भीख में आजादी किसी व्यक्ति विशेष को जेल से भले मिल सकती है दुनिया में किसी देश को नहीं मिली है। ये आजादी मिलती है संघर्ष, त्याग और बलिदान से। 15 अगस्त 1947 में भारत ने भी आजादी एक लम्बी लड़ाई लड़  , बलिदान और शहादत देकर हासिल की थी । ऐसा नहीं होता तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री  विंस्टन चर्चिल को यह नहीं कहना पड़ता "जब दुनिया में हम हर कहीं जीत रहे हैं, ऐसे वक्त में हम एक कमबख़्त बुड्ढे ( महात्मा गांधी) के सामने कैसे झुक सकते हैं, जो हमेशा हमारा दुश्मन रहा है। "


भारत को आजादी भीख में मिलने की बात करना एक शानदार अभिनेत्री की बकवास से अधिक कुछ नहीं है। यह बुध्दि का मस्तिष्क से आजादी का सबूत है। पद्मश्री और राष्ट्रीय सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति की बुध्दि का अपहरण हो जाना सुरक्षा ऐजेंसियों के लिये भी शर्म की बात है। फौरी कारवाई होनी चाहिए। महात्मा गांधी और उनकी अहिंसा की तकनीक को कमजोरी  बता उनका मजाक बनाना मनोचिकित्सक की जरूरत भी बतलाता है। उन्हें भी सक्रिय होना चाहिए आखिर भारत की इस अमूल्य बला की धरोहर को बचाना सबकी जिम्मेवारी है। शीघ्रता करें अन्यथा भारत के विश्व गुरु बनने का सारे प्रयासों का गुड़ , गोबर हो जायेगा। 




अहिंसा कायरता नहीं है बल्कि उच्चतम स्तर की वीरता है। अहिंसक वही हो सकते हैं जिसमें सर्वोच्च बलिदान देने का साहस हो। गांधी ने कहा था कायरता और हिंसा में से एक को चुनना हो तो हिंसा को चुनना उत्तम है। अहिंसा एक ऐसा नैतिक शस्त्र है जिसके द्वारा बिना हिंसक हुए स्वयं आघात सहते हुए विरोधी (थका कर या हृदय परिवर्तन कर) पर  विजयी हासिल की जाती है। अहिंसक आन्दोलन की तीव्रता भले ही हिंसक आन्दोलन से कम होती हो पर सफलता की संभावना इसी में अधिक होती है फिर चाहे 1947 की भारत की आज़ादी का आन्दोलन हो या 2021 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आन्दोलन। 



भारत की आजादी में अहिंसा, हिंसा और कायरता तीनों ने अपना योगदान दिया।गांधी के नेतृत्व में अहिंसा ने जन आंदोलन का रूप लिया तो  लाला हरदयाल, चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, बिस्मिल, आदि अनेक  क्रांतिकारियों ने हिंसा का सहारा ले कर अपनी जान दे देशवासियों में आत्मगौरव ,देशभक्ति और बलिदान की भावना को जन्म दिया।



उस वक्त देश का एक घड़ा ऐसा भी था जो इन दोनों से हीअलग था और वो अंग्रेजों का कृपापात्र बन उनके हित में divide and rule की पालिसी के तहत हिन्दु-मुस्लिम के बीच तनाव पैदा करता रहा था। न तो राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लिया, न तो लाठियां खाई, न तो जेल गए जबकि जान देने  की हिम्मत इनमें थी ही नहीं। इनकी बहादुरी हिन्दु-मुस्लिम दंगे कराने तक सीमित रही। देश की आज़ादी में ऐसे लोगों का रत्ती भर योगदान नहीं रहा पर हां देश को विभाजित कराने में इनका योगदान अप्रतिम रहा । 


भारत की आज़ादी दिलाने का एक गंभीर प्रयास  महात्मा गांधी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता कहने वाले सुभाषचंद्र बोस ने धुरी राष्ट्रों का सहयोग ले  Indian National Army  बना युद्ध के माध्यम से किया था। पर धुरी राष्ट्रों का द्वितीय विश्वयुद्ध में हार से यह प्रयास असफल हो गया। अतएव 1947 में भारत को आजादी मूलतः महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलने वाली दीर्घकालीन अहिंसक आन्दोलन से हासिल हुई थी और यही इस आजादी को और खूबसूरत बनाती है।


1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद से ही अंग्रेजों को यह अहसास हो गया था कि भारत की निर्भीक और जागृत हो चुकी जनता पर और अधिक दिनों तक शासन नहीं किया जा सकता है। इस आन्दोलन के बाद वायु सेना में हड़ताल, बिहार और दिल्ली में पुलिस की हड़ताल, डाक-तार कर्मचारियों की हड़ताल, स्कूल- कॉलेजों में विद्यार्थियों की हड़ताल फिर बम्बई में नाविक विद्रोह ने अंग्रेज़ी सरकार की नाक में दम कर  अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया। भारत के इस आन्दोलन की जीत से प्रेरणा पाकर चार महादेशों के 12 देशों में स्वतंत्रता आन्दोलन चले हैं और सफल भी हुए हैं। 


भारत की फिल्मी झांसी की रानी ने एक और  बकवास  इस खुलासे से किया कि भारत को असली आजादी 1947 में नहीं 2014 में मिली है। उन्होंने यह नहीं बतलाया की स्वतंत्रता के लिए उनके अनुसार आवश्यक यह हिंसक युद्ध किस मैदान पर लड़ा गया था? शहीदों के नाम भी नहीं बतलाया। स्व० हरेन पाण्डेय और स्व० जस्टिस लोया तो नहीं ही होंगे? 


बहुत हो गया! भारत की इस पद्मश्री को बचाना है तो सारा कुछ सुरक्षा ऐजेंसियों और मनोचिकित्सक पर छोड़ना ठीक नहीं होगा। हमें भी कुछ करना होगा। थाली बजायें अरे नहीं ! 

 प्रार्थना करते हैं-

 "ईश्वर अल्लाह तेरो नाम , 

  सबको अभी छोड़

 इसको सन्मति दे भगवान।। "

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