खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य, लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी  दिल को चोट पहुँचती है तो उसके लिये  Indianspolitical.com खेद व्यक्त करता है। 




यदि आप इस बात पर यकीन नहीं करते कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व० सुभाषचंद्र बोस थे तो आपको गृहमंत्री का  Electoral Bond के बारे में दिये गए आंकड़े और बीजेपी और विपक्ष को मिलने वाली राशि के पीछे बचकाने तर्क पर भी यकीन नहीं करने चाहिए। इसी तरह प्रधानमंत्री के इस दावे का उनके द्वारा लाया गया Electoral Bond  ही था जिसके कारण जनता जान पाई किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया इसपर तो यकीन बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। ये  Electoral  Bond के खुलासे से भ्रष्टाचार में रंगे हाथों पकड़े जाने पर बचने का प्रयास भर है। यकीनन इसकी प्रेरणा कथित महापुरुष के वायरल वचन "झूठ बोलो बार- बार झूठ बोलो" से ली गई है।


Electoral Bond के द्वारा ली गई चंदे की राशि  पिछले वित्तीय वर्ष तक 12,000 करोड़ रुपये की है, जिसमें बीजेपी को इस राशि का लगभग 55% यानी लगभग 6,565 करोड़ रुपये मिले। दूसरा आंकड़ा वित्तीय वर्ष 2023-24 में पार्टी-वार डेटा वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट दाखिल होने के बाद बाद में उपलब्ध होगा। गृहमंत्री ने नेशनल टीवी पर प्रभावशाली ढ़ंग से  कुल आंकड़ा 20 हजार करोड़ रूपये बतलाते हुए मात्र 6 हजार करोड़ बीजेपी को और 14 हजार करोड़ विपक्ष को पकड़ा दिया। मंत्रियों द्वारा तथ्यात्मक झूठ  बोलना मोदी मंत्रिमंडल की अनूठी विशेषता रही है। 


Electoral Bond एक बहुआयामी घोटाला है जिसका पूर्ण खुलासा सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित और मानिटर्ड  किसी जांच आयोग से ही संभव है।  फिर भी एसबीआई के खुलासे से इस महा घोटाले की कुछ जानकारियां  एडीआर, स्वतंत्र प्रेस, खोजी पत्रकारों, और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस  द्वारा सामने लायी गई हैं।


Quid Pro Quo


The Association for Democratic Reforms (ADR) के वकील श्री प्रशांत भूषण के अनुसार 33 कंपनियों, जिन्होंने सामूहिक रूप से 1,751 करोड़ रुपये का दान दिया, को विभिन्न परियोजनाओं में 3.7 लाख करोड़ रुपये के अनुबंध प्राप्त हुआ। कांग्रेस पार्टी ने खुलासा किया है कि भाजपा को चुनावी बांड दान करने के बाद 38 कॉर्पोरेट समूहों को  ₹3.8 लाख करोड़ के 179 सरकारी अनुबंध और परियोजनाएं दी गई । यहां उल्लेखनीय है कि ठेके या अनुबंध में दिये गए  सरकार के पैसे जनता के होते हैं और ये मनमाने ढ़ंग से नहीं दिये जा सकते हैं।

एडीआर और कांग्रेस दोनों  ने  ये भी आरोप लगाया कि  भाजपा को दान में ₹551 करोड़ एडवांस में  देने के तीन महीने के भीतर, केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा 1.32 लाख करोड़ रुपये के अनुबंध और परियोजनाएं दानदाताओं को दी गईं। इस तरह के आंकड़ें सुप्रीम कोर्ट की  Quid pro quo  की आशंका को सही साबित करते हैं।

 
अरे सुन ! सुना! इडी,  बीजेपी के दफ्तर गया क्या?

अभी तो नहीं! अभी तो नहीं! 

अरे सुन! सुना! इनकमटैक्स गया क्या?

अभी गया तो है। 

कांग्रेस का खाता फ्रिज किया तो है! 

