NRC is hypocrisy, not patriotism!एनआरसी देशभक्ति नहीं, प्रपंच है!




असम में की गई एनआरसी अपग्रेड के अनुभव से यह स्पष्ट हो गया कि यह एक बेकार प्रक्रिया  है  जिसमें  समय और धन की बेइंतहा बर्बादी होती है और अपने ही नागरिकों पर शक कर उनकी फजीहत की जाती हैऔर हासिल कुछ नहीं होता है।

NRC is hypocrisy, not patriotism!

इस तरह  का प्रयास वेटिकन सिटी या सिंगापुर जैसे छोटी आबादी वाले देशों में भले ही सफल हो  जाय भारत जैसे देश जहाँ की प्रायः हर राज्य की आबादी करोड़ों में है वहां नहीं। जब 3 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले असम में  6 सालों में  1500 करोड़ ख़र्च करने के बाद भी सफल नहीं हो सकी तो इसे पूरे एक अरब 30 करोड़ के देश में  कराने में न जाने कितने साल और पैसे खर्च होंगे। 6 साल से असम ठप्प रहा और वहां के लोग कागजात ढूँढने में लगे रहे अब देश को ठप्प करने की बात करना , देशभक्ति नहीं ,  प्रपंच ही कहा जा सकता है।


दुर्भाग्य से बेवकूफी से भरा यह प्रपंच शुरू हो गया है और उसके प्रणेता बने हैं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भारत के गृहमंत्री श्री अमित साह, जो हाल में ही देश के एक राज्य को "अभिन्न से भिन्न और भिन्न से अभिन्न"  बना कर अपने जबरदस्त चुनावी फार्म  में होने की घोषणा की है।इनका कहना है कि असम की तरह पूरे देश में एनआरसी की जायेगी और देश में एक भी घुसपैठिया नहीं रहेगा और जब आगे यह कहते हैं कि एक-एक को "चुन-चुन करके देश से निकाला जायेगा" तो बरबस फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र की याद आ जाती है और दिल में देशभक्ति की भावना हिलोरें  मारने लगती है। यही अमित साह जी चाहते हैं और यही उनके चुनावी फार्म को बरकरार रखने में सहायक होगी। पर यहां ये जानना आवश्यक है कि देशभक्ति की यह भावना वास्तविक है या प्रपंच(बनावटी)!
NRC is hypocrisy, not patriotism!


दरअसल विदेश से आने वाला हर व्यक्ति घुसपैठिया नहीं होता बल्कि उसे आप्रवासी कहते हैं उनमें से जो जरूरी कागजात के साथ होते हैं उन्हें वैध आप्रवासी , जो बिना कागजात के होते हैं उन्हें अवैध आप्रवासी कहा जाता है। घुसपैठिया और अवैध आप्रवासी में  अन्तर होता है। घुसपैठिये का उद्देश्य उस देश को हानि पहुंचाने की होती है जिस देश में वह घुसपैठ करता है जबकि अवैध आप्रवासी रोजी-रोटी की तलाश में आने वाले प्राय: गरीब मजदूर और मजबूर लोग होते हैं।


घुसपैठिये को जो कि प्राय: विदेशी गुप्तचर और आतंकवादी के रूप में होते हैं उन्हें निकाला नहीं जाता बल्कि पकड़ा जाता है और देश के कानून के अनुसार दण्डित किया जाता है और जेल में डाला जाता है। अवैध आप्रवासी  की पहचान की जाती है और उन्हें मूल देश को यदि वो लेने को तैयार हो वापिस भेजा जाता है अन्यथा हिरासत केन्द्र में रखा जाता है। गृहमंत्री जी जानबूझकर अवैध आप्रवासी को घुसपैठिया कह उसे देश से बाहर निकालने की बात करते हैं क्योंकि इससे उन्हें छद्म देशभक्ति की भावना जागृत करने में मदद मिलती है।


घुसपैठिया किसी भी देश को बरदाश्त नहीं होते जबकि अवैध आप्रवासी सिर्फ भारत में ही नहीं प्राय: हर देश में होते हैं। यहां तक कि अमेरिका में भी 10.7 मिलियन अवैध आप्रवासी रहते हैं, जिनमें भारतीयों की सं
ख्या 4 लाख 30 हजार बतलायी जाती है। इसी तरह बंगलादेश और श्रीलंका जैसे देश में भी अवैध आप्रवासी हैं और वहां इनमें भारतीयों की संख्या ही सर्वाधिक है।इनमें से कहीं भी एनआरसी जैसी बेकार प्रक्रिया नहीं अपनायी जाती। इसके लिए प्रत्येक देश के पास अपनी सुरक्षा एजेन्सियां होती हैं, नियम और कानून होते हैं जिसके द्वारा नियमानुकूल कारवाई की जाती है।


 झिरझिरा बोर्डर में कंटीले तार अथवा पक्की दीवारें खड़ी की जाती हैं। भारत में भी अवैध आप्रवासी की पहचान के लिए फारेनर एक्ट 1946 है जिसके तहत शुरू में 36 'फारेनर ट्रिब्यूनल'बनाये गए जो बढ़ा कर 200 कर दी गई हैं इनके द्वारा अवैध आप्रवासी की पहचान कर  उन्हें अपने देश भेजा जाता है। यूपीए के शासन काल में लगभग 1100 अवैध आप्रवासी को निर्वासित किया गया।  वहीं चुन-चुन कर देश से निकालने की बात करने वाले गृहमंत्री की एनडीए के शासन मे पिछले 4 सालों में 5  अवैध आप्रवासी निर्वासित किया गया इससे अवैध आप्रवासी को लेकर इनकी गंभीरता  का पता चलता है।
NRC is hypocrisy, not patriotism!


वास्तव में 'अवैध आप्रवासी'  भारत में  कोई समस्या है ही नहीं जिसके समाधान  की बात की जाय। असम में की गई एनआरसी से कम से कम एक चीज तो अच्छी हुई कि ये बात साबित हो गई। 2011 की जनगणना रिपोर्ट से भी यही तथ्य जो हाल में उजागर किए गये हैं भारत में अवैध आप्रवासी 1% से भी कम हैं। यह खतरनाक आंकड़ा नहीं है लगभग इतने भारतीय भी होंगे जो विभिन्न देशों में अवैध आप्रवासी  के रूप में रह रहे हैं। हिसाब बराबर! अतएव अवैध आप्रवासी को लेकर अभी तक जो कुछ हुआ है शुध्द रूप से क्षुद्र राजनीति थी जिसे शुरू प्रफुल्ल मोहन्ती ने छात्र आन्दोलन से किया था और साम्प्रदायिक फ्लेवर और छद्म देशभक्ति का मुलम्मा चढ़ा कर एनडीए की सरकार आगे चला रही है। यह राजनीति ही तो है कि एक तरफ गृहमंत्री चुन-चुन कर बाहर निकालने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ अन्य मंत्री और प्रधानमंत्री भी चिन्तित बंगलादेश को आश्वस्त करते हैं आन्तरिक मामला है आपके यहाँ कोई नहीं भेजा जायेगा।अरे बाप रे ! विदेश में  बुध्द बांचा रहा और देश में बुध्दु बना रहे हैं ।यह इससे भी स्पष्ट होता है जिस एनआरसी का विरोध असम की खुद एनडीए सरकार कर रही है उस एनआरसी को पूरे देश में एनडीए की ही सरकार लाना चाह रही है।

NRC is hypocrisy, not patriotism!


असल में हमारे ऐसे गृहमंत्री हैं जो  हमेशा राष्ट्रहित की बात करते हैं पर अफसोस सिर्फ बात ही करते हैं करते वही हैं जो पार्टी हित में होता है। एनआरसी  को वो हिंदू-मुस्लिम  ध्रुवीकरण के रूप में लेते हैं जिसनें उन्हें असम में कामयाबी दिलाई वो उनकी पार्टी को पूरे  देश में भी कामयाबी भविष्य में दिलाता रहेगा ऐसा उनका विश्वास है। यही कारण है कि हर सभा में उन्होंने कहना शुरू कर दिया है पूरे देश में एनआरसी होगी और मुस्लिम छोड़ जो भी एनआरसी से बाहर होंगे उन्हें भारत की नागरिकता दे दी जायेगी और सिर्फ बचे (मुस्लिम) को देश से निकाल बाहर किया जायेगा और इसके लिए भारतीय नागरिकता कानून 1955 में पहले संशोधन किया जायेगा।लगता है गृहमंत्री एनआरसी पचड़े में व्यर्थ मे फंसे सुप्रीम कोर्ट को लेकर कुछ ज्यादा ही आश्वस्त हो चले हैं क्योंकि यह संविधान की धारा 15 का सरासर उल्लंघन होगा जो धर्म के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। इस तरह का संशोधन भारत की उदार और धर्मनिरपेक्ष छवि और संविधान के खिलाफ होगा। ऐसा करना महात्मा गांधी के उस विचार के खिलाफ होगा जब वे हिन्दू और मुसलमान को भारत के दो आंख कहते थे। यह पटेल के उस महान एकीकरण के प्रयासों के खिलाफ होगा जिसने सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधा था।अन्त में यह उस भावना के भी खिलाफ होगा जिसमें बंधकर सब भारतीयों ने अंग्रेजों से आजादी पायी थी।


 धर्म आधारित राष्ट्र मध्यकालीन सोच है इस तरह का संशोधन एवं इस तरह की एनआरसी और इस तरह की राजनीति भारत को उसी दिशा में ले जा रही है। इसे रोका जाना चाहिए। अब दो ही उपाय हैं या तो सुप्रीम कोर्ट अपने "ठकमुरीमोड" (किंकर्तव्यविमूढ़ मोड) से बाहर आए और संविधान और मौलिक अधिकारों की रक्षा करे या एनडीए सरकार और गृहमंत्री श्री अमित साह चुनावी मोड से निकलें और यह जानें कि गृहमंत्री का कार्य देश  में भाईचारा, शान्ति और सौहार्द बनाना होता है न कि उथल-पुथल और तनातनी कायम करना।!

अन्त में -

ना जानू मुल्ला काजी ना जानू काबा काशी
ना चाहुं  एन आर सी    ना   चाहुं आप्रवासी
मैं तो प्रेम प्यासा रे,
दे दे दे बदले में दिल को, देश से सौदा नहीं।।

















Parimal

Most non -offendable sarcastic human alive! Post Graduate in Political Science. Stay tuned for Unbiased Articles on Indian Politics.

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने