Farmers' movement continues despite Red Fort violence.लालकिला हिंसा के बावजूद किसान आंदोलन जारी!



26 जनवरी 2021 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलनरत  किसानों द्वारा दिल्ली में निकाली गई ट्रैक्टर रैली अराजकता और हिंसा की भेंट चढ़ गई। जिसे आन्दोलनकारी जनसमर्थन  हासिल करने और केन्द्र सरकार पर दबाव डालने का मास्टर स्ट्रोक समझ रहे थे वो आत्मघाती साबित हुआ। 


आंदोलन में शामिल कुछ उपद्रवियों ने न केवल पुलिस से भिड़ंत और हिंसा की बल्कि बलपूर्वक लालकिले में घुस कर राष्ट्रीय ध्वज के निकट अपना कथित धार्मिक झंडा भी लहरा दिया। इस कारवाई से न केवल आन्दोलन की अहिंसक छवि को धक्का लगा बल्कि केन्द्र सरकार को इसे दबाने का नैतिक बल भी मिल गया है, कानूनी बल तो पहले से था ही।


ताबड़तोड़ एफआईआर होने लगे। लगातार शान्ति और अहिंसा की वकालत करने वाले राजेश टिकैत सहित कई किसान नेताओं पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत देशद्रोह के आरोप लगा दिये गए। यह एक्ट मूलतः आतंकवादियों से निबटने के लिए लाया गया था पर अब इसका इस्तेमाल विरोधियों से निबटने के लिए धड़ल्ले से किया जा रहा है । इसमें आसानी से जमानत भी नहीं मिलती ।



 इतना ही नहीं इस हिंसा में गलत मीडिया रिपोर्ट के आधार पर ट्वीट करने पर कांग्रेस के नेता शशि थरूर और राजदीप सरदेसाई सहित 6अन्य लब्ध प्रतिष्ठित संपादकों पर भी देशद्रोह के मुकदमे एमपी और यूपी में दर्ज कर दिये गए। बीजेपी की सरकारों को सावधान रहना होगा कि UAPA के ऐसे सदुपयोग से इस देश में  देशभक्त कहीं अल्पमत में न आ जायें और गद्दारों की नई कौम बन फिर पृथक गद्दारिस्तान की मांग कर बखेड़ा न खड़ा कर दें।


26 जनवरी को दिल्ली में हिंसा हुई जो कि गलत हुआ। उपद्रवियों द्वारा लालकिले में घुसना और झंडा फहराना वो सबसे अप्रिय था। ऐसे में UAPA की धारा उस शख्स पर लगनी चाहिए थी जिसने ये झंडा लगाया था, जो कि ना लगी। उस मीडिया पर भी  UAPA   लगनी चाहिए जिसने ये झूठी खबर चलाया कि तिरंगे को उतार कर दूसरा झंडा लहराया गया, यह भी नहीं किया गया। ये धारा लगी उन किसान नेताओं पर जिन्होंने हिंसा से आहत हो ट्रैक्टर रैली वापिस ले लिया।

 

किसान नेताओं की ये गलती हुई वो ऐसे उपद्रवियों को अपने आन्दोलन शामिल होने से रोक ना सके।ऐसी गलती तो पुलिस प्रशासन से भी हुई जो तमाम आशंकाओं के बाजूद इन उपद्रवियों को लालकिले में घुसने से रोक न सकी।यही कारण था कि किसान नेता राजेश टिकैत ने रोते हुए इस हिंसा को किसानों के खिलाफ साजिश बतलाया और लालकिले की घटना के लिए उस शख्स को जिम्मेवार बतलाया जो प्रधानमंत्री के साथ फोटो खिंचवाता है। 


उल्लेखनीय है लालकिले में जिस दीप सिध्दू नामक व्यक्ति ने झंडा फहराने की हिमाकत की उसकी तस्वीर  किसी भीड़ में नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के साथ आवास में खिंची फोटो वायरल हो चुकी थी। इसकी ऐसी ही तस्वीर गृहमंत्री के साथ भी आई है। ये शख्स बीजेपी के गुरदासपुर के सांसद के चुनाव प्रचार अभियान में भी शामिल रहा था। 


गाजीपुर बोर्डर पर धरने पर किसान नेता श्री राजेश टिकैत किसानों को गद्दार कहे जाने से आहत होकर रोए या फिर बीजेपी को वोट देने के पश्चाताप में रोए ये तो पता नहीं चला पर उनके आंसुओं ने गाजीपुर बोर्डर को खाली कराने की हरियाणा और यूपी सरकार की 28 जनवरी के आदेश व मंशा पर पानी फेर दिया। 


हरियाणा और यूपी के किसानों का भारी जत्था रातों-रात गाजीपुर की ओर बढ़ चला और राकेश टिकैत ने महापंचायत बुला ली। फलत: पुलिस प्रशासन को गाजीपुर बोर्डर खाली कराने का इरादा रद्द करना पड़ा। इसी तरह सिन्धु बोर्डर पर 29 जनवरी को कुछ उपद्रवियों को पुलिस प्रशासन ने धरना स्थल तक जाने दिया जिन्होंने किसानों के साथ मारपीट की । फिर भी किसान डटे रहे। इस तरह लालकिला कांड से जो आन्दोलन कमजोर पड़ता दिखाई पर रहा था  वो पुनः पूरी मजबूती से खड़ा हो गया है।


महात्मा गांधी सहित कई महापुरुषों का मानना है पवित्र साध्य हासिल करने के लिए साधन भी पवित्र होने चाहिए। इन तीन कृषि कानूनों को सरकार भले ही पवित्र मानती हो परन्तु इसे लाने का तरीका पवित्र नहीं था। न किसानों से बातचीत हुई, न संसद में इस समुचित बहस हुआ न ही राज्य सभा के स्थायी समिति में विचार के लिए रखा गया और पास भी संदिग्ध तरीके से ध्वनि मत से कराया गया। 


आन्दोलनरत किसान इन कानूनों को भी अपवित्र मानते हैं और इसे रद्द कराना चाहते हैं। ये मुठ्ठी भर नहीं है यदि ये बात होती तो 65 से अधिक दिनों से ये आन्दोलन जारी नहीं रहता। इसे आजादी के आन्दोलन के बाद का सबसे बड़ा जन आंदोलन माना जा रहा है। आजादी के आंदोलन में भी सारी जनसंख्या सड़क पर नहीं उतरी थी वो इसमें भी नहीं उतरी है। इस तरह के आन्दोलन किसी साजिश से खत्म नहीं किये जा सकते। 


बहुत हुआ, इस आन्दोलन का अंत होना चाहिए क्योंकि अब सरकार की ही नहीं देश की भी फजीहत हो रही है। आखिर जिन कानूनों को सरकार दो साल स्थगित करने को तैयार हैं उन्हें रद्द कर किसानों की सहमति और विचार विमर्श कर नये और पवित्र कानून 6 महीनों में ही पवित्र ढंग से क्यों नहीं ला सकती। ये नामुमकिन नहीं है।मोदी है तो ये भी मुमकिन है ! 








 







 








Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

2 टिप्पणियाँ

  1. 26 जनवरी को जब पूरे विश्व की निगाहें भारत की तरफ थी उस दिन जानबूझकर ट्रैक्टर रैली निकालने की हठधर्मिता और भारतीय पुलिस की बक्कल उटवाने की खुले आम चुनौती राकेश टिकैत जी की मंशा स्पष्ट दर्शित करता है.... किसान बिल ,किसान आंदोलन तथा स्वतंत्र भारत की एक दुःखद घटना का घटित होना सरकार के दूरदर्शिता की कमी परिलक्षित किया...
    इस बीच में न जाने पुलिस का 56 इंच का सीना कहाँ गायब हो गया...जो आम जनता पर पूरे सीना ताने गर्व से चलती है
    विपक्ष की कथनी और समर्थन की क्या बात करें... सुधरने का नाम नहीं लेंगे

    जवाब देंहटाएं
  2. 26 जनवरी को जब पूरे विश्व की निगाहें भारत की तरफ थी उस दिन जानबूझकर ट्रैक्टर रैली निकालने की हठधर्मिता और भारतीय पुलिस की बक्कल उतरवाने की खुले आम चुनौती राकेश टिकैत जी की मंशा स्पष्ट दर्शित किया...
    किसान बिल ,किसान आंदोलन तथा स्वतंत्र भारत की एक दुःखद घटना का घटित होना सरकार के दूरदर्शिता की कमी परिलक्षित किया...
    इस बीच में न जाने पुलिस का 56 इंच का सीना कहाँ गायब हो गया...जो आम जनता पर पूरे सीना ताने गर्व से धमकती है
    विपक्ष की कथनी और समर्थन की क्या बात करें... सुधरने का नाम नहीं लेंगे

    जवाब देंहटाएं
और नया पुराने