खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।
25 सितम्बर 2021 के UNO की महासभा में लगभग खाली पड़ी कुर्सियों के विचित्र नजारे के बीच बोले गए आत्ममुग्धकारी और गर्वित करने वाले ये शब्द "India is the mother of democracy" और "When India reform, world transform" भारतीयों के कानों में रस घोलते हैं। परन्तु 7 सालों से भारत में जो कुछ हो रहा है उसे देख यही कहा जा सकता है जुमले की कोई सीमा नहीं होती वे अन्तर्राष्ट्रीय भी हो सकते हैं। क्योंकि हकीकत में भारत सुधर(Reform) नहीं बदल(Transform) रहा है , सही मायने में बदल भी नहीं रहा अपितु बिगड़ रहा है ।
भारत की लोककल्याणकारी, धर्मनिरपेक्ष और प्रजातांत्रिक, मजबूत अर्थव्यवस्था विकसित करने वाले राज्य की छवि जो स्वतंत्र भारत ने अपने संविधान और अनुभव द्वारा गढ़ा था वो सब के सब इस बदलाव के शिकार हो रहे हैं। जाने-अनजाने भारत ,प्रजातांत्रिक ढ़ंग से ही बिना इमरजेंसी लगाये एक अधिनायकवादी तानाशाही के दौर मे पहुँचता जा रहा है।
नोटबंदी और जीएसटी से भारत की चरमराई अर्थव्यवस्था कोरोना संकट में गंभीर स्थिति में पहंच गई है। बेरोजगारी और मंहगाई चरमोत्कर्ष पर है। प्रति व्यक्ति आय में बंगलादेश जैसा अदना देश भी भारत से आगे निकल गया है। पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम पड़ोस के छोटे देशों से अधिक मँहगे हैं। बिहार में पेट्रोल व डीजल भरवाने (बोर्डर के पास वाले) लोग नेपाल जा रहे हैं।
हम मुफ्त गैस सिलेंडर और हर घर शौचालय का ढ़ोल बजाते रहे और हमारी अर्थ व्यवस्था का कुप्रबंधन 2021 के "वैश्विक भूख सूचकांक "(global hunger index) में 116 देशों में भारत को 101 वें स्थान पर पहुँचा गया है -नेपाल और पाकिस्तान से भी पीछे। 2014 में 55वें स्थान पर था।
बदलाव हो रहा है? है ना!
अब हालात ये हो गए हैं ये सरकार लोक कल्याणकारी सेवाओं यथा रेल और हवाई सेवा,बिजली, बैंक और जीवन बीमा आदि को ही बेचने पर आमादा हो गई है। इन सबके निजी हाथों में जाने के बाद सरकार की लोककल्याणकारी क्षमता का क्या होगा? बढ़ेगी या घटेगी!
भारत का समाज आपसी प्रेम ,भाईचारा, सौहार्द की सनातनी परम्परा के लिये दुनिया भर में सराहा जाता रहा है। *परन्तु सिर्फ पोशाक से आदमी को पहचानने की
Sasuki सदृश Sharingan दृष्टि रखने वाले के शासन काल में इस सनातनी परम्परा को तनातनी परम्परा में बदलने का निरन्तर प्रयास होता रहा है।
लव जिहाद, गौ रक्षा, मॉब लिंचिंग,गोदी मीडिया के हिन्दु-मुस्लिम डिबेट्स जैसे कार्यक्रमों और सरकार द्वारा चुनावी फायदे के लिये गैर जरूरी CAA, NPR, NRC जैसे कानूनों ने सौहार्द को बिगाड़ा है। खास समुदाय को दीमक बताने वाले पहले से केन्द्रीय मंत्री थे अब "गोली मारों ---लों" का नारा देने वाले पुरस्कृत कर प्रमोट कर दिए गए हैं। इन सबने देश की धर्मनिरपेक्षता की नीति पर प्रश्न चिन्ह लगा दी हैं
यही कारण है कि United States Commission On International Religious Freedom की 2020 की रिपोर्ट में भारत अब धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में "विशेष चिंता वाले देश" जिसमें उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान जैसे बदनाम राष्ट्र आते हैं उसी टायर 1 श्रेणी में आ चुका है!
बदलाव आ रहा है ? है ना!
*बिना इंटरनेट के इमेल भेजने की अद्वितीय तकनीकी सामर्थ्य वाले के शासन काल में भारत में प्रजातांत्रिक मूल्यों विशेषतया सिविल लिबर्टी को जबरदस्त आघात पहुँचा है। विरोधियों को साधने के लिए पेगासस तकनीक से जासूसी के आरोप तकनीक के प्रति इसी रूझान को दिखाता है।
सरकार के विरोध में बोलना, लिखना या आन्दोलनों में शामिल होना राष्ट्रद्रोह माना जाने लगा है। इस तरह के कई पत्रकार, बुध्दिजीवि, विद्यार्थी और आम व खास लोग देशद्रोह के आरोप में UAPA कानून के तहत जेल में बंद हैं। जो बचे हुए हैं वे किसी गलतफहमी में नहीं है वो कभी भी अन्दर जा सकते हैं।
सिविल लिबर्टी की सबसे बुरी हालत जम्मू और कश्मीर में हुई है। 5अगस्त 2019 को धारा 370 के हटाने के बाद सालों तक वहां जो हुआ उसने सिविल लिबर्टी की धज्जियां ही उड़ा दी। क्षेत्रिय नेता और पत्रकार गिरफ्तार कर लिए गए समस्त कश्मीर की जनता घरों में नजरबंद कर दी गई।
इन्टरनेट सेवा बंद कर दिया गया। मीडिया, नेता और आम लोगों का देश के अन्य भागों से आना -जाना रोक दिया गया। हजारों गिरफ्तारियां हुई। इनके खिलाफ Habeas corpus writ की हाईकोर्ट में बाढ़ सी आ गई और जो रिट 24 घंटे में सुनी जानी थी उसके बारे में जून 2020 की रिपोर्ट है कि इनमें से 99% पेन्डिग थे।
यह सब दो-चार दिनों के लिए नहीं तकरीबन साल से अधिक चला और अभी भी कई प्रतिबंध कमोबेश लागू हैं। आतंकवादियों को खत्म करने के नाम पर जनता की स्वतंत्रता लम्बी अवधि तक खत्म रही। वहां से हालात की पूरी खबर अभी भी नहीं आ रही है जो भी खबर है वो ये कि आतंकवाद खत्म तो नहीं हुआ है और लोग पलायन कर रहे हैं।
इन सब बातों का परिणाम ये हुआ कि The Economist Intelligence Unit नामक अन्तराष्ट्रीय संस्था के Democracy Index 2014 में 27वें स्थान पर रहने वाला भारत 2020 में फिसल कर 53 वें स्थान पर आ गया है।
बदलाव आ रहा है? है ना!
*इशारों को अगर समझो राज का राज रहने दो!
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Bahut hi satik n logical discription.....aage ka ank jald post karen
जवाब देंहटाएंNicely elaborated...
जवाब देंहटाएंRegards
Bunty
Sanatani se Tanatani....gazab ka vyangya..super
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