बिहार चुनाव 2020 -कांटे की लड़ाई !

कोरोना संकट के बीच बिहार विधानसभा के बहु-प्रतीक्षित चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इस संकट का पहला सकारात्मक असर यह हुआ है कि आमतौर पर दो- ढ़ाई महीने तक चलने वाला बिहार चुनाव महज 40 दिनों में (1अक्टूबर से 10 नवम्बर तक ) निबट जाने वाला है। यह संकट से उत्पन्न चुस्ती हो या संकट से और फजीहत होने की सरकारी आशंका का नतीजा, कम समय में चुनाव जनता के लिए  राहत की बात है।


आशा के अनुरूप चुनाव घोषणा के साथ ही तुरंत भक्त मीडिया की ओर से बीजेपी और नीतीश कुमार के एनडीए गठबंधन के जीत की भविष्यवाणी भी आ गई। कोई ओपिनियन पोल इस गठबंधन को 243 में से 160 सीट दे रहा है तो कोई 145 सीटों के साथ जीत पक्की बतला रहा है। हाल के महाराष्ट्र,  हरियाणा , झारखंड और दिल्ली  विधानसभा चुनावों में लगातार हार के बावजूद बीजेपी (एनडीए), बिहार में भी दो-तिहाई बहुमत से आसान जीत का दावा कर रही है। 


पर वास्तविकता यह है कि न तो एनडीए की जीत आसान होने वाली है और न ही ये पक्की है। इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला कारण है , एनडीए के विरोध में  राजद, कांग्रेस और कम्यूनिस्ट पार्टियों का अपेक्षाकृत निर्विवाद शांति और दृढ़ता से  महागठबंधन बनना ।  दूसरा कारण  चिराग पासवान के नेतृत्व में लोकजनशक्ति पार्टी द्वारा एनडीए गठबंधन से निकल नीतीश विरोध और मोदी प्रेम का अद्भूत राग छेड़ एनडीए गठबंधन में अंत:र्विरोध और शक पैदा करना है। इन दोनों बातों से निस्संदेह बिहार चुनाव एक कांटे की लड़ाई बन चुकी है जिसके कुछ भी परिणाम हो सकते हैं। 



बीजेपी का आकलन है कि बिहार में नीतीश कुमार और सरकार के विरुद्ध सत्ता विरोधी लहर अवश्य है पर बीजेपी के प्रति जनता का प्रेम बरकरार है। श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। चूंकि  बीजेपी अकेले दम बिहार में चुनाव लड़ने की स्थिति में अभी भी नहीं है इसलिए वो नीतीश समर्थित मत भी चाहती है और उनके विरोधी मत भी। इसके अलावा नीतीश कुमार के बढ़े कद को छोटा करने की गुप्त मंशा तो है ही।



इसलिए नीतीश कुमार के जदयू पार्टी से गठबंधन जारी रख और उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बतलाने के बावजूद चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी को बिहार में गठबंधन से बाहर रहकर सिर्फ जदयू के सीटों पर लड़ने को हरी झंडी दे दी है। बीजेपी का भीतरी समर्थन न होता तो केन्द्र में लोकजनशक्ति पार्टी एनडीए का हिस्सा न बनी होती।



बीजेपी को आशा है कि चिराग पासवान अगर नीतीश विरोधी मतों को बांट पाते हैं तो महागठबंधन का नुक्सान करेंगे और यदि जदयू सीटों से मोदी प्रेम वाला मतों को खींच लाते हैं तो नीतीश का नुक्सान करेंगे और यदि दोनों का ही नुक्सान कर कुछ सीटें  जीत लाते हैं तो वो सीटें बीजेपी की ही होगी चाहे स्वेच्छा से हो या फिर "शाही तकनीक" से। चित्त भी मेरी पट भी मेरा!



