Corona Pandemic- Lock-down 2.0 is On .
जैसी कि उम्मीद थी भारत में तालाबंदी को जारी रखते हुए इसे 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा 14 अप्रैल को कर दिया गया साथ ही तालाबंदी की सख्ती में 20 अप्रैल से ढ़ील की व्यवस्था का भी एलान कर दिया गया।

Corona Pandemic- Lock-down 2.0 is On !


 पर न तो तालाबंदी में फंसे दिहाड़ी मजदूरों की परेशानी न ही कोरोना जंग में उभड़े सम्प्रदायिकता पर ही कुछ कहा गया । साम्प्रदायिक सौहार्द की बाद में अपील की भी गई तो लिंकेडिन और ट्विटर पर । राष्ट्रीय मंच से इस तरह की अपील को लेकर शर्म व झिझक परेशान करने वाली है। सही मंच से और सही समय पर सही बात कही जाय तो उसका असर व्यापक होता और राष्ट्रीय संदेश की गरिमा भी बढ़ती है । इसी प्रकार  "सही समय पर सही कदम" की बात कर खुद की पीठ थपथपाना और इतराना भी संघर्ष के शुरुआती दौर में ही कतई जरुरी नहीं था।


Corona Pandemic- Lock-down 2.0 is On !

तालाबंदी सही कदम है ये तो प्रायः पूरी दुनिया पहले ही निर्णय कर चुकी थी , रही सही समय  की बात तो यह सही समय 10 मार्च भी तो हो सकता था। 4 मार्च को प्रधानमंत्री ने कोरोना के कारण होली नहीं खेलने की घोषणा की यदि उसी दिन 10 मार्च होली के दिन तालाबंदी हेतु घोषित कर देते तो प्रायः अधिकांश दिहाड़ी मजदूर अपने घर पहुँच चुके होते और आज की तरह परेशानी का सबब न बनते।


 होली के पवित्र दिवस के दिन ही कोरोना वायरस से लड़ने का संकल्प तालाबंदी के रूप में ले लिया जाता तो इससे अच्छी बात क्या होती? यह बिल्कुल संभव था क्यों कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता तो इतनी है कि एक इशारे पर जनता किसी भी उलटबांसी के लिए तैयार हो जाती है।उस समय कोरोना संक्रमित की संख्या 44 ही थी 24 मार्च की तरह 550 नहीं ।


फिर ऐसे में न तबलगी जमात का 13 मार्च का दिल्ली का मरकज़ हो पाता जिसनें तकरीबन 25000 लोगों को कोरांटीन किया, न ही मुरैना का 17 मार्च का श्राद्ध कार्यक्रम जिसने 28000 को कोरांटीन किया न ही पंजाब के धर्म गुरु बलदेव सिंंह का 10 सेे 13 मार्च का"होला मोहल्ला" होता जिसने लगभग 40000 को कोरांटीन किया और न ही 23 मार्च को बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान का मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के रुप में शपथग्रहण हो पाता जिसने देर से अंधेर कर दिया।


 ऐसे में बहुत संभव था कि आज हम अपनी तुलना कोरोना से सर्वाधिक पीड़ित देशों अमेरिका या इटली  के बजाय ताईवान ,कनाडा, दक्षिण कोरिया या आइसलैंड जैसे कोरोना को मात देने वाले देशों से करते और सही मायने में इतरा रहे होते।
Corona Pandemic- Lock-down 2.0 is On !


जो हो गया सो हो गया  गलतियां ढूंढने और सरकार की आलोचना करने का यह समय नहीं है। ऐसे में ढंग की बात यही हो सकती है  पूरी एकता और प्रतिबद्धता के साथ कोरोना वायरस से संघर्ष किया जाय जिसने अब तक 21450 को संक्रमित कर दिया है और 681 की जान भी जा चुकी है। कोरोना वायरस एक रहस्यमयी तिलस्म और अबूझ पहेली बनता जा रहा है जिसके बारे नित नयी-नयी बातें सामने आ रही हैं।अभी तक सर्दी, खांसी, तेज बुखार और सांस लेने में तकलीफ इसके प्रमुख लक्षण माने जा रहे थे और इन लक्षणों के आधार पर ही मरीज की पहचान, जांच और कोरांटीन किया जा रहा था पर अब ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनमें इनमें से कोई लक्षण नहीं हैं!


