10 नवम्बर 2020 की मतगणना के पश्चात बिहार चुनाव के परिणाम कई मामलों में अभूतपूर्व रहे। चुनाव पूर्व एनडीए की आसान जीत की भविष्यवाणी की जा रही थी जबकि वास्तविक परिणाम एक संदिग्ध और बामुश्किल जीत के रुप में सामने आया। सिर्फ 0.1% मतों के अंतर मात्र से बिहार जैसे बड़े प्रदेश की जीत को जीत की बजाय हारते-हारते बचना कहना अधिक उपयुक्त होगा। 


चुनाव में विभिन्न दलों को मिलने वाले मतप्रतिशत कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश करते हैं। एनडीए को 37.3% मत मिले वहीं महागठबंधन को 37.2% मत मिले। बीजेपी ने सीटों के मामले में भले ही 53 से 74 सीट जीत कर बड़ी बढ़त हासिल की है पर मतप्रतिशत 24.46% से घटकर 19.46% हो गया जबकि जदयू ने सर्वाधिक 75 से घटकर 43 सीटों का नुक्सान सहा है पर मतप्रतिशत 16.83% से 15.39% ही कम हुई है। 



जबकि इस मामले में महागठबंधन की सभी दलों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। राजद  सीटों और मतप्रतिशत दोनों ही आधार पर बड़ी पार्टी रही यद्यपि सीट 80 से 75 हो गई पर मतप्रतिशत 18.32 से बढ़कर 23.11 हो गई।  इसी प्रकार बहुचर्चित और खराब स्ट्राइक वाली कांग्रेस पार्टी का मतप्रतिशत भी 6.66% से बढ़कर 9.48% हो गया। वामपंथी पार्टियां भी फायदे में रही सीटों के मामले में 16 पर पहुंच गई वहीं मतप्रतिशत भी बढ़े। प्रतिशतों में यह अन्तर अधिक या कम सीटों पर लड़ने के कारण भी आया है ।फिर भी 2019 की लोकसभा परिणाम के हिसाब से भी देंखें तो एनडीए को 12% की क्षति हुई है वो 49% से घटकर 37.3% हो गई।



यह सही है भारतीय संविधान में सरकार बनना  मतप्रतिशत की बजाय जीतने वाले विधायकों की संख्या तय करती हैं। यही कारण है जिस बीजेपी ने सर्वाधिक मतप्रतिशत  खोया है उसे विजेता माना जा रहा है और जिस राजद ने सर्वाधिक मत और मतप्रतिशत पाये हैं उसकी हार हो गई है। मात्र 1.5% मतों का नुक्सान सहने वाली श्री नीतीश कुमार की जदयू के प्रति जनता का भयंकर  आक्रोश बतलाया जा रहा है उसी सरकार में शामिल 5% मतों का नुक्सान झेलने वाली बीजेपी के प्रति जनता के बढ़ते विश्वास की बात कही जा रही है। 



यह चमत्कार ही लगता है जिसकी चुनावी सभाओं में स्वाभाविक भीड़ उमड़ी और जिसके रोजगार वाले मुद्दे ने लोगों को सर्वाधिक आकर्षित किया वो तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता बने और जिनकी सभाओं में विरोध के नारे लगे और प्याज उछाले गये वो श्री नीतीश कुमार पुनः मुख्यमंत्री का पद पा गये।



बीजेपी ने चुनाव पूर्व जो परिकल्पना की थी कि नीतीश कुमार की सीटें बीजेपी से कम हो पर सरकार एनडीए की ही बने ईवीएम ने बिल्कुल वैसे ही नतीजे दिए। इधर से  कच्चा माल डाला और उधर से तैयार माल हाजिर। काश एनडीए सरकार,  ऐसा सटीक परिणाम देने वाली मशीन भारत की अर्थव्यवस्था और सामाजिक सौहार्द को सुधारने के लिए भी बना पाती तो देश का भला हो जाता।



महागठबंधन के नेता श्री तेजस्वी यादव ने इस हार को सहर्ष स्वीकार नहीं किया उन्होंने सरकार और चुनाव आयोग दोनों पर धांधली का आरोप लगाया है।  राजद प्रवक्ता मनोज झा मतगणना के दिन बार-बार ट्वीट कर रहे थे कि महागठबंधन की कई सीटों पर जीत हो गई है पर उन्हें इसका सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है। बाद में इन सीटों पर  पोस्टल बैलेट के आधार पर रिटर्निंग ऑफिसर ने उनकी हार घोषित कर दी। 



दरअसल कई-एक सीटों पर जीत-हार का अन्तर 2000 मतों से भी कम रहे हैं ऐसे में रिटर्निंग ऑफिसर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसी स्थितियों में उनकी निस्पक्षता पर पहले भी प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं और इस बार भी लगे हैं । जब तक चुनाव आयोग ऐसी धांधलियों को रोकने का उपाय नहीं करता तब तक उसके द्वारा मतगणना के दिन बार-बार प्रेस कॉन्फ्रेंस करने को पारदर्शिता की बजाय परदा डालने का प्रयास ही कहा जा सकता है । मामला कोर्ट में भी गया है जिनके बारे में कुछ कहना सही नहीं होगा क्योंकि एक रुपये भी मुफ्त में नहीं आते।



येनकेन प्रकारेन की जीत के बाद श्री नीतीश कुमार की सरकार बन तो गई है पर मात्र 43 सीटों पर जीतीं जदयू और श्री नीतीश कुमार का दबदबा सरकार में खत्म हो चुका है। बीजेपी सरकार में हावी हो चुकी है।श्री नीतीश कुमार के साथ काम करने वाली वर्षों पुरानी टीम को तोड़ दिया गया है। उनके विश्वसनीय साथी श्री सुशील मोदी,नवल किशोर यादव,प्रेम कुमार आदि को बीजेपी ने सरकार में शामिल नहीं कराया है। विधानसभा सभापति के पद जदयू  के हाथ से निकल चुके हैं।


चुनाव के दरम्यान श्री नीतीश कुमार को कमजोर करने की कोशिशें सरकार बनने के बाद भी जारी है। बिहार में बिगड़ती कानून व्यवस्था सवाल  खुद सरकार में शामिल बीजेपी के नेता उठा रहे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार का मामलें में भी आधी-आधी की जिच आ फंसी है।ऐसा लगता है कि बिहार में श्री नीतीश कुमार की सरकार एक अल्पकालीन व्यवस्था है और योजना यह है कि वो कुछ समय बाद परेशान हो केन्द्र में मंत्रिपद लेने को राजी हो जायें और राज्यसत्ता बीजेपी को सौंप दें। 


परन्तु श्री नीतीश कुमार राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं और न हीं वो दवाब में काम करने के आदी हैं। एक और उलटबांसी की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। जीत के मुहाने तक आ पहुंचा महागठबंधन भी अवसर की ताक में है। ऐसे में बिहार चुनाव के कुछ और भी चमत्कारी परिणाम आ सकते हैं।