ऐसा इसलिए भी है कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के बाद सबसे अधिक और कुल वोटों के पांचवा हिस्सा कांग्रेस ने ही हासिल किए थे। अतएव चाहे अमित साह हों या योगेन्द्र जादव या फिर सीताराम केसरी द्वारा दुत्कारे गए पुष्पेष पंत कांग्रेस के समाप्ति का जितना भी रट लगालें कांग्रेस समाप्त होने वाली नहीं है। अभी भी बीजेपी को अपने कर्मों के अलावा सबसे अधिक खतरा कांग्रेस से ही है जो कभी भी पूरी मजबूती से खड़ी हो सकती है। यही कारण है बीजेपी के निशाने पर हमेशा कांग्रेस रहती है।
परन्तु यह भी कड़वी सच्चाई है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने वाली कांग्रेस आज जितनी कमजोर है उतनी कभी नहीं रही। श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में 2019 का चुनाव कांग्रेस ने पूरे जोशे-खरोश से लड़ा पर सारे प्रयास पुलवामा और बालाकोट के प्रकरण ,गोदी मीडिया और चुनाव आयोग की पक्षपाती रवैये ने बेकार कर दिए, कांग्रेस बुरी तरह हार गई। राहुल गांधी ने नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया।अभी कांग्रेस में नेतृत्व का संकट है,अनुशासन ढीले पर गए हैं और आत्मविश्वास की कमी है और कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है।पार्टी में भगदड़ मची है मध्यम दर्जे के नेता कांग्रेस को छोड़ रहे हैं। स्थिति संभालने पुनः सोनिया गांधी को कार्यकारी अध्यक्ष बनना पड़ा है।
जहाँ तक अनुशासन की बात है ,बीजेपी में हाल तक अध्यक्ष रहे श्री अमित शाह के समय से इसका दायरा पार्टी से भी व्यापक हो चला है। आरबीआई हो या सीबीआई, चुनाव आयोग हो या इडी या सीएजी या फिर मीडिया सब के सब इनके अनुशासन के दायरे में आ चुके हैं। इनके अनुशासन की प्रबलता ने विपक्षी पार्टियों के अनुशासन को भी अपने प्रभाव में ले लिया है, सरकारें गिरायी और बनायी जा रही हैं। अनुशासन की हद यहाँ तक है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस श्री रंजन गोगई को अलग-अलग अवसरों पर दो- दो बार न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर खतरे की बात कहनी पड़ी है।यही कारण था कि श्री राहुल गांधी ने 2019 के चुनाव के बाद माना कि कांग्रेस सिर्फ बीजेपी से नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था से लड़ रही थी।
सच में कांग्रेस के सामने बीजेपी के रूप में चुनौती अंग्रेज से कम नहीं बड़ी ही है। बीजेपी विरोधियो के लिए कोई रिक्त जगह नहीं देती। अंग्रेज़ों ने "डिवाइड एण्ड रूल" रखा था तो कांग्रेस के पास " राष्ट्रवाद"था जबकि आज बीजेपी के पास दोनों है "सीएए" और"एनआरसी" वाला "डिवाइड एण्ड रूल" और पाकिस्तान फोबिया वाला "राष्ट्रवाद" भी। "सबका साथ सबका विकास" का नारा भी बीजेपी देती है तो दूसरी तरफ 80 लाख भारतीयों को 3 महीने से नजरबंदी में रख कर इस पर पूरे देश में तालियां भी पीटवाती है।एक तरफ गांधी भक्ति का दावा करती है तो दूसरी तरफ चरखे पर से गांधी को गायब कर उनकी हत्या के षडयंत्र में फंसे सावरकर को भारत रत्न देने की बात करती है एवं हत्यारे गोडसे को देशभक्त कहती है। सरदार पटेल की सबसे ऊँची मूर्ति लगवाती है तो दूसरी तरफ उनके द्वारा लाए गए धारा 370 को हटा देती है। मतलब चित भी मेरी और पट भी मेरा।
बीजेपी की इस अद्भुत क्षमता को देख कांग्रेस के लिए यही कहा जा सकता है कि टक्कर है बहुत जोरों की, दुश्मन है जमाना , कांग्रेस के पास, है भी नहीं कोई बापू जैसा उस्ताद पुराना! सच है कांग्रेस के लिए बहुत कठिन है डगर और महात्मा गांधी भी नहीं है पर उनकी विचारधारा तो है ।आज देश को कांग्रेस की जरूरत है और कांग्रेस को जरूरत है गांधी के संघर्ष के उस जज़्बे की जो गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से उतारने के बाद दिखाई थी।
संघर्ष करना है भारत की उदार धर्म निरपेक्ष नीति की रक्षा के लिए, विचार अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए, किसानों और युवाओं की समस्या के समाधान के लिए और संघर्ष करना है भारत के लोकतंत्र को निरंकुशतंत्र में बदलने से रोकने के लिए। यह असंभव भी नहीं है क्योकि अभी भी 63% मतदाता बीजेपी के साथ नहीं हैं। कांग्रेस को जल्द से जल्द अपने नेतृत्व के प्रश्न को हल कर संगठन को दुरुस्त करना होगा। चूंकि मीडिया गोदी हो चुकी है अतएव अपने विचारों और बीजेपी की गलत नीतियों को समझाने जनता के बीच जाना होगा। बतलाना होगा धर्म निरपेक्षता बहुलवादी देश के लिए क्यों जरुरी है और राष्ट्रवाद का मतलब पाकिस्तान पर बम गिराना ही नहीं होता।
जागरुक और जुझारू विपक्ष की तरह हर महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर गांधीवादी तरीके से प्रतिक्रिया देनी होगी चाहे संसद हो या सड़क। मंडल और कमंडल के समय से दूर हुए समाज के तबके को जोड़ने की पुरजोर कोशिश करनी होगी।दूसरे आज पूरा कारपोरेट बीजेपी के साथ भले खड़ा है पर बीजेपी की कुछ आर्थिक नीतियों ने उन्हें भी परेशानी में डाला है। ऐसे में कांग्रेस को उनका भी साथ लेने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह एक सच्चाई है बिना कारपोरेट के मदद के दुनिया में कहीं भी सरकार नहीं बनती।अन्त में इवीएम को लेकर आशंका दूर कर लेनी होगी आखिर बिना देखे बालाकोट का हिसाब बतलाने वाले 10 लाख गायब इवीएम का पता क्यों नहीं बता रहे हैं और चुनाव आयोग की वेबसाइट पर 2019 लोकसभा के परिणाम के आंकड़े अभी तक प्रोविजनल क्यों है?अतएव कांग्रेस की वापसी की वजह ,अवसर और उम्मीद तीनों बदस्तूर कायम है।
अन्त में-
आखिर तुम्हे आना है, जरा देर लगेगी।
Even ki pratistha tabhi rhegi jab BJP haregi. Jab bhi BJP jitegi evm galat hi hoga.
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