खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
पहलगाम आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिन्दूर के बाद देश के अन्दर और बाहर ना जाने क्यों सब कुछ उलट पुलट हो रहा है। भारत और पाकिस्तान लड़ाई करते हैं पर सीजफायर की घोषणा व्यापार की धमकी के दावे के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार नहीं पच्चीसों बार करते हैं यहां तक कि भारत के कितने विमान गिरे ये भी वही बतलाते हैं।आश्चर्य है कि ट्रंप के दावों पर किसी 56 इंच की घिग्धी बंधने तक की आवाज नहीं सुनाई पड़ती है।
Failed foreign policy
ऑपरेशन सिंदूर पर कोई देश भारत के साथ खड़ा नहीं होता है वहीं दूसरी तरफ जिसे भारत पहलगाम की आतंकवादी कांड का कसूरवार समझता है उस पाकिस्तान को अमेरिका सहित दुनिया कंधे पर बिठा रही है। उसे ना केवल विश्व बैंक से अरबों डॉलर की सहायता मिलती है बल्कि उसे संयुक्त राष्ट् संघ की आतंकवादी निरोधक समिति (Counter Terrorism Committee) का उपाध्यक्ष भी बना दिया जाता है। है ना कमाल!
Attitude of the government
इसी तरह एक के बाद एक दुनिया के अनेक अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विदेश नीति की बहुचर्चित डंके की बजाय भद् पिटती रही है वहीं देश के अन्दर भी अजीबोगरीब हालत बनते रहे हैं। पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिन्दूर पर विशेष सत्र नहीं बुलाया जाता है और जब संसद सामान्य सत्र शुरू होता भी तब लोकसभा के नेता जिनके बदन में लहू के जगह सिन्दूर बह रहा था वो विदेश के लिये बह लेते हैं। इस तरह ना तो ट्रंप को जवाब मिला ना ही विपक्ष को?
बहती हवा सा है वो, उड़ती पतंग सा है वो!
पहलगाम हमले के आतंकवादी ना तो पकड़े गये ना मारे गये ऐसे में इस्तीफे की उम्मीद प्रधानमंत्री नहीं तो कम से कम वहां की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने में असफल गवर्नर और भारत के गृहमंत्री से कर रहे थे पर इस्तीफा संवैधानिक मर्यादा का मखौल बनाने वाले उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनकड़ का हो जाता है।उनसे पूछकर बतलाओ की वो ऑपरेशन सिन्दूर पर जवाब देने कब राज्य सभा आयेंगे, ये पूछना ही भारी पड़ गया। मेरी बिल्ली मुझी से म्यांउ ! अरे धनकड़ ! बस भी कर। उपराष्ट्रपति से ऐसा व्यवहार वो है ंंतो ही मुमकिन है।
Biased Election Commission
सबसे कमाल तो भारत का चुनाव आयोग बिहार विधान सभा के आसन्न चुनाव में करने जा रहा है वह कमाल है लोकतंत्र की मिट्टी पलीद करना।
2024 का लोकसभा चुनाव हो या हरियाणा और महाराष्ट्र या दिल्ली चुनाव अपने नियोक्ता सरकार की पार्टी गठबंधन को जीत दिलाने के लिये वोटों की बढ़ोत्तरी और कटौती और Extra 2ab जो खेल गुपचुप तरीके से किया था वह काम बिहार चुनाव में SIR के जरिये डंके की चोट पर करने जा रहा है। वह भी तब जब उसके खिलाफ पिछले कई चुनावों से संबंधित कई मामले विभिन्न न्यायालयों में चल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि विपक्ष द्वारा मांगे जाने पर भी चुनाव आयोग द्वारा ना तो डिजिटल वोटर लिस्ट दिया जाता है और न ही वीडियो।
ऐसा लग रहा है कि चुनाव नहीं शिल्पा शेट्टी वाला फिल्म का गाना चल रहा हो "दिल वालों का दिल का करार लुटने अब आई हूं डिंग डिंग बिहार लूटने "!