 
Extortion


एडीआर द्वारा प्रदान किए गए डेटा अंतर्दृष्टि में कहा गया है कि 41 कंपनियों, जिन्हें ईडी, आयकर या सीबीआई के छापे का सामना करना पड़ा है, ने भाजपा को ₹2,471 करोड़ दिए हैं, जिनमें से ₹1,698 करोड़ छापे के बाद दिए गए थे। छापेमारी के तुरंत बाद सिर्फ 3 महीने में ₹121 करोड़ दिए गए। ये  Electoral Bond  घोटाले का सबसे खतरनाक पहलू  था। ये काम सिर्फ केन्द्र सरकार के वश की बात थी क्योंकि भयादोहन में लगी ये जांच एजेन्सियों पर उसी का नियंत्रण होता है। इसके बारे में तो सुप्रीम कोर्ट को भी अंदाजा ना था।

बलात वसूली का रोचक प्रसंग की चर्चा भी जरूरी है। आप पार्टी के अनुसार इडी एक शराब व्यापारी शरत रेड्डी को गिरफ्तार करती है उसे दिल्ली के अरविंद केजरीवाल सरकार पर नई एक्साइज पॉलिसी बनाने हेतु  100 करोड़ घूस देने का आरोप लगाती है। वो शुरुआत की नौ गवाहियाँ में इससे इंकार करता है पर अंत में टूट जाता है फिर यह आरोप स्वीकार कर लेता है। लगभग 55 करोड़ का Electoral Bond बीजेपी को दे देता है और सरकारी गवाह बन जेल से छूट जाता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल भेज दिये जाते हैं।  ये कोई बता सकता है शरत रेड्डी ने बीजेपी को ये चंदा जेल जाने की खुशी में दिया था या जेल से छोड़े जाने के एवज में?


 
Money laundering

कुल 1 लाख करोड़ घाटे में चलने वाली 33 कम्पनियां ने Electoral Bond के जरिये 576.2 करोड़ रूपये का दान किया जिसमें से 434..2 करोड़ रूपये ( लगभग75%) बीजेपी को मिले। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग के लिए वित्त मंत्रालय की उच्च जोखिम वाली निगरानी सूची में शामिल कंपनियां, अपने गठन के कुछ महीनों के भीतर करोड़ों का दान देने वाली कंपनियां, और अपनी भुगतान की गई शेयर पूंजी के कई गुना दान करने वाली कंपनियां  सभी शामिल थीं।घाटे में चल रही इन कम्पनियों द्वारा इतना बड़ा दान देना काले धन को सफेद करने अर्थात मनिलांंडरिंग का मामला दिखता है। ऐसा लगता है  काले को सफेद करने के लिये Electoral Bond के रूप में  एक अनूठी वाशिंग मशीन एसबीआई दफ्तर  में भी लगा दी गई थी।

 
Home Minister's argument


गृहमंत्री ने बीजेपी को मिले अधिक चंदे के बारे में अजीब तर्क दिया कि उनके सांसद अधिक हैं इसलिए उन्हें अधिक मिले। अवैध पैसे मिलने का वैध पैमाने की तलाश करना अजीब सा लगता है। फिर भी गृहमंत्री को पता होने चाहिए कि किसी पार्टी की वास्तविक हैसियत सांसदों की संख्या से नहीं उसे मिलने वाले वोटों का प्रतिशत से तय होती है। यही कारण है कि कोई पार्टी भी नेशनल पार्टी तभी बनती है जब कम  से कम 4 राज्यों में 4% से अधिक मत पाती है। Electoral Bond  के इस फर्जी कानून में भी  ये शर्त थी की कम से कम 1% वोट पाने वाली पार्टी ही Electoral Bond ले सकती है। ऐसे में जो हैं ना काबिल, गृहमंत्री को ये बताना चाहिए की 34%(एनडीए की शेष पार्टियों को हटा कर) मत पाने वाली पार्टी बीजेपी को 55% चन्दा  और 22% मत पाने वाली कांग्रेस पार्टी को 9% चन्दा किस हिसाब से सही है?

