EVM, Is it stupid to raise questions on EVM? क्या इवीएम पे सवाल उठाना मूर्खता है?

खंडन - इस लेख में किये गए व्यंग्य लेख की रोचकता बनाये रखने के लिये ही किया गया । यदि फिर भी किसी का दिल दुखे उसके लिये  Indianspolitical. com खेद व्यक्त करता है। 




questions on evm


3 दिसम्बर को आये पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम ने विशेषरूप से राजस्थान, मध्यप्रदेश, और छतीसगढ़ के परिणाम पूरे देश को चौंका दिया। तमाम स्वतंत्र और परतंत्र पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों के आकलन धरे के धरे रह गए।आश्चर्यचकित तो बीजेपी समर्थक भी हुए पर जीत से आह्लादित हैं, खुशी से उछल रहे हैं । वहीं कांग्रेस सहित विपक्ष सदमे में है। इन्हें और इनके समर्थकों को लगता है कि बीजेपी को ये जीत ना तो बड़बोले नेता ने , ना ही कन्हैयालाल ने, ना ही महादेवएप्प ने और ना ही लाडली बहन ने  दिलाई है बल्कि  उसके "लाडले इवीएम" ने दिलाया है? क्यों? हंसी आ रही है, है ना ? ये महज हारने वाली पार्टी का रूदन, प्रलाप और मूर्खता लगती है? यदि ऐसा है, तो सोचिये! कहीं आप किसी गलतफहमी में तो नहीं हैं? 


सनद रहे कि इवीएम पर शक करना यदि मूर्खता है तो ऐसी मूर्खता सर्वप्रथम बीजेपी ने ही 2009 में की थी। तब बीजेपी के वर्तमान राज्य सभा सांसद जे बी एल नरसिंहाराव ने इवीएम के विरोध में  "Democracy at Risk"  नामक किताब ही लिख डाली थी जिसकी  प्रस्तावना बीजेपी के श्री एल के आडवाणी ने लिखा था। वैसे भारतीय लोकतंत्र के इस आफतकाल में बीजेपी की मूर्खता की बात करना अपने आप में किसी मूर्खता से कम नहीं है! 


भले ही गोदी मीडिया इसे तरजीह नहीं दे रहा है वास्तविकता ये है इस बार इवीएम को लेकर मामला गंभीर हो चुका है। जहां कांग्रेस की आंधी की बात हो रही हो वहां बीजेपी की सूनामी आ जाय ऐसे परिणाम हर किसी को जज्ब नहीं हो रहे हैं। कई  सनसनीखेज आरोप  हैं जो अधिकतर मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने लगाये हैं यथा


(1) बैलट पेपर की गिनती में कांग्रेस पार्टी  मध्यप्रदेश के 230 में से 199 सीटों पर आगे थी वो इवीएम में इतना पिछड़ कैसे सकती है? 


(2) सैकड़ो की संख्या में इवीएम गिनती के समय, 99% रिचार्ज मिले हैं जिनमें कांग्रेस को नगण्य मत मिले हैं। 8 घंटो के मतदान के बाद इवीएम 99% रिचार्ज कैसे  रह सकते हैं? 


(3) कई कांग्रेस उम्मीदवारों को अपने गांव के इवीएम में महज 50 तक भी वोट नहीं मिले हैं। छत्तीसगढ़ में बीएसपी के एक उम्मीदवार को 0 वोट मिले। उसके खुद के वोट कहां गए? ऐसा ही हाल कई निर्दलीय उम्मीदवारों का रहा जिन्हें उनके परिवार तक के वोट नहीं मिले। 

चुनाव आयोग ने इन आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया, चुप्पी साध ली है। 


Is EVM Secured? 

