Gandhi is everywhere




मालेगांव बम धमाके की आरोपी और बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने फिर मोहनदास करमचंद गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहा वो भी संसद में। काफी हंगामा के बाद उसने माफी मांगी। माफ़ी तो उसने 2019 आम चुनाव के समय भी इसी वक्तव्य को लेकर मांगी थी तब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इससे इतने दुखी और नाराज हुए थे कि बोले इस अपराध को मैं कभी नहीं भूलूंगा।


प्रधानमंत्री सचमुच नहीं भूले। पार्टी  से प्रज्ञा ठाकुर  को नहीं  निकाल कर भी गुस्सा शांत नहीं हुआ तो विपक्ष के टोका टिप्पणी के बावजूद देश की सुरक्षा से  संबंधित महत्वपूर्ण संसदीय समिति का सदस्य भी बना डाला।  इसे कहते हैं अपनी बातों का धनी होना। दुबारा वही गलती ! अब तो शायद संसदीय समिति से बाहर कर  कहीं  प्रज्ञा ठाकुर को "पद्म श्री "न दे दें! भारत रत्न!  अरे नहीं ! वो किसी और  स्वघोषित वीर विशेषण रखने वाले महानुभाव के लिए सोच रखा है।



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एक हत्या के आरोपी द्वारा दूसरे फांसी पर लटक चुके सगी विचारधारा वाले हत्यारे को देशभक्त बतला देने में  ऐसा अनर्गल भी कुछ न था। पर मुश्किल यह है कि सगी विचारधारा वाले नाथूराम ने जिसकी हत्या की थी  वो महात्मा गांधी थे जिन्हें पूरा देश प्यार से बापू कहता था और उन्ही के प्रयासों से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन  एक जन आंदोलन में बदल पाया था और देश को आजादी मिली थी। उनके अहिंसक आन्दोलन ने अंग्रेज़ी हकुमत की चूलें हिला दी थी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल  बड़बड़ा उठे थे "जब हम दुनिया में हर कहीं जीत रहे हैं तो ऐसे में हम कमबख्त एक बूढ्ढे ( महात्मा गांधी) से कैसे हार सकते।"


गांधी के सादे जीवन उच्च विचार के सिद्धांत, मानवता वादी दृष्टिकोण, सर्वधर्म सदभाव, सत्य और अहिंसा  में आस्था और सत्याग्रह की नीति द्वारा विरोधियों के ह्रदय परिवर्तन की अनोखी तकनीक की सारी दुनिया कायल रही है। चाहे  अमेरिका में रंगभेद विरोधी आन्दोलन के नायक मार्टिन लूथर किंग  हो या दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन के हीरो नेल्सन मंडेला या अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बाराक ओबामा  सभी के प्रेरणास्रोत महात्मा गांधी ही थे।

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अभी तक 80 देश महात्मा गांधी के नाम पर तकरीबन 250  डाक टिकटें जारी कर चुके हैं और दुनिया के प्रायः हर महत्वपूर्ण शहरों में गांधी की मूर्ति स्थापित है और यह सिलसिला अभी तक नहीं थमा है। हाल में ही 2017 नवम्बर में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिस्बेन में और नवम्बर 2018 में राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने सिडनी में महात्मा गांधी की नई मूर्तियों का अनावरण किया है । रिचर्ड एटनबरो की महात्मा गांधी की जीवनी पर बनी फिल्म "गांधी" सुपरहिट रही तो उनकी विचारों से प्रेरित "मुन्ना भाई एमबीबीएस"  ब्लाकबस्टर।



आज भी 2 अक्तूबर  गांधी के जन्मदिन को भारत में "गांधी जयंती" और विश्व में "अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस" के रुप में मनाया जाता है। " वास्तव में महात्मा गांधी  महामानव ही तो थे जिनके बारे में प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्सटीन ने कहा था" सौ साल ( गांधी के जाने) बाद लोग विश्वास नहीं करेंगे कि ऐसा व्यक्ति हाड़-मांस का बना हो सकता है।"आज हर सच्चे भारतीय को इस बात का गर्व है हम उस देश के वासी हैं जिस देश में महात्मा गांधी रहते थे। ऐसे व्यक्ति की हत्या कोई भारतीय करे और उस हत्यारे को इसी काम के लिए देशभक्त कहा जाय इसे बुध्दि की बलिहारी ही कहा जा सकता है।

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दरअसल 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के पश्चात् भारत के अंग्रेजी हुकूमत को ये अक्ल आ गई  कि भारत में राज करना है तो यहाँ के हिंदू-मुस्लिम के बीच दरार पैदा करनी होगी।इसके लिए उसने "डिवाइड एण्ड रूल" की नीति अपनायी मुसलमानों के दिमाग में यह बात बिठाने की कोशिश शुरू कर दी उनके लिए अंग्रेजी शासन रहना ही श्रेयस्कर है नहीं तो हिन्दू उनपर राज करने लगेंगे।1905 का बंगाल विभाजन के बाद 1906 में 'मुस्लिम लीग' का जन्म हुआ तो '1909 के मार्ले-मिन्टो एक्ट' के द्वारा 'साम्प्रदायिक चुनाव  की व्यवस्था 'ने 2015  में हिन्दुवादी संगठन  "हिन्दु महासभा" का गठन कराया।


 अंग्रेजों को इस कार्य में 1925 में अस्तित्व आए एक हिन्दुवादी संगठन 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( आर एस एस) ' से भी बड़ी मदद मिली जिसने 'हिन्दुत्व' की नई परिभाषा गढ़ भारत को एक 'हिन्दु राष्ट्र' बनाने की बात शुरू कर दी। इन सबसे मुसलमानों के एक तबके में अंग्रेजों द्वारा डाले गए खौफ में सच्चाई नजर आने लगी और वे मुहम्मद अली जिन्ना की नेतृत्व वाली "मुस्लिम लीग" के पीछे गोलबंद होने लगे। 'आर एस एस' शीघ्र ही एक अम्ब्रेला संगठन बन गया और सभी हिन्दुवादी संगठन इसी छतरी के अन्दर आ गए जिन्हें सामूहिक रूप से 'संघ परिवार' कहा जाता है। आर एस एस, हिन्दु महासभा,  बजरंग दल, बीजेपी आदि सभी इसी एक संघ परिवार से हैं।


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यहां उल्लेखनीय है किसी भी हिन्दु या मुस्लिम साम्प्रदायिक गुट या पार्टी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हिस्सा नहीं लिया न कोई त्याग किया और न ही बलिदान। यह काम गांधी की कांग्रेस पार्टी और  और स्वतंत्रता प्रेमी अन्य देशभक्त करते रहे परन्तु ये लोग हिन्दु- मुसलमान का खेल करते रहे। अंग्रेजी शासन का विरोध करने की हिम्मत इनमें न थी यही कारण था कि कांग्रेसी दोस्तों के चक्कर में कुछ लोग जेल भी गए तो या तो उन्होंने क्षमा की याचना की या फिर सरकारी गवाह बन गए।


आर एस एस के तत्कालीन प्रमुख श्री गोलवलकर का स्पष्ट कहना था कि "स्वतंत्रता अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा कर के हासिल की जा सकती है न  कि अंग्रेजो से लड़ कर। "अंग्रेज विरोधी राष्ट्रवादी आन्दोलन" को प्रतिक्रियावादी  कहा कांग्रेस और गांधी द्वारा चलाए गए हर राजनीतिक गतिविधियों का विरोध किया ।
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संघ परिवार की विचारधारा का गांधी के विचारों से भी कोई मेल नहीं था। जहां गांधी हिन्दु और मुसलमान को भारत की दो आंख कहते थे तो  सावरकर इन्हें दो पृथक राष्ट्र। जहां ये हिन्दु राष्ट्र की बात करते वहीं गांधी पंथनिरपेक्षता में यकीन करते। जहां ये समस्त मुसलमानों का पुन: हिन्दु धर्म में धर्मान्तरण चाहते थे जबकि गांधी इसकी जरूरत ही नहीं समझते क्यों कि उनका विश्वास ईश्वर अल्लाह तेरो नाम में था।


गांधी  को सत्य और अहिंसा की नीति में  आस्था थी वहीं अपने आदर्शों पर टिके रहने का जबरदस्त आत्म बल। संघ परिवार को इन बातों पर विश्वास नहीं था और वे सदस्यों को 'सैनिक प्रशिक्षण' देते थे। जहां तक अपने आदर्शों पर टिके रहने के आत्म बल की बात है वह भी नहीं था तभी तो 1937 के प्रांतीय चुनाव में हिन्दु महासभा ने अपने धुरविरोधी मुस्लिम लीग के साथ तीन प्रान्तों यथा बंगाल, सिन्ध और नोर्थवेस्टफारेन्टियर प्रांत में सरकार बना ली।

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जब मुस्लिम लीग ने 1940 में पृथक पाकिस्तान का प्रस्ताव दिया तो गांधी सहित कांग्रेस, संघ परिवार और अन्य तमाम मुस्लिम संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध किया। महात्मा गांधी ने यहां तक कह डाला कि भारत का बंटवारा मेरी लाश पर होगा। परन्तु  कालान्तर में जब जिन्ना की जिद, अंग्रेजो की भारत छोड़ने की हड़बड़ाहट ,देश में भयानक साम्प्रदायिक दंगो से उत्पन्न स्थिति ने कांग्रेस को गांधी की असहमति के बावजूद भारी मन से 3 जून 1947 माउंटबेटन की  योजना को  स्वीकार करने को मजबूर कर दिया तो गांधी ने विरोध स्वरुप एक दिन का मौन रखा था।



उस समय की स्थिति के बारे में पंडित गोविन्द वल्लभ पंत ने कहा था "आज हमारे सामने दो विकल्प हैं 3 जून की योजना की स्वीकृति या फिर आत्महत्या। " बाद में इसी योजना के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने 18 जुलाई को " भारत स्वतंत्रता अधिनियम"  पारित कर दिया। इस तरह  भारत का बंटवारा गांधी के चलते नहीं बल्कि उनके बावजूद हो गया। 15 अगस्त 1947 जब दिल्ली में स्वतंत्रता का जश्न मनाया जा रहा था तब गांधी कलकत्ता में दंगा शान्त कराने के लिए उपवास और प्रार्थना कर रहे थे। इसके बारे में लार्ड माउंटबेटन ने लिखा पंजाब में 5000 फौज है फिर भी 500 दंगे की रिपोर्ट आई है पर बंगाल मे एक  (गांधी) है पर पूरी शान्ति है।


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पर नाथूराम गोडसे और उसके संघी विचारधारा वाले अन्य दोस्त बंटवारे का दोषी गांधी को समझते थे। उसे गांधी के सर्व धर्म सदभाव प्रयासों में मुस्लिम पक्षधरता दिखलाई पड़ती थी। उसे लगा कि गांधी के रहते हिन्दुवादियों के सपने पूरे नहीं हो सकते। बुध्दि की इसी अराजकता में नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर डाली।  गोडसे के अलावा सावरकर सहित 6 और लोग पकड़े गए।


गोडसे ने अपने बचाव में गांधी द्वारा पाकिस्तान को बकाये राशि चुकाने हेतुु भारत सरकार पर दवाब देने  की बात कर  जघन्य अपराध को उचित ठहराने का बेहूदा प्रयास किया। हद है देश की आजादी लड़ाई से मुंह चुराने वालों को देश की चिंता होने लगी थी ? गांधी की हत्या का यह 6 ठा  प्रयास था पहले वाले प्रयासों के समय तो  50 करोड़ का कोई मामला था ही नहीं? देशभक्ति ही दिखानी थी तो किसी अंग्रेज़ सिपाही के आगे "भारत माता की जय " के नारे लगा लेते तो भी मान लेते! वो तो हो न सका पर किया क्या? भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के नायक और भारत के सबसे बड़े सपूत को गोली मार दी। धिक्कार है !



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आज देश में बीजेपी की सरकार  है जो संघ परिवार से आती है। इस नाते मुश्किल यह है कि यह न तो गांधी की खुल कर निन्दा कर सकती है और न ही गोडसे की प्रशंसा।यही कारण है कि इनके बड़े से बड़े नेता गांधी की हत्या को 'गांधी वध 'कहते हैं और इस घटना की निंदा कर लेते हैं पर गोडसे की भर्त्सना नहीं कर पाते हैं। गोडसे का मंदिर बनाने और सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की जा रही हैं। सोशल मीडिया में गोडसे का महिमामंडन किया जा रहा है, गोडसे के 'लाईक' बढ़ रहे और व्हाट्सएप पर गांधी के खिलाफ मिथ्या बातें  बतलायी जा रही है ।



वास्तव में भारत का बंटवारा गांधी की धर्म निरपेक्ष नीति और सत्य और अहिंसा की तकनीक से नहीं हुआ बल्कि समाज में धर्म के आधार पर विद्वेष फैलाने वाली नीति  और मंदिर के सामने गाय और मस्जिद के सामने सुअर मारकर फेंकने की तकनीक ने कराया। प्रज्ञा ठाकुर जैसे गोडसे भक्तों को आगे बढ़ाने से गांधी का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। क्योंकि जहां भी प्रेम, शान्ति और आपसी भाईचारा है तो वो समाज गांधीमय है और जहां ये नहीं है वहां गांधी जरूरत के रूप में मौजूद रहेंगे। अतएव  गांधी से पार पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
अन्त में
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         अजी  हम सेे रूठ कर कहाँ जाइयेगा , 
                                               जहां जाइयेगा हमें पाइयेगा