Farmers' victory! किसानों की जीत!


खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।




farmer's victory



आखिरकार किसानों के खिलाफ तीन कृषि कानूनों का प्रधानमंत्री की 19 नवम्बर 2021 को माफी मांगने और कानून वापसी की घोषणा और 29 नवम्बर 2021 को संसद द्वारा वापसी के बिल पास करने के साथ फिलहाल अंत हो गया है। इस तरह बिन चर्चा के बने कानून 700 किसानों का जान ले बिन चर्चा  के समाप्त हो गए। कानून का भले अंत हुआ है किसानों का आन्दोलन का नहीं। 


यह अपने मूलभूत मांग MSP और अन्य मांगो के साथ जारी है। फिर भी गांधी को गालियाँ देने वाले कुछ भद्र(?) लोगों  के दौर में गांधीवादी सत्याग्रह की यह कामयाबी भी दिल छूने वाली है। शक्तिशाली अहिंसा के सामने कमजोर अहंकार टिक नहीं सका।  सत्य जीता, झूठ हारा "सुन चंपा सुन तारा। "


जनता द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र  बारंबार मिलने के बावजूद परिवारवाद को लोकतंत्र के लिए खतरा बताने वाले ,असली खतरे, अधिनायकवाद को यदि माफी भी मांगनी पड़ती है तो अंदाज-ए-बयान  माफी मांगने की बजाय माफी देने जैसा होता है।किसानों की भलाई के लिए लाये गए कानूनों को कुछ लोगों को दिये की रोशनी जैसा यह सत्य समझा नहीं पाया ,लगता है मेरी तपस्या में कुछ कमी रह गई इसलिए माफी मांगता हूँ। तपस्या में कमी के लिए माफी! कैसी तपस्या?  किसने और कब की? बंगाल में चुनाव लड़ रहे थे वो तपस्या थी?  ऐसे मांगी जाती है माफी! 


हकीकत-ए-माफी कुछ इस तरह बयां होती तो सत्य के करीब होती-

" हे किसान, हे अन्नदाता, कॉरपोरेट के हित में लाये गए तीन कानूनों का सत्य आपने समझ लिया और आन्दोलनरत हो तपस्या में लीन हो गए।आपने कड़कड़ाती ठंड, झुलसाती गर्मी, बरसते बादल और डराती कोरोना सब सहा। आपकी तपस्या भंग करने की कई कोशिशें की गईं। 


चेले और मीडिया के चमचों ने गुंडे, खालिस्तानी, नक्सली, देशद्रोही, आतंकवादी जैसी गालियां दी और खुद मैंने  आपको आन्दोलनजीवि कहा। लाठियां चलीं, सर फोड़े, देशद्रोह के मुकदमे लगे, आपके रास्ते कीलें ठुके, मेरे साथ फोटो खिंचवाने वालों ने लाल किला में उपद्रव कर आपको बदनाम किया और मेरे मंत्रि के पुत्र ने आप पर गाड़ी भी चढाई। फिर भी आपकी तपस्या भंग नहीं हुई।


मध्यावधि उपचुनाव में मिली हार और आपकी तपस्या से यूपी सहित पांच राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों के संभावित परिणाम, "दिये की रोशनी जैसा सत्य" मुझे डरा रहा है। 


इसलिये हे सत्ता प्रदाता, मैं ये तीन कानूनों को वापिस लेता हूँ और माफी मांगता हूँ कि इन तमाम प्रयासों के बाद भी आपको झुका नहीं सका।अगर आपने मौका दिया तो मैं अपने इस प्रयास में कोई कसर आगे नहीं छोड़ूंगा। "


वास्तव में मजबूत सत्ता का भ्रम किसानों ने तोड़ दिया है। अब इस हार को कानून को अच्छा और वापस लेने को नेतृत्व की उदारता बता कर छुपाने की कोशिश हो रही हैं।  कानून वापसी पर संसद में बहस से बचने का मतलब ही सरकार को फजीहत से बचाना और विपक्ष को लाभ लेने से रोकना है। बहस में सरकार के लिये अव्वल ये साबित करना मुश्किल होता कि कानून अच्छे थे और ऐसा कर भी लेती तो फिर वापस क्यों लिए, ये बतलाना और मुश्किल था। क्योंकि संसद में मोनोलॉग  से तो काम चलता नहीं। 


आन्दोलनरत किसानों की MSP(Minimum support price)  सहित शहीद किसानों को मुवावजा, फर्जी मुकदमे की वापसी आदि कोई मांगे ऐसी नहीं है जिसे पूरा नहीं किया जा सके। ये कहना गलत है कि  MSP से सरकार दिवालिया हो जायेगी। किसान सरकार को अपने उत्पाद खरीदने के लिए बाध्य ही नहीं कर रहा है तो दिवालिया होने का प्रश्न कहां है? किसान केवल MSP को कानूनी अधिकार बनाने की बात कर रहा है। खरीदेगा तो वही जो अभी तक खरीदता रहा है सिर्फ किसानों को इससे सही दाम मिलने की संभावना बढ़ जायेगी। 


सरकार को किसानों की सभी मांगों पर विचार करना चाहिए और वो करेगी ही। क्योंकि ऐसा नहीं करने से कानूनों की वापसी जिस वास्तविक उद्देश्य से की गई है वो ही असफल हो जायेगा। क्योंकि दिये की रोशनी से सत्ता की लंका में आग लगने का डर तो है ही।  बस, इसे इस ढ़ंग से किया जायेगा कि ये किसानों की जीत और सत्ता की हार नहीं लगे बल्कि सरकार की उपलब्धि में गिना जाए। माथापच्ची सिर्फ इसी बात पर हो रही है, इंतजार करें। 

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Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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