22 दिसंबर 2019 को  दिल्ली के रामलीला जैसी पवित्र नाम वाले मैदान की  एक सभा में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने, सीएए और एनआरसी के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन को अनुचित बताने के लिए सत्य के विरूद्ध ऐसा डंका पीटा कि पूरा देश हतप्रभ रह गया।
Prime Minister's experiment with lies!




 इतिहास की अद्भुत ज्ञान के लिए पहले से ही विख्यात प्रधानमंत्री ने अपने ही प्रशासन के बारे में तथ्यात्मक रुप में  कुछ ऐसी गलतबयानी की जो उनकी अनूठे प्रशासनिक समझ को भी दर्शाता है!इसी क्रम में वे अपनी नीतियो से अपने ही देश में उथल पुथल मचा देने वाले विरले गृहमंत्री की उन बातों को ही झुठला दिया जिनका वे महीनों से ढिंढोरा पीट रहे थे। आश्चर्य है श्री नरेन्द्र मोदी ने उस भारत की जनता के गुगलीय ज्ञान को इतना कमतर कैसे समझ लिया जहां ऐसे भी लोग हैं जो बिना इंटरनेट के ईमेल भेजने की अनोखी क्षमता रखते हैं।






अपने भाषणीय  पराक्रम में प्रधानमंत्री ने देश  की 1 अरब 30 करोड़ जनता को इस सत्य से अवगत कराया कि वे 2014 में जब से सत्ता में आए हैं तब से अभी तक 'एनआरसी' पर कभी या कहीं  भी चर्चा नहीं हुई है। पर ये यदि सत्य है तो बीजेपी के मेनिफेस्टो और उन्हीं के केबिनेट द्वारा तैयार 2019 राष्ट्रपति के अभिभाषण में इसकी चर्चा कैसे हो गई? आश्चर्य है जो बात गृहमंत्री श्री अमित साह को पता थी और जिसे वे उनके संसद सहित पूरे देश में घूम-घूम कर वांचे भी जा रहे थे  प्रधानमंत्री को खबरतक नहीं लगी।


 गृहमंत्री अमित साह पार्टी के अध्यक्ष तो अवश्य थे पर केबिनेट तो प्रधानमंत्री की होती है गृहमंत्री की नहीं! यदि ये  दोनों काम बिना प्रधानमंत्री  को बताये  कर लिये गए तब तो ऐसे भोले-भाले प्रधानमंत्रीजी को सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि  उन्हें न तो उनकी पार्टी पूछ रही है और न ही उन्हीं की केबिनेट!


प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी रोष व्यक्त किया सीएए को  एनआरसी से लिंक कर देश भर में कांग्रेस द्वारा झूठ फैलाया जा रहा है। पर प्रधानमंत्री जी कांग्रेस को बेकार दोष दे रहे हैं यूट्यूब पर अभी भी,  कई विडियो मिलेंगे जिसमें आदरणीय गृहमंत्रीजी पूरी क्रोनोलोजी समझाते नजर आयेंगे -पहले सीएए आयेगा फिर एनआरसी आयेगी, कोई हिन्दु भारत से नहीं निकाला जायेगा सिर्फ घुसपैठिया निकाला जायेगा। घुसपैठिया कहते वक्त के उनके  बाडीलैंग्वेज  से उनका इशारा किस ओर रहता है वो भी इन वीडियो से पता चलता है।
Prime Minister's experiment with lies!


प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि किसी की भी  नागरिकता 'सीएए' से छीना नहीं जा रहा है फिर भी  कांग्रेस और अर्बन नक्सली इसका विरोध कर रहे हैं। पर  वस्तुतः सीएए का विरोध भारत से उसकी धर्मनिरपेक्ष पहचान छीनने के कारण किया जा रहा है। इस कानून से नागरिकता को धर्म से जोड़ कर धार्मिक आधार पर मनमाने ढंग से देश और वहां के अल्पसंख्यक को चुनकर नागरिकता देने की बात की गई है  जिसका विरोध सेक्युलर देश की जनता स्वाभाविक है की करेगी।


 विरोध करने वाले को नक्सली कह देना यह कैसी बौद्धिकता है! तब तो 63%भारत के वयस्क नागरिक पहले से ही नक्सल हो गए जिन्होंने 2019 के चुनाव में आपका विरोध किया था।इस पर विचार करना चाहिए क्या दुनिया में कोई ऐसी सरकार है जो अपने देश के अल्पसंख्यक को चिंतित कर पड़ोसी देश के अल्पसंख्यक की चिंता करती है? दृष्टि व्यापक कर सबका साथ सबका विश्वास  के अपने ही विचार को प्रधानमंत्री में  अमल में लाते तो भला कोई विरोध क्यों होता! 'सीएए' और गृहमंत्री द्वारा उससे जोड़े 'एनआरसी'तो आपके इस विचार पर कहीं से खड़े नहीं उतरते।


भाषण के रो में प्रधानमंत्री यह भी बोल गए देश में कोई 'डिटेन्सन सेन्टर 'नहीं है। जबकि असम में  डिटेन्सन सेन्टर 2008 से ही है जो पहले से बने जेलों से संबध्द है।अभी यहां 6 कार्यरत हैं और 10 बनाये जाने वाले हैं। असम के गोलपाड़ा जिले में लगभग 46 करोड़ के बजट से 3000 की क्षमता वाले देश के सबसे बड़े डिटेन्सन सेन्टर का निर्माण पुरा होने पर है। कर्नाटक सरकार एक मुकदमें  में हाईकोर्ट को बता चुकी है उस राज्य में 35 टेम्पररी डिटेन्सन सेन्टर चल रहे हैं। इसी मामले में केन्द्र सरकार ने भी यह कोर्ट को जानकारी दी 2014 में ही सभी राज्यों को अपने प्रदेशों में डिटेन्सन सेन्टर बनाने का निर्देश दिया जा चुका है और 2018 में  रिमाइंडर भी भेजे गए हैं।


इसी प्रकार महाराष्ट्र में फड़नवीस सरकार के समय डिटेन्सन सेन्टर हेतु जमीन खोजे जाने की बात भी सामने आ चुकी। इतना ही नहीं नवम्बर 2019 में गृह राज्यमंत्री श्री नित्यानंद राय ने राज्य सभा में असम के डिटेन्सन सेन्टर में 28 अवैध आप्रवासी की मौत हो जाने की बात कही वही  हाल में 3 दिसंबर को लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में एक अन्य गृह राज्यमंत्री  श्री जी किशन रेड्डी ने असम के 6 डिटेन्सन सेन्टर में  970 लोग होने की जानकारी दी। स्पष्ट है  कि भारत में डिटेन्सन सेन्टर हैं यही सच है। आश्चर्य है इतने लोकप्रिय प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के मेनिफेस्टो, अपनी केबिनेट और संसद के क्रियाकलापों से अनभिज्ञ कैसे हो सकते हैं।


Prime Minister's experiment with lies!

ऐसा लगता है प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी रामलीला मैदान ये सोच कर आए थे कि कुछ भी हो जाय सच नहीं बोलेंगे। तभी तो इस भाषण में कहा कि विदेश के मुस्लिम समुदाय का मुझे मिल रहे व्यापक समर्थन से कांग्रेस पार्टी को डर हो रहा है वह कब तक भारतीय मुसलमानों को हम से डराते रह पायेगी। जबकि सच यह है धारा 370 के तियापांचा के बाद जम्मू और कश्मीर के लोगों के हालात को लेकर यूरोप और अमेरिका सहित मुस्लिम राष्ट्रों में भी नाराजगी है। तुर्की के राष्ट्रपति और मलेशिया के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में खुलेआम ये नाराजगी प्रकट की। इसी प्रकार 57 मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी ने भी अयोध्या फैसले और सीएए कानून को लेकर अपनी चिंता व्यक्त किया है।


अपने इस भाषण में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यह रहस्योद्घाटन भी किया कि वे साम्प्रदायिक नहीं है। इस बात में तो कुछ सच्चाई है  वरना जनता दो-दो चुनाव में उन्हें क्यों जीताती। पहली बार भारत की जनता ने उन्हें विकास पुरुष समझ कर वोट दिया तो दूसरी बार बालाकोट में टफ एक्शन लेने वाले प्रधानमंत्री मानकर। यह अलग बात है इनके चुनावी भाषणों में प्राय: पहले मियां मुशर्रफ़ और बाद में पाकिस्तान का जिक्र हो जाया करता है- ये तो तकियाकलाम भी हो सकते हैं ।शमशान और कबरिस्तान की बात कह देना - जुबान फिसल जाना भी तो कोई चीज होती है जनाब! पोशाक के आधार पर उपद्रवियों को पहचान लेना -ये क्षमता तो उन्होंने बचपन से मिली शाखायीय शिक्षा से हासिल की है और ये तो कौशल है साम्प्रदायिकता नहीं!


Prime Minister's experiment with lies!


दरअसल रामलीला मैदान में दिया गया यह भाषण देश में चल रहे सीएए और एनआरसी विरोधी आन्दोलन को समर्पित था।इस आन्दोलन की धार को कुन्द करने के लिए उन्होंने जो किया उसे वास्तव में असत्य के साथ प्रयोग कहा जा सकता है।इस प्रयोग में सत्य को ढकने के लिए असत्य के एक नहीं कई चादरों का उपयोग किया गया। पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का यह प्रयोग सफल नहीं हो सका।


 जागरूक जनता से सत्य को छिपाया नहीं जा सका और आन्दोलन बदस्तूर जारी है। अच्छा होता कि इस सीएए कानून को वापस ले लिया जाता यह पराभव नहीं समझदारी की बात होती। खुद प्रधानमंत्री अपने को जनता का प्रधानसेवक कहते हैं फिर क्या दिक्कत है। प्रजातंत्र में सरकार अहंकार से नहीं जनता को भरोसे में लेकर चलती है संसदीय बहुमत हो या  फिर न्यायपालिका की स्वतंत्रता , कोई मतलब नहीं रह जाता जब वो इस भरोसे को तोड़ती है।