India's diplomatic defeat in Ladakh!
आखिरकार जिसकी आशंका थी वो सच साबित हो गई । देश पूछता रह गया कि लद्दाख में चीनी सेना भारतीय इलाके में घुसी है कि नहीं ? दु:खद ये रहा कि जवाब भारत सरकार की तरफ से नहीं  चीन द्वारा 15 जून 2020 मध्य रात्रि में 20 जांबाज भारतीय सैनिकों को भारतीय क्षेत्र गलवान घाटी में शहीद कर के आया। यह भी दुख:द है कि वालाकोट में पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक का क्रेडिट श्री नरेंद्र मोदी की सरकार को देने वाली मीडिया लद्दाख के पूरे घटनाक्रम को सेना की लापरवाही बतलाने में लग गई। 











लापरवाही हुई है उनसे हुई जो चीनी नेता के साथ झूला झूलते रहे जबकि चीन भारतीय भू-भाग हड़पने की लगातार तैयारी और प्रयास करता रहा।पराजय हुई है तो उस कूटनीति की हुई है जो जम्मू और कश्मीर को लेकर धारा 370 में किये गये बदलाव और संसद में गृहमंत्री द्वारा पीओके और अक्साई चीन के बारे मेंं बड़बोलापन  के बाद भी चीन की असली मंशा समझने में नाकाम रही।




 इतना ही नहीं चीनी सेना द्वारा  वास्तविक नियंत्रण रेखा(Line of actual control) पार करने पर भी चुप्पी साध अन्तर्राष्ट्रीय जनमत को भारत के पक्ष में आने से वंचित रखा। इसी कूटनीति के भरोसे और 6 जून 2020 आपसी सहमति की बात पर  नि:शस्त्र भारतीय जवान निरीक्षण के लिए आगे बढे और चीनी धोखे से शहीद हुए। भारतीय सेना ने असली लड़ाई लड़ी कहां जो उसकी हार-जीत का प्रश्न उठता?






पाकिस्तान फोबिया से ग्रस्त सर्जिकल स्ट्राईक से अभिभूत संकीर्ण राष्ट्रवाद में विश्वास करने वालों के लिये चीन की ये हरकत किसी सदमे से कम नहीं रही। तभी तो इस घटना के फौरन बाद चीनी द्वारा दोष भारत पर मढ़ा जाने लगा पर भारत की सरकार लगभग दो दिनों तक खामोश रही और विपक्ष द्वारा झिंझोड़े जाने पर ही बोल पायी। यह सही है कि चीन पाकिस्तान नहीं है पर भारत भी तो पाकिस्तान नहीं है!



भारत जैसे शक्तिशाली और महान राष्ट्र को सच्चाई बतलाने और अपने हितों की रक्षा के लिये झिझकना नहीं चाहिए । ऐसी ही झिझक क्लोरोक्वीन दवा को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की तल्खी का जवाब न देकर भी दिखाई गई थी। इस बात का सबक नेपाल भी हमें सीखा रहा है जो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने में भी झिझकता नहीं। ये झिझक, कूटनीति नहीं कमजोरी की निशानी है और भारत इतना भी कमज़ोर नहीं है , सरकार की सरकार जाने?



कूटनीति की ये कमजोरी 19 जून 2020 सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से भी जाहिर हुई जिसमें उन्होंने यह कह दिया भारत की सीमा में न कोई घुसा हुआ है न घुसा है न ही किसीने कब्जा किया है। क्योंकि उनका यह कथन न तथ्यों से मेल खाता है न तर्कों पर खड़ा उतरता है न ही देश के हित में है।



प्रधानमंत्री का यह कथन उनके ही विदेश मंत्रालय के 17 जून 2020 के बयान से खंडित हो जाता है जिसमें चीन द्वारा  LAC  के भारत वाले भू-भाग में ढांचागत निर्माण को विवाद का मुख्य कारण बतलाया गया है, जिसके कारण सैनिकों की शहादत हुई। 20 जून 2020 सरकार की ओर से प्रधानमंत्री के बयान पर सफाई आई है कि LAC के कुछ ही अन्दर ये घटना हुई। इस सफाई में ये नहीं बतलाया गया चीनी वहां हैं या चले गये।



इस सफाई से यह तो साबित हो गया भारतीय सीमा में चीनी घुसे हैं । थोड़ा घुसे हैं या 60 वर्ग किलो मीटर तक? क्योंकि भारतीय सेना के रिटायर्ड कर्नल और पत्रकार अजय शुक्ला की रिपोर्ट यह कहती है कि चीन ने 60 वर्ग किलोमीटर उस इलाके में भारतीय सैनिकों की गश्त रोक दी है जहां अप्रैल 2020 तक वे गश्त कर पाती थीं। चीन ने भी यही कहना शुरू कर दिया है यह हमारा हिस्सा है और हम ही वहां सालों से गश्त कर रहे हैं।



सेटेलाइट इमेज से भी पता चलता है वे न केवल पूरी तैयारी से घुसे भी हैं बल्कि जमे हुए भी हैं । इतना ही नहीं जहां तक पहुँच गए उसे ही LAC बतला अपना बार-बार दावा ठोक रहे हैं! ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री यदि ये कहते हैं कोई कब्जा हुआ ही नहीं तो इससे चीनी दावे को ही मजबूती मिलती है।



यदि यही सच है तो भारत में कूटनीति स्तर पर बौखलाहट और बेचैनी क्यों है ? जब आपने कुछ खोया ही नहीं है और झड़प भी मामूली बात थी और यह आपकी बढती हुई ताकत का ही सबूत है तो चीन के खिलाफ इतना गुस्सा और विरोध की जरूरत ही क्या है? जब  भारतीय शहीदों की संख्या 20 हुई तो चीनी सैनिकों के मरने की संख्या भी 43 हो गई ! इस लिहाज से भी भारत की जीत हुई है तो बौखलाना तो चीन को चाहिए?ऐसे में प्रसिद्ध टीवी सीरियल सीआईडी का डायलॉग बरबस याद आ जाता है कि "कुछ तो गड़बड़ है दया ,कुछ तो गड़बड़ है"। ये 1962 नहीं है , नेहरू नहीं मोदी है -जैसे शब्दाडंबर की गूँज भी बतला रहा है कि भारत ने कुछ खोया है!






झूठ से चुनाव जीते जा सकते हैं युद्ध नहीं। 1962 का भारत आगे बढ़ चुका है इस बात का एहसास चीनीयों को 1967 में ही हो चुका था जब स्व० ईन्दिरा गांधी की सरकार थी। उस समय 15 दिनों के अन्दर भारत की फौज ने उन्हें "नाथूलाॅ" और "चाओलाॅ"दो -दो जगहों पर शिकस्त दी थी। जहां तक नेहरू और मोदी की बात है तो नेहरू लड़ के हारे थे और इसे स्वीकार भी किया था। स्व० अटल बिहारी वाजपेई की मांग पर संंसद की फौरन बैठक बुलाकर खुलकर चर्चा करवाया था।
उ‌नकी प्रसिद्ध उक्ति "भारतीय सेना बहादुरी के साथ पीछे हट रही है" में सच्चाई थी और जो बतलाता है कि भारत युध्द भले हारा था स्वाभिमान नहीं। पर आज? चीन का नाम तक नहीं लिया जा रहा है!