एनडीए सरकार जो अपने पिछले कार्यकाल में संवैधानिक संस्थाओं का मानमर्दन के लिए कुख्यात रही थी उसने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद धारा 370 के जम्मू और कश्मीर से संबंधित प्रावधानो को रद्द कर भारत के संविधान का ही मजाक बनाने का प्रयास किया है। इसके द्वारा एक तो इस राज्य का बंटवारा कर लद्दाख को अलग कर दिया और दूसरे बचे-खुचे जम्मू और कश्मीर से विशेष के साथ राज्य का दर्जा भी छीन कर दोनों को यूनियन टेरीटरी घोषित कर दिया।इसे करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों के साथ जो बाजीगरी की गई है उसे जानने के लिए धारा 370 को समझना होगा।
धारा 370 के इन्ही प्रमुख प्रावधानों को अपने एजेण्डे के तहत निष्प्रभावी बनाने के लिए भाजपा की सरकार ने चतुराई दिखलाते हुए धारा 367 का सहारा लिया जो मुख्यतया संवैधानिक अस्पष्टता की ब्याख्या करने वाली धारा है। इसके द्बारा धारा 370 (सी)में लिखित "संविधान सभा" को संशोधित कर "विधानसभा" कर दिया। यहां स्पष्ट है किसी अस्पषटता को स्पष्ट नहीं किया गया है बल्कि जो स्पष्ट रूप से "संविधान सभा" थी उसे स्पष्ट रूप "विधानसभा" में बदल दिया गया और वह भी संविधान संशोधन की विशिष्ट प्रक्रिया के पालन बगैर। बस इतना करने मात्र से धारा 370 के समाप्ति या निष्प्रभावी करने की रेसीपी तैयार हो गई।
इस रेसीपी में जो संविधान बनाती है वो संविधान सभा,जो संविधान के अनुसार चलती है उस विधान सभा के बराबर हो गई और विधान सभा की अनुपस्थिति में संसद ने वो जगह ले ली ।वो राज्यपाल जो केन्द्र का प्रतिनिधि होता है इनकी अनुपस्थिति में वह जनप्रतिनिधित्व की सरकार के बराबर मान लिया गया। रह गई जम्मू और कश्मीर की जनता उनके लिए धारा 144 और नजरबंदी परोस दिया गया। है न कमाल पर क्या मुमकिन है? क्या सुप्रीम कोर्ट में ये बाजीगरी ठहर पायेगी? या फिर मोदी है तो मुमकिन है नारा चलता रहेगा? ये तो समय
बतलायेगा।
-परिमल
Well written 👍
जवाब देंहटाएंPeople need to know!!!
It makes me believe that still there are people who wants to understand the situation and are not blown away by the so called great orators.
True🤔
हटाएंValid information
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