धरातल पर महागठबंधन आगे!





बिहार विधानसभा चुनाव 2020, मतदान के दौर में पहुंच चुका है और 28 नवंबर 2020 को 71 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से हो चुकी है। बिहार चुनाव के परिणाम की भविष्यवाणी करना हमेशा कठिन काम रहा है। जब चुनाव में चार-चार मोर्चे हों, तबरीबन 6 सर्च मुख्यमंत्री के उम्मीदवार हों और बीजेपी की शह पर अपने ही सहयोगी जदयू के खिलाफ अपनी सीटों पर दूसरे सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी द्वारा उम्मीदवार खड़े किए गए हों तो ऐसे में किसी भी नतीजे की आशंका तो और भी कठिन हो जाता है।


फिर भी टाईम्स नाऊ सी वोटर और एमएसडीएस जैसी एजेंसियों ने अपने -अपने जनमत पोल में एनडीए को क्रमशः 147 और 138 सीटों पर जीत के साथ बहुमत की भविष्यवाणी करने का जोखिम उठाया है। महागठबंधन को क्रमशः 87 और 93 सीटों पर और लोकजनशक्ति को 4 और 6 सीटों पर सीमित रखा गया है, जबकि अन्य के खाते में 6 और 9 सीट इन दोनों ओपिनियन पोलों ने बनाई हैं।


जनमत पोल के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि ये अब जनमत बतलाने की बजाय उसे प्रभावित करने के लिए किये जाते हैं इसलिए अधिकतर गलत साबित होते हैं। इन दोनों ओपिनियन पोल भी इससे अलग नहीं है। ऐसी अपेक्षा कि जदयू को लोकजनशक्ति द्वारा इतना ही नुक्सान करना है कि वो बीजेपी से पिछड़ जाये और पर बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनाने में दिक्कत न हो। लोकजनशक्ति को इतनी ही सीट मिले की  चिराग पासवान को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में पिता की जगह दी जा सके। ऐसी सटीक  माप-तोल वाली कपोल कल्पना बीजेपी के लिए आदर्श स्थिति होती और ऐसा लगता है कि इन ओपिनियन पोल ने इसी इच्छा को पूरा  किया है।




यही कारण है कि बिहार चुनाव के सन्दर्भ में इन्हीं एजेंसियों द्वारा पिछले तीन विधानसभाओं के ओपिनियन पोल 20 से 35% तक गलत साबित हुए हैं। एक अच्छे ओपिनियन पोल में मार्जिन आफॅ एरर 2 से 3% तक ही होता है। इन ओपिनियन पोल में विरोधाभास भी स्पष्ट है और दोनों ने अपनी साख बचाने हेतु  किन्तु-परन्तु का भी इस्तेमाल किया है। 


मतों की भागीदारी को ले तो सी वोटर डेवलपर एनडीए को 43% और गठबंधन को 35% देता है तो वहीं एमएसडीएस डेवलपर क्रमशः 36 और 32% है। दोनों सही कैसे हो सकते हैं सी वोटर से महागठबंधन का 35% लें और सीडीएसडी से एनडीए का 36% ले लें तो दोनों गठबंधनों में फासला कितना कम हो जाता है।


सी वोटर यह भी कहता है कि 20% मत अनिर्णय की स्थिति में है। ऐसे में 1.5 की महागठबंधन की ओर स्विंग एनडीए को 57 सीटों का नुकसान'सान पहुंच सकता है तो 2 से 3% की झूला पूरी बाजी ही महागठबंधन के पक्ष में पलट सकती है।



महागठबंधन के नेता श्री तेजस्वी यादव की सभाओं में उमड़ रही भीड़ और दूसरी तरफ नीतीश की सभाओं  में लगने वाले मुर्दाबाद के नारे ओपिनियन पोल से अलग एक दूसरी ही तस्वीर  पेश कर रहे हैं। ऐसे में  2 से 3% वोटों की स्विंग असंभव भी नहीं लगती। श्री नीतीश कुमार ने भले ही कई अच्छे कार्य किए हैं पर 2017 में महागठबंधन को धोखा देकर एनडीए के पाले में उनका जाना जनता ने पसंद नहीं किया। अच्छे कार्य किए तो जनता ने उन्हें बार-बार चुना भी। अब तो आक्रोश है कोई सर्वे इस आक्रोश को 57%  में तो कोई 87% में इसे आंक रहा है।



