जाग कांग्रेस जाग!  
श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल से लोगों को आशा थी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने हेतु राष्ट्रहित में कोई असाधारण प्रयास होंगे । परन्तु सरकार ने अर्थव्यवस्था की बजाय पार्टी विचारधारा को मजबूत करने को प्राथमिकता दी और आनन-फानन  में जम्मू और कशमीर से धारा 370 समाप्त कर लद्दाख को पृथक करते हुए दोनों को यूनियन टेरिटरी बना दिया और कुछ ही समय पश्चात देश- विदेश में भारी विरोध के बावजूद विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) भी पास कर दिया।


सरकार इन्हें अपनी उपलब्धि बता रही है परन्तु  कशमीर के लेकर उपलब्धि तब मानी जायेगी जब वहां पाक प्रायोजित आतंकवाद खत्म हो जाय और वहां की जनता तमाम तरह के प्रतिबंधों से आज़ाद हो सामान्य जीवन जीने लगे। ये दोनों बातें अभी नहीं हुई है! समस्या सुलझी नहीं है बल्कि चीन की दिलचस्पी बढ़ जाने से इसके और उलझने के संकेत हैं। आतंकवाद भी खत्म नहीं हुआ है,यदि कम हुआ है तो प्रमुख कारण सैनिकों की भारी तैनाती है! वैसे धारा 370 का आतंकवाद से कोई लेना- देना भी नहीं रहा है न ही ये राष्टहित से जुड़ा कोई मामला है।


आतंकवाद 1984 में आया जबकि धारा 370 का अस्तित्व 1950  से ही  में था और तब से ही भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से जी चुराने वाली एक विशेष हिन्दुवादी  विचारधारा, जिसे भारत में मुस्लिम बहुल राज्य वो भी विशेष अधिकार के साथ जज्ब न हो पाया था ,उसी की विशेष  मांग इसे समाप्त करने की रही थी । बस, उसे ही अब पूरा किया गया है। जम्मू और कश्मीर तो भारत का अभिन्न अंग पहले भी था और आज भी है वहां के लोगों का जीवन आतंक की घटना से जब-तब बाधित होता रहता था अब प्रतिबंधों  से निरंतर बाधित  कष्टमय है  फिर उपलब्धि किधर है?


अभी तो यही कहा जा सकता है जिन कार्यों से विश्व में भारत की सेकुलर छवि खराब हुई है ,मानवाधिकार के हनन के आरोप लगे हैं , 40 हजार करोड़ (अब तक) का आर्थिक नुक्सान हुआ है और लद्दाख में चीन के हाथों भौगौलिक व सैन्य क्षति पहुंची है वह उपलब्धि नहीं है । वस्तुतः सरकार के कदमों से कश्मीर और कशमीरी का भारत से भावनात्मक दूरी बढ़ी ही है। निरन्तर जारी सरकारी प्रतिबंधों  से उनमें देश की मुख्य धारा में शामिल होने की इच्छा बचती भी है या नहीं यह प्रतिबंधों की समाप्ति के बाद का मुख्य सवाल होगा!


इसी प्रकार दूसरे देशों के अल्पसंख्यकों के लिये अपने देश के अल्पसंख्यकों को भयंकर परेशानी में डाल देना न तो उपलब्धि है और न ही बुद्धिमानी। " सीएए" एक ऐसा ही कानून है। दरअसल सीएए लाकर और एनपीआर और एनआरसी का समां बांधने से कोई राष्ट्रहित की पूर्ति नहीं की जानी है बल्कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर क्षुद्र राजनैतिक हित साधना है।


गैरों पर करम अपनों पर सितम राष्ट्रवाद नहीं होता भले ही इसे सांस्कृतिक कह लें यह भारत की संस्कृति नहीं रही है। ऐसा राष्ट्रवाद देश को पहले भी अपूरणीय क्षति पहुंचा चुका है और आगे नहीं पहुंचायेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है।


