कांग्रेस के लिये पूरे देश की चिंता कम से कम कांग्रेस के बचे रहने की आशा जगाती है। पर देश उससे केवल बची रहने की नहीं मजबूती से खड़ी होने की उम्मीद कर रहा है।परन्तु ये कहावत भी मशहूर है जो खुद की चिंता न करे उसकी चिंता भगवान भी नहीं करता। अच्छी खबर ये है कि कांग्रेस ने ये चिंता करनी शुरू कर दी है।


कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी वरिष्ठ नेताओं से चाहे विरोधी स्वर वाले ही क्यों ना हो उनके साथ निरंतर बैठक कर रही हैं।मंथन चल रहा है। सबने माना पार्टी अपने अस्तित्व के संकट के गंभीर दौर से गुजर रही है और इससे निकलने के लिए जो भी जरूरी हो वो कारवाई जल्द होनी चाहिए। क्योंकि 2024 का आम  चुनाव महज 2 साल दूर है।


Prashant Kishore concerns about Congress

 
लोकतंत्र और सेकुलरिज्म में विश्वास रखने वाले  CAA और NRC के प्रश्न पर जदयू छोड़ देने वाले प्रशांत किशोर जैसा चुनावी रणनीतिकार भी कांग्रेस की इस चिंता में शामिल हुए । 


इस विषम परिस्थिति में भी, 2024 के चुनाव को लेकर श्री नरेन्द्र मोदी की  done deal की भविष्यवाणी को नकार कर उन्होंने कांग्रेस की जीत की संभावना तलाशते हुए कांग्रेस पार्टी के सामने कार्ययोजना का एक ब्लूप्रिंट पेश किया। 


इस ब्लूप्रिंट में संगठनात्मक सुधार के साथ क्रियान्वयन के तरीकों का भी उल्लेख किया गया था।इससे प्रभावित हो कांग्रेस ने श्री प्रशांत किशोर को अपने नये "Empowered Action Group - 2024" में शामिल होने का आमंत्रण दिया।  


श्री पी० के० ने इस आमंत्रण को ठुकरा दिया है। पर ऐसा करने में भी उन्होंने कांग्रेस के प्रति जो सहृदयता दिखलाई  और कांग्रेस ने भी उनके सुझावों के लिए जिस तरह का आभार जताया है वो भविष्य में इनके आपसी गठबंधन की संभावना को जीवित रखती है। संभवतः तय हुआ हो कि कांग्रेस में कुछ काम पहले हो जाय फिर पी० के की इंटरी होगी। 


Problems of Congress


श्री पी० के ०आते चाहे ना आते कांग्रेस के लिए परेशानियां कम नहीं है। इनमें कुछ परायी हैं तो कुछ खुद खड़ी की हुई है और इनसे निपटना भी अंतत: उसे ही है। निरंतर हार से उपजी निराशा, पार्टी में बागी सुर,  टूट के आसार ,नेतृत्व का संकट, सांगठनिक कमजोरी, कोष की कमी आदि अनेक समस्यायें हैं ।


इसलिए कांग्रेस की एक अखिल भारतीय चिंतन शिविर  राजस्थान में 13 मई 2022 को बुलाई गई है। लेकिन जरूरत सिर्फ चिंतन की नहीं बल्कि एक्शन की  है।



क्योंकि श्री राहुल गांधी के 2019 में अध्यक्ष पद के इस्तीफे के बाद से कांग्रेस अभी तक श्रीमती सोनिया गांधी के कार्यकारी नेतृत्व में चल रही है।उनकी शारीरिक अस्वस्थता प्रभावी और जुझारू नेतृत्व देने में सक्षम नहीं हो पा रही है।


हजारों करोड़ खर्च कर कांग्रेस और गांधी परिवार की खराब की गई छवि से त्रस्त कांग्रेस को उबारने में श्री राहुल गांधी और प्रियकां गांधी को सफलता नहीं मिल रही है।


निरंतर हार से कांग्रेस और गांधी परिवार दोनों दवाब में हैं। कांग्रेस को स्थायी और निर्वाचित अध्यक्ष अगस्त-सितम्बर 2022 तक मिल जायेगा। परन्तु संकट सिर्फ नेतृत्व का ही नहीं है कि उसे मात्र बदल देने से कांग्रेस की किस्मत जाग जायेगी।  


संकट ,कांग्रेस के खुद जागने और अपने प्रति लोगों का यह विश्वास जगाने की है कि वो पुन: खड़ी हो सकती है। चूंकि कांग्रेस को  पहले से मृत घोषित कर चुकी गोदी मीडिया से मदद की कोई उम्मीद नहीं है इसलिए जरूरी है जन आन्दोलन का रास्ता पकड़ा जाय।

