Internet - A little relief to Kashmiris!
नये सेनाध्यक्ष कह रहे हैं धारा 370 को हटाना एक ऐतिहासिक कदम है क्योंकि इससे कश्मीर में आतंकवादी घटना में कमी आई है और इससे पहले गृहमंत्री संसद में बयान दे चुके हैं कि कश्मीर में पूरी शान्ति है और पुलिस की गोली से एक भी आदमी नहीं मरा है।

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पर कोई यह नहीं बता रहा है कि यदि सात लाख की संख्या में सैनिकों की उपस्थिति हो तो आतंकवादी घटना में कमी वैसे ही न हो जाय और न ही  कोई यह समझने को तैयार है प्रताड़ना का मतलब सिर्फ मौत ही नहीं होता।
 ये भी आंकड़े  नहीं दिए जा रहे हैं कि निरन्तर जारी टेलीकाम व इन्टरनेट प्रतिबंध और  सेक्शन 144 के कारण डाक्टरी सुविधा से वंचित कितने लोगों की मौतें हुई है और न ही इस बात का किसी को अहसास है कि इन प्रतिबंधों के बीच जी रहे कश्मीर के लोग किस तरह की शान्ति का अनुभव कर रहे हैं !


जहां तक 370 हटाने की ऐतिहासिकता की बात  है वो ऐतिहासिक है (नोटबंदी की तरह ) कि नहीं वो तो बाद में तय होगा पर सबसे लंबी अवधि तक इन्टरनेट बंद रख विदेशों में किरकिरी का विश्व रिकॉर्ड अवश्य बना लिया गया है। खैर इसी "श्रीअमित शाही" शान्ति में जी रहे कश्मीर के लोगों के लिए सुप्रीमकोर्ट से इन्टरनेट प्रतिबंध और सेक्शन 144 से को लेकर राहत से भरा फैसला आया है। यह फैसला न सिर्फ कशमीर के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारत के नागरिकों के मूल अधिकार के संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी 2020 के फैसले में कहा है इन्टरनेट नागरिकों के मूल अधिकार से संबध्द है और इन्टरनेट पर अनिश्चितकालीन प्रतिबंध की इजाजत नहीं दी जा सकती है यह न  टेलिकॉम नियमों का उल्लंघन है बल्कि भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त उस "विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" धारा 19 (1)(अ) के मौलिक अधिकार के भी खिलाफ है जिसका इन्टरनेट एक अहम हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि व्यापार और वाणिज्य का अधिकार जो धारा19(1)(ग) में उल्लिखित मौलिक अधिकार की श्रेणी में आते हैं उसके लिए भी इन्टरनेट जरूरी है अतः यह इस धारा का भी अहम् हिस्सा है।अपनी इन स्पष्ट मंतव्यो के बावजूद  पता नहीं क्यों सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में लगभग 6 महीनों से जारी इन्टरनेट प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित नहीं किया पर एक सप्ताह के अन्दर एक समिति द्वारा समीक्षा करने का आदेश अवश्य दिया है।


शायद यह केन्द्र सरकार को सुधरने और संभलने का एक मौका देना चाहती है पर  5 अगस्त से जम्मू और कश्मीर में  तथा पिछले महीने से देश भर में चल रहे इन्टरनेट एवं टेलीफोन के मनमर्जी प्रतिबंधों और सेक्शन 144  के दुरुपयोग से सुप्रीम कोर्ट दुखी अवश्य है। तभी तो इस फैसले में यह कहा गया है इन्टरनेट प्रतिबंध सिर्फ सीमित समय के लिए ही हो सकते हैं और इसे "अनुरूपता (proportionality) के  सिध्दांत" के अनुकूल तथा कम से कम प्रतिबंधात्मक होने चाहिए।


 यह भी स्पष्ट कर दिया कि इन्टरनेट पर प्रतिबंध " न्यायिक पुनर्विलोकन "( judicial review) के विषय होंगे इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न कोई बाधा नहीं बनेंगे।इसके लिए जम्मू और कश्मीर  के सरकार को इन्टरनेट प्रतिबंध से संबंधित सभी वर्तमान और भविष्य के आदेशों को प्रकाशित करने का निर्देश भी दिया है। कोर्ट ने अस्पताल, बैंक और बाजार में इन्टरनेट फौरन बहाल करने के आदेश दिए जबकि बाकि जगहों के प्रतिबंधों पर रिव्यू कमिटी द्वारा विचार कर उस पर निर्णय लेने के निर्देश भी दिए ।


सीआरपीसी के सेक्शन 144 जिसमें 5 से अधिक लोगों को एक जगह पर एकत्र होने की मनाही होती है, के संबंध में भी सुप्रीम कोर्ट ने कई बातों को अपने फैसले में स्पष्ट किया है। प्रशासन मनमाने ढंग से इसे लागू नहीं कर सकता। यह किसी विधिसम्मत विचारों को व्यक्त करने  और प्रजातंत्रिक अधिकारों के उपयोग करने से रोकने के लिए नहीं लगाया जा सकता। मतलब अब यदि किसी शान्ति पूर्ण सम्मेलन और विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए 144 को लगाया गया तो वह अवैध होगा।


 सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह सिर्फ अपरिहार्य आपात स्थिति में ही लागू किया जाना चाहिए और इसे भी "अनुरूपता के सिध्दांत" के अनुकुल एवं कम से कम प्रतिबंधात्मक होने चाहिए।मतलब अब यदि श्री अमित शाह की दिल्ली में बस जलेगी तो योगीजी पूरे यूपी में 144 लागू नहीं कर सकेंगे। अब इसके आदेश में औचित्य लिखना होगा और ये प्रकाशित भी किए जायेंगे ताकि प्रभावित नागरिक इसके विरूद्ध सक्षम न्यायालय जा सकें। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर प्रशासन को 144 से संबंधित सभी वर्तमान और भविष्य के आदेशों को प्रकाशित करने का निर्देश भी दिया है।




सुप्रीम कोर्ट  का यह फैसला इन्टरनेट को नागरिकों के मूल अधिकार का विषय बनाने के कारण ऐतिहासिक तो हो ही गया है साथ ही इसके द्वारा नागरिकों की स्वतंत्रता और राज्य की सुरक्षा के बीच बेहतर संतुलन स्थापित करने का भी प्रयास किया गया है। यद्यपि जम्मू और कश्मीर के लोगों को फौरी राहत नहीं मिली पर वहां के प्रशासन को पूरे निर्णय से ये संकेत अवश्य दे दिए गए हैं वहां  लगे प्रतिबंध सही नहीं है।



धारा 370 को हटाना सही है या गलत अब तो इसका फैसला भी सुप्रीम कोर्ट को ही करना है पर इस बात में कोई दो मत नहीं है उसके बाद से ही वहां रहने वाले लोगों का जीवन तरह-तरह के प्रतिबंधों से कष्टप्रद हो चला है। अब बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है सरकार इस फैसले के भाव या आत्मा को समझे और वहां के न्यायालय  मौलिक अधिकार से जुड़े माामलों को प्राथमिकता और तत्परता से सुने। अपेक्षा हैै कि अभी तक जनता के विरोध के प्रति असंवेदनशील रही ये सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद थोड़ा संवेदनशील हो और हर विरोध को कुचल देने की प्रवृति पर अंकुश लगा अपने निर्णयों में संविधान और प्रजातांत्रिक मूल्यों का ध्यान रखें ।