Wake up congress wake up! जाग कांग्रेस जाग!

Wake up congress wake up!

जाग कांग्रेस जाग!
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है चाहे भारत को स्वतंत्रता दिलाने की बात हो या स्वतंत्रता के पश्चात् देश के पुननिर्माण की , कांग्रेस पार्टी का योगदान अप्रतिम रहा है! यही कारण था जब यूएनओ की महासभा में 23 सितम्बर 2017 के भाषण में भारत की विदेशमंत्री स्व ० सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को जवाब देने के क्रम में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की उपालिब्धयां गिनाई  उनमें से अधिकतर  कांग्रेस सरकार के समय की थी। ऐसे में 1984 में 402 सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी का पिछले दो लोकसभा चुनावों में 44 और 52 सीटों पर सिमट जाना न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि अटल अंदाज़ में कहें तो देश के लिये भी ये "कोई अच्छी बात नहीं है!"





पर यह सब अचानक नहीं हुआ! बल्कि कांग्रेस की गलतियों और देश की राजनीति में जातिवाद और सांप्रदायिक मुद्दों के हावी होने से संभव हुआ। प्रधानमंत्री स्व० राजीव गांधी 1984-1989 का कार्यकाल उल्लेखनीय रहा! पंचायती राज, दलबदल कानून, टेलिकॉम संबंधी नीतिगत फैसले और देश को 21 वीं सदी में ले जाने की सोच अत्यंत महत्वपूर्ण थे! 1988-1989 में भारत का जीडीपी विकास दर 10.2 का रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था!


परन्तु शाहबानो मामले में कोर्ट के फैसले को संसदीय बहुमत से बदलना और बाबरी मस्जिद मामले में कोर्ट के फैसले के आधार पर पूजा हेतु फाटक खोलने और  बीएचपी द्वारा राम मंदिर शिलान्यास को होने देने की
बेवकूफी भरी नादानियां कांग्रेस को गंभीर चोट दे गई! कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगा और बाबरी मस्जिद-मंदिर विवाद को हवा मिली जिसका नुक्सान कांग्रेस को हुआ और फायदा बीजेपी उठाती गई! फिर वित्त मंत्री वीपी सिंह द्वारा अपनी ही सरकार  खिलाफ मोर्चा खोलना भी कांग्रेस को क्षति पहुंचा गया!





1989 के आम चुनाव में कांग्रेस से बगावत कर, बोफोर्स घोटाले का ढ़ोल पीट और मंडल कमीशन वाली आरक्षण की धुन बजा कर प्रधानमंत्री बने स्व० वी पी सिंह ने कहा था कि वे देश के लिये विनाशकारी साबित होंगे। देश तो उनके विनाश से उबर गया पर उनकी मंडल की धुन ने कांग्रेस पार्टी की ऐसी बैण्ड बजायी जिससे वो अभी तक उबर नहीं पाई है।





मंडल से फैले उग्र जातिवाद से परवान चढ़े क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के दलित और पिछड़े वर्ग के जनाधार को उत्तर भारत विशेषतया यूपी और बिहार में कमज़ोर कर दिया। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने को मुद्दा बनाते हुए उग्र हिन्दुवाद को सीढ़ी बना राजनीतिक सफलता की ऊंचाई चढ़ने लगी! कांग्रेस का दुर्भाग्य रहा उसी समय उसने लिट्टे के 21मई 1991 के एक आतंकवादी हमले में  राजीव गांधी के रुप में अपने तुरुप के पत्ते एवं लोकप्रिय नेतृत्व को खो दिया। फिर भी इस हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में कांग्रेस  1991 में सत्ता में आ तो गई पर बहुमत न होने के कारण सहयोगी दलों की मदद से सरकार अल्पमत की चलानी पड़ी।





