CAA 2019 and religious persecution!
"सीएए 2019" के कारण "धार्मिक उत्पीड़न" की धारणा चर्चा में आ अवश्य गया है पर इसे न तो इस कानून में परिभाषित किया गया है और न ही इस  शब्द का उल्लेख भारत के संविधान में कहीं  है। अलबत्ता अनुच्छेद 25 में सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता  और किसी भी धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक दिया गया है।

CAA 2019 and religious persecution!


 कमोबेश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश में अनुच्छेद 25  जैसी धार्मिक स्वतंत्रता वहां के संविधानों ने दे रखी है पर एक अन्तर है इन देशों में ये अधिकार वहां के सिर्फ नागरिकों को ही प्राप्त हैं वहीं भारत में ये अधिकार सभी लोगों को प्राप्त है। साथ ही अनुच्छेद 14 में  कहा गया है इस अधिकार को भी बिना किसी भेदभाव के 'कानून के समक्ष समानता' ( Equality before law) और 'कानून का समान संरक्षण '( Equal protection of law)  प्राप्त  होगा। "सीएए" 2019 कानून जो  31 दिसंबर 2014 तक भारत में आ चुके लोगों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव करता है और यह इस कानून के विरोध का एक महत्वपूर्ण कारण है।


CAA 2019 and religious persecution!


 धार्मिक उत्पीड़न वस्तुतः मानवाधिकार और शरणार्थी से संबंधित अन्तर्राष्ट्रीय कानून का विषय है।  प्राय: भारत सहित अनेक देशों में अवैध आप्रवासी को नागरिकता नहीं दी जाती है पर शरणार्थी (रिफ्यूजी) को दी जा सकती है और धार्मिक उत्पीड़न शरणार्थी  का एक आधार हो सकता है । इस संबंध में 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन और यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फार रिफ्यूजी( UNHCR) के दस्तावेज महत्वपूर्ण है। धार्मिक उत्पीड़न तब होता जब किसी धर्म को मानने  के कारण भेदभाव होता है  जीने के रंगढंग और आजीविका के साधन पर प्रतिबंध लगाया जाता है। यह भी कहा गया है जबरदस्ती का धर्म परिवर्तन करना और स्वच्छा से धर्म परिवर्तन का रोकना दोनों ही धार्मिक उत्पीड़न माने जायेंगे। इसमें कहा गया है धार्मिक उत्पीड़न  के कारण शरणार्थी तभी हो सकते हैं जब उत्पीड़न का यह भय अच्छी तरह से स्थापित ( well founded fear) हो।  किसी धर्म, समुदाय या समूह के सदस्य होने मात्र से यह उत्पीड़न सिध्द नहीं हो जाता और नास्तिक  का भी उत्पीड़न हो सकता है।यद्यपि भारत ने इस कानून पर हस्ताक्षर नहीं किया है फिर भी अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय भारत में इस संबंध में चल रही गतिविधियों को इसी नजर से देख अवश्य रहा है।

CAA 2019 and religious persecution!

स्पष्ट है कि भारत के "सीएए 2019" कानून में इस अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया गया है क्यों कि इसमें हिन्दु, सिख, बौद्ध, जैन, इसाई, और पारसी धर्म का सदस्य होने मात्र से ही सबको उत्पीड़ित मान लिया गया है और इस्लाम धर्म के अलावा नास्तिक को भी छोड़ दिया गया है। 1951 के रिफ्यूजी कन्वेंशन में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से साबित करना होगा कि उसके साथ उत्पीड़न हुआ है तभी उसे शरणार्थी माना जायेगा।


 जाहिर है ऐसा करना काफी कठिन होगा इसलिए भारत के "सीएए 2019 " के कानून के मूल मजमून( text) में धार्मिक उत्पीड़न शब्द को लिखा ही नहीं गया है। ऐसे में यह बहुत संभव है जब इस कानून के लिए नियम बने तो उसमें धार्मिक उत्पीड़न का जिक्र ही न हो। यह भी कहा जा रहा है ऐसे लोगों से धर्म का प्रमाण मांगा जायेगा न कि धार्मिक उत्पीड़न का। ऐसा यदि होता है तो यह और गलत होगा क्यों कि ऐसे में बिना किसी आधार के सिर्फ कुछ चुनिंदा देश और धर्म से जुड़े होने मात्र से शरणार्थी का दर्जा और फिर नागरिकता देना यह भारत के सेकुलर संविधान के विरुध्द होगा।


डबल्यू डबल्यू एल( world watch list) नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था जो पूरी दुनिया में ईसाईयों पर होने वाले धार्मिक उत्पीड़न का रिकार्ड रखती है उसके अनुसार भारत में भी ईसाईयों का धार्मिक उत्पीड़न होता है और इस मामले में यह 2019 की उस सूची में 10 वें स्थान पर है जिसमें पाकिस्तान का 5 वां  स्थान है।


इसी प्रकार यूएससीआईआरएफ ( United States Commission for International Religious Freedom) ने अपने 2019 की सर्वे रिपोर्ट में भारत को धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में चिंताजनक देशों की सूची में डाला है। इन दोनों ही अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सी का मानना है भारत की स्थिति श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद बिगड़ गए हैं और इसके पीछे कट्टरपंथी हिन्दु राष्ट्रवादी का हाथ है। ये रिपोर्ट अप्रिय हैं और भारत की सरकार इसे खारिज करती हैं और ये करना भी चाहिए। पर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय अब भारत को लेकर क्या सोचता है इससे ये तो पता चलता ही है।





ऐसे हालात में सीएए कानून 2019 भारत की सेकुलर और अनेकता मे एकता की छवि को और खराब करने वाला है। धर्म के आधार पर नागरिकता जो सारे अधिकारों की जननी मानी जाती है उसे खो देने का अच्छी तरह स्थापित भय (  well founded fear) भारत के मुसलमानों में व्याप्त हो गया है। विश्वास नहीं होता है कि अपने देश के अल्पसंख्यक समुदाय को भयभीत कर दुसरे देश के अल्पसंख्यक की चिंता करने वाली अनोखी सरकार भारत की कैसे हो सकती है!आश्चर्य है जिस संकीर्ण सोच को नेपाल जैसे छोटे राष्ट्र ने भी त्याग दिया है उसे भारत कैसे अपना सकता है! क्या डिजिटल इंडिया से भारत आधुनिक बन पायेगा जब सोच मध्यकालीन रहेगी!  ऐसे में उम्मीद की एकमात्र किरण भारत के उन युवाओं में दिखती है जो सीएए कानून के शान्ति पूर्ण विरोध की अगुवाई कर रहे हैं धर्मनिरपेक्ष, प्रजातान्त्रिक, गणराज्य की आत्मा उनकी सफलता की कामना करती  है।