पांच राज्यों के चुनाव के हाल के नतीजों ने  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भविष्य को लेकर पूरे देश को चिंता में डाल दिया है।जिसे देखो वही कांग्रेस के लिए चिंतित है फिर चाहे धुर विरोधी हों या सहानुभूति रखने वाले ,या फिर Idea of India में आस्था रखने वाले आम लोग हों या निरंकुश सत्ता व विशेष धर्म के कट्टरपंथी समर्थक सब के सब कांग्रेस के लिए न केवल चिंतिंत है बल्कि अपनी तरफ से चिंता का समाधान भी सुझा रहे हैं। कांग्रेस की चिंता तो सभी को हो रही है पर कारण अलग-अलग हैं। 


BJP concerns  about congress

बीजेपी के केन्द्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता श्री नीतिन गडकरी ने पूणे में लोकमत के एक कार्यक्रम में कहा "लोकतंत्र दो पहियों पर चलता है - सत्ता पक्ष और विपक्ष। लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष जरूरी  है इसलिए मेरी हार्दिक इच्छा है कि कांग्रेस पार्टी मजबूत बने। साथ ही कांग्रेस के कमजोर होने से उसकी जगह क्षेत्रीय दल ले रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। इसलिए कांग्रेस को मजबूत होना चाहिए।" श्री गडकरी ने जो कहा वो लोकतंत्र में उनकी गहरी आस्था के परिचायक हैं  पर ये उनके निजी विचार हैं।  उनकी पार्टी  बीजेपी ऐसा नहीं सोचती। 



बीजेपी अच्छी तरह जानती है राष्ट्रीय स्तर पर उसे कोई पार्टी चुनौती दे सकती है तो कांग्रेस पार्टी ही है और उसकी चिंता इसी बात को लेकर है । वो इस चिंता से सदैव के लिए मुक्ति चाहती है अतएव  कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती रही है। उनके लिये कांग्रेस मुक्त भारत का तात्पर्य चिंता मुक्त बीजेपी  है। 


परन्तु कांग्रेस मुक्त भारत करने में सबसे बड़ी बाधा गांधी -नेहरू परिवार रहा है इसलिए बीजेपी का मामूली से मामूली कार्यकर्ता और समर्थक गांधी- नेहरू परिवार को कांग्रेस से बाहर करना चाहता है। 

 

Wall Street Journal  और फिर अल जज़ीरा और द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के खुलासे से स्पष्ट हो चुका है कि देश को हिन्दु-मुस्लिम में व्यर्थ और विनाशकारी संवाद में उलझाये रखने की कोशिश,कांग्रेस को बदनाम करने और राहुल गांधी को पप्पू की छवि गढ़कर जनता को पप्पू बनाने में और गांधी और नेहरू जैसे महापुरुषों को गालियाँ देने की हिमाकत के पीछे  सोशल मीडिया पर की गई भारी भरकम investment  है।


यही कारण है इतिहास का क ख ग तक की जानकारी नहीं रखने वाला कोई भी अंधभक्त देश के वर्तमान की किसी भी दुश्वारियों के लिए फौरन पण्डित नेहरू और महात्मा गांधी को जिम्मेवार ठहरा देता है। 


AAP and TMC concerns about congress

बंगाल की टीएमसी और अभी तक दिल्ली पर अब पंजाब की सत्ता पर काबिज  AAP जैसी क्षेत्रिय पार्टियों को कांग्रेस के पराभव में अपनी राष्ट्रीय विकल्प बनने की संभावना दिख रही हैं। इसलिए वे अपने इलाके से बाहर निकल कर कांग्रेस को बेकार ठहरा कर खुद को विकल्प के रूप में पेश करने में लगी है। 


आश्चर्य ये है कि बीजेपी का विकल्प बनने का दावा करने वाली ये पार्टियां बीजेपी को ही फायदा पहुंचा रही हैं  जबकि नुकसान कांग्रेस का कर रही हैं। गोवा, उत्तराखंड, मणिपुर की विधान सभा 2022 के चुनाव परिणाम से स्पष्ट है। इसलिये इनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा से बीजेपी काफी खुश है।क्योंकि इन्हें राष्ट्रीय विकल्प  बनने में (यदि बने भी तो) कम से कम 25 साल लगेंगे तब तक के लिए बीजेपी निश्चिंत रह सकती है।


गोवा चुनाव परिणाम  के बाद टीएमसी  ने कांग्रेस के प्रति अपने विरोध के तेवर नरम कर लिये हैं।उसे ये पता चल गया है उसकी इस गतिविधि का फायदा बीजेपी उठा ले जा रही है।उसे  कदाचित ये भी अहसास हो चला है कि कांग्रेस को और कमजोर कर बीजेपी को नहीं हराया जा सकता है।


पर पंजाब में जीत से उत्साहित  AAP को इससे फर्क नहीं पड़ता इसलिए उसे दूसरा औवेसी(बीजेपी की बी टीम) माना जा रहा है। दिल्ली के जहांगीरीपूरी दंगे में आप नेताओं द्वारा बीजेपी की तरह रोहिंग्या और बंगलादेशी मुसलमानों को अकारण संवाद में लाना इसी ओर इशारा करता है। 


बंगाल में जीत के बाद जैसे टीएमसी को लगा था वैसे ही पंजाब में जीत के बाद आप को लग रहा है कि देश में कांग्रेस का स्थान वे ले सकते हैं। नाम बीजेपी का लेना है पर इरादा कांग्रेस का विकल्प बनना है।

 


AAP का वश चले तो कांग्रेस जैसी बूढ़ी पार्टी को राजनीति से रिटायर्ड होकर और विपक्ष का कमान उन्हें सौंप देना चाहिए। पर इस मंशा के पीछे ये चिंता भी है कि ये बूढ़ी पार्टी  कहीं फिर खड़ी हो गई तो उनके जनाधार पुनः खिसक न जाये ंं। क्योंकि उसे पता है कि उनका जनाधार कांग्रेस से ही आया हुआ है। 

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