भारत द्वारा खरीदा गया फ़्रांसीसी लड़ाकू विमान जो अब तक 26 की संख्या में भारत आ भी चुके हैं  दुश्मनों के लिए मुसीबत जब बनेगा तब बनेगा  श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के लिए डील को लेकर शुरू से ही मुसीबत खड़ी करता रहा है। नई मुसीबत फ्रांसीसी खोजी समाचार वेबसाइट Mediapart  में राॅफेल विमान के सौदे में हुए कथित भ्रष्टाचार और पक्षपात के मामले की जांच के लिए फ्रांस में न्यायाधीश की नियुक्ति की खबर से हुई है। इस खबर के साथ ही इस सौदे में भ्रष्टाचार का शुरू से ही आरोप लगाने वाली  मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस पुनः मुखर हो  संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच की मांग करने लगी है। 



राॅफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप उसी वक्त से लगने लगे जब  2012 में हुई 126 विमानों के डील (जिसमें पहले 18 विमानों की आपूर्ति पूरी तरह से दसाॉल्ट एवियेशन द्वारा की जानी थी और शेष 108 विमानों का निर्माण दसॉल्ट से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के साथ  HAL द्वारा लाइसेंस के तहत किया जाना था)  को 15 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने रद्द कर पूरी तरह से फ्रांस में निर्मित 36 विमानों की नई डील की घोषणा की थी।


उल्लेखनीय है कि Dasalt Aviation के सीईओ ने 25 मार्च 2015 को इस घोषणा से महज 20 दिन पहले कहा था कि पुरानी डील  लगभग 95% पूरी हो चुकी है। विवाद, विमान की कीमत को लेकर भी हुआ जो कहा जाता है पहले लगभग 591करोड़ रूपये प्रति विमान था जो कि नई डील में लगभग 1600  करोड़ रुपये प्रति विमान हो गया। सबसे बड़ा मुद्दा आफसेट पार्टनर के रुप में HAL जैसे अनुभवी सरकारी कंपनी को हटा श्री अनिल अंबानी की एक निजी,अनुभवहीन और आनन-फानन में बनी Relience Defence Limited  को चयन करना बन गया।



सरकार द्वारा  सफाई में कहा गया कि सुरक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण तात्कालिक आवश्यकता नई डील का कारण बनी। इसी प्रकार कीमतों में वृद्धि को विमान के configuration में नई तकनीकी क्षमता को जोड़ना बतलाया वहीं अनिल अंबानी के चुनाव को Dassault Aviation का फैसला बतलाया।इन मुद्दों पर सरकार की सफाई  से असंतुष्ट विपक्ष लगातार जेपीसी द्वारा जांच की मांग करता रहा पर सरकार ठुकराती रही। इस डील को लेकर आरोप-प्रत्यारोप पर नित नये-नये खुलासे होते रहे। 



सबसे सनसनीखेज खुलासा ये था जब अक्टूबर 2018 में, मेडियापार्ट ने दावा किया कि उसे एक आंतरिक डसॉल्ट दस्तावेज़ मिला, जिसमें अंबानी की फर्म को "एक मुआवजा" कहा गया था, जो कि राफेल जेट ऑर्डर हासिल करने के लिए "अनिवार्य" था। इन परिस्थितियों में सिविल सोसायटी के तीन सदस्य श्री प्रशांत भूषण,श्री अरूण शौरी और श्री यशवंत सिन्हा सीबीआई के दरवाजे  पर इस डील की जांच की मांग लेकर पहुंच गए और फिर सुप्रीम कोर्ट भी ।



इसी दरम्यान देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका के पटल पर कुछ ऐसी घटनाएं घटी जो पहले कभी नहीं हुई थी। राॅफेल डील की जांच की मांग पर निर्णय लेने ही वाले ही थे तभी अजीबोगरीब ढंग से सीबीआई डायरेक्टर को मध्य रात्रि में पद से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में  पहली बार सीलबंद लिफाफे( राॅफेल मामला )में सरकार को अपना पक्ष रखने की अनुमति मिली जिसे दूसरे पक्ष से साझा नहीं किया जाना था। इसी बंद लिफाफे में सरकार द्वारा कैग और पब्लिक अकाउंट कमिटि से डील ओके हो जाने का झूठा हलफनामा दिया गया। पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर महिला कर्मचारी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगे। 



इस पृष्ठभूमि में 19 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में राॅफेल मामले पर केन्द्र सरकार को क्लीन चिट दे दिया। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई( जो अब राज्य सभा में बीजेपी के माननीय सदस्य  हो चुके हैं) ने  अपने जजमेंट में लिखा कि देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करने के लिए पर्याप्त सैन्य शक्ति और क्षमता  महत्वपूर्ण होते हैं ऐसे विषय में  केवल पब्लिक की धारणा के आधार पर जांच नहीं की जा सकती।



परन्तु इसके विपरीत Sherpa जो वैश्विक स्तर पर आर्थिक अपराधों और अवैध वित्तीय प्रवाह पर नज़र रखने वाले कानूनी विशेषज्ञों का एक पेरिस का NGO है , का मानना है कि यह सिर्फ पब्लिक की धारणा की बात नहीं है बल्कि राॅफेल डील में अन्तर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार के सभी प्रणालीगत तत्व मौजूद हैं बल्कि इस डील की शर्तें भारतीय वायु सुरक्षा के नवीनीकरण के लिए हानिकारक भी हैं।



इसी Sherpa ने अप्रैल 2021 में फ्रांस की National Financial Prosecutors' में  Dasalt Aviation के खिलाफ नई शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद अभियोजक ने अनुबंध की न्यायिक जांच करने के लिए एक न्यायाधीश की नियुक्ति की । अपनी शिकायत में शेरपा ने सौदे में कथित "भ्रष्टाचार", "पक्षपात" और "विभिन्न वित्तीय अपराधों" के खिलाफ न्यायिक जांच की मांग की है।


Sherpa के वकील चैनेज मेनसौस ने Article 14 (news website)को बतलाया "राॅफेल सौदे में मध्यस्थ के अंतिम मिनट में परिवर्तन" "सौदे की सामग्री में महत्वपूर्ण परिवर्तन" और भारत में पक्षपात और भ्रष्टाचार के आरोपों ने संगठन को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना है कि फ्रांस में स्वतंत्र न्यायिक जांच का "भारत में प्रभाव होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार, जिसमें बिना सजा के छोड़ दिया जाता है, सरकार में जनता के "घटते विश्वास" का कारण बन सकता है।



इन नवीन घटनाक्रम के बाद भारत में कांग्रेस पार्टी का यह सवाल उठाना उचित लगता है कि जब फ्रांस सरकार ने स्वीकार किया है कि सौदे में भ्रष्टाचार है, तो क्या उस देश में जेपीसी जांच नहीं होनी चाहिए जहां भ्रष्टाचार हुआ था? सच तो ये है जब मात्र रेडियो बुलेटिन के आधार पर बोफोर्स पर 1987 में जेपीसी बैठ सकती है  तो इस राॅफेल डील को लेकर के लिए क्यों नहीं जिसमें इतने ज्यादा खुलासे हो रहे हैं। न खाऊंगा और न खाने दूंगा के श्री नरेन्द्र मोदी के दावे पर सवाल खड़े हो गए हैं इसलिए भी जेपीसी जांच होनी चाहिए। आश्चर्य है कि जब सांच को नहीं होती आंच! तो फिर क्यों नहीं हो रही जांच? इसका तात्पर्य जो भी निकलता हो  स्व० राजेश खन्ना तो बड़े भरोसे से कह के गए हैं-"ये पब्लिक है सब जानती है।"

नोट - मित्रों आपके समर्थन से आपका ये वेबसाइट Feedspot के top blog में शामिल हो गया है ।