Nepal's resentment
2014 में भारत में श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार आई जिसने 'पड़ोसी पहले'(neighborhood first) की नीति की बात की और 2015 के नेपाल को भूकम्पिय आपदा में राहत और मदद भी किया! पर इससे संबंध मजबूत होने की बजाय भारतीय मीडिया के बढ़चढ़ कर किये गये दावों ने नेपाली स्वाभिमान को आहत ही किया। इसी प्रकार 2015 में नेपाल में नये नागरिकता कानून के विरोध में मधेशी आन्दोलन के दौरान भारतीय सामानों के आवाजाही पर रोक के पीछे भारत के समर्थन की बात से भी भारत विरोधी भावना को बढ़ावा मिला।
अगस्त 2019 में भारत ने जम्मू और कश्मीर की स्थिति में जो बदलाव किये उसे और लद्दाख दोनों को यूनियन टेरिटरी बनाया तो उसका विरोध नेपाल ने भी किया जबकि इससे उसका कुछ बिगड़ नहीं रहा था । आश्चर्य होता है कि भारत ने धारा 370 में बदलाव से क्या हासिल किया?क्योंकि इससे आर्थिक(कश्मीरी व्यापार) राजनैतिक (मानवाधिकार के प्रश्न को लेकर) और लद्दाख में भौगोलिक नुक्सान(कदाचित) स्पष्ट दिख रहा है । जबकि जम्मू और कश्मीर भारत का अंग पहले भी था और आज भी है। ठीक वैसे ही वहां आतंकवाद पहले भी था और आज भी है।
खैर मुद्दे पे आते हैं! जब भारत सरकार के 8 नवम्बर 2019 सर्वे के 9 वें संस्करण में जाने-अनजाने पता नहीं किस बुद्धिमत्ता में काली नदी का जिक्र ही नहीं किया गया तो नेपाल में भारत विरोधी लहर को हवा मिल गई यद्यपि इससे भी नेपाल की भौगोलिक स्थिति पूर्ववत ही रही है। नेपाल द्वारा इस पर विदेश सचिव की बात-चीत की मांग की जाती रही पर भारत सरकार टालती रही । "पड़ोसी पहले" की नीति वाली को भारत सरकार ने जाहिर है गंभीरता से नहीं लिया!
परिणाम यह हुआ कि नेपाल की डगमगाती ओली सरकार को अवसर मिल गया उन्होंने भारत विरोधी छद्म और उग्र राष्ट्रवाद की पूरी बिसात बिछा डाली । इस वातावरण में जब 8 मई 2020 को भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने मानसरोवर जाने वाले सड़क का वर्चुअल उद्घाटन किया तो नेपाल ने पुरजोर विरोध किया ।
प्रधानमंत्री ओली ने तो अपने तरफ से भारत-नेपाल दीर्घकालीन मैत्री को यह कह कर तिलांजली ही दे डाली कि भारतीय वायरस चीनी और इटली वायरस से अधिक खतरनाक है। इस संबंध में भारतीय सेनाध्यक्ष जो कि नेपाल सेना के भी मानद सेनाध्यक्ष माने जाते हैं का यह बयान कि नेपाल यह विरोध किसी दूसरे (मतलब चीन) के इशारे पर कर रहा है कतई उचित नहीं था और इसने स्थिति और बिगाड़ा ही। आज स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि नेपाल भारतीय बोर्डर पर अपने सैनिक तैनात कर रहा है और स्वतंत्र आने-जाने वालों रोक -टोक रहा है।आसन्न बाढ़ से बचाव के लिए किये जाने वाले कार्य करने में बाधा उत्पन्न कर रहा है!
ऐसे में भारत के रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह का ये बयान कि दुनिया की कोई ताकत भारत और नेपाल के मैत्री संबंध को नहीं तोड़ सकती, प्रेरणा देने वाला है! पर जैसा कि बाबा रामदेव का हर संदर्भ में लागू प्रसिद्ध कथन है कि सिर्फ "कहने से नहीं होता इसके लिये कुछ करना पड़ता है"! भारत को बड़प्पन दिखाना है तो नेपाल को हकीकत समझनी है। चीन भारत के लिए खतरा है तो नेपाल के लिये भी और वो भारत का विकल्प नहीं हो सकता। उसकी विस्तारवादी नीति नेपाल के अस्तित्व के लिये कभी भी खतरनाक हो सकती है।भारत और नेपाल की सभ्यता और संबंध इस तरह मिक्स हैं कि इन्हें किसी भी रसायनिक या भौतिक तरीके से अलग नहीं किया जा सकता। अत:इन्हे बचाने हेतु दोनों तरफ से समझदारी भरे प्रयास होने ही चाहिए!
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5 टिप्पणियाँ
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जवाब देंहटाएंSahi mein...roti aur beti k sambandh ko itni asani se todna sahi nhi hoga....Nepal ko bhi vastusthiti samjhni chahiye sath sath Bharat ko bhi badappan dikhate huye Nepal ki narajgi ko door krne la prayaas krna chahiye...China kabhi bhi Bharat ka vikalp ho skta....ugra rashtrawaad kisi bhi desh k liye achha nhi....
जवाब देंहटाएंNepal abhi Kutch nhi samjhega.Abhi China ke hangover me hai.samjhega lekin der se and Bharat Nepal ke prati hamesha naram rha hai aur rhega future me bhi .
जवाब देंहटाएंNepal (Shriman Oli) ki himmat badhti ja rahi hai.. Aaj Shri Ram ko bhi Nepal ka hi bata raha hai aur keh raha hai ki nepal ki Ayodhaya se Shri Ram Ji belong karte hain..
जवाब देंहटाएंRegards
Bunty
अधिक चीनी मस्तिष्क को भी प्रभावित कर देती है 🙊
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