यह आक्रोश सिर्फ नीतीश कुमार को लेकर ही नहीं है बल्कि केन्द्र सरकार की नोटबंदी, जी एस टी एवं कोरोना कालीन की तालाबंदी से ऊपजी भयंकर बेरोजगारी भी है। बिहार में तो देश में सर्वाधिक 46%।  महागठबंधन ने इसी बेरोजगारी को अपना प्रमुख मुद्दा बना लिया है और श्री तेजस्वी यादव ने पहले ही कैबिनेट में 10 लाख सरकारी नौकरी देने की बात कर युवाओं का मन मोह लिया है। 



रोजगार हर चुनाव में एक मुद्दा होता है पर सबसे प्रमुख मुद्दा पहली बार बना है। सी वोटर सर्वे की मानें तो लगभग 50% जनता इसे प्रमुख  मुद्दा मान रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने रोजगार को प्रमुख मुद्दा बनाने की कोशिश अवश्य की थी पर पुलवामा एवं बालाकोट के मुद्दें ने इसे पटकनी दे दिया था।




एनडीए ने पहले तेजस्वी की 10 लाख नौकरी देने का मजाक उड़ाया पर जनता में मिल रहे रिस्पांस देख खुद 19 लाख नौकरियां देने की बात करने लगी। पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2014 में ही हर साल 2 करोड़ नौकरी देने के वादे का हस्र देख चुकी जनता का बीजेपी के इस वादें पर विश्वास नहीं रहा। धारा 370, राम मंदिर निर्माण, जिन्ना, टुकड़े टुकड़े गैंग जैसे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण वाली  बातें लोगों को लुभा नहीं पा रही  है। महागठबंधन की रोजगार और विकास के एजेंडा पसंद किए जा रहे हैं।




ऐसे में श्री नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार सहित एनडीए के छोटे-बड़े नेताओं ने श्री तेजस्वी यादव पर व्यक्तिगत हमला करने के अलावा उनके माता पिता के समय के शासनकाल को जिसे पटना हाईकोर्ट ने अपने एक कारवाई के दौरान जंगल राज कहा था कि वापिस लौटने का। डर जनता को दिखाने शुरू कर दिया है। मीडिया और सोशल मीडिया में लालू यादव राज के कई सच्ची- झूठी कहानियां चलायी जा रही हैं।


श्री तेजस्वी यादव इस आरोप को लेकर सावधान थे इसलिए उन्होंने चुनावी पोस्टर से लालू-राबड़ी को पहले से ही गायब कर रखा था और चुनावी सभाओं में सभी जातियों को साथ ले चलने की बात हमेशा करते रहे हैं। तेजस्वी समझ चुके हैं कि शासन हासिल करना होगा अपना सोशल बेस बढ़ाना ही होगा।


युवा वर्ग को लालू के कथित राज का न तो ज्ञान है और न ही डर। लालूभूमि राज मंडलकालीन जातिय राजनीति की उपज थी। अब रोजगार और विकास ही मुद्दा है। नौकरी तो मिश्राजी को भी चाहिए और यादव जी को भी। वैसे भी कहा जाता है कि लालू यादव के शासन को बदनाम करने में उनके दो सालों का हाथ रहा था। श्री तेजस्वी ने शादी ही नहीं की है और न ही इसी काबिल साले हैं। 



जब धरातल पर महागठबंधन का गठबंधन एनडीए सेअधिक ठोस है, महागठबंधन का रोजगार और विकास का एजेंडा भी जनता को अधिक पसंद है और भीड़ भी महागठबंधन की सभा में ज्यादा आ रही है फिर भी मीडिया और उनके अपने एनडीए की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं तो ये बिना किसी तकनीकी चमत्कार से संभव नहीं है। 10 नवंबर 2020 के आने वाले चुनाव परिणाम ही बता सकते हैं।