"प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर का सफलतापूर्वक सामना किया है " यह कोई मजाक या चुटकुला  है ? शायद नहीं , हां कोई जुमला हो तो कह नहीं सकते, क्योंकि यह गृहमंत्री श्री अमित शाह का वक्तव्य है जो कोरोना के स्वाभाविक रुप से कमजोर पड़ जाने के बाद आया है। ये मजाक, चुटकुला या फिर जुमला कुछ भी हो सकता है सच्चाई तो कदापि नहीं। 



क्योंकि जिस लहर ने सरकार की अधकचरे आंकड़ें में ही सही अब तक देश में 3 लाख 46 हजार की जानें ले ली हो तो उसे सरकार की कामयाबी नहीं कह सकते। 25 मई 2021को New yorkTimes में प्रकाशित रिपोर्ट की मानें तो उसके अनुसार भारत में कोरोना से वास्तविक मौत के आंकड़े 16 लाख से 42 लाख तक हो सकते हैं। कोरोना वायरस से मौत की संख्या पर सरकार की कोई डील तो नहीं हुई होगी कि इतना मारे तो कोरोना तू सफल और उससे कम हुआ तो मोदी सरकार सफल।





"हमने धैर्य और योजना के साथ लड़ाई लड़ी,"  गृहमंत्री ने  यह कह कर 'अपने मुंह मियां मिट्ठू' की कहावत को पूरी तरह से अंजाम तक पहुंचा दिया। क्या 900 वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना की दूसरी लहर की चेतावनी को अनसुना कर चुनाव और कुंभ जैसे आयोजन करवाना  किसी योजना के तहत हुआ था? अपने देश के लोग ऑक्सीजन ,दवाई और वैक्सीन के अभाव में त्राहि-त्राहि करते रहें और हम उन चीजों को विदेशों में भेजते रहे क्या ये भी योजना का हिस्सा था।



ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था के लिए सिर्फ हवाबाजी करना और P M care fund के द्वारा घटिया वेंटिलेटर खरीदना  ये किस गंभीर योजना के आधार पर संभव हुआ था। जब कोरोना अपने पीक पर था लोग चीजों के अभाव में बेमौत मर रहे थे तो उस समय किस नायाब योजना के क्रियान्वयन में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों के दोनों राष्ट्रीय परिदृश्य से गायब हो गए थे। तब तो इसकी भी योजना बनी होगी कि आमतौर पर मास्क लगा कर संबोधित करने वाले प्रधानमंत्री नियत दिन टीवी पर बिना मास्क के ही  राष्ट्रीय संबोधन  इसलिए करें ताकि लोगों को तय समय पर आने वाले भावुकता से फड़फड़ाते होंठ दिखा सकें। 


ग‌हमंत्री ने धैर्य की भी बात की है उससे इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि जब देश कोरोना की दूसरी लहर के  में छटपटा रहा था उस समय में भी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री श्री अमित शाह दोनों ने  जिस धीरज के साथ बंगाल विधानसभा चुनाव में  खुद को व्यस्त रखा उसकी तो पूरी दुनिया कायल हो चुकी है। ऐसे क्रियाकलाप, ऐसी योजनाओं और  ऐसे धैर्य का परिणाम है कि दुनिया भर के आंकड़ों की छानबीन के बाद विश्व प्रसिद्ध  The Economics  नामक साप्ताहिक न्यूज पेपर ने श्री नरेन्द्र मोदी को  कोरोना से लड़ने वाला विश्व के सबसे अक्षम प्रशासक बतलाया है। 


दूसरी लहर कमजोर हुई है तो  इसका कारण सरकार की कामयाबी से अधिक  वायरस की वो प्रकृति  है कि जो पीक पर जाने के कुछ समय बाद कमजोर पड़ती है। देश तो आशंकित है कि पहली लहर के बाद प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा खुद की पीठ थपथपाने का खामियाजा देश ने दूसरी लहर में  लाखों लोगों की जान देकर चुकाया है अबकी बार बंगाल में 200 पार का दावा करने वाले ग‌ मंत्री श्री अमित शाह ने  खुद की पीठ थपथपाई है -जाने अब आगे क्या होगा ? क्या तीसरी लहर!


कोरोना के तीसरे लहर से बचने के लिए एकमात्र रास्ता है एंटीकोविड वैक्शीनेशन । वैज्ञानिकों का मानना है कि हम यदि समय रहते देश की 70% जनता को वैक्सीन का डबल डोज दे देते हैं तो कोरोना की तीसरी लहर से बचा जा सकता है। मोदी सरकार में यह भी कुप्रबंधन का शिकार है। भारत में अभी तक  लगभग 5 महीनों में मात्र 3% लोगों का ही डबल डोज टीकाकरण हो सका है सरकार का दावा है कि वो दिसंबर 2021 सभी 108 करोड़ लोगों का टीकाकरण कर देगी।  


टीकाकरण के धीमी रफ्तार पर सवाल करने पर फौरन अमेरिका से तुलना होने लगती है वो भी अनुपात में नहीं संख्या में। अमेरिका की आबादी तो 30 करोड़ है तो क्या 130 करोड़ वाला देश भारत,  30 करोड़- एक को टीका लगा कर टीकाकरण रोक देगा और खुश हो लेगा कि हम अमेरिका से आगे हैं?  क्या तीसरी लहर इतने पर ही रुक जायेगी? गोबर स्नान का असर मस्तिष्क पर भी होता है ऐसा तो नहीं सुना था।


भारत में टीकाकरण में भी कोई योजनाबद्घता नहीं है बल्कि पूरी स्थिति गडमड है। टीके का टोटा है । देश में बने करोड़ों टीके विदेशों को भेजे  दिए गए। विदेशों से टीके मंगाने में देर की गई अब उसे आने में समय लग रहा है। देशी टीके का उत्पादन बढ़ाये जा रहे हैं पर उसमें भी  समय लग रहा है। टीकाकरण की रफ्तार धीमी है बीच-बीच में ब्रेक भी लग रहा है।



केन्द्रीय बजट में पूरे देश का टीकाकरण हेतु 35000 करोड़ का प्रावधान रखने के बावजूद 50% टीकाकरण का भार राज्यों पर डाल दिया गया है। उन्हें Global tender निकालने का अधिकार दे दिया पर कोई Global कंपनियां राज्यों से डील करने को इच्छुक ही नहीं है। देश में टीके का मूल्य भी  केन्द्र, राज्य और प्राईवेट पार्टी के लिए तीन तरह के कर दिये गये हैं। इसी तरह बिना किसी तर्क के 45 वर्ष से ऊपर के लिए फ्री टीके को 18-44 वर्ष की कैटिगरी के लिए सशुल्क कर दिया गया है। भला हो उन राज्य सरकारों का जो इसे भी निःशुल्क दे रही है।


टीकाकरण की नीतियों की इस अराजकता के कारण ही  सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है जिसने 31 मई 2021के अपने आदेश  में स्पष्ट कर दिया है कि केन्द्र सरकार की टीकाकरण की नीति मनमाना और अविवेकपूर्ण है। कोर्ट ने जानना चाहा कि जब 35000 करोड़ की राशि का टीकाकरण का प्रावधान बजट में है ही तो फिर 18-44 आयु ग्रुप का टीकाकरण नि: शुल्क क्यों नहीं हो सकता? किसी को शुल्क किसी को नि:शुल्क ये मनमानी नहीं चल सकती । 


सूप्रीम कोर्ट ने एक ही टीके भिन्न-भिन्न मूल्य होना और इसका भार राज्यों पर डालने पर भी आपत्ति जताई है। केन्द्र द्वारा राज्यों एवं प्राईवेट अस्पतालों को टीके वितरण के नियमों एवं तरीकों की जानकारी भी सरकार से मांगी है साथ ही सरकार से वो रोड मैप बतलाने को भी कहा जिस आधार पर  वो दिसम्बर तक सभी का टीकाकरण करने का दावा कर रही है। सरकार को इन सब बातों पर ज़वाब के लिए दो हफ्ते का  समय दिया गया है।


उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप और दवाब से देश में सही ढंग से और सही समय पर टीकाकरण का लक्ष्य पूरा हो और देश तीसरी लहर के प्रकोप से बच जाये। इसके लिए जरूरी है ये दवाब बना रहे। जहां तक मोदी सरकार की बात है तो गृहमंत्री कुछ भी कह लें कोरोना की दूसरी लहर में इसकी असफलता जगजाहिर है। दुख की बात ये है उनकी इस असफलता की कीमत देश के लाखों लोगों के जान से चुकाई गई है। देश को आत्ममंथन की जरूरत है और ये हो रहा है। बीजेपी और मोदी सरकार आने वाले चुनावों पर आत्ममंथन कर रही है तो जनता अपने किए गए चुनाव पर!