इवीएम के सुरक्षित मशीन होने के पक्ष में दो प्रमुख दलील अभी तक चुनाव आयोग द्वारा दी जाती रही है। पहला कि यह Standalone मशीन है अर्थात इंटरनेट से कनेक्टेड नहीं है जिसका खंडन कि वीवीपेट आने के बाद हो चुका है। क्योंकि वीवीपेट में डाटा इंटरनेट से ही डाला जाता है। 


दूसरी दलील ये है कि चुनाव आयोग दावा करता है ईवीएम में इस्तेमाल किया जाने वाला माइक्रो-कंट्रोलर वन-टाइम प्रोग्रामेबल (ओटीपी) है उसे Reprogram नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग के इस दावे पर भी सवाल उठ चुके है। क्योंकि एक आरटीआई की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि इवीएम मे  इस्तेमाल की जाने वाले चिप का निर्माण नीदरलैंड की कम्पनी NXP करती है।


इस NXP कम्पनी की वेबसाइट पर माइक्रो-कंट्रोलर की विशेषताओं का विवरण में बतलाया गया है कि इसमें तीन प्रकार की मेमोरी  शामिल है - एसआरएएम, फ्लैश और ईईपीरोम ( या E2PROM) । विशेषज्ञों का मानना है। जिस कंप्यूटर चिप में फ्लैश मेमोरी शामिल हो उसे Reprograme  किया जा सकता है । इसलिए इवीएम  के वीवीपेट में जो दिखता है वो जरूरी नहीं की छपता और रिकॉर्ड होता ही हो। । भारत में कम्प्यूटर क्रांति के जनक माने जाने वाले सैम पित्रोदा जल्द ही इसका खुलासा सार्वजनिक तौर पर करने जा रहे हैं। यह इवीएम पर शक का प्रमुख कारण है।  


 INDIA Alliance Resolution

इवीए की असुरक्षित होने की ऐसी स्थिति  और इन चुनाव परिणामो ने कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष की आँखें एक साथ खोल दी है। यही कारण है कि 28 पार्टियों वाली INDIA गठबंधन ने इवीएम पर प्रस्ताव पास किया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है यदि  चुनाव आयोग को बैलट पेपर से कोई दिक्कत है तो वीवीपेट की पर्ची मतदाता के हाथ में दी जाय जो उसे अलग डिब्बे में डाले और गिनती उन्हीं पर्चियों की जाय। पर्चियों की गिनती में इवीएम की गिनती से कुछ घंटे अधिक लगेंगे पर चुनाव परिणाम की विश्वसनीयता कायम हो जायेगी।  इस प्रस्ताव पर चुनाव आयोग से मिलने का समय भी मांगा गया है जो अब तक नहीं मिला है । 

Role of Election Commission

इवीएम पर शक  का सबसे प्रमुख कारण केन्द्रीय चुनाव आयोग का रवैया रहा है जो 2014 के बाद से चुनाव दर चुनाव पूरी पारदर्शिता के साथ केन्द्रीय सत्ता के पक्ष में काम करता नजर आ रहा है। वास्तविकता ये है कि  चुनाव आयोग की स्वायत्तता  किसी के जेब की मिल्कियत बन चुकी हो। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश से इसे जेब से निकालने की कोशिश की तो नये कानून द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ही चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर दिया। अब इसकी स्वायत्तता जेब से निकल कर मुठ्ठी में आ चुकी है। किसकी जेब किसकी मुठ्ठी? ये आप खुद समझिये।


चुनाव आयोग विपक्ष के किसी सवाल या आरोप का जवाब तक नहीं देती। ऐसा लगता है कि जबान पर जैसे अडानी (ताला) लग गया हो। इसी तरह यदि चुनाव आयोग से इवीएम की बात करो तो जैसे अडानी (काठ) ही मार जाता है। गलत बात! एक ही नाम का अनेक प्रयोग! करें क्या वे इतने व्यापक जो हो गए हैं, जी? 


यही कारण है कि इवीएम को लेकर अगस्त 2023 से ही 18 विपक्षी दल चुनाव आयोग से मिलने का समय मांग रही है पर नहीं मिला। इसी प्रश्न को लेकर  सिविल सोसायटी भी आयोग से मिलना चाहती है पर उससे भी चुनाव आयोग नहीं मिल रहा है। समय INDIA  गठबंधन को भी नहीं दिया जा रहा है। 


Amritkal Effects

देश में अमृतकाल चल रहा है पर इस अमृतकाल में  हर कोई डर क्यों रहा है? किसी को प्रेस कॉन्फ्रेंस से डर लगता है तो कोई अडानी के नाम सुन लेने से डरता है। कोई संसद जाने से डरता है तो किसी को संसद में बयान देने से डर लगता है। किसी को सवाल से डर लगता है तो किसी को सवाल पूछने में डर लग रहा है। अब चुनाव आयोग को जिसका काम ही सब पार्टियों से मिलकर उनकी शंका दूर चुनाव को पारदर्शी बनाना है, उसे विपक्ष की पार्टियों से मिलने में डर लगता है।