ऐसा भी नहीं है कि इन कदमों से हिन्दु मतों का बीजेपी के पीछे जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ हो बीजेपी को भारी चुनावी लाभ मिला हो!अपितु ,महाराष्ट्र में सीटें कम हुई और बीजेपी सरकार भी नहीं बना पाई तो हरियाणा में स्पष्ट हार हो गई यद्यपि अन्य तरीके से सरकार बना ले गई। जबकि झारखंड और दिल्ली चुनावों में बीजेपी ने अपनी तथाकथित दोनों उपलब्धियों को भुनाना चाहा पर दोनों ही जगह उनकी करारी हार हुई। शायद जनता हिन्दु-मुस्लिम और भारत-पाकिस्तान जैसे व्यर्थ मुद्दों के दलदल से बाहर निकल वास्तविक मुद्दे जो कि मूल रूप से आर्थिक हैं के धरातल पर आना चाहती है उसे बस एक सहारा चाहिए और यह सहारा विपक्ष दे सकता है। 


परन्तु समस्या ये है कि मुख्य विपक्ष कांग्रेस पार्टी, लगातार हार से  सुप्तावस्था में चली गई है। नेतृत्व का जबरदस्त संकट उत्पन्न हो गया है! श्री राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद त्याग के साथ नेहरू-गांधी परिवार के नया अध्यक्ष नहीं होने की शर्त रख कांग्रेस को असमंजस में डाल दिया है । कांग्रेस की कार्यकारिणी को इस बदतर स्थिति में गैर गांधी को अध्यक्ष बनाने से कांग्रेस के बिखर जाने का भय सता रहा है। नये और पुराने का के बीच का विवाद भी कांग्रेस की क्षमता हर रही है।


कांग्रेस को इस असमंजसता से जल्द निकलना होगा। पूर्णकालिक अध्यक्ष होने ही चाहिए वो चाहे श्री राहुल गांधी हों या कोई और। वैसे भी गांधी परिवार ने सिर्फ अध्यक्ष पद छोड़ा है न तो कांग्रेस छोड़ी है न ही राजनीति। सरकार को नसीहत देने और फजीहत करने में श्री राहुल गांधी की सक्रियता अध्यक्ष पद त्यागने के बाद न केवल जारी रही है अपितु तीव्र ही हुई है । ऐसे में हो सकता है पदत्याग के पीछे बीजेपी से वंशवाद का मुद्दा छीनने की उनकी सोची- समझी नीति ही हो ।आखिर दूसरे को आगे रख  महाभारत भी तो जीता गया था।


श्री गांधी की महाभारत के महान पात्र से तुलना कोई अच्छी बात नहीं है पर उनका सामना भी किसी भीष्म पितामह से नहीं है । उन्हें झूठ की आदत नहीं थी जबकि इनसे सत्य बोला नहीं जाता 15 लाख? नहीं! नवीनतम: न कोई  घुसा है और न कोई घुसा हुआ है------! 


कांग्रेस के अन्दर से सीडब्ल्यूसी के चुनाव और पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग कांग्रेस और देश दोनों के लिये एक शुभ संकेत है। ये काम शीघ्र होना चाहिए कांग्रेस को एक पूर्णकालिक अध्यक्ष की और देश को कांग्रेस की जरूरत है। न केवल सशक्त विपक्ष की भूमिका लिये बल्कि भारतीय संविधान , प्रजातांत्रिक मूल्य, देश की धर्मनिरपेक्ष छवि इन सबकी रक्षा हेतु एवं सबसे जरुरी कोरोना काल से पहले एवं बाद की बदहाल अर्थव्यवस्था में सुधार की जरूरत कांग्रेस की वापसी चाहती है। क्योंकि मोदी सरकार को अनुभव अच्छी अर्थव्यवस्था को
खराब करने का है जबकि खराब अर्थव्यवस्था को अच्छा करना कांग्रेस को आता है। अस्तु कांग्रेस को जागना ही होगा। जाग कांग्रेस जाग! 


https://www.indianspolitical.com/2020/07/awake-congress-awake.html