श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा जिम्मेदारी लेने के
इंकार  पर उनके  समर्थन से  कांग्रेस पार्टी और सरकार की कमान स्व० नरसिंहा राव ने थामा और एक अच्छी सरकार चलाई। अपने काबिल वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के साथ मिलकर आर्थिक उदारीकरण की नीति लाकर देश की खस्ताहाल अर्थ व्यवस्था को संभाला और गैर कांग्रेसी सरकार द्वारा रखे विदेश में गिरवी भारत का सोना भी छुड़ाया।



पर 5  दिसंबर 1992 बीएचपी, बीजेपी और आर एसएस के नेताओं की मौजूदगी में कारसेवकों द्वारा गैरकानूनी कृत्य से "बाबरी मस्जिद" गिराने के कारण मुसलमानों को लंबे समय के लिये कांग्रेस से दूर कर दिया। इससे पूरे देश में भड़के दंगों से साम्प्रदायिकता की एक ऐसी लहर चली जिसमें कांग्रेस और उसकी सेकुलरिज्म डूबती -उतराती रही जबकि बीजेपी  हिन्दुत्व की नाव की सवारी कर 1996 और 1998 के आम चुनावों में हिचकोलें ले 1999 के चुनाव बाद सत्ता की कुर्सी पर 24 दलों के सहयोग से  स्थिरता के साथ काबिज हो गई।



स्व० अटल बिहारी बाजपेयी ने एनडीए और बीजेपी के प्रधानमंत्री के रुप में देश का शासन 1999 से 2004 तक बड़ी कुशलता से चलाया। वे अभी तक के गैर कांग्रेसी शासन के तकरीबन 19 सालों में एकमात्र अपवाद रहे हैं जिन्होंने इस मिथक को तोड़ा कि केवल कांग्रेस ही अच्छी, स्थिर और सफल सरकार दे सकती है!





एक हिन्दुवादी विचारधारा वाली पार्टी के होते हुये भी स्व० वाजपेयी सच्चे अर्थ में सेकुलर भारत के सेकुलर प्रधानमंत्री बने रहे और उन नीतियों को दरकिनार ही रखा जिनसे भारतीय मुसलमान उद्वेलित होते और सरकार पर साम्प्रदायिक होने का दाग लगता। कशमीर को लेकर उनकी इंसानियत और कश्मीरियत की नीति की हर किसी ने प्रशंसा की और कश्मीर में हालात भी सुधरे।यद्यपि पाकिस्तान के साथ उनके संबंध सुधारने के बस यात्रा और आगरा सम्मेलन  जैसे प्रयास फेल हो गये पर इसमें दोष उनके प्रयासों का नहीं बल्कि पाकिस्तान  की थी जिसने चुपके से भारत के कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ का दुस्साहस कर डाला। 1999 के मई से जुलाई तक चले कारगिल युद्ध हुआ और भारतीय सेना ने पाकिस्तान सेना को  जबरदस्त शिकस्त दी और उसे भारत से खदेड़ दिया। 




स्व० वाजपेयी ने कांग्रेस की आर्थिक उदारीकरण की नीति को जारी रख भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती बनाये रखी! यही कारण था उनके निर्णय से हुए से 11 से 13 मई 1998 को हुए"पोखरण में परमाणु बम" के दूसरे परीक्षण के बाद लगे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबंधो का सामना भी भारत बखूबी कर सका! उनके समय 2004 में भारत की जीडीपी 7.93 तक पहुंच गई थी जो समय के हिसाब से काफी अच्छा था!



इन परिस्थितियों से उत्पन्न लोकप्रियता से उत्साहित  स्व० वाजपेयी ने 4 महीने समय पूर्व आम चुनाव कराने का निर्णय कर लिया! पर उन्हें शायद ये आभास नहीं था कि  सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी का एक छोटा पुनरुद्धार शुरू हो चुका है और दूसरे भारत के पश्चिम स्थित एक राज्य में की गई गलती उन पर भारी पड़ने वाली है।


Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

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