किसी ने सच कहा है सत्ता जितनी निरंकुश होती है वो उतनी ही बुजदिल और हिंसक होती जाती है। लगभग 150 सांसदों का संसद से एक ही सत्र में निष्काषन और इडी, सीबीआई, इनकम टैक्स की विपक्षी नेताओं पर कार्यवाही इसी बात की गवाही दे रहे हैं। 


चुनाव आयोग  INDIA गठबंधन से  मिलती नहीं है पर चिठ्ठी लिख तर्क देती है कि इवीएम को लेकर 2018 में तमाम पार्टियों को हैक करने का खुला चैलेंज दिया था जिसे कोई पार्टी नहीं कर पायी थी। दूसरे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के निर्णय इवीएम और वीवीपैट पर आ चुके हैं। इसलिए इवीएम पर शक की बात वहीं खत्म हो गई है।


वस्तुत: बात खत्म नहीं हुई है बल्कि बात अब गंभीर हो गई है। सुप्रीम कोर्ट सबूत के आधार पर निर्णय देती शक पर नहीं और नंगे सबूत चुनाव आयोग के ही पास हो   सकता है। उल्लेखनीय है कि 2018  के खुले चैंलेज में किसी को मशीन छूने की इजाजत नहीं दी गई थी। यानि मशीन जो छू सकता है वही छेड़छाड़ कर सकता है। मशीन चुनाव आयोग ही छू सकता है। शक तो मिलीभगत को लेकर ही है। 


इवीएम पर शक का और प्रमुख कारण तकरीबन 20 लाख गायब इवीएम का मामला भी है। इसे बनाने वाली कम्पनियां ECILऔर BELकहती है चुनाव आयोग को बेचे हैं पर चुनाव आयोग कहता है मुझे मिले नहीं। राज्य चुनाव आयोग ने यदि लिये हों तो वो जाने। गायब इवीएम का यह मामला अजीब है। ये किसके पास हैं  किसी को नहीं पता। अपने गृहमंत्री जो हैं ना, काबिल! जिन्होने बालाकोट में कितने मरे, (जो सेना भी ने नहीं बताया)  वो भी बता दिया था, उन्हें भी इन गायब इवीएम का पता नहीं चल पाया है। कहीं 99% रिचार्ज इवीएम के पीछे इन्हीं ....? 


स्पष्ट है इवीएम अब पूरी तरह  शक के गिरफ्त में आ चुका है। आश्चर्य की बात नहीं है कि जिस इवीएम को एक समय बड़ा Election Reform  समझा गया था उसे आज Result Transform  का जरिया समझा जा रहा है। लोकतंत्र  में सरकार जनता द्वारा  चुनी जाती है और  यदि इस चुनाव प्रकिया पर ही शक हो तो लोकतंत्र के लिये इससे खतरनाक बात और क्या हो सकती है। 


यही कारण है  "इवीएम हटाओ देश बचाओ"के नारे सड़क पर और हैशटैग सोशल मीडिया पर चल रहा है। जगह -जगह  धरना प्रदर्शन हो रहे हैं।  सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का एक जत्था इवीएम को हैक करने के दावे के साथ चुनाव आयोग के दरवाजे पहुंचने लगे थे पर उन्हें  रोक दिया गया । 16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट वकीलों का समूह सुप्रीम कोर्ट धरना देने जा रहा है। इनका आरोप है चुनाव आयोग की मिलीभगत से इवीएम द्वारा चुनाव परिणाम हैक किया जा रहा है। 

 

ये आश्चर्य की ही बात है ना! शक की तो नही ?जो बीजेपी 2014 तक इवीएम के खिलाफ धरना प्रदर्शन करती रही वही आज इसकी जबरदस्त पैरोकार बन गई है।  तर्क ये दिया जा रहा है इवीएम हटा तो हम बैलट पेपर युग में पहुँच जायेंगे। बैलट पेपर युग ऐसे कहा जा रहा है जैसे लालटेन युग आ जायेगा। क्या अमेरिका,जापान, जर्मनी, फ्रांस, इंगलैंड जैसे देश जहां बैलट पेपर से चुनाव होते हैं ,लालटेन युग में जी रहे हैं?   


तरह - तरह की बातें की जा रही हैं। बैलट पेपर से चुनाव हो तो बीजेपी 2024 के चुनाव में 40 से 100 सीटों तक पर सिमट जायेगी और अगर इवीएम से चुनाव हुए तो बीजेपी 418 सीटें जीत लेगी। नाम, राम का लिया जायेगा पर काम इवीएम करेगी। इवीएम है तो फलाना है। इस तरह की बातें भारतीय लोकतंत्र के लिये खतरनाक है। लोकतंत्र में चुनाव प्रकिया पारदर्शी होने चाहिए। जो भी सरकार में आए वो जनता द्वारा चुना गया है ऐसा लगना चाहिए। ऐसे में चुनाव आयोग को या तो बैलेट पेपर से चुनाव कराने चाहिए या फिर INDIA गठबंधन के प्रस्ताव को मान लेना चाहिए। 


क्या ऐसा हो पायेगा? क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कुछ कर सकता है? करने के लिये तो सुप्रीम कोर्ट कुछ भी कर सकती है पर समस्या यह है अमृतकाल का दवाब इस पर भी है। यह अभी भी जस्टिस गोगोई द्वारा दिखाये रास्ते पर चलता दिख रहा है। विपक्ष संगठित हो जनआन्दोलन का रूप दे तो बात बन सकती है। 


बावजूद इसके यह काम इसलिए भी आसान नहीं है क्योंकि बीजेपी को किसी जनआंदोलन से डर नहीं लगता क्योंकि इस डर को भी इवीएम ने हर लिया है। इवीएम है तो जान है, जान है तो जहांन है। हालात ये है कि विपक्ष इवीएम को लेकर जितना सशंकित है उससे अधिक बीजेपी बैैलट पेपर से भयभीत है ...अडानी के नाम से भी ज्यादा । बीजेपी का यह भय दूर हो तो कुछ बात बने। इसके लिये नेता की स्तुति करनी होगी उन्हें उनका पराक्रम याद दिलाना होगा। जैसे समुद्र लांघने हेतु हनुमानजी की गई थी। कुछ इस तरह 


हे छप्पन इंचे, आप विश्व गुरु हैं, आपके स्वघोषित चेले ने विश्व में लंका का डंका बजा डाला है यह देश आपसे भी यही आशा लगाये हुए है। आपके पराक्रम से डरकर नेपाल, लंका, मालदीव चीन के करीब हो गए हैं जबकि आपकी लाल आँखो का खूबसूरत मंजर देखने की आतुरता में चीन नार्थईस्ट में घुसता जा रहा है। हे वस्त्रधनी, आपके नेतृत्व में हंगर इंडेक्स में हमने पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल सबको मात दे दी है, हमारी इकोनॉमी 4 ट्रिलियन की होने जा रही है भले ही कर्ज बढ़ कर जीडीपी का 88% हो गया हो। हे जुमलावाचक, अपने पराक्रम से देश के 80 करोड़ लोगों को आपने पांच किलो दाने का मुहताज बनाकर छोड़ा है। हे गुरुओं के गुरू महागुरू, भगवान राम को भी अपने जन्म स्थान जाने की जरूरत पड़ी तो उन्होने  चारों शंकराचार्यो को छोड़ आपकी अंगुली का सहारा लिया है। ऐसे में हे फोटोजीवि, बैलट पेपर आपके लिये क्या चीज है आप आसानी से इससे पार पा लेंगे। इसके लिये मुठ्ठी खोल चुनाव आयोग को बेहिचक संदेश दे दें। 

प्रणाम! 






 


Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

5 टिप्पणियाँ

  1. सटीक मुद्दे पर सटीक साक्ष्यों के साथ सटीक सवाल ।

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  2. EVM per sawal nahi utana murkhata hai ?

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  3. जो नेता चुनावी मैदान में हैं जो पार्टियां चुनावी मैदान में हैं और जिन्हें EPM पर सन्देह है उन्हें इसका बहिष्कार करना चाहिए सब एकजुट होकर चुनाव का बहिष्कार करें हैं तो संभव है चुनाव आयोग और सत्ताधारी पार्टी को इस विषय पर गंभीरता से कुछ करना पड़े अन्यथा जो चल रहा है वो ही चलता रहेगा

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  4. बिलकुल सही आंकलन ।

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