Ram Vilas Paswan goodbye! राम विलास पासवान, अलविदा!






राम विलास पासवान, अलविदा!

श्री राम विलास पासवान के 8 अकतूबर 2020 को दिल्ली में निधन के साथ ही बिहार और  देश की राजनीति में लम्बे समय तक दलितों के हित की उठाने वाली एक प्रमुख आवाज खामोश हो गई है। लम्बा कद, हंसमुख और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी स्व० रामविलास पासवान की "क्या कहते हैं कि" और "जे है से न" जैसे तकिया कलाम से लैस बिहारी टोन में आवाज इतनी कर्णप्रिय और बुलन्द होती थी कि संसद में कदाचित माईक की जरूरत न पड़ती। उनके निधन ने देश की राजनैतिक रंगमंच को नि:स्सन्देह  फीका  कर डाला है।


स्व रामविलास पासवान की राजनैतिक दूरदर्शिता कमाल की थी । वे प्राय: हर  लोकसभा चुनाव में किसकी सरकार आनेवाली है भांप लेते थे और संभावित विजेता का साथ हो लेते थे। इसी खासियत के कारण उनके पुराने साथी श्री लालू यादव  उन्हें राजनीति का "मौसम वैज्ञानिक" कहा करते थे।उनकी इसी दूरंदेशी का नतीजा था कि केन्द्र में सरकार या मंत्रिमंडल किसी भी पार्टी  या गठबंधन की रहे एक मंत्री स्व० पासवान जी अवश्य होते थे।


उन्होंने स्व० वी०पी०सिंह से लेकर वर्तमान में श्री नरेन्द्र मोदी तक( स्व नरसिंह राव को छोड़) सभी प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का विलक्षण रिकॉर्ड बनाया था और उनके हर दल के प्रमुख नेताओं से अच्छे संबंध रहे थे। परन्तु यह सिर्फ दलबदल अथवा सत्तालोलुपता नहीं थी बल्कि सत्ता में रहकर ही अपने समाज के हितों  को अच्छी तरह साधा जा सकता है, की सोच भी थी।  


अंबेडकर,पेरियार और लोहिया  के दर्शन से प्रभावित स्व० राम विलास पासवान की स्व०अम्बेडकर के बाद दलित नेता के रुप में  स्वीकारोक्ति जगजाहिर थी। एक समय बिहार और देश में दलितों के बीच  "ऊपर आसमान नीचे पासवान" के नारे  लगा करते थे। अतएव  दलित राजनीति में हैसियत भी उनके लगातार मंत्री बने रहने का कारण रहा था जिसकी उपेक्षा कोई प्रधानमंत्री नहीं करना चाहते थे।


यूपी में कांसीराम और मायावती के उदय ने स्व०पासवान की हिन्दी प्रदेश के एकमात्र बड़े दलित नेता के वर्चस्व को भले ही तोड़ दिया फिर भी इनकी हैसियत में कमी नहीं आई। बिहार जैसे बड़े प्रदेश में इनकी दलितों के बीच छवि और पकड़ मजबूत बनी रही! 


आठ बार लोक सभा और एक बार राज्य सभा के सांसद रहे  स्व० पासवान एक कामयाब प्रशासक भी थे और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में विभिन्न विभागों का कार्यभार उन्होंने कुशलता से संभाला। प्रधानमंत्री वी०पी ०सिंह के समय स्व० भीमराव अंबेडकर को "भारत-रत्न" दिलाने और उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करवाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। रेल मंत्री रहते बिहार के हाजीपुर में रेलवे का ज़ोनल दफ़्तर शुरू किया गया था। उपभोक्ता , खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के मंत्री की हैसियत से कोरोना काल में मुफ़्त अनाज बाँटने की योजना के पीछे और उसे छठ तक बढ़ाने की घोषणा रामविलास पासवान के कारण ही संभव हो पाया है।


1969 में बिहार में डीएसपी की नौकरी तज कर स्व० लोहिया की संयुक्त समाजवादी पार्टी के विधायक से अपना राजनैतिक सफर शुरू करने वाले स्व० पासवान ने लोकदल, जनता दल से गुजरते हुए 2000 में "लोक जनशक्ति"नामक खुद की एक पार्टी बनाई। 2005 के बिहार विधानसभा में इस पार्टी ने  29 सीटें जीत कर महत्त्वपूर्ण कामयाबी हासिल किया पर मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की उनकी जिद ने बिहार में 15 वर्षीय लालू राज का अंत अवश्य कर दिया। 


इसके बाद मुख्यमंत्री बने श्री नीतीश कुमार ने दलित को महादलित और दलित में बांटकर और सिर्फ पासवान जाति (दुसाद) को दलित बताकर स्व० राम विलास पासवान के जनाधार को कमजोर कर दिया। यद्यपि परिस्थितियों ने नीतीश कुमार से पासवान  जाति को भी महादलित में शामिल करा दिया है। अब बिहार में कोई दलित नहीं हैं  सिर्फ महादलित हैं। कमाल है, सब नीचे ही चले गए तो 15 सालों में दलितों का उत्थान कैसे हो गया? राजनीति तू गजब है!


खैर अपने खोये जनाधार को वापिस पाने के लिए स्व० पिता की सलाह और कदाचित बीजेपी की शह पर उनके सुपुत्र चिराग पासवान के नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी ने बिहार विधानसभा 2020 के चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ ऐलाने जंग कर दिया है। ? क्या 15 वर्षीय एक और शासन का अंत होगा? पर क्या कहते हैं कि इसका परिणाम स्व० राम विलास पासवान स्वयं नहीं देख पायेंगे, दु:खद है। जे है कि न से अलविदा राम विलास जी, आप हमेशा याद किए जायेंगे।







 


Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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