जब हम भारत का एक देश के रूप में विचार करते हैं तो एक लोकतांत्रिक,आधुनिक धर्मनिरपेक्ष और अनेकता में एकता वाले और विकास शील देश की छवि सामने आती है। इसे ही Idea of India कहा जाता रहा है। दुनिया भर में भारत की यही पहचान रही है और इसी कारण भारत को सम्मान और प्यार मिलता रहा है। आजादी के पहले से ही कांग्रेस भारत की इसी छवि को प्रतिनिधित्व करती रही है पर कांग्रेस पार्टी के कमजोर होने के साथ देश की ये छवि भी कमजोर हुई है।


बीजेपी  Idea of India  की बजाय Idea of RSS  में अधिक विश्वास करती है  जो मध्यकालीन सोच के अनुकूल भारत को उग्र हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहती है । धार्मिक नायकत्व (Hegemony) में प्रजातंत्र भी  सेकेण्डरी हो जाता है। यही कारण है कि भारत अब कम डेमोक्रेटिक और कम सेकुलर देश हो गया है।


Economist Intelligence Unit नामक अन्तराष्ट्रीय संस्था के Democracy Index  2014 में 27वें स्थान पर रहने वाला भारत 2020 में फिसल कर 53 वें स्थान पर आ गया है । लोकतंत्र की मर्यादा और नागरिकों के अधिकार की रक्षा करने वाली स्वायत्त संस्थायें स्वयं की मर्यादा कायम रखने में विफल हो रही हैं। 


लोकतंत्र में सरकार के काम काज पर सवाल करना आम बात होती हैं पर भारत में यह खतरनाक बात हो गई है। ऐसा करने वाले देशद्रोही माने जाते हैं और विरोध की आवाज पर सख्त कार्यवाही होती है। ये लोकतंत्र के नहीं तानाशाही के लक्षण हैं। 


Idea of India कमजोर हुआ है क्योंकि  Idea of RSS  को परवान  चढ़ाया जा रहा है। पूरी दुनिया इस परिवर्तन  को लेकर चिंतित और आशंकित है। उन्हें लग रहा है कि एक शानदार और आधुनिक देश पीछे जा रहा है। दुनिया यूक्रेन को लेकर चिंतित तो है ही भारत में चल रहे बुलडोजर से भी परेशान है। United States Commission On International Religious Freedom 2020  की रिपोर्ट में भारत अब धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में "विशेष चिंता वाले देश" जिसमें उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान जैसे राष्ट्र आते हैं उसी टायर 1 श्रेणी में आ चुका है!


भारत में सांप्रदायिक दंगे पहले भी होते थे फिर भी  Idea of India बचा रहता था क्योंकि दंगे के विरूद्ध सरकारी कार्यवाही एकतरफा नहीं होती थी न ही गैरकानूनी ढ़ंग से मकानें और दुकानें बुलडोज की जाती थी। 



पहले धार्मिक जुलूसें प्राय: समाज में समरसता और सौहार्द  लाने के लिए निकलती थी लोग इसका आनन्द भी लेते थे,अब ऐसे जुलूसों से भय उत्पन्न होता है और ऐसा लगता है ये जुलूसें प्रायोजित ढ़ंग से दंगा कराने के लिये ही निकलती हैं। 


Indian Economy concerns about Congress

कांग्रेस के सत्ता में नहीं रहने से भारत की अर्थव्यवस्था की हालत पर भी बुरा असर पड़ा है। कोरोना काल में दुनिया में सबसे अधिक गरीबों की संख्या में वृद्धि भारत में ही हुई है। स्वयं सरकार कह रही है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज खिला रही है।  बावजूद इसके वैश्विक भूख सूचकांक "(global hunger index) में 116 देशों में भारत को 101 वें स्थान पर पहुँचा गया है 2014 में 55 वें स्थान पर था। 


अजब तमाशा हुआ है कि देश गरीबी का रिकॉर्ड बना रहा है और देश के ही अदानी और अंबानी जैसे पूंजीपति अमीरी का विश्व रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। कैसे मुमकिन है?किसके कारण मुमकिन है ? 70 सालों में संचित देश की परिसंपत्तियां  बेची जा रही हैं। 


देश रिकॉर्ड तोड़ महंगाई और बेकारी से परेशान है। अमेरिकी डॉलर की कीमत आज 76 रूपये हो गई है जो 2014 में 60 रूपये थी। पेट्रोल और डीजल के दाम 2011 में क्रूड आयल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 111 डालर प्रति बैरेल  होने के बावजूद क्रमशः 71 और 55 रूपये था वो अब 100 डालर अंतराष्ट्रीय कीमत रहने पर ही  क्रमशः 118और 102 पर पहुँच गया है। 


खाद्य तेल 2014 में 70 रूपये लीटर हुआ करता था वो 200 के पास पहुंच गया है। रसोई गैस की कीमत जो 2014 में 410 रूपये थी वो 1048 रूपये हो गई है।  अमूमन  5% पर रहने वाला बेरोजगारी दर  CMIE  के डाटा के अनुसार 8% की हो चुकी है। अर्थ व्यवस्था की हालत ऐसी हो चुकी है कि  लोगों को भारत में भी श्रीलंका  वाली डंका पीटे जाने की आशंका हो रही है। 


ऐसा भी नहीं है कि भारत की ये बदहाली कोरोना संकट ने उत्पन्न की है बल्कि ऐसा मानना जुमला होगा। सच्चाई ये है कि कोरोना संकट से पूर्व ही भारत की  Idea  of India  और अर्थव्यवस्था पर संकट आ चुका था। 


ये दोनों काम फालतू की नोटबंदी, सीएए, एनआरसी जैसे कानून और हड़बडाहट की जीएसटी द्वारा पहले ही किया जा चुका था।भारत की जीएसटी कोरोना आने से पहले ही 4.2 % के निम्न स्तर को छू चुकी थी। कोरोना ने स्थिति को सिर्फ बद से बदतर किया है। 


अस्तु संकट केवल कांग्रेस का ही नहीं है, बल्कि  Idea of India और भारतीय अर्थव्यवस्था का भी  है, सबका ग्राफ गिर रहा है। कांग्रेस को लेकर हर वो शख्स  चिंतित हैं जो  Idea of India   में विश्वास रखते हैं और भारत की अर्थव्यवस्था  सुधारना चाहते हैं। 

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