओर घूमती है। इस फैसले के बारे में भी अनेक कानूनविदों का मानना है कि यह न्याय नहीं समाधान है और यह निर्णय कानून के बजाय आस्था के आधार पर दिया गया है। आस्था जैसा कि सर्वविदित है कि जबतक भगवान राम न चाहे तबतक राम की आस्था उत्पन्न भी नहीं हो सकती। ऐसे में अयोध्या में किसी को इस राममंदिर बनाने का वास्तविक श्रेय है तो वो स्वयं भगवान श्री राम को ही है!