सुशांत की मृत्यु ही मुद्दा है?
भारतीय सिने जगत के उभड़ते और लोकप्रिय सितारे सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून 2020 की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत सिने प्रेमियों के दिल झकझोरने वाली घटना रही है! इस मौत के पीछे की सच्चाई सामने आनी ही चाहिए ! पर इस मौत की जांच को लेकर उठे विवाद और जबरदस्त मीडिया ट्रायल फिर महाराष्ट्र पुलिस और बिहार पुलिस के बीच तकरार अजीबोगरीब रही!
खैर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से सुशांत मामला सीबीआई को सौंप दिया गया है। जनता को आशा है कि सुशांत मौत के असली गुनहगार अब पकड़ में आ जायेंगे! यद्यपि इस तरह के मामलों में सीबीआई की सफलता का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है और कई मामले वर्षों से लम्बित हैं। वैसे महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार से खार खाये कुछ न्यूज चैनलों की तसल्ली असली गुनहगार पकड़े जाने की बजाय सरकार बदल जाने से ही हो जानी है!
मीडिया ने सुशांत की मृत्यु के भावनात्मक मुद्दे को देश का प्रमुख मुद्दा भले बना दिया हो, पर देश में कई वास्तविक मुद्दें हैं जिनका समाधान होना बेहद जरूरी है। कोरोनावायरस न तो भारतीय मीडिया को फाॅलो कर रहा है और न ही लोगों पर से उसका ध्यान हटा है और वो अब तक 70704 भारतीयों की जान ले चुका है। भारत 41लाख 14 हजार कोरोना संक्रमितों की संख्या के साथ विश्व में ब्राजील को पीछे छोड़ दूसरे नम्बर पर पहुंचने ही वाला है। संक्रमण की यही रफ्तार रही(जो और बढ़ने वाली है) रही तो अक्टूबर जाते-जाते अमेरिका को भी पीछे छोड़ दुनिया के नंबर एक कोरोना संक्रमित देश बन जायेगा।
ऐसे में भारत सरकार का यह दावा कि कोरोना संकट का सामना बाखूबी किया है हास्यास्पद है। कमतर मृत्यु दर का हवाला दिया जा रहा है तो वो कोरोना की मेहरबानी है या फिर तरह-तरह के मसाला खाने वाले भारतीयों का मजबूत इम्यून सिस्टम।जरूरत मृत्यु दर को देखने की नहीं बल्कि मृत्यु और संक्रमण की बढ़ती संख्या देखने की है जो अत्यंत चिंताजनक है।
सिंगापुर सरकार ने जहां कोरोना से सिर्फ 27 लोगों की जान गई है, अपने देश की जनता से कोरोना काल में की गई गलतियों विशेषतया प्रवासी मजदूरों के साथ बरती गई गैर-वाजिब सख्ती और असफलता के लिए माफी मांगी है। गलतियां भारत में भी हुई हैं। जब हमें एयरपोर्टों की सघन निगरानी रखनी चाहिए उस समय अहमदाबाद में "नमस्ते ट्रम्प' भोपाल में "कम ऑन शिवराज"और दिल्ली में "वेलकम तबलीग-ए-जमात" कर रहे थे! फिर जब तालाबंदी की तो प्रवासी मजदूरों को भूल बैठे जबकि स्वास्थ संबधी विशेष तैयारी की ओर तो ध्यान ही न था। फिर भी माफी मांगना तो दूर खुद की पीठ थपथपायी जा रही है।
भारत की पातालोन्मुखी होती अर्थव्यवस्था भी अत्यंत चिन्ता का विषय है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने भारत की 2020-2021 के प्रथम तिमाही के जीडीपी का आंकड़ा माईनस 23.9 बतलाया है जो दुनिया के सभी प्रमुख देशों में सबसे खराब है।ऐसा लग रहा है कि भारत की जीडीपी के बजाय अंटार्कटिका का तापमान बताया जा रहा हो।
वित्तमंत्री ने इसके पीछे (कोरोना को लेकर) ईश्वर का हाथ होना बतलाया है। पर यह अंशत: ही सही है क्योंकि कोरोना का प्रकोप तो पूरी दुनिया पर आया पर कोरोना का संक्रमण हो या जीडीपी दोनों ही मामलों में दुनिया भर में भारत को ही फिसड्डी होने में भगवान की नहीं सरकार की विफलता का हाथ है! भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना आने से पहले ही नोटबंदी, जीएसटी और कुप्रबंधन से बिगड़ चुकी थी नहीं तो कोरोना के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की ये फिसड्डी वाली गत नहीं होती। यही कड़वी हकीकत है।
भारत सरकार ने 20 लाख करोड़ की तथाकथित राहत की जो घोषणा की थी वो कारगर सिद्ध नहीं हो रही है। ये राहत अधिकांश ऋण के रूप था पर लोगों को हिम्मत नहीं हो रही ऋण लेने की। सिर्फ 40% ही ऋण लिये गये। यदि बाजार में मांग न हो तो ऋण लेकर ही होगा क्या? 5 ट्रिलियन की इकोनॉमी की बात तो जुमला था ही अब तो सारे सही उपाय किये जायें तो भी वापस 3 ट्रिलियन इकोनॉमी हासिल करने में दो-तीन साल लग जाएंगे। यदि मांग और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए जाते हैं स्थिति और बदतर हो सकती है।