इन तीनों स्थितियों में फायदा बीजेपी को है क्योंकि अंतिम लक्ष्य तो बीजेपी का मुख्यमंत्री बनाना है। इसे मास्टर स्ट्रोक बतलाया जा रहा है पर इसमें सन्देह हैं। क्योंकि प्रधानमंत्री श्री मोदी की जिस लोकप्रियता के भरोसे  ये फैसले लिये गये हैं उसी को लेकर संशय है। कोरोनावायरस के आगमन के समय भयभीत जनता के बीच का "थाली कालीन"  सर्वे जिसमें उनकी लोकप्रियता 70% पार कर गई थी  वो दो महीनें में में ही एक अन्य सर्वे में 44%  पर आ चुकी थी। 



इस बीच में श्री मोदी सरकार ने ऐसा तो कुछ किया नहीं जो उनकी लोकप्रियता बढा सके। कोरोनावायरस से न तो जनता के जान बचाये जा पा रहे हैं और न ही उनकी जहाॅन। लाॅकडाउन से बेरोजगारी आसमान  छू रही है तो जीडीपी माईनस 23.9 के साथ पाताल खोदने में लगी है। इन कारणों से आईएमएफ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक गरीबों में भी अत्यंत गरीब लोगों की संख्या में 50% ( 40मिलियन)  तक की वृध्दि हो गई है। कृषि सुधार कानूनों का भी विरोध ही हो रहा है। 



ऐसे में श्री मोदी की लोकप्रियता की वास्तविकता की ओर कोई ताजा संकेत दे रहे हैं वो  उनकी "मन की बात" और 21अक्तूबर 2021 को प्रसारित "राष्ट्र के नाम संदेश" को  सोशल मीडिया में मिले डिसलाइक की बेशुमार संख्या ही हैं।



बावजूद इनके इसमें सन्देह नहीं है कि श्री मोदी अभी भी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं पर यह लोकप्रियता किसी विधानसभा चुनाव की जीत की गारंटी नहीं रही है इस बात में भी अब कोई सन्देह नहीं रहा है। यदि ऐसा न होता राजस्थान, मध्यप्रदेश,  पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली  विधानसभा चुनावों में बीजेपी और एनडीए की हार न होती और बिहार में ऐसा नहीं होगा यह कहने का कोई कारण नहीं दिखता।



बिहार में अकेले नीतीश कुमार की सरकार नहीं रही बल्कि बीजेपी भी उसका हिस्सेदार रही है। ऐसे में नीतीश के शासन के खिलाफ लोगों का असंतोष होगा तो भला बीजेपी उससे मुक्त कैसे रह सकती है? यदि  कोरोना काल में  वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को नीतीश ने ठीक से सुधि नहीं ली तो उन्हें लाॅकडाउन में फंसाने और सड़क पर  सैकड़ों मील पैदल चलने को मजबूर तो श्री मोदी की केन्द्र सरकार ने ही किया था। 



यदि जनता में इसका आक्रोश है तो दोनों पार्टियों के खिलाफ है। यहां ये नहीं होने वाला कि" मोदी तुझ से बैर नहीं नीतीश तेरी खैर नहीं।" जहां( राजस्थान) इस तरह के नारे लगे भी थे वहां की राज्य की सत्ता फिसल कर विपक्ष के पास चली गई थी। वैर या खैर दोनों पार्टियों का होगा। ऐसे में चिराग पासवान वाला दांव  महागठबंधन या नीतीश के जदयू के बजाय पूरे एनडीए गठबंधन को नुक्सान पहुंचा सकता है । 



इस मास्टर स्ट्रोक के एक अन्य खतरे भी हैं  जो और भयानक हैं। यदि जदयू समर्थकों को ये आभास हो गया कि बीजेपी और उनके समर्थक जदयू के सीटों पर उनकी  बजाय लोकजनशक्ति को समर्थन दे उनके नेता नीतीश कुमार को ठिकाने लगाने जा रहे हैं तो वे भी बीजेपी वाली सीटों बीजेपी को छोड़ अन्य विकल्प पर जा सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो सारे के सारे ओपिनियन धरे के धरे रह जायेंगे। एनडीए धाराशायी हो सकता है जबकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन एक बड़ी जीत की ओर बढ़ सकता है।


 जारी है  To be continued