 
Opposition' s argument


ये सही है कि Electoral Bond से विपक्ष ने  भी चंदा लिया है लेकिन इससे फर्जी कानून लाने वाली और उससे सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाली पार्टी बीजेपी का दोष कम नहीं हो जाता।  विपक्ष ने इस कानून का विरोध किया था और इस माध्यम से चंदा लेना तब शुरू किया जब प्राथमिकता को तय करने में विफल रहने वाले सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर स्टे लगाने से इंकार कर दिया। विपक्ष लेने को मजबूर हुआ और यदि नहीं लेता तो  unlevel playing field में लड़ना तो दूर खड़े रहने की हैसियत भी नहीं रख पाता। चुनावी चंदा लेना गलत नहीं है पर रिश्वत, धंधे के बदले में या वसूली के रूप में  लिया जाय तो गलत है। यदि विपक्ष ने ये किया है तो उस पर भी कारवाई होनी चाहिए पर ये कार्रवाई सरकार को ही करनी थी क्योंकि उसे ही सब पता था। पर कैसे करती? वो तो खुद गंगा स्नान कर रही थी।

 
Prime Minister'argument


सत्य कड़वा होता है ये तो सब जानते हैं पर झूठ की कोई सीमा नहीं होती ऐसा प्रधानमंत्री अपने  वक्तव्यों से दुनिया को अवगत कराते रहते हैं। यदि समय चुनाव का हो तो इनकी ये प्रतिभा और मुखर हो उठती है। प्रधानमंत्री का यह कहना कि Electoral Bond से पहले चुनावी चंदे की जानकारी नहीं होती थी यह भी इसी तथ्य के उदाहरण है।  सच्चाई ये है कि Electoral Bond के पहले भी चुनावी चन्दे की जानकारी जनता को होती थी। क्योंकि 20 हजार रूपये से अधिक राशि का चंदा चेक के माध्यम से ही दिया जा सकता था और इसकी जानकारी इलेक्शन कमीशन को दी जानी अनिवार्य थी। इसके अलावा Electoral Trust द्वारा भी चंदे की व्यवस्था  है जिसमें Pan  नम्बर तक अनिवार्य होता है वो भी इलेक्शन कमीशन से साझा करना होता है। इसके अलावा कैस के रूप में चंदे लेने की व्यवस्था  कायम है सिर्फ राशि की सीमा 20 हजार से कम कर 2 हजार की गई थी।


प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उनके द्वारा लाया गया Electoral Bond  ही था जिसके कारण जनता जान पाई किसने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। जबकि सच्चाई ये है कि Electoral Bond  को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज ही इसलिए किया कि जनता से यह राज छुपाया जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट से काफी फजीहत के बाद ही एसबीआई ने जानकारी साझा की जो सबने देखा। इतना ही नहीं सरकारी वकील आखिर तक सुप्रीम कोर्ट में चीख-चीख कर दलील दे रहे थे जनता को चंदे का राज जानने का हक ही नहीं है।

 
हे दीनबख्श, हे दया राम कुछ तो रहम करो!
जो सच्च रास्ते में आए उसे ना खत्म करो!

 
Conclusion


भ्रष्टाचार की इस घटोत्कचीय परिकल्पना  Election Bond को साकार रूप देने और लागू करने का क्रेडिट लेने वाले प्रधानमंत्री, जब चुनावी सभाओं में पूरे आत्मविश्वास से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्शन की बात करते हैं  तो हास्यास्पद लगता है। एक कहावत याद आती है "'थोथा चना बाजे घना"। अच्छा है ! कम से कम लोगों को ये तो पता चला कि " एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी" की प्रेरणा यदि लेनी है तो कहां से लेनी है?  ये सत्य  पुनः स्थापित हुआ कि परिवार को त्याग देने  मात्र से हर कोई महात्मा बुद्ध नहीं हो जाता और ना ही उसके सदाचारी होने की गारंटी कोई ले सकता । टनटनाटन भी नहीं।