Special Intesive revision (SIR)
चुनाव आयोग के अनुसार SIR का उद्देश्य मृत, दोहरे पंजीकरण वाले या अज्ञात मतदाताओं को हटाना है। पर यह काम समय लेकर किया जाना चाहिये आनन फानन में नहीं जब चुनाव सर पर हों।
दूसरे, दोहरे मतदाताओं का छांटना तो डिजिटल युग में कम्पयूटर द्वारा मिनटों में हो सकते थे। मृत मतदाताओं से भी कोई खतरे नहीं थे वो वोट डालने अनिवार्य वोटर आईडी कार्ड लेकर नहीं आ सकते।
रह गए अज्ञात! इसका क्या तात्पर्य हैं ? अगर इसका तात्पर्य नागरिक जानना है तो ये काम तो चुनाव आयोग का नहीं। पहली बार मतदाताओं से नागरिकता का प्रमाण का दस्तावेज मांगा गया है जबकि ये काम गृहमंत्रालय का है।
दस्तावेज भी वैसे जैसे जन्म प्रमाण पत्र, माता पिता का जन्म प्रमाण पत्र जो अधिकांश मतदाताओं के पास है ही नहीं। आधार कार्ड , राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड जो कि अधिकांश मतदाताओं के पास है ं उसे नहीं माना जा रहा है।
विडंबना देखिये आधार कार्ड को स्वीकार्य नहीं कर रहे हैं पर उस आधार कार्ड के आधार पर बनने वाले पासपोर्ट, बैंक कार्ड आदि को सही माना गया है। इससे चुनाव आयोग की मंशा जाहिर होती है और वो मंशा है मतदाताओं काटना ना कि जोड़ना ।
फर्जीवाड़े तरीके के कई आरोपों से घिरे और जैसे- तैसे की गई रिवीजन रिपोर्ट के आधार पर चुनाव आयोग ने सूचना दी है कि 65.2 लाख मतदाताओं के नाम हटाये जाने योग्य पाये गए है ं। इनमें मृतकों और दोहरे रजिस्ट्रेशन वालों की संख्या भी (तकरीबन 25 लाख) भी शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा के 2020 के पिछले चुनाव में जीतने वाली एनडीए गठबंधन और हारने वाली महागठबंधन के बीच पूरे बिहार में वोटों का अंतर मात्र लगभग 12 हजार था।ऐसे में लाखों वोटरों का नाम कट जाना चुनाव को बेमतलब बना सकता है।
विपक्ष की तमाम पार्टियां SIR का विरोध कर रही हैं। इन्हें लगता है यह गरीब, वंचित और अल्पसंख्यक वर्ग के उनके वोटरों का नाम काटने की साजिश है। कई लोगों को लगता है जिनके नाम चुनाव आयोग काटना चाहती है वो काट चुकी है फार्म भरने का तो ड्रामा किया जा रहा है। यह SIR ,चुनाव आयोग का अपने नियोक्ता के लिये चुनाव की चोरी के सिवाय कुछ और नहीं है।
उल्लेखनीय यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने हजारों मतदाताओं के नाम काटने का एफीडेविट सहित शिकायत की थी। उसका आयोग ने उस वक्त भी कोई संज्ञान नहीं लिया था।
ऐसे में विपक्ष बिहार के SIR को वोटबंदी का समझ रहा है।कुछ लोग नागरिकता के प्रमाण पत्र मांगे जाने के कारण इसे बिहार के NRC की भी कह रहे हैं। SIR का समय और तरीका घपलेबाजी का ही संकेत कर रहे हैं। अभी तक मतदाता सरकार चुन रही थी इस बार सरकार पहले मतदाता चुनेगी फिर चुने गए मतदाता ही सरकार चुनेंगे। स्वतंत्र पत्रकारों द्वारा इस पूरी प्रक्रिया पर सोशल मीडिया पर किये गये खुलासे से यह बात साबित भी हो रही है।
The ball is in the Supreme Court's court
मामला सुप्रीम कोर्ट में गया हुआ है। 28 जुलाई 2025 की सुनवाई की तारीख है। सुप्रीम कोर्ट का रिकॉर्ड हमेशा चुनाव आयोग की बात मानने का रहा है।इवीएम के मामले भी यही देखा गया।
अब मामला इवीएम से भी उपर का है। मामला मताधिकार का है जिस पर लोकतंत्र टिका होता है। पर सुप्रीम कोर्ट से भी अधिक आशा नहीं रख सकते है क्योंकि इसने अपनी जिम्मेदारी सही ढ़ंग से निभाई होती तो भारत के लोकतंत्र की आज ये हालत ना होती। 2018 के चार जजों के प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो आशंका जताई गई थी वो सत्य साबित होती रही है। इस बार आखिरी मौका है और देखना है सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र की रक्षा करती है या तानाशाही पर मुहर लगाती है।
रही विपक्ष की बात !वो तो चुनाव बहिष्कार तक का सोच रहा है जो कि एक खतरनाक स्थिति है। चुनाव बहिष्कार बंगलादेश मे ंभी वहां कि विपक्ष ने क्या था। नतीजा क्या हुआ ? जनता ने तानाशाह को देश से खदेड़ दिया और ताजा खबर ये है कि चुनाव आयुक्त की ठुकाई भी कर दी।आशा है भारत में ऐसा कुछ ना हो।