Delhi riot - A game of dirty politics!
भारत की राजधानी दिल्ली 1984 के बाद हिंसा की आग में फिर जली। पर इस बार न तो किसी प्रधानमंत्री की हत्या हुई थी, न ही यह अनायास हुआ था और न ही देश की सत्ता किसी नौसिखिये के हाथ में ही थी। इसके लिए आहिस्ता-आहिस्ता माहौल बनाया गया एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखे गए और तब  कहीं इस हिंसा की आग में  दिल्ली जली।

Delhi riot - A game of dirty politics!



 जामिया मिलिया में अति उतावलापन और जेनयू मामले में उदासीनता के पीछे विशेष समझदारी थी।  यह गंदी राजनीति है और इसका ताना-बाना एक अनसेकुलर कानून के इर्दगिर्द  बुना गया और यह और कुछ नहीं बस "दंगे होते नहीं करवाये जाते हैं" का एक शास्त्रीय उदाहरण मात्र है।


पहले देश में एक ऐसा कानून लाया गया जिसे लाने से पहले उसकी भूमिका पूरी क्रोनोलोजी सहित महीनों पूर्व देश भर में वांच कर एक समुदाय विशेष में दहशत फैलाया गया! जब इस कानून का देशभर में ( मुख्यतः शान्तिपूर्ण)  विरोध शुरू हो गया और दिल्ली का शाहीनबाग इसका अनुकरणीय उदाहरण बना तो इसे ही दिल्ली चुनाव में मुद्दा बना लिया गया। फिर विशेष समुदाय को टारगेट कर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए सर्वोच्च वरदहस्त से ऐसा कुत्सित, गाली-गलौज युक्त घृणित प्रचार अभियान चलाया गया कि दिल्ली का राजनैतिक वातावरण वहां के पर्यावरण से भी अधिक प्रदूषित हो चला।


 इतना सबके बावजूद दिल्ली चुनाव में बुरी हार ने निराशा और बौखलाहट को जन्म दिया ।दूसरी तरफ विशेष कानून के शान्तिपूर्ण विरोध जारी थे।ऐसे में मनोबल बनाये रखने हेतु सबक सिखाना जरुरी समझा गया और बौखलाहट इतनी थी कि खुद के अल्टीमेटम का भी ध्यान न रखा और अतिविशिष्ट मेहमान के जाने तक भी प्रतीक्षा न कर सके। परिणाम 23 फरवरी 2020 को, हिंसारूपी दुशासन नार्थ ईस्ट दिल्ली में भारत के भाईचारे, सदभाव और सेकुलर आत्मा को तार-तार करता रहा और दिल्ली में स्थित भारत की सर्वोच्च संस्थायें धृतराष्ट्र बनी रही।


 गोदी मीडिया अतिविशिष्ट अतिथि की आवभगत कवर करता रहा और दिल्ली जलती रही। हिंसा को शान्त करने न तो महात्मा गांधी की तरह कोई शान्ति का मसीहा आया और न ही दंगाइयों की भीड़ में कूद उन्हें फटकार लगाता जवाहरलाल नेहरू सरीखा नेता। सच है एक तो साहस सीने की चौड़ाई से नहीं ,नेकनीयती से आती दूसरे कितना आसान होता है किसी वंदनीय की निंदा करना!

Delhi riot - A game of dirty politics!

तीसरे दिन तन्द्रा टूटी एक ट्वीट आया शान्ति की अपील की गई । पर मृतकों के प्रति संवेदना और पीड़ित परिवार के प्रति सहानुभूति अपेक्षित रह गई। खैर, पहले निष्क्रिय फिर निष्पक्षता से भटके महकमे का अचानक कर्तव्यबोध जागा हिंसा पर काबू पा लिया गया पर तब जब 53 भारतीयों की  जानें(अब तक) जा चुकी थी 300 से अधिक घायलों की सूची है और 79 मकानों  की जलाने की सूचना सामने आई हैं। यही गंदी राजनीति की डरावनी हकीकत हैं। यह हिंसा हवा में गोली चलाने वालों से नहीं फैली वरन् राजनैतिक मंचों से दी गई उत्तेजनापूर्ण भाषणों, नारों और महकमे के साथ खड़े होकर दी गई धमकियों से फैली! यह सच हाईकोर्ट के एक माननीय ने जान लिया तो उनका रातोंरात तबादला कर दिया गया। हद हो गई!

Delhi riot - A game of dirty politics!


कोरोना वायरस से अधिक खतरनाक है गंदी राजनीति का यह "डरावना" वायरस। वो सांसनली को संक्रमित करता है और यह मनुष्य के विवेक को। एक में सांस अटकती है दुसरे में बुध्दि सटकती है! आर्थिक बदहाली, बेकारी, भारत की गिरती छवि, बौद्धिक पिछड़ापन जैसे वास्तविक मुद्दे नहीं दिखलाई पड़ते हैं सिर्फ हिन्दु-मुस्लिम सूझते हैं। वह छूने से फैलता है यह सुनने ,देखने और बोलने मात्र से फैल जाता है। कोरोना वायरस 35 डिग्री तापमान में मर जाता है जबकि गंदी राजनीति का डरावना वायरस राजनैतिक तापमान को अपनी इच्छानुरूप नियंत्रित कर लेता है और जहां चुनाव होते हैं वहां यह तेजी से फैलता है। अभी बंगाल पहुँच जाने की खबर है। पहले वाले वायरस से जान जा भी सकती है और नहीं भी, यह व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है पर दूसरे वायरस से मति अवश्य मारी जाती है और जान किसी अन्य की जाती है।



 ऐसे में वंदनीय है दिल्ली के वे लोग जिन्होंने ने इस खतरनाक वायरस से अप्रभावित रहकर एक-दुसरे समुदाय के लोगों की जानें बचायीं। भारत में अभी तक कोरोना वायरस 30 लोगों को प्रभावित कर चुका है जबकि दुसरे डरावना वायरस से 30% से अधिक लोग प्रभावित हैं लक्ष्य 50% का है । पहले का अभी इलाज नहीं है पर दूसरे का इलाज जहां है वहां लम्बी कतार लगी है और इसे प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। ऐसे में बचाव का एक ही तरीका है वो है महात्मा गांधी के तीन बंदर ! फिर चाहे नेताओं के विषैले भाषण हों, मीडिया में चलने वाले  हिन्दु-मुस्लिम या भारत-पाकिस्तान से संबंधित बकवाद हों या इतिहास की गलत व्याख्या या फिर सोशलमीडिया की भड़काऊ सामग्रियां -

   बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो!