Taliban Impact on India's domestic politics



अफगानिस्तान पर तालीबान के कब्जे से जहां दुनियाभर के आतंकवादी संगठनों का मनोबल बढ़ा है वहीं भारत में गोदी मीडिया और उस राजनीतिक पार्टी  का भी मनोबल बढ़ा है जो बिना "हिन्दु-मुस्लिम" मुद्दे के चुनाव लड़ने में असहज महसूस करती है। भारत में निकट भविष्य में यूपी सहित कई राज्यों की विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में तालीबान के उदय से मानों इनको बिन मांगे मुराद मिल गई है।


अफगानिस्तान के इस घटनाक्रम में भी फेवरेट टाॅपिक "हिन्दु- मुस्लिम" ढ़ूंढा जा रहा है। गोदी मीडिया की माने तो तालीबान के अफगानिस्तान पर कब्जे से ही भारत की महानता उजागर हुई है। पर बाबू मीडिया, भारत पहले से ही महान था और महान रहेगा तथा भारतीय समाज सहिष्णु है और यहां का मुस्लिम धर्म भी उदारवादी।



मीडिया टीआरपी में पाकिस्तान पिछड़ता जा रहा है और तालीबानी अफगानिस्तान आगे निकल चुका है। ये पाकिस्तान के लिए चिंता की बात हो सकती है आखिर भारतीय चुनाव में उसकी प्रासंगिकता कम क्यों हो रही है ? अब मियां मुशर्रफ का क्या होगा? पाकिस्तान भेजे जाने वाले अब अफगानिस्तान भेज दिए जायेंगे। इस बात से पाकिस्तान का पर्यटन उद्योग भी सदमे में है।



भारत की सरकार भी तालीबानी नहीं है क्योंकि यहां संविधान भी है और सरकार भी जो कानून और व्यवस्था से चलती है। यहां  ईडी, सीबीआई, इनकमटैक्स है और फिर "यू-ए-पी-ए व कोर्ट से माफ" की  व्यवस्था है जबकि तालीबान के पास अपने विरोधियों के लिए क्या है?  ले देकर सिर्फ "लि-ये-दि-ये  साफ" का ही रास्ता है। अतएव तालीबान सरकार की भारत की मौजूदा सरकार से तुलना करना निंदनीय है।



केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अफगानिस्तान से भाग कर आये हिन्दु और सिख शरणार्थी के सन्दर्भ में भारत के नये CAA कानून की सार्थकता सिद्ध करने की कोशिश की है। जबकि इस कानून का कोई लाभ इन शरणार्थियों को नहीं मिलने वाला है । यह कानून बिना किसी दस्तावेज के और 2014 से पहले आने वालों पर लागू होता। वीजा लेकर 2021 में आने वालों पर नहीं। इन्हे नागरिकता मिलेगी तो पुराने कानून के आधार पर ही। आश्चर्य है संविधान की शपथ लेने वाले भी झूठ कितनी अच्छी तरह बोल लेते हैं।


इस कानून  से भारत की छवि का नुक्सान अवश्य हुआ है। क्योंकि जहां अन्य आधुनिक व प्रगतिशील देश अफगानिस्तान से आनेवाले हर भयभीत व आशंकित लोगों को ले जा रहे थे वहीं भारत उसमें भी भेदभाव कर हिन्दु और सिख छांट रहा था। इस CAA कानून का ही  प्रभाव था कि अफगानिस्तान से इलाज के लिए भारत आनेवाली महिला मुस्लिम सांसद को एयरपोर्ट से  ही वापिस भेज दिया गया। इन बातों से भारत के वसुधैव कुटुंबकम् की छवि पर आघात लगा है।


कटनी, मध्यप्रदेश के बीजेपी के जिलाध्यक्ष रामरतन पायल से  पूछा गया कि पेट्रोल और डीजल के दाम इतने बढ़ गये हैं इस पर आपका क्या कहना है? उनका फौरन जवाब आया जिनको इससे दिक्कत है वो अफगानिस्तान चलें जायें। बिहार बीजेपी के विधायक हरिभूषण ठाकुर का कहना है जिन्हें भारत में भय महसूस होता है वे अफगानिस्तान चलें जायें। केन्द्रीय मंत्री शोभा करनडलाजे  ने महिला पर अत्याचार पर प्रश्न उठाने पर भी अफगानिस्तान जाने की सलाह दे डाली। ऐसा लगता है सरकार से पूछे जाने हर  सवाल का ट्रेडमार्क जवाब ढ़ूंढ लिया गया है।



मतलब जब तक भारत की बदहाली वैचारिक, राजनैतिक और आर्थिक स्तर पर अफगानिस्तान के बराबर की नहीं हो जाय भारत की जनता को खुश और खामोश रह सरकार से सवाल नहीं सिर्फ गुणगान करते रहने चाहिए। नेताजी ये भी बतला देते की भारत ये बराबरी इसी कार्यकाल में हासिल कर लेगा कि एक और मौका चाहिए।


अफगानिस्तान वो जायें जो तालीबान सरकार का समर्थन करते हैं। अफगानिस्तान वो लोग जायें जो बर्बरता में भले कम हों पर कट्टरता में तालीबानी सोच से सानी रखते हैं। वे जायें जो महिलाओं को पुरूषों से कमतर समझते हैं और उनकी आजादी जिन्हें नहीं सुहाती। वो जायें चाहे वे किसी धर्म के हों दूसरे धर्म से घृणा करते हैं ,उनसे भय खाते हैं , उन्हें देखते ही खून में रवानगी आ जाती है , भृकुटियां चढ़ने लगती हैं और अकेले में नहीं भीड़ के साथ रहने पर मिथ्या वीर रस का संचार होने लगता है। 


वे लोग जायें जो गोरक्षा के नाम पर मानव हत्या करते हैं, लाठी भांज कर जबरदस्ती नारे लगवा मिथ्या राष्ट्रवादी बनते हैं , वो लोग जायें जो रेपिस्ट के समर्थन में जुलूस निकालते हैं और लव-जिहाद के नाम पर और वेलेंटाइन डे में लठ्ठ् लेकर महिलाओं का अपमान करते हैं।  ऐसे लोगों के अफगानिस्तान जाने से भारत में अमन- चैन तो कायम होगा ही साथ ही इनका भी भला होगा।


तालीबान ऐसे लोगों को हाथों-हाथ लेगा आखिर हमराही जो ठहरे। मन ही मन ( कट्टर इस्लाम संगीत का विरोध करता है)  संगीत  के तराने बज उठेंगे-

 "आ मेरे हमजोली आ, 

खेलें आंख मिचौली आ। 

गलियों में चौव्वारों में बागों और बहारों में , हो"।


 इन्हें गले से लगायेंगे -

 "आ लग जा गले, फिर ये हसीन रात हो न हो"

   चाहे इस जन्म में फिर मुलाकात हो ना हो।"


अस्पष्ट सूत्रों से नहीं पता चला है कि तालीबान सरकार भारत में ऐसे लोगों में अफगानिस्तान टूरिज्म के प्रति उत्साह देखते हुए कुछ ऐसा विज्ञापन जारी करने वाली है -

" हूजूर भारत में हो किस फिराक में,

   कुछ दिन तो गुजारिये काबुल और हेरात में"


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