Danger on Chief Minister's chair.मुख्यमंत्री की कुर्सी पर खतरा!

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है।





Danger on Chief Minister"s chair



लल्ला लल्ला लोरी, दूध की कटोरी

दूध में बताशा, मुन्नी करे तमाशा।। 

मुख्यमंत्री का पद ना हो बल्कि बताशे वाली दूध की  ऐसी ही कटोरी  हो गई है जिसे पाने के लिये नेतागण मुन्नी की तरह ललायित रहते हैं। पार्टी आलाकमान की स्थिति उस मम्मी की की तरह होती है जिसे उस एक कटोरी से सभी मुन्नियों को संभालना है। ऐसे में मम्मी एक के हाथ से कटोरी ले दूसरे के हाथ में जब देती है या देना चाहती है तो इसके कई परिणाम होते हैं। 


यदि मुन्नी कमजोर और मम्मी की वफादार हो तो फौरन कटोरी दे देती है। कटोरी नहीं मिलने पर रो गाकर चुप हो जाती है। उत्तराखंड और गुजरात समझ रहे हैं तो समझते रहिये। यदि मुन्नी उतनी वफादार ना हो पर कमजोर हो गई हो तो थोड़ी आनाकानी के बाद वो भी कटोरी दे देती है । कर्नाटक की बात तो नहीं  हो रही? 


कोई मुन्नी इतनी जबरदस्त होती है कि कटोरी देने से साफ इंकार कर देती है फलतः मम्मी को बाकि मुन्नियों को ही समझाना पड़ता है। अगर यूपी समझ रहे हैं तो UAPA से डरना सीखिए! अंत में जब दो मुन्नियों में कटोरी के लिए झगड़ा हो जाता है और मम्मी कटोरी किसी तीसरी मुन्नी को दे देती है तब पहली और दूसरी दोनों मुन्नियां बारी-बारी  से तमाशा करने लगती है। बात पंजाब की समझ रहे हैं तो आपकी समझदारी पर किसे शक है! 



आजकल देश के इन मुन्नियों (मुख्यमंत्रियों) पर शामत आई हुई है कई हटा दिए गए हैं और बाकि हटाने की आशंका में जी रहे हैं। अभी तक समयपूर्व मुख्यमंत्री बदलने का ट्रेंड कांग्रेस पार्टी में हुआ करता था जिसे अब तथाकथित "Party with difference " बीजेपी ने पूरी तरह आत्मसात कर लिया है।



केन्द्र में पार्टी पूर्ण बहुमत से सत्ता में हो तो राज्यों में अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री में बदलाव बिना किसी हीलहवाले (आसानी से) के हो जाती है। यही कारण है कि कर्नाटक, उत्तराखंड और गुजरात में बीजेपी ने आसानी से यह कार्य कर लिया वहीं पंजाब में कांग्रेस ने ऐसा किया तो हंगामा हो गया है। यदि अमरिंदर सिंह पंजाब के बुजुर्ग और अनुभवी नेता रहे हैं तो क्या येदियुरप्पा कर्नाटक के नौजवान और नौसिखिया नेता थे? अमरिंदर सिंह कांग्रेस में है ं इसलिए  बोल पा रहे हैं कि अपमान हुआ है पर येदियुरप्पा और रूपाणी बीजेपी में है वहां श श श---मना है! क्या इनका सम्मान हुआ है! 


कांग्रेस पार्टी केन्द्र की सत्ता से 7 सालों से बाहर है जाहिर है कि कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व राज्यों की राजनीति में उस तरह से अपनी मनमर्जी नहीं चला सकता जैसे बीजेपी। गुटबाजी और असंतुष्ट खेमे, विरोध के सुर , कमजोर नेतृत्व आदि बातें कांग्रेस में अधिक उठने भी स्वभाविक हैं। फिर भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री बीजेपी के मुख्यमंत्रियों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं क्योंकि ये आलाकमान की मनमर्जी से नहीं हटाये जा सकते। इन्हें तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक उन्हें अपने बहुसंख्यक विधायकों का समर्थन प्राप्त हो।एन्टी इंकेबसी  यहां गौण मुद्दा है। 



यही कारण था कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ को कांग्रेस आलाकमान ने नहीं हटाया था (ये काम बीजेपी आलाकमान ने किया)। राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल तब तक सुरक्षित हैं जब तक उन्हें अपनी पार्टी के अधिकांश विधायकों का समर्थन प्राप्त है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी कुर्सी तब छोड़नी पड़ी जब अधिकांश विधायक उनके खिलाफ हो गए। आप मान सकते हैं की हरियाणा के खट्टर, एमपी के चौहान और हिमाचल के ठाकुर की कुर्सी छत्तीसगढ़ के बघेल और राजस्थान के गहलोत की तुलना में अधिक डेंजर जोन में है। 




बीजेपी द्वारा अपने मुख्यमंत्रियों के बदले जाने का मुख्य कारण इन राज्यों में आसन्न  विधानसभा चुनाव  और वहां चल रही सत्ता विरोधी लहर है जो कोरोना आपदा झेलने में सरकारी विफलता के चलते कई राज्यों में तूफान का रूप ले चुकी है। यही कारण है कि उत्तराखंड में दो महीने में दो बार मुख्यमंत्री बदले गए वहीं गुजरात में सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं पूरी की पूरी मंत्रिमंडल ही बदल दी गई है।इन राज्यों में मुख्य मंत्री के विरुद्ध किसी असंतुष्ट गुट का कोई उल्लेखनीय दवाब भी नहीं था। 


मुख्यमंत्रियों के बदलने के पीछे जातिगत राजनीति हित को साधना भी रहा है। कर्नाटक में येदियुरप्पा को हटा बोम्मई को कमान देकर लिंगायत समर्थन को कायम रखने की कोशिश की गई है वही गुजरात में रुपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को को मुख्यमंत्री बना ताकतवर पटेल समुदाय को लुभाने का प्रयास किया गया है। यूपी में भी जहां मुख्यमंत्री को बदला नहीं जा सका वहां के केबिनेट में ब्राह्मण और दलित जाति को प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है। इसी तर्ज पर कांग्रेस पार्टी ने भी पंजाब में दलित सिख चरणजीत सिंह चानी को मुख्यमंत्री बना छक्का मारने की कोशिश की है पर सिध्दू ने इस्तीफा देकर फिलहाल पार्टी को  हक्का-बक्का कर दिया है। पार्टी आलाकमानों को ऐसा लगता  है कि ऐसा कर इन राज्यों के आसन्न चुनाव में सत्ता विरोधी लहर को थामा जा सकता है। 



मुख्य मंत्रियों के बदलाव द्वारा बीजेपी जनता को ये मेसेज भी देना चाहती है कि कोरोना आपदा में हुई परेशानी में श्री नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार का कोई हाथ नहीं था बल्कि जिनका था उन्हें हटा दिया गया है। जबकि वास्तविकता ये है कि कई अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया और उनके सर्वे में कोरोना आपदा का सामना करने में दुनिया के सबसे अकर्मण्य प्रशासक के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी की पहचान स्थापित हो चुकी है। 


कुछ ने तो भारत में कोरोना की दूसरी लहर और उसकी विभीषिका के लिए श्री नरेन्द्र मोदी को ही सीधे तौर पर जिम्मेवार माना है। "दीदी!ओ दीदी।" "ये लाखों की भीड़!" बीजेपी के लिए अच्छी बात ये है यहाँ की जनता का पाला गोदी मीडिया से पड़ता है, स्वतंत्र मीडिया से नहीं। इसलिए जय हो! 

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Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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