Solutions- Change  False Narratives


गली-गली और गांव-गांव में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को सक्रिय होना होगा। लोगों में कांग्रेस के प्रति बीजेपी और गोदी मीडिया द्वारा बनाये गए गलत अफसाने (narrative) को बदलना होगा। 


जनता को बतलाना होगा देश को आजादी दिलाने वाली पार्टी से अधिक राष्ट्रवादी कोई नहीं हो सकता। कम से कम वो पार्टी तो कतई नहीं जिसने देश की स्वतंत्रता आन्दोलन में अंग्रेजों का साथ दिया था।


जनता के बीच निरंतर रह कर समझाना होगा कि देश की असल समस्या ना तो मुसलमान हैं ना ही पाकिस्तान। बल्कि  मंहगाई, बेकारी, कृषि और व्यापार का संकट असल समस्यायें हैं इनका समाधान कांग्रेस ही दे सकती है वो पार्टी नहीं जो 24 घंटे चुनावी मोड में ही रहती है और जिनका नेता विदेश जाकर भी चुनावी भाषण देता है। 


यह भी बतलाना होगा जिस अभूतपूर्व लोकप्रिय व्यक्ति को आप हर समस्या का समाधान समझ रहे हैं उसकी नीतियों ने ही आपके लिये बढ़ती बेकारी, मंहगाई और भूख का अभूतपूर्व संकट पैदा कर दिया है।


जनता को ये भी बतलाना होगा कि "कश्मीर फाईल्स" हो   या संभावित "दिल्ली फाईल्स" या "गुजरात फाईल्स" ये भारत की असल तसवीर नहीं है बल्कि नासूर हैं, घाव हैं। हम किसी नासूर को पूरा शरीर नहीं मान सकते और फिर, इसका  इलाज किया जाता है उस पर नमक तो नहीं छिड़का जाता! 


इसी तरह किसी "डीएनए"  द्वारा भारत का डीएनए बदलने का प्रयास  हो रहा है जिनसे सावधान रहने की जरूरत है। हिजाब, अजान , लाउडस्पीकर,  हलाल या झटका,  देश को वास्तविक मुद्दे  से भटका रहा है।


धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता से लटपट(मिक्स, ओतप्रोत) भारत जैसे देश को प्रेम और भाईचारे की जरूरत है किसी तरह के सांप्रदायिक खटपट की नहीं।


इस देश का भला "ईश्वर अल्लाह तेरो नाम " के भजन से हो सकता है किसी पवित्र धार्मिक शब्द को युध्द घोष बना देने से नहीं।भारत जैसा खूबसूरत देश गांधी के विचारों से बनते हैं  जबकि  द्विराष्ट्र का सिध्दांत देने वाले के विचारों से देश बनते नहीं, टूटते  हैं।


कांग्रेस को जनता को उनका वाजिब हक याद दिलाना होगा। बतलाना होगा कि उनके तन की भूख चंद किलो के अनाज की भिक्षा और मन की भूख हिन्दु-मुस्लिम डिवाइड की शिक्षा से पूरी नहीं की जा सकती है। 


जनता को रोटी, कपड़ा, मकान, दुकान, शिक्षा और रोजगार और अमन चैन की जिंदगी  सब चाहिए। उसे दंगे की न तो जरूरत है और न ही भिखमंगे बने रहने की इच्छा।


organizational and structural changes needed


कहना आसान है पर बुरी तरह गढ़ दी गई  गलत अफसाने को बदलना एक मुश्किल काम है। मुश्किल तो है पर नामुमकिन भी नहीं। सिर्फ कार्यकर्ताओं में नवीन उत्साह और जोश भरने और  Idea of India के प्रति विश्वास जगाने और उसकी  रक्षा के लिये अग्रसर करने की जरूरत है।


इसके लिये कांग्रेस में ऊपर से  लेकर नीचे तक सगठनात्मक परिवर्तन करने होगें, नये सदस्यों का विस्तार करना होगा, जनाधार वाले नेताओं को आगे लाना होगा , चाटुकारों और बागी नेताओं की छुट्टी करनी होगी। नेतृत्व को निरन्तर चौकस और फोकस रह सख्त व त्वरित फैसले लेने होगें। 


कांग्रेस जो कि सदैव से एक आन्दोलनकारी पार्टी रही है उसे जनता से सरोकार रखने वाले हर मुद्दे पर सड़क पर उतरना होगा। नूतन कार्यक्रम बनाने होंगे और निरंतर सक्रिय रहना पडे़गा।


चुनावी रणनीति चतुराई और समझदारी से बनानी होगी। जहां जरूरत हो उदारता के साथ गठबंधन करने होंगे। आज NDA से अधिकांश दल निकल चुके हैं। ये सभी दल बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति से देश को निकालना चाहते हैं। कांग्रेस के लिए ये अवसर है कि उन्हें अपने साथ जोड़ें।


साथ ही देश में  EVM  की विश्वसनीयता को लेकर उठने वाले सवालों को सभी विपक्षी दलों के साथ मिलकर समाधान कर लेना होगा क्योंकि यदि गड़बड़ी इसमें है तो सारी राजनीतिक रणनीति धरी की धरी रह जायेगी।

Actions  on ground


पांच राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस पार्टी की गतिविधियों से  लग रहा है कि वो  समाधान की दिशा में बढ़ रही है। कई राज्यों के अध्यक्ष को बदला गया है और कई में बदले जाने हैं। पंजाब के जाखड़ और केरल के वी के थामस जैसे बड़े पर बागी तेवर वाले नेताओं पर कार्रवाई की है।डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग कर 2022 में 2 करोड़ 6 लाख नये सदस्यों को कांग्रेस से जोड़ा गया है।


पार्टी के नीचे के स्तर पर संगठनात्मक चुनाव करीब-करीब समाप्ति पर हैं। अगस्त में नये राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव भी हो जाने हैं उसके बाद नई राष्ट्रीय कार्यकरणी का गठन भी हो जायेगा। 2024 के आम चुनाव को लेकर अभी से एक Empowered Action Group - 2024 का गठन किया जा रहा है। 


13 मई 2022 राजस्थान में आहुत चिंतन शिविर से भी कुछ नवीन होने की आशा है जो कांग्रेस में नई उर्जा का संचार कर सकती है। ऐसे में आशा की जा सकती है नये कलेवर और तेवर के साथ कांग्रेस राजनीतिक चुनौती का सामना करने के लिये शीघ्र तैयार मिलेगी।

 

Hurdle and Hope


कांग्रेस पार्टी के लिये एक बड़ी बाधा इस रूप में है कि देश में गोदी मीडिया, सोशल मीडिया, यूट्यूब और WhatsApp यूनीवर्सिटी से हिन्दु-मुस्लिम डिवाइड का ओवरडोज देकर कट्टरपंथी भक्तो का एक बड़ा समूह तैयार किया जा चुका है जो अपनी सारी परेशानियों को भूल सिर्फ इस बात से खुश रहता है कि मुसलमानों को दबा कर रखा जा रहा है। अन्धेरे में रखे गए इन लोगों को सच्चाई की रोशनी नहीं दिखती।



क्योंकि उन्हें 24 घंटे यही बतलाया जा रहा है कि देश की सभी समस्याओं की जड़ में कांग्रेस और नेहरू हैं। जबकि उनके नेता के नेतृत्व में देश आगे बढ़  विश्व गुरु बन बैठा है।  वे इस गफलत में हैं कि रूस , अमेरिका, चीन जैसी महाशक्तियां सब इनके कथित कालजयी नेता के इशारे पर ही चलती है।


इतना ही नहीं सबसे हास्यास्पद ये है कि देश की जनता के सामने आने वाली हर परेशानी चाहे मंहगाई ,बेकारी या फिर बिजली संकट हों इनमें भी इन्हें सरकार की नाकामी की बजाय देशभक्ति दिखती है और इनसे इनका कथित राष्ट्रवाद और मजबूत होने लगता है ।



ऐसे में दुनिया के सबसे बड़ी साम्राज्यवादी  ताकत के खिलाफ देश को आजादी दिला,  देश में एक सेकुलर लोकतंत्र की स्थापना करने वाली कांग्रेस पार्टी के समक्ष चुनौती नये प्रकार की है। 


अब उसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के बारे में मीडिया द्वारा बुने अवधारणात्मक ( perceptual) मकड़जाल से लोगों के मस्तिष्क को आजाद कर देश के लोकतंत्र और सेकुलरिज्म की रक्षा करनी है।


चुनौती कठिन है पर गनीमत है कि गत 8 वर्षों के निरन्तर प्रयास के बावजूद देश में अंधभक्तों की संख्या बहुसंख्यक नहीं हुई है और जबतक ऐसा नहीं हुआ है तब तक कांग्रेस और  Idea of India  के लिये उम्मीद तो बचती ही है।

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