बेरोजगारी की दर तालाबंदी के दौरान लगभग 24% तक पहुंच गया था उसमें तालाबंदी खुलने के बाद सुधार हुआ है। पर 8% की बेरोजगारी दर भी ज्यादा है क्योंकि इस आंकड़े में असंगठित क्षेत्र शामिल नहीं होते जहां सबसे ज्यादा बेकारी उत्पन्न हुई है। कोरोनावायरस के संक्रमण के बीच सरकार द्वारा नीट(NEET) और जेइई(JEE) जैसी प्रवेश परीक्षा करवाने के पीछे छात्रों के कैरियर को महत्व देने की बात कही गई वह गले नहीं उतरती है।
यह प्रवेश परीक्षायें ही तो हैं जिन्हें कुछ महीने टाला जा सकता था। चिंता उनकी होनी चाहिए जिनका कैरियर पहले ही खतरे में पड़ चुका है। नौकरी देने वाली प्रतियोगी परीक्षाएं टली हुई हैं,जो ली भी गई हैं तो उनके रिजल्ट नहीं दिये जा रहे हैं और जिनके रिजल्ट हो भी गये हैं उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो रही है। ऐसा लगता है नीट और जेइई परीक्षाओं द्वारा छात्रों की बजाय अधिक चिंता उनकी की गई है जिनका कैरियर मेडिकल और इंजीनियरिंग काॅलेजों से जुड़ा है।
लद्दाख सीमा पर चीन की बढ़ती दखलंदाजी और आक्रामकता भी चिंता का एक और सबब है। भारत सरकार का तीन महीनों के कूटनीतिक और सैनिक संवाद का प्रयास भी चीन द्वारा मई में हड़पी भारतीय जमीन को खाली नहीं करवा पाया है । गत 29-30 अगस्त को चीनी सैनिकों ने मई में "पैंगोंग त्सो लेक" पर भारतीय सीमा में बढ़त को बढ़ाने की फिर 2000 सैनिकों के साथ जबरदस्त कोशिश की है यद्यपि भारतीय सेना ने इसे नाकाम कर दिया है। फिर भी स्थिति ये बनी हुई है कि भारतीय सीमा के अन्दर के हेलमेट टाॅप, ब्लैक टाॅप और ग्रीन टाॅप जैसे महत्वपूर्ण शिखर पर चीन कब्जा बनाए हुए है।
रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह का मास्को में 4 सितम्बर 2020 को चीन के रक्षामंत्री के साथ बातचीत के बाद यह कहना कि चीन एलएसी पर यथास्थिति बदलने पर अमादा है, मामले की गंभीरता बतलाता है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून में प्रतिकार (Reprisal) के नियम हैं कि वे बराबर और उचित अनुपात में होने चाहिए। चीनी हरकत और जमीन खोने का प्रतिकार सिर्फ एप्प पर प्रतिबंध लगाना नहीं हो सकता। ऐसे में कोरोना संकट से उबर चुके चीन की आक्रामकता को काबू करने के लिए भारत सरकार और भारतीय सेना को कुछ और विशेष करने की जरूरत है। भारतीय सेना के गुप्त दस्ते एसएफएफ( Special Frontier Force) द्वारा 1 सितम्बर को चीन के खिलाफ की गई गोपनीय कार्रवाई इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
स्पष्ट है सुशांत की मृत्यु के अलावे देश के सामने कई मुद्दें हैं जिनका समाधान अधिक आवश्यक है। आंख मूंद लेने से समस्याओं का समाधान हो जाता तो कोई समस्या होती ही नहीं। समस्याओं से जूझ कर ही उनका अंत किया जा सकता है। सुशांत के साथ न्याय हो और देश की वास्तविक समस्याओं का समाधान भी, लोग बस इतना चाहते हैं। इसके लिये काबिलियत और इच्छाशक्ति की जरूरत होती है जिसकी श्री नरेन्द्र मोदी सरकार से बेहद दरकरार है।
सुशांत और रिया मुद्दों को भटका गए...
जवाब देंहटाएंरिया नाम अब प्राण की श्रेणी में आ गए...
सही समस्या अब दिखाई नही देती
शायद अच्छे दिन आ गए..!😩
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जवाब देंहटाएंSushant ki maut par politics me lag gye sabhi...chahe neta hon ya media...sabhi apni gotiyan senkne lage hain...usko nyay mile na mile par sarkar sach me janta ko muddon se bhatka gyi....abhi GDP, berojgari, garibi aur CORONA virus ki tarf janta ka dhyan hi nhi jaane dene ki Sochi samjhi saajish hai ....nay jhunjhuna pakda diya hai....ek aadmi ki maut ka tamasha bana diya hai in logon ne...
जवाब देंहटाएंaj maharastra me bjp ki sarkar hoti to susant ko kabhi nyay nahi milta ye to hundred parsent sach hai abhi susant case ke ardh me korona se dhyan bhatka raha hai janata ko ullu samajhta hai abhi midia to chin ka bhi sahi se nahi dikha raha hai ganda khel khel raha hai
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