 इसी प्रकार 14 दिनों की समय सीमा भी कई उदाहरणों में टूटती जा रही है किसी में 14 दिनों बाद संक्रमण के लक्षण दिखाई पड़े हैं तो कोई 24 घंटे में ही पोजीटीव से निगेटिव हो रहा है। यही नहीं कुछ- एक मामलों में ठीक होने के बाद पुनः कोरोना के लक्षण भी मिले हैं। ऐसी विचित्र बीमारी को समझने और निबटने के लिए जांच में तेजी लाना आवश्यक समझा गया। इसके लिए चीन से 7 लाख की संख्या में फास्ट टेस्टिंग किट खरीदे गए पर वो घटिया और दोषपूर्ण निकल गए। यह किट कोरोना के पोजिटीव  मरीज को निगेटिव बता रहा था।  इस किट के उपयोग पर पहले रोक फिर शर्तो के साथ इस्तेमाल किया जा रहा है। बीमारी की विचित्रता , टेस्टिंग किट की संख्या और विश्वसनीयता में कमी ,और दवा के अभाव में ऐसा  लगता है हम अभी तक अंधेरे में लाठी भांज रहे हैं।
Corona Pandemic- Lock-down 2.0 is On !


परन्तु संघर्ष में निराशा का कोई स्थान नहीं हो सकता। कोरोना वायरस कुछ भी कर ले जीतेगा तो आदमी ही। तालाबंदी और सामाजिक दूरी का फार्मूला काम कर रहा है अभी पिछले 8 दिनों में संक्रमण दस हजार से बीस हजार पर पहुंचा हैं अगर अगले 8 दिनों में इसकी संख्या 40 की बजाय 30-32 पर टिकती है ,तो अनुमान है कि 15 मई तक हम ऐसी स्थिति में होंगे कि कोरोना हमें हारता हुआ नजर आने लगेगा।


 यह सही है कोरोना वायरस की अभी कोई अचूक दवा नहीं है पर मनुष्य अपने दिमाग का मात्र 3% इस्तेमाल कर दुनिया पर ऐसे ही राज नहीं करते आया है और यह दिमाग फिलहाल कोरोना के खिलाफ "प्लाज्मा थेरेपी" लेकर आया है। इस थेरेपी में कोरोना वायरस से ठीक हो गये व्यक्ति के शरीर से रक्त प्लाज्मा लेकर जिसमें एन्टीबाडी होती है कोरोना पीड़ित व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट कर इलाज किया जाता है।


भारत में दिल्ली के मैक्स हास्पीटल को इस थेरेपी से मिली सफलता एक उम्मीद जगाती है। यही कारण है कोरोना से ठीक हुए मरीजों से रक्त दान की अपील की जा रही है और ऐसी ही अपील तबलगी जमात के मुख्य मोलाना साद कंधलवी ने भी की है। इस प्रयोग की सफलता व्यापक होती है तो बहुत संभव है कि कोरोना के साथ-साथ " इस्लामोफ़ोबिया"  वायरस का भी अन्त हो जाय जिसे गोदी मीडिया ने फैलाया है । क्योंकि ऐसे में हिन्दु और मुस्लिम अपना खून देकर एक-दूसरे की जान बचायेंगे!

Corona Pandemic- Lock-down 2.0 is On !


इस युद्ध में एक और तकनीक काम में लाई जा रही है वह है" हाट स्पाट" (hot spot) पहचानने की। वैसे इलाके जहां कोरोना के मरीज मिल रहे हैं उन स्थानों की पहचान कर उन्हें हाट स्पाट के रूप में चिन्हित कर वहां तालाबंदी और सामाजिक दूरी को सख्त किया जा रहा है। इसी प्रकार राज्य एवं शहरों को भी संक्रमितों के आधार पर पहचान की जा रही है संक्रमण के मामले में 2407 के आंकड़ों के साथ गुजरात का देश में महाराष्ट्र के बाद दूसरे नंबर पर आ जाना आश्चर्यजनक है!  24 फरवरी के अहमदाबाद में हुए "नमस्ते ट्रम्प" नामक राजनैतिक मरकज महत्वपूर्ण कारण हो सकता है जिसमें विदेश से आने वालों के साथ लाखों लोग शामिल हुए थे।



 20 अप्रैल से तालाबंदी में सामाजिक दूरी  के साथ 'हाट स्पाट' को छोड़ अन्य जगहों पर कई आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने की इजाज़त देने से छोटे कामगारों को बड़ी राहत मिली है। इसी प्रकार गांवों में भी कृषि एवं निर्माण कार्यों की छूट देना भी राहतकारी है! पर दिहाड़ी मजदूरों की समस्या जो खाने के साथ गांव जाने को लेकर है वो ज्यों की त्यों रही है।इनके लिए तालाबंदी अवधि में  न्यूनतम मजदूरी दिलाने की एक याचिका भी "एक था सुप्रीम कोर्ट" ने खारिज कर दिया है।


 ऐसे में सरकार से यही आशा की जा सकती है ये मजदूर जहां भी फंसे हो उनके खाने-पीने का ध्यान रखें और तालाबंदी के बाद यातायात जब भी शुरू हो इन्हें सबसे पहले अपने गांव और परिवार के पास भेजने की व्यवस्था करे।  क्योंकि परिवार समाज से पहले आता है और दिहाड़ी मजदूर उन सबसे दूर रहे जिनकी संकट के समय सबसे ज्यादा जरूरत होती है।