पुरानी कहावत है कि सब दिन होत न एक समान। ऐसा लगता है कि जनता को अच्छे दिन का स्वप्न दिखा सत्ता हासिल करने वाली सरकार के बुरे दिन सांसद में श्रीमती जया बच्चन के श्राप से पहले आ चले हैं।


बंगाल चुनाव और कोरोना की दूसरी लहर में बुरी तरह से मात खाने वाली सरकार को जहां किसानों से पंगा ले मुंह की खानी पड़ी है वहीं दूसरी तरफ  पेगासस जासूसी कांड पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से सरकार पर जबरदस्त झटके लगने की आशंका भी बलवती हो चली है। इसकी गंभीरता का अंदाज़ा गोदी मीडिया के तिलिस्म में उलझी जनता को भले न हो पर सरकार को है। हादसें हो रहें हैं और आत्माऐं दिवंगत हो रही हैं। 


27अक्तूबर 2021 पेगासस जासूसी कांड पर  सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इसकी जांच अपनी निगरानी में कराने का निर्णय लिया है। ऐसा कर सुप्रीम कोर्ट ने विदेशों में भारत की और देश में खुद की गिरती छवि को बचाने की कोशिश की है। 


यह फैसला ऐतिहासिक है क्योंकि यह सत्ता की अधिनायकवादी कारगुजारियों पर उस संवैधानिक संस्था(सुप्रीम कोर्ट) का जिस पर मौलिक अधिकारों की रक्षा की अंतिम जिम्मेदारी है  प्रजातांत्रिक हस्तक्षेप है।

 

यह " मोदी है तो मुमकिन है" की बहुप्रचारित फासीवादी अवधारणा को खंडित करता है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में निजता के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करना मुमकिन नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा: "हम सूचना क्रांति के युग में रहते हैं, जहां व्यक्तियों के पूरे जीवन को क्लाउड या डिजिटल डोजियर में संग्रहीत किया जाता है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि टेक्नोलॉजी  लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक उपयोगी उपकरण है, लेकिन उसी समय, इसका उपयोग किसी व्यक्ति के उस पवित्र निजी स्थान को भंग करने के लिए भी किया जा सकता है।" इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। 


उल्लेखनीय है कि भारत में संचार माध्यमों पर निगरानी मुख्य रूप से दो एक्ट द्वारा होती है- एक Telegraph Act 1885 और दूसरा Information and Technology Act 2000। इन दोनों ही एक्ट ने निगरानी के लिए सरकार पर जो सीमाऐं लगा रखे हैं पेगासस सॉफ्टवेयर अपनी प्रकृति से ही उन सीमाओं का उल्लंघन कर जाता है।


भारतीय कानून विशेष परिस्थिति में विशेष लोगों( आतंकवादी) की सिर्फ आदान-प्रदान की गई सूचना की निगरानी का अधिकार देता है न कि फोन में घुसकर उसे हथियार बना उसके निजी जीवन के  समस्त क्रियाकलापों को रिकॉर्ड करने या उसे परिवर्तित कर देने का। 


पेगासस द्वारा यही किया गया है। कई कानूनविदों के अनुसार भारतीय सन्दर्भ में पेगासस सॉफ्टवेयर प्रकृतित: अवैध है आतंकवादियों के खिलाफ उपयोग हुआ है या सरकार के विरोधियों पर ये सवाल तो बाद में आता है। 


ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के लिए मशहूर रिटायर्ड जस्टिस रवीन्द्रन के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच कमिटी की नियुक्ति कर दी गई है। पू्र्व  IPS अधिकारी श्री आलोक जोशी और डा० संदीप ओबेरॉय जो अंतर्राष्ट्रीय संगठन के Electro-Technical Commission के अध्यक्ष हैं, इसके अन्य सदस्य हैं। 


इस जांच कमिटी को सहयोग के लिए एक तीन सदस्यीय तकनीक समिति भी सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किया है। डा: नवीन कुमार, डा:प्रभाहरन पी और डा: अश्विन  अनिल गुमाश्ते (Professor, IIT, Mumbai) इसके सदस्य हैं। जांच समिति को अपनी रिपोर्ट देने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया गया है। 


पेगासस जासूसी कांड की जांच में कई बाधाएं है । इस जांच में इजरायल हो या भारत दोनों ही जांच में नानुकूर  वाली सरकारों से  सहयोग मिलने की संभावना कम ही है। पेगासस बनाने वाली कंपनी NSO भी कुछ भी खास बताने को तैयार नहीं है।


 सबका हित इस कांड की लीपापोती करने में ही निहित है। इसके अतिरिक्त समस्या इस रूप में भी है कि पेगासस सॉफ्टवेयर  फोन से खुद को इस तरह गायब कर लेता है जिसे फारेन्सिक जांच में ये पता करना मुश्किल हो जाता है कि ये कभी उस फोन में था भी या नहीं।


इन बाधाओं के बावजूद  सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त यह निपुण समिति पेगासस कांड का रहस्योद्घाटन करने में सफल होगी ऐसी आशा की जा सकती है। क्योंकि इसकी शक्तियों का स्रोत  स्वयं सुप्रीम कोर्ट होने के कारण  सरकार से जरूरी जानकारी लेने में इसे सफलता मिलनी चाहिए।


इसके अलावा यह समिति जरूरत पड़ने पर उन अन्तर्राष्ट्रीय तकनीक लैबों( सिटिजन लैब, एमनेस्टी) से भी मदद ले सकती है जिसने इस कांड का सर्वप्रथम पर्दाफ़ाश किया है। दुनिया के अन्य देशों में चल रही जांच से भी मदद ली जा सकती है।


अब तो सबसे सुरक्षित फोन बनाने वाली कंपनी Apple  ने भी मान लिया है कि पेगासस का इस्तेमाल उसके फोन में किया गया है और इसके लिये उसने स्वयं जांच भी शुरू कर दी है। मदद यहाँ से भी मिल सकती है। 


आज की तारीख में भी पेगासस को लेकर भारत में नित नये खुलासें हो रहे हैं।17 दिसम्बर 2021 के वाशिंगटन पोस्ट में खबर छपा है कि भीमा कोरेगांव केस में बंद  सरकार के आलोचक एक्टिविस्ट रोना विल्सन  के फोन में भी पेगासस का उपयोग किया गया था।


 ऐसे हालात में भारतीय प्रजातंत्र पर इस पेगाससी हमले पर सुप्रीम कोर्ट की जांच क्या रहस्योंदघाटन करती है यह जरूरी तो है ही पर उससे भी अधिक प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिए उठने वाली हर आवाज को राष्ट्रवाद के लिए खतरा मानने वाली सरकार की प्रतिक्रिया इस पर क्या होती है वो  महत्वपूर्ण है। 

अंत में- 

जोर का झटका , हाय जोरों से लगा,लगा। 

लाखों दुखों की होती है, यह वजह